एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

धन्यवाद कपिल जी 
हमारे उजले केश और बढ़ती उम्र को देख आपने हमें ६०-७०-के दशक के गांव के लिए सही चुना 
पर एक बात बतादे की हम तब भी जवान थे अब भी जवान है बस सर्दी का मौसम आ गया है 
समय बदल रहा है -हर चीज का अंदाज बदल रहा है -दासछिद्रो वाला काला टेलीफोन पहले
 पुश बटन हुआ और अब मोबाईल पर उंगलिया फिसलने लगी है ,
हमें याद है जब हम बच्चे थे ,पिता से इतना डरते थे. 
कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था 
और बच्चे आजकल के हो गए मॉडर्न इतने है,
पिता से पूछते है मम्मी को कैसे पटाया था 
तो समय से साथ हमारी सोच.हमारा नज़रिया भी बदल रहा है और यही दास्ताँ हमारी फिल्मो की 
भी है -गीतों की आत्मा वही है पर कहने का अंदाज बदल गया है ,गीतों की भाषा में बोलों तो तब का गाना जो
'हवा में उड़ता जाये,मेरा लाल दुपट्टा मलमल  का' से 'ओ  लाल डुपट्टेवाली अपना नाम तो बता 'होते हुए
 आज 'काली तेरी जुल्फे पंरांदा  तेरा लाल नी 'पर आ गया है 
इन्तजार इन्तजार इन्तजार ,जिदगी में ये ही लगा रहता है यार 
हम तेरा इन्तजार करेंगे कयामत तक खुदा करे की कयामत हो और तू आये 
या फि आ जा रे परदेशी या हमरे गाँव कोई आएगा 
कितने ही ऐसे फ़िल्मी नग्मे है जो किसी के इन्तजार में गाये गए है 
याद करिये ६०-७० के दशक की वो फिल्म जिसमे परमसुन्दरी मधुबाला किसी के इंतजार में एक मधुर
 गीत गुनगुनाती थी जो आज भी उतना ही मधुर है -सुनिए श्रीमती उषा सुशिल के शब्दों में -उषाजी हमारे
 ऑरेंजकाउन्टी की संगीत मर्मज्ञ है और बच्चों को संगीत सिखाती भी है 
तो गीत सुनिए 
आएगा आएगा आएगा आने वाला 
२ सुनी आपने इस गीत की अंतिम पंक्तियाँ ,नायिका कहती है 
कर बैठा भूल वो ,ले आया फूल वो, उससे कहो जाए चाँद लेकर आये '
कितनी डिमांडिंग हो गयी है आज की नायिकाएं 
हमारे जमाने में ये ही फूल खत में दाल कर प्रेम प्रदर्शन होता था 
फूल तुम्हे भेः है खत में। फूल नहीं मेरा दिल है   
या रह में फूल बिछा कर नायिका से निवेदन करता था पाँव छूलेनेडो फूलो को इनायत होगी 
खैर ,आजकल के व्यस्त जीवन में लोगो को मुस्कराने भर का समय ही नहीं मिलता बस 
कभी कभी कुछ पल आते है जब आदमी किसे की मुस्कराहटों पर कुर्बान हो जाता है 
इन्ही भावनाओ को व्यक्त करते हुए हमारे प्रिय श्री जुल्का जी गीत सुना रहे है 

किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार 
३ चाँद  जे हाँ चाँद ये एक ऐसा कैरेक्टर एक्टर है जो कई फिल्मो में अलग अलग रोल निभाता रहा है 
कभी लोरी में वो बच्चों का मामा बन जाता है ,कभी मेहबूब बन कर  आता है जब नायिका गाती  है 'तू मेरा चाँद मै  तेरी 
चांदनी 'कभी जासूस बन जाता है 'ो चाँद जहाँ वो जाए तू इनके साथ जाना ,हर रात खबर लाना'
कभी ईद का चाँद,कभी करवा चौथ का चांद हमारे प्रिय सतीश शर्मा जी अपनी मेहबूबा में चाँद ढूँढा है और गए रहे है 

चाँद सी हो मेहबूबा मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था 
४ अभी पिछले पुराने गाने में शर्मा जी ने अपनी मेहबूबा को चाँद सी बतलाया था वैसे बीते दसको में 
एक प्रसिद्द गीत आया था चौदंवी का चाँद हो या महताब हो 
जो भी भी हो तुम खुदा की कसम ,लाजबाब हो 
ऐसे ही प्रेम अपनी चाँद से मुखड़े वाली प्रियतमा के साथ जब चांदनी में अभिसार करते है
 तो चाँद से ही सवाल कर बैठते है क्या  कैसे बतलायेंगे  तरह छानेवाले छाबड़ा जी 
 
मैंने   पूछा चाँद से 
५ चाँद ने क्या जबाब दिया ये तो पता नहीं पर नायिका ने आ एक प्रश्न जरूर पूछ लिया की 
हम दोनों एक दुसरे को अच्छी तरह से जानते भी नहीं और एक दुसरे पर इस तरह फ़िदा है की 
जैसे एक दुसरे के लिए ही बने हो और इसी भावना को वह गीत के माध्यम से पूछ रही है श्रीमती रीता जोशी 

न हम तुम्हे जाने 

६ प्यार में पागल नायिका अपने सब बंधनो को छोड़ उड़ना चाहती है ,उसके पंख लग जाते है और 
पिया के साथ जीवन जीने की तमन्ना इस तरह जागृत हो जाती है की वो नाचती हुई गाती है -श्रीमती सुनीत शर्मा जी के स्वरों में 

आज फिर जीने की तमन्ना है 


७ प्यार के इस खेल में वेड होते है ,कसमे खाई जाती है पर ये जमाना बड़ा जालिम होता है 
 दो प्रेमियों के बीच में गलतफहमियां पैदा कर देता है -कभी अमीरी गरीबी की दीवार खड़ी हो जाती है 
कभी जाती धरम की ,कभी माँ बाप का इमोशनल ब्लेकमैल -ये सारे खेल प्यार के दुश्मन बन जाते है  
सारे वादे भुला दिए जाते है और नायक जाता है हमारे प्रिय दिग्विजय जी के स्वरों में 

क्या हुआ तेरा वादा
 
८ सपने कब सबके पूरे हुए है -याद है वो गीत 'सपने सपने,कब हुए अपने ,
आँख खुली और टूट गए '
या फिर वो गाना -टूटे हुए ख्वाबों ने ,हमको ये सिखाया है 
दिल ने जिसे पाया था ,आँखों ने गमाया है
जब सपने टूटते है तो प्रेमी कपिल शर्मा की तरह विरक्त होकर गाता है 

ये दुनिया ये महफ़िल तेरे काम की नहीं 
९  याद है वो पुराना गाना 'जब दिल ही टूट गया तो जी कर क्या करेंगे '
या फिर वो गीत 'मिली खाक में मोहब्बत,जला दिल का आशियाना 
जो थी कल तलक हक़ीक़त ,वो ही बन गयी फ़साना 
बस ऐसे ही गम के दौर में हमारे प्यारे गजल गायक श्री ढल साहेब सुना रहे है 
एक प्यारी सी ग़ज़ल 
यूँ हसरतों के दाग निगाहो ने बोलिये 
१० शीत  ऋतू का अंत होता है -कोयल की कुहुक सुनाई देती है ,मौसम अंगड़ाई लेता है 
गलतफहमियां दूर होती है -नायक नायिका एक दुसरे की तलाश में निकल पड़ते है और
 हमारे मनीष यादव और उनकी जीवनसंगिनी  नुपूर त्रिपाठी जी एक दूजे को ढूंढते हुए गाते है 
 
जाने जा,ढूंढता फिर रहा 

८० से ९० के दशक के  गीत 

१ कोई कंवरी कन्या जब सपने बुनती है तो अपने लिए एक राजकुमार चुनती है 
जो सफ़ेद घोड़े पर होकर सवार ,मन में भरे प्यार -आएगा उसके द्वार और ले जाएगा 
अपने साथ --इन्तजार तो पिछले दशक की नायिका भी करती थी पर उसमे 
संजीदगी होती थी पर इस दशक की नाइका के इन्तजार में थोड़ा चुलबुलापन आ 
गया है और किसी के ख्वाबों  में डूबी वो जाती है एक गीत जो शमत निधि हांडा 
के स्वर में सुनिए 
मेरे ख्वाबों में जो आये 

२ पिछले दशक का नायक किसी की मुस्कराहटों पर निसार होकरऔर किसी के प्यार में डूबा 
रहने को ही असली जीने का नाम देता है तो दो दशक बाद का नायक भी आशिकी को 
अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ कर आशिकी के लिए एक सनम की तलाश करता है 
एक नए अंदाज में  -हमारे प्रिय अनिल जाजू के स्वर में सुनिए 
बस एक सनम चाहिए आशिक़ी के लिए 

३ धीरे धीरे प्यार परवान चढ़ता है -बातें होती है -मुलाकातें होती है -दोनों एक रंग में रंग जाते है 
प्यार के रंग में और नायिका कभी उसे परी लगती है ,कभी सपनो की रानी और वो अपनी
 प्रेमिका से पूछ बैठता है  -सुनिए श्री अनुपम खरबंदा के स्वरों में -
मेरे रंग में रँगनेवाली 

४ प्यार की आग दोनों तरफ लगी हुई है -उधर नायक बेचैन इधर नायिका बेकरार  पल भर की 
जुदाई भी सहन नहीं होती -कहते है ना -
जुदाई में जर्द चेहरा हो गया है ,हिज्र की हर सांस भरी हो गयी है 
याद में तेरी वो हालत बन गयी ,लोग कहते है बिमारी हो गयी है 
और इसी बिमारी की- बिगड़ी बिगड़ी सी हालत में  नायिका  के कंठ से गीत निकल पड़ता है 
जो आप सुनिए श्रीमती मोना जी के स्वरों में 
दिल दीवाना बिन सजना के माने ना ----


५ समय बीतता है -मुलाकातें बढ़ती है -प्रेमी प्रेमिका का दिल एक दूजे बिन नहीं लगता 
उन्हें लगता है की उन दोनों ने मिल कर एक नया संसार पा लिया है -उनके सारे सपने 
पूरे हो गए है और वो मिल कर गाते है एक गीत जो आप सुनेगे श्री अनुपम खरबंदा और 
विनीता कुमार जी के स्वरों में 
मिल के -ऐसा लगा तुम से मिल के 


६ सामजिक बंधनो को काट कर जब प्रेमी एक दुसरे में खो जाते है -दीवाने हो जाते है 
तो मस्ती के वो पल खत्म होने का नाम ही नहीं लेते  -प्यार का नाश जो चढ़ता है ,उतदुनिया रता ही नहीं 
मन बस उसी मस्ती में जाता और झूमता है और गाता  है सुनिए
 श्रीमती नूपुर त्रिपाठी जीऔर मनीष यादव  के स्वरों में 

थोड़ा सा झूम लू मै 

७ कहते है की मिलन की राह आसान नहीं है -  ये दुनिया दो प्रेमियों को आसानी से मिलने नहीं देती 
कारण कुछ घरेलू-कुछ गलतफहमियां या और भी कुछ ऐसे हालत पैदा हो जाते है की न चाहते हुए भी 
दोनों के मिलन के बीच में एक दीवार कड़ी हो जाती है और दिल के टुकड़े टुकड़े होने लगते है 
ऐसे वक़्त में अपने मन की भावनाओं को व्यक्त करती हुई नायिका श्रीमती विनीता कुमार के स्वरों में जाती है 

शीशा हो या दिल हो ,एक दिन टूट जाता है 

८ उधर प्रेमी का दिल टूटा हुआ होता है इधर प्रेमिका का -उनके दिलों ने अरमानो की जो बस्ती बसाई थी 
वह ढहने लगती है -दुखी नायिका अपनी पीड़ा को ग़ज़ल के रूप में जाती है श्वेता बहती तेल के स्वरों में 

दिल के अरमान आंसुओ  में बह गए 

९ आपको याद होगा फिल्म मदर इण्डिया का वो गीत जो नरगिस ने गाय था बीते दशक में 
दुनिया में जो आये तो जीना ही पड़ेगा 
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा 
उसी परिस्तिथि में उलझा आज का नायक अपने आप को कैसे समझाता है 
सुनिए श्री अनिल जाजू के शब्दों में 

अब तेरे बिन। जी लेंगे हम 

१० और अब गलत फहमिया दूर हो गयी -बीच की दीवार  ढह गयी 
तो ,किस्मत ने साथ  दिया और बिगड़ी बात बन गयी  तो नायक अपनी नायिका 
को सांत्वना देते हुए समझाता है -सुनिए अनिल जाजो के स्वर में 

जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

उत्तेजना 

उत्तेजना ,
शरीर की वो अवस्था है 
जिसमे शरीर के ज्वालामुखी का ठंडा पड़ा खून ,
लावे सा पिघलता है 
तन मन में होने लगता है कम्पन 
कितनी ही बार और कितने तरीकों से ,
जीवन में आते है ऐसे क्षण 
जैसे जब गरीब की सहनशीलता ,
जब अपनी सीमाएं पार कर जाती है 
तो उसके मन में ,
विद्रोह की उत्तेजना भर जाती है 
इसका कारण होता है उसकी मजबूरी और बेबसी 
समाज की उपेक्षा,व्यंग और हँसी 
आदमी खुद को और अपनी किस्मत को कोसता है 
फिर कैसे भी बदला लेने की सोचता है 
ऐसेलोगों की उत्तेजित भीड़ के स्वर 
देते है सत्ताएं बदल  
या फिर कोई ऊंचा पद पाकर 
और अपनी प्रतिष्ठा पर इतराकर 
जब आदमी में भर जाता है अहंकार 
तो थोड़ी सी अवहेलना होने पर ,
उत्तेजना पूर्ण हो जाता है उसका व्यवहार 
अपने अहम की संतुष्टी न होने पर ,
वह क्रोध से भर जाता है 
उसका विवेक मर जाता है 
वह अपमानित महसूस कर अंटशंट बकता है 
और उसमे भर जाता है आक्रोश 
और इसका बदला लेकर ही उसे मिलता है संतोष 
इतिहास गवाह है 
ऐसी उत्तेजना करते अफसर,नेता और शहंशाह है 
तीसरा छोटी छोटी बातों पर बिना मतलब 
कोई बिगड़ जाता है जब तब 
गुस्से में नाराज हो वार्तालाप करने लगता है 
अनर्गल प्रलाप करने लगता है 
लड़ने को आतुर हो जाता है 
अपनी औकात  से बाहर निकल जाता है 
ऐसी तुनकमिजाजी भी होती है एक बीमारी 
कम कूवत ,गुस्सा भारी 
और उत्तेजना का चौथा रूप 
होता है बड़ा प्यारा और अनूप 
जब यौवन की चपलता और रूप की सुगढ़ता,
देती है प्यार का आव्हान 
तो आदमी की शिराओं में ,
उमड़ता है भावनाओं का तूफ़ान 
जो तोड़ देता है सारे बंधन 
और उत्तेजित कर देता है तन मन 
उत्तेजना के ये क्षण 
होते है विलक्षण 
आदमी भाव विभोर हो जाता है 
एक दूसरे में खो जाता है 
ये उत्तेजना बड़ी मतवाली होती है 
बड़ी सुखकर और प्यारी होती है 

मदन मोहन बहती]घोटू]

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

हुस्न की मार से बचना 

नजाकत से,नफासत से ,अदाओं से करे घायल 
और उनकी मुस्कराहट भी ,बड़ी ही कातिलाना है 
बड़ी मासूम सी सूरत ,बड़ी चंचल  निगाहें है 
काम इन हुस्न वालों का,कयामत सब पे ढाना है 
जरूरी ये नहीं होता ,कि हर एक फूल कोमल हो,
टहनियों पर गुलाबों की ,लगा करते है कांटे भी 
हथेली फूल सी नाजुक,सम्भल कर इनको सहलाना ,
ख़फ़ा जो हो गए ,इनसे,लगा करते है चांटे  भी 
बड़ी ही खूबसूरत सी ,उँगलियाँ उनकी कोमल है ,
नजाकत देख कर इनकी ,आप क्या सोच सकते है 
सिरे पर उँगलियों के जो, दिए नाख़ून कुदरत ने,
कभी हथियार बन ये आपका मुंह नोच सकते है 
गुलाबी होठ उनके देख कर मत चूमने बढ़ना,
ये गुस्से में फड़क कर के ,तुम्हे है डाट भी सकते 
छिपे है दांत तीखे  इन गुलाबी पखुड़ियों पीछे ,
हिफ़ाजत अपनी करने को ,तुम्हे है काट भी सकते 
रंगे हो नेल पोलिश से  ,निखारे रूप नारी का ,
प्रेम में बावले होकर ,ये नख है  क्षत किया करते 
पराकाष्ठा हो गुस्से की ,तो ये हथियार बन जाते ,
बड़ी आसानी से दुश्मन ,को ये आहत किया करते 
ये कटते ,खून ना आता ,तभी  नाखून कहलाते,
बड़ी राहत ये देते है ,बदन को जब खुजाते  है 
हमारे जिस्म पर एक बाल है और एक नाखून है ,
कोई चाहे या ना चाहे,दिन ब दिन बढ़ते जाते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
विराट 

मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खिलाडी  है   धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
 खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थम कर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर  
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
ले गयी दिल है उसका 
मिल गयी उसे अनुष्का
सेन्चुरी मारी लव  ने  
बना दी जोड़ी रब ने 
रनो सी खुशियां बरसे 
जिंदगी उनकी हरषे 
दुआ है ये हम सबकी 
मेहर हो उन पर रब की
 प्यार में डूबे रह कर 
रहे ये खुश  जीवन भर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू 
मैं गधे का गधा ही रहा 

प्रियतमे तुम बनी ,जब से अर्धांगिनी ,
      मैं हुआ आधा ,तुम चौगुनी बन  गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी बन  गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं दिये  की तरह टिमटिमाता रहा,
     तुम शीतल ,चटक चांदनी बन गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन  गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
किशोर अवस्था का अधकचरा कस्बाई इश्क़ 

बीत जाती है जब बचपन की उम्र सुहानी 
और थोड़ी दूर होती है जवानी 
ये उमर का वो दौर होता है 
जब आदमी किशोर होता है 
जवानी की आहट ,आपकी  मसें भिगोने लगती है
और  आपकी  बातें प्रायवेट होने लगती है  
जब आप फ़िल्मी हीरो की तरह ,
खुद को संवारने लगते है 
और आईने के सामने खड़े होकर ,
खुद को निहारने लगते है 
जब आप अपनी लुक्स के प्रति ,
थोड़े जागरूक  होकर बोलने लगते है 
और  अपनी बाहुओं को दबा,
अपनी मसल्स टटोलने लगते है 
जब आप अपने होठों को गोल करके ,
बजाने लगते व्हिसिल है 
हर सुंदरी पर ,आ जाता आपका दिल है 
जी हाँ ,हम सबकी जिंदगी 
उमर के इस दौर से गुजरी है 
आज भी जब कभी कभी ,
वो बीती यादें होती हरी है 
तो याद आ जाते है वो दिन ,
जब हम नौसिखिये आशिक़ हुआ करते थे 
गाँव की हर सुन्दर लड़की पर मरते थे 
उन दिनों हमारा इश्क़ कस्बाई होता था 
अलग अलग तरीकों से ट्राई होता था 
क्योंकि तब  न  व्हाट्सएप था ,
न वाई फाई होता था 
न फेसबुक न ई  मेल होता था 
बस आँखों ही आँखों में सारा खेल होता था 
जिसमे कोई पास और कोई फ़ैल होता था 
कोई लड़का ,किसी लड़की को ,
टकटकी लगा कर देखता तो उसे ताड़ना कहते थे 
और दोनों आंख्यों में से एक आँख को,
किसी को देख कर ,क्षणिक रूप से बंद कर खोलने को 
आँख मारना कहते थे 
कोई चीज ,प्रत्यक्ष रूप से किसी पर फेंकी नहीं जाती ,
फिर भी लोग फेंकते हुए नज़र आते है 
ऐसे लोग ,दिलफेंक लोग कहलाते है 
तो  लड़की को पटाने के लिए ,
पहले हम लड़की को ताड़ते थे 
फिर आँख मारते थे 
फिर सामने वाली का रिएक्शन देखते थे 
फिर उस पर दिल फेंकते थे 
ये सब क्रियाये मौन रूप से होती थी 
प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ती थी 
पर उन दिनों दोस्ती ऐसे ही बढ़ती थी 
 हमारा पार्ट टाइम शगल होता था ,
येन केन प्रकारेण लड़की को पटाना 
और बात नहीं बने तो छटपटाना 
जब किसी की किसी से आँख लड़ती थी 
तो थोड़ी बात आगे बढ़ती थी 
और हम यार दोस्तों में डींगे मारते थे 
'आज वो हमको देख कर मुस्कराई थी'
शेखी बघारते थे 
अपने छोटे छोटे अचीवमेंट,
 दोस्तों से शेयर करते थे 
और माशूका का नाम लेकर आहें भरते थे 
हमारा एक मित्र जिसका बाप मंदिर का था पुजारी
और आरती के बाद ,
जब आती थी प्रसाद बांटने की बारी  
तो वो अपनी मनपसंद लड़की को ,
प्रसाद देने के बहाने उसका हाथ दबा देता था ,
थोड़ा ज्यादा प्रसाद पकड़ा देता था 
और इस तरह बात आगे बढ़ा देता था 
एक दोस्त लाला का लड़का था ,
जो सौदा लेने आई लड़की को ,
एक दो टॉफी मुफ्त में पकड़ा ,
उसके हाथ सहला लेता था 
और इस तरह अपना मन बहला लेता था 
कितने ही क्षणभंगुर अफेयर ,
कितनो के ही साथ हुए और टूटे 
इस चक्कर में कितने ही यार दोस्त रूठे 
और कई बार तो ऐसी नौबत भी आई 
कि अपनी ही प्रेमिका की हमने बिदाई करवाई 
आज की जनरेशन को ,
पुराने जमाने के ये तरीके,
 बड़े ओल्ड फैशन के लगते होंगे ,
पर उन दिनों ये ही चलते थे 
क्योंकि हम माँ बाप और जमाने से बहुत डरते थे 
पर हम सब ने कभी न कभी इन्हे ट्राय किया  है
और सच ,बहुत एन्जॉय किया है 
कच्ची उमर के उस अधकचरे कस्बाई इश्क़ की,
वो बाते आज भी जब याद आती है 
हमें अपनी उन बचकानी हरकतों पर ,
बहुत हंसी आती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

MY DEAR BELOVED

Dear beloved,

How are you today and your family, I am a citizen of Sudan but currently staying in Burkina Faso. My name is Miss Mariam Dim Deng,25years old originated from Sudan. I got your E-mail address/profile through my internet search from your country when I was searching for a good and trust worthy person who will be my friend and I believe that it is better we get to know each other better and trust each other because I believe any good relationship will only last if it is built on truth and real love.My father Dr. Dominic Dim Deng was the former Minister for SPLA Affair sand Special Adviser to President Salva Kiir of South Sudan for Decentralization.

My father Dr. Dominic Dim Deng and my mother including other top Military officers and top government officials had been on board when the plane crashed on Friday May 02, 2008. You can read more about the crash through the below site:http://news.bbc.co.uk/2/hi/africa/7380412.stm) After the burial of my father, my uncles conspired and sold my father's properties to a Chinese Expatriate and live nothing for me. On a faithful morning, I opened my fathers briefcase and found out the documents which he have deposited huge amount of money in one bank in Burkina Faso with my name as the next of kin. I traveled to Burkina Faso to withdraw the money so that I can start a better life and take care of myself.

On my arrival, the Branch manager of the Bank whom I met in person told me that my fathers instruction to the bank was the money is release to me only when I am married or present a trustee who will help me and invest the money overseas. I have chosen to contact you after my prayers and I believe that you will not betray my trust. But rather take me as your own sister. Though you may wonder why I am so soon revealing myself to you without knowing you, well, I will say that my mind convinced me that you are the true person to help me.

More so, I will like to disclose much to you if you can help me to relocate to your country because my uncle has threatened to assassinate me. The amount is $10.4 Million with some kilo of gold and I have confirmed from the finance security bank in Burkina Faso. You will also help me to place the money in a more profitable business venture in your Country. However, you will help by recommending a nice University in your country so that I can complete my studies.


It is my intention to compensate you with 30% of the total money for your services and the balance shall be my capital in your establishment. As soon as I receive your interest in helping me, I will put things into action immediately. In the light of the above,shall appreciate an urgent message indicating your ability and willingness to handle this transaction sincerely.
PLEASE REPLY ME TO {missmariamdimdeng_71@yahoo.com}  

Sincerely yours,
Miss Mariam Dim Deng

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

श्रीमती उषा जी,और उपस्तिथ सभी संगीत प्रेमियों और नन्हे कलाकारों ,
सर्व प्रथम मैं उषाजी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि इस सुरीले कार्यक्रम में 
हमें बुला कर यह सन्मान दिया 
संगीत सुरों का संगम है -सुर याने कि देवता -देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए 
आपको साधना करनी होती है वैसे ही संगीत का  ज्ञान पाने के लिए आपको साधना 
करनी पड़ती है और यही साधना  स्वर्गिक आनंद की अनुभूति कराती है 
गीतकार गीत लिखता है संगीतकार उस गीत में जीवन भर देता है -संगीत के स्वर गीतों को 
साँसे प्रदान करते है ,अमृत भरते है और वो गीत अमर हो जाता है  -लाखो होठों पर 
चढ़ जाता है -यह होता है संगीत का जादू 
संगीत सीखना एक तपस्या है -हम ताड़ी सोचे की महीने दो महीने में या साल दो साल में 
हम संगीत के मर्मज्ञ हो जाएंगे तो ये हमारी गलत फहमी है -बच्चों को यदि शुरू से ही सुरों का ज्ञान आ जाए 
तो जिंदगी लय मय हो जाती है ,
हम ऑरेंज काउंटी वाले खुशनसीब है कि उषाजी जैसी कुशल ज्ञानी संगीत शिक्षिका 
यहाँ मौजूद है और हमारे बच्चे इनसे ये ज्ञान प्राप्त कर सकते है क्योंकि 
अगर सुरों का ज्ञान आ गया ,मानव की पहचान आगयी 
इस जीवन की खींचतान में ,सुर आये तो तान आगयी 
किन्तु लग्न और सच्चे मन से ,करो साधना है आवश्यक 
समय लगेगा ,पर रियाज ही तुम्हे बनाती अच्छा गायक 
हर बेटी कोयल सी कूके ,हर बेटा मुकेश सा गाये 
सरस्वती की अगर कृपा हो ,अच्छा शिक्षक तुम्हे सिखाये 
तो आप सब ,खास कर मेरे नन्हे संगीत सीखने वाले कलाकार ,बधाई के पात्र है 
इतना सुन्दर कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए -आपका बहुत बहुत धन्यवाद 
जब उषाजी का निमंत्रण मिला तो समझ में नहीं आ रहा था की क्या बोलूं 
तभी एक कल्पना आयी जिसने एक कविता का रूप ले लिया है ,मैं 
आपको सुनाना चाहूंगा -आशा है अच्छी लगेगी 
गृहस्थी का संगीत 

जीवन के पल पल में साँसों की हलचल में ,
संगीत का होता वास है 
संगीत की सरगम ,सारेगम भुला देती है ,
और जीवन में  भरती मिठास है 
शादी के बाद जब ,
आपको मिल जाता है अपना मनमीत 
तो आपके जीवन में ,
गूंजने लगता है ,गृहस्थी का संगीत 
मेरी ये मान्यता है 
कि सुरो के संगीत और गृहस्थी के संगीत में ,
काफी समानता है 
ससुराल में ,पति के अलावा ,
होते दो प्राणी खास है 
और वो ,एक आपके ससुर ,
और दूसरी आपकी सास है 
देखिये ,गृहस्थी के संगीत में भी सुर आ गया 
ससुराल का मुख्य सुर,ससुर आ गया 
यदि आपके सुर मिल जाते है ,
ससुर के सुर के संग 
तो समझलो,आपने जीत ली आधी जंग 
और जहाँ तक है सास की बात 
तो यहाँ भी संगीत जैसे होते है हालात 
संगीत के स्वर 'सा रे ग  प ध नी स '
'सा 'से शुरू होकर 'स'पर होते है समाप्त 
याने' सा स 'के बीच ही सारे सुर है व्याप्त 
इसमें जेठ,जिठानी भुवा देवर और ननद 
जैसे सभी स्वर समाहित है 
और इन सबको साधने में ही आपका हित है 
 आपको इन सबके साथ सामंजस्य बिठाना होता है 
उनकी ताल पर गाना होता है 
इन सभी के साथ यदि मिलाली अपनी तान 
तो ससुराली जीवन में ,कभी नहीं होगी खींचतान 
सुर मय हो जाएगा आपका जीवन ,
 सुहाने दिन होंगे,सुरमयी शाम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

सर्व सुलभ तू मुझे बनाना 

हे प्रभु यदि दो पुनर्जन्म और मुझे पड़े धरती पर आना 
सर्वसुलभ और बहुउपयोगी ,मिलनसार तू मुझे बनाना 
प्यार करे सब ,हर मौसम में ,रहूँ जमीन से ,जुड़ा हमेशा 
अगर बनाओ यदि जो सब्जी  ,मुझे बनाना आलू   जैसा 
बेंगन हो या मेथी,पालक ,फली मटर की ,या फिर गोभी 
रंग ना देखूं ,स्वाद बढ़ाऊं मिले साथ में ,मुझसे जो भी 
समा समोसे में मन भाऊ ,भरा रहूँ मै ,वड़ा पाव  में 
मुझे परांठे में भर कर के ,लोग नाश्ता ,करें चाव  में 
कभी चाट आलू टिक्की में ,या डोसे का बनू मसाला 
या फिर गरम पकोड़े में तल,निखरे मेरा ,स्वाद निराला 
'क्रिस्पी 'कभी बनू 'वेफर'सा ,या फिर 'फ्रेंच फ़्राय'सा प्यारा 
हे भगवान ,बनाना मुझको ,आलू जैसा सर्व दुलारा 
या फिर जनजन का मन प्रिय बन शक्ति का मै बनू खजाना 
प्रभु जो मुझको अन्न बनाओ तो मुझको तुम चना बनाना 
ताकत मिले ,भिगो खाने में ,खाओ भून कर ,भूख मिटाओ 
छोले चांवल ,चना भठूरे ,लेकर स्वाद,,प्रेम से खाओ 
दाल बना ,खाओ रोटी संग ,या तल कर नमकीन बनाओ 
और पीसो तो ,बेसन बन कर ,कई ढंग से स्वाद बढ़ाओ 
कभी पकोड़ी जैसा तल लो ,कभी भुजिया ,सेव बनालो 
कभी बना ,बेसन के लड्डू या बूंदी परशाद  चढ़ा लो 
बेसन की प्यारी सी बरफी ,या फिर मोतीचूर  सुहाना 
या हल्दी और तैल मिलाकर ,उबटन बना ,रूप निखराना 
मीठा या नमकीन सभी कुछ ,बनकर सबका मन ललचाना 
सर्वसुलभ और बहु उपयोगी ,हे भगवन ,तू मुझे बनाना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 

राजवश का कोई राजा ,पब्लिक का सर्वन्ट हो गया  
कल तक था जो मिटटी गारा ,आज वही सीमेन्ट हो गया  
सत्ता सिमट रही अपनों में,देखो कैसा ट्रेन्ड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
जबसे मंदिर मंदिर जाकर ,उसने अपना शीश झुकाया 
जबसे उसने अपने मस्तक पर चन्दन का तिलक लगाया 
तबसे कम बकवास कर रहा ,वो थोड़ा डिसेन्ट  हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
उसकी जयजयकार कर रहा ,है उसके चमचों का जत्था 
मम्मी  खुश है , यही तसल्ली, पास रही  पुश्तैनी  सत्ता 
अब तक उसका राज टेम्पररी था अब परमानेन्ट हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
राजनीति में ,कुर्सी की हसरत ,क्या क्या करवा देती है 
पिज़ा ,पास्ता खाने वाले को, खिचड़ी  खिलवा देती है 
एक पुदीने का पत्ता था, अब वो पिपरमेंट  हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
प्रौढ़ खून में आयी जवानी ,अब कोतवाल बन गए सैया 
नाव डुबोने वाला मांझी ,ही अब देखो बना खिवैया 
अध्यादेश फाड़ने वाला ,कितना ओबीडियन्ट हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
बांह चढाने का अफलातूनी अंदाज बदल जाएगा 
आज चढ़ा है कुर्सी पर तो कल घोड़ी भी चढ़ जाएगा 
हाथ मिला ,सेल्फी खिचवाता ,अब वो सबका फ्रेन्ड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
अब जितने बेरोजगार है ,सबको जॉब दिला देगा वो 
जितना करजा है किसान पर ,सबको माफ़ करा देगा वो 
वादे कर सबको भरमाना ,राजनीति का ट्रेंड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 13 नवंबर 2017

अच्छा लगे कहाना अंकल 

हुए रिटायर ,बाल न सर पर ,दुःख मन में हर पल रहता है 
इसीलिये  अच्छा लगता जब ,कोई मुझे अंकल  कहता है 
अंकल के इस  सम्बोधन  में ,बोध  बड़प्पन का होता है ,
क्योंकि इसमें सखा भाव  संग ,श्रद्धा भाव  छुपा  रहता  है 
कल की सोच सोच कर अक्सर ,ये मन बेकल सा हो जाता,
अंकल के कल में यादों का ,सरिता जल, कल कल बहता है 
कभी जवानी जोर मारती ,कभी  बुढ़ापा  टांग  खींचता ,
प्रौढ़ावस्था  में  जीवन की  ,चलता  ये दंगल  रहता  है 
भाई साहब कहे जाने से ,अच्छा है अंकल कहलाना ,
और बूढा कहलाने से तो  ,निश्चित  यह  बेहतर  रहता है 
दिन दिन है हम बढे हो रहे,उमर हुई दादा ,नाना की,
चन्द्रबदनी  बाबा ना कहती,मन में यह संबल रहता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

Fwd: Undeliverable:


---------- Forwarded message ---------
From: <postmaster@outlook.com>
Date: Wed, 13 Sep 2017 at 7:07 PM
Subject: Undeliverable:
To: <baheti.mm@gmail.com>


Delivery has failed to these recipients or groups:

ppaction3in1@gmail.com

Your message couldn't be delivered. Despite repeated attempts to contact the recipient's email system it didn't respond.

Contact the recipient by some other means (by phone, for example) and ask them to tell their email admin that it appears that their email system isn't accepting connection requests from your email system. Give them the error details shown below. It's likely that the recipient's email admin is the only one who can fix this problem.

For more information and tips to fix this issue see this article: http://go.microsoft.com/fwlink/?LinkId=389361.









Diagnostic information for administrators:

Generating server: SG2APC01HT053.mail.protection.outlook.com
Receiving server: SG2APC01HT053.eop-APC01.prod.protection.outlook.com
Total retry attempts: 50

ppaction3in1@gmail.com
9/13/2017 1:37:38 PM - Server at SG2APC01HT053.eop-APC01.prod.protection.outlook.com returned '550 5.4.300 Message expired'

Original message headers:

Received: from SG2APC01FT114.eop-APC01.prod.protection.outlook.com   (10.152.250.53) by SG2APC01HT053.eop-APC01.prod.protection.outlook.com   (10.152.251.119) with Microsoft SMTP Server (version=TLS1_2,   cipher=TLS_ECDHE_RSA_WITH_AES_256_CBC_SHA384_P384) id 15.1.1341.15; Mon, 11   Sep 2017 14:02:30 +0000  Received: from SG2PR03MB1712.apcprd03.prod.outlook.com (10.152.250.56) by   SG2APC01FT114.mail.protection.outlook.com (10.152.250.193) with Microsoft   SMTP Server (version=TLS1_2,   cipher=TLS_ECDHE_RSA_WITH_AES_128_CBC_SHA256_P256) id 15.1.1304.16 via   Frontend Transport; Mon, 11 Sep 2017 14:02:30 +0000  Received: from SG2PR03MB1712.apcprd03.prod.outlook.com ([::1]) by   SG2PR03MB1712.apcprd03.prod.outlook.com ([fe80::11a0:d01f:3c3c:f23%14]) with   Microsoft SMTP Server id 15.20.0056.010; Mon, 11 Sep 2017 14:02:29 +0000  From: madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com>  To: baheti.mm.t. <baheti.mm.tara1@blogger.com>, "baheti.mm.tara2@blogger.com"  	<baheti.mm.tara2@blogger.com>, "baheti.mm.tara4@blogger.com"  	<baheti.mm.tara4@blogger.com>, Ram Dhall <dhall.ram@gmail.com>,  	"kalampiyush@hotmail.com" <kalampiyush@hotmail.com>, kamal sekhri  	<kamal.hint@gmail.com>, navin singhi <navinsudha@gmail.com>, Rakesh Sinha  	<rakesh.sinha2407@gmail.com>, Ritu Baheti <ritubaheti@gmail.com>, "Siddharth   shanker jha" <siddharthsjha@gmail.com>, Subhash Soni  	<soni.subhash@gmail.com>, =?utf-8?B?VmFuZXNhIE3DrWd1ZXogQWdyYQ==?=  	<vmagra@gmail.com>, "A.K. Khosla" <ak19711@gmail.com>, aditya rathi  	<adityarathi@gmail.com>, "Dr. Prakash Joshi" <drjoship52@gmail.com>, Dwarka   Baheti <dwarkabaheti1@gmail.com>, Jagdish Baheti <bahetijagdish1@gmail.com>,  	Sumit Bhartiya <skbH2000@gmail.com>, Vinita Lahoti <vinita.lahoti1@gmail.com>  Subject:  Thread-Index: AQHTKwaaso0EFBVtFUGItPqmayTlJg==  Date: Mon, 11 Sep 2017 14:02:20 +0000  Message-ID: <CABBmEYraGyj0_Ek758gS6tuw072vP3QB9QVf4+ub7KnHCdYYTg@mail.gmail.com>  X-MS-Has-Attach:  X-MS-Exchange-Inbox-Rules-Loop: kalampiyush@hotmail.com  X-MS-TNEF-Correlator:  authentication-results: outbound.protection.outlook.com; spf=skipped   (originating message); dkim=error (no key for signature) header.d=none;   dmarc=none action=none header.from=gmail.com;  received-spf: Pass (protection.outlook.com: domain of gmail.com designates   209.85.215.43 as permitted sender) receiver=protection.outlook.com;   client-ip=209.85.215.43; helo= mail-lf0-f43.google.com;  x-incomingtopheadermarker: OriginalChecksum:D0FAAD5A567551A26E7487E13420457BAF55D176B46B86EBF24DCC960FFBBAD3;UpperCasedChecksum:346D4A8F501A0E9B2EE787467C1FFE0DAC5F98C8C485CCBBA7C233CFF5ACFEE6;SizeAsReceived:3182;Count:17  dkim-signature: v=1; a=rsa-sha256; c=relaxed/relaxed;        d=gmail.com;   s=20161025;        h=mime-version:from:date:message-id:subject:to;          bh=2m/bsyf/Afg6Qnk1kBiqtmTEwRbltNTq+hHPxFHHXyI=;          b=WO5g8VOPc+p/7u49J6IaXGtYPozrqIV1GdnN3mRByAstT+kvB5glP95tXUzqSXfAYy           4Rq32EPTGD+kaveOxW5z94Tr7sGPqhuJUluI2Ra/oUV6hiEldsj/SoKmMi8SNySEC79P           oenD6Nckly/8qsK6pKHaxWVQjseVyt8SH27v3yolTRqpKGESWb/D2iS/Qy0k1kq2lPDI           vXlo7OViJDJho7Mw95amfxw3Xr6Jq/PNWkQG975bXi3PrKyDYtKsONM/3QC3b2TVvUfH           ZZwJNwbpWrL+KE7c3hDJnbUq7NkcTTymdVfiiNvfI3Jbb+z04aiEnYQ6FbAL9Jky1D76           Rm0g==  x-google-dkim-signature: v=1; a=rsa-sha256; c=relaxed/relaxed;          d=1e100.net; s=20161025;          h=x-gm-message-state:mime-version:from:date:message-id:subject:to;          bh=2m/bsyf/Afg6Qnk1kBiqtmTEwRbltNTq+hHPxFHHXyI=;          b=o5Vq8bXQhs8BzTyVJdjrJJW2c3tFVohMcfAomhH0AQn0kAR3LQbeknmMMhZtpzkErF           jUmFng49Ytnd4DEbsBJrjrkBbQ6VoCN/kVTY2ONzAlvZr1kiz2Jrqu1XF09pZ02bcF4i           CBOOfZthpRLlGJeaVITMiAthcTBV927dAgBFUcwKevux9JI7hunEZumbe5TYSxY3roMf           pJh5+QN/VrvRlQDSYV0p5PKocdPjoQ5Olb1WFCYJ5kFCnjqfUWP4BNe1jmPJj0fyNLhR           zzmvJj5bYm0gEdmwe1SQN7awbDWttLDZM3Bc7xp1hVRb8PP5XX163WB+HhIym1SkDneb           /G1g==  x-gm-message-state: AHPjjUiONNmIc7g68x/FAO4Db7Vmi/9NWg5WVgpcruhTEu8dpZLLPo+E  	8HSHynXAnl4qv5e5Fx+DbkjoTUu5y6fQ  x-google-smtp-source: AOwi7QA5eUZM/jH7nUUsLKXnSWA9Z3OY+8IYzt+//+tP0yj8gPFrFLI5Y6hRw4Rlk8GJGcjtfwUuu6UxAt1jX9Z54Ro=  x-received: by 10.25.225.7 with SMTP id y7mr3339806lfg.187.1505138541648; Mon,   11 Sep 2017 07:02:21 -0700 (PDT)  x-originalarrivaltime: 11 Sep 2017 14:02:23.0897 (UTC)   FILETIME=[97B62090:01D32B06]  x-incomingheadercount: 67  x-eopattributedmessage: 1  x-eoptenantattributedmessage: 84df9e7f-e9f6-40af-b435-aaaaaaaaaaaa:0  cmm-sender-ip: 209.85.215.43  cmm-sending-ip: 209.85.215.43  cmm-authentication-results: hotmail.com; spf=pass (sender IP is 209.85.215.43;   identity alignment result is pass and alignment mode is relaxed)   smtp.mailfrom=baheti.mm@gmail.com; dkim=pass (identity alignment result is   pass and alignment mode is relaxed) header.d=gmail.com; x-hmca=pass   header.id=baheti.mm@gmail.com  cmm-x-sid-pra: baheti.mm@gmail.com  cmm-x-auth-result: PASS  cmm-x-sid-result: PASS  cmm-x-message-status: n:n  cmm-x-message-delivery: Vj0xLjE7dXM9MDtsPTA7YT0xO0Q9MTtHRD0xO1NDTD0w  cmm-x-message-info: gamVN+8Ez8V+RHg+F+brAedPDsRSRryn9WsOovlWu/kTfKCt+Zhwf5j3CaHnJE82k9A4Ti975JxdIaoYnWrAMFHWo9usxYGvmLkvtDw8lRsaDcrsoENqTyqE5BAIzDbcuJi8yXlWbIaAsw3ba0CSxVfJeFj2ahLG94Aw+uirCEzRyayZ3HKnSO3kG7KEvXEFXg4STvxY3TTZiCqMHCPKHuCkdaIIbWwft85ijQRC6xXfEUTmf7jqwEgSZEq1/4UW  x-microsoft-exchange-diagnostics: 1;SG2APC01HT053;24:jMNUn9rPJaU20WIKVoJJtQqQFrFID4UJtCpsKLHVUNQjOD2GrIvSA5xTn1QpB9P/v9m06zm1DfQepAO7pscWcmJiLUzckVLvP7mq3DEw/9A=;7:y8dkXYRNxnhajB9vfmCUyz9bJGIMu7rxuy3K3rOgXI7pnxt+j2lWyumIteXuycSw+fcI7PiX7ueXLYSQgBUHF01ogrNiDeH6seik88Pl5bscPFyJoAyxt6UHcI++sGpArw6Q4/OcA61SqhuHLHRwA1lYo+nCA6qNnLs4eYr8lUoZl0an5sMYCwO9hCY697ZhTI/fTpDZ+3W12CEAs9hB1m6zDl+8qDy3zxxdeJoN3KU=  x-ms-publictraffictype: Email  x-ms-office365-filtering-correlation-id: 92120c10-cbb0-407b-954a-08d4f91dbdb8  x-microsoft-antispam: BCL:0;PCL:0;RULEID:(300000500095)(300135000095)(300000501095)(300135300095)(23075)(300000502095)(300135100095)(22001)(8291501071);SRVR:HK2APC01HT231;UriScan:;BCL:0;PCL:0;RULEID:(300000500095)(300135000095)(300000501095)(300135300095)(22001)(300000502095)(300135100095)(300000503095)(300135400095)(2017031320274)(201705091528075)(201702221075)(300000504095)(300135200095)(300000505095)(300135600095)(300000506095)(300135500095);SRVR:SG2APC01HT053;  x-ms-traffictypediagnostic: HK2APC01HT231:|SG2APC01HT053:  x-exchange-antispam-report-test: UriScan:;UriScan:;  x-exchange-antispam-report-cfa-test: BCL:0;PCL:0;RULEID:(100000700101)(100105000095)(100000701101)(100105300095)(100000702101)(100105100095)(444111536)(595095)(82015058);SRVR:HK2APC01HT231;BCL:0;PCL:0;RULEID:(100000800101)(100110000095)(100000801101)(100110300095)(100000802101)(100110100095)(100000803101)(100110400095)(100000804101)(100110200095)(100000805101)(100110500095);SRVR:HK2APC01HT231;BCL:0;PCL:0;RULEID:(100000700101)(100105000095)(100000701101)(100105300095)(100000702101)(100105100095)(444000031);SRVR:SG2APC01HT053;BCL:0;PCL:0;RULEID:(100000800101)(100110000095)(100000801101)(100110300095)(100000802101)(100110100095)(100000803101)(100110400095)(100000804101)(100110200095)(100000805101)(100110500095);SRVR:SG2APC01HT053;  x-forefront-antispam-report: SFV:NSPM;SFS:(98901004);DIR:INB;SFP:;SCL:1;SRVR:HK2APC01HT231;H:SNT004-MC8F11.hotmail.com;FPR:;SPF:None;LANG:;EFV:NLI;SFV:NSPM;SFS:(7070007)(98901004);DIR:OUT;SFP:1901;SCL:1;SRVR:SG2APC01HT053;H:SG2PR03MB1712.apcprd03.prod.outlook.com;FPR:;SPF:None;LANG:hi;  spamdiagnosticoutput: 1:99  spamdiagnosticmetadata: NSPM  x-ms-exchange-crosstenant-originalarrivaltime: 11 Sep 2017 14:02:26.0589 (UTC)  x-ms-exchange-crosstenant-id: 84df9e7f-e9f6-40af-b435-aaaaaaaaaaaa  x-ms-exchange-crosstenant-fromentityheader: Internet  x-ms-exchange-transport-crosstenantheadersstamped: HK2APC01HT231  x-ms-exchange-transport-endtoendlatency: 00:00:02.4257921  x-ms-exchange-processed-by-bccfoldering: 15.20.0056.000  Resent-From: <kalampiyush@hotmail.com>  x-microsoft-exchange-diagnostics-untrusted: 1;HK2APC01HT231;24:ZUcNjqySbWivmjhLRxMaGIPBSCUbbggp+80Yl8j4dHmWR+zZlXqVOkB/MrLWDgkTRY5tYeZ2hJOBO3oFoq2UOAW8i7m51DB5Remg72oRr/0=;7:8ay1dL4qIgERFhz2CL8We64NhBb4kptKpLqFfzVKeuFoHsppFiowmd5CRgeigKJ3SPM7IUo9TMt8jYtNw9pZZkj/EviFm2dYrfV9JIDf3WVO1LOcvAw2v4NSyWQHn7xxz2JbhP5MQQslNkqJAGbb4KNOC4EKcX91sz/6kEZwkuurKLXGr9t9H1yRWx2K4uoq1e3QjzqpGe5jhMS+UaqOyJjOfEk+UhYOqXOi+WQhLMw=  x-ms-exchange-transport-crosstenantheadersstripped: SG2APC01FT114.eop-APC01.prod.protection.outlook.com  x-forefront-prvs: 04270EF89C  Content-Type: multipart/alternative;  	boundary="_000_CABBmEYraGyj0Ek758gS6tuw072vP3QB9QVf4ub7KnHCdYYTgmailgm_"  MIME-Version: 1.0  X-OriginatorOrg: outlook.com  X-MS-Exchange-CrossTenant-originalarrivaltime: 11 Sep 2017 14:02:28.8909   (UTC)  X-MS-Exchange-CrossTenant-fromentityheader: Internet  X-MS-Exchange-CrossTenant-id: 84df9e7f-e9f6-40af-b435-aaaaaaaaaaaa  X-MS-Exchange-Transport-CrossTenantHeadersStamped: SG2APC01HT053  



---------- Forwarded message ----------
From: madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com>
To: "baheti.mm.t." <baheti.mm.tara1@blogger.com>, "baheti.mm.tara2@blogger.com" <baheti.mm.tara2@blogger.com>, "baheti.mm.tara4@blogger.com" <baheti.mm.tara4@blogger.com>, Ram Dhall <dhall.ram@gmail.com>, "kalampiyush@hotmail.com" <kalampiyush@hotmail.com>, kamal sekhri <kamal.hint@gmail.com>, navin singhi <navinsudha@gmail.com>, Rakesh Sinha <rakesh.sinha2407@gmail.com>, Ritu Baheti <ritubaheti@gmail.com>, Siddharth shanker jha <siddharthsjha@gmail.com>, Subhash Soni <soni.subhash@gmail.com>, "Vanesa Míguez Agra" <vmagra@gmail.com>, "A.K. Khosla" <ak19711@gmail.com>, aditya rathi <adityarathi@gmail.com>, "Dr. Prakash Joshi" <drjoship52@gmail.com>, Dwarka Baheti <dwarkabaheti1@gmail.com>, Jagdish Baheti <bahetijagdish1@gmail.com>, Sumit Bhartiya <skbH2000@gmail.com>, Vinita Lahoti <vinita.lahoti1@gmail.com>
Cc: 
Bcc: 
Date: Mon, 11 Sep 2017 14:02:20 +0000
Subject: 
अकेले जिंदगी जीना 

     किसी को क्या पता है कब ,
     बुलावा किसका  आ जाये 
     अकेले जिंदगी  जीना ,
     चलो अब सीख हम जाये 
अकेला था कभी मैं भी,
अकेली ही कभी थी तुम 
मिलाया हमको किस्मत ने ,
हमारा बंध गया  बंधन 
मिलन के पुष्प जब विकसे,
हमारी बगिया मुस्काई 
बढ़ा परिवार फिर अपना ,
और जीवन में बहार आई 
हुए बच्चे, बड़े होकर 
निकल आये जब उनके पर 
हमारा घोसला छोड़ा ,
बसाया उनने अपना घर 
        अकेले रह गए हमतुम ,
        मगर फिर भी न घबराये 
        अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जाये 
हुआ चालू सफर फिर से,
अकेले जिंदगी पथ पर 
सहारे एक दूजे  के ,
आश्रित एक दूजे पर 
बड़ा सूना सा था रस्ता ,
बहुत विपदा थी राहों में 
गुजारी जिंदगी हमने ,
एक दूजे की बाहों में 
गिरा कोई जब थक कर ,
दूसरे ने उसे थामा  
कोई मुश्किल अगर आई 
कभी सीखा न घबराना 
       परेशानी में हम ,हरदम,
        एक दूजे के  काम आयें 
        अकेले जिंदगी जीना ,
        चलो अब सीख हम जाये 
ये तय है कोई हम में से,
जियेगा ,ले, जुदाई  गम 
मानसिक रूप से खुद को,
चलो तैयार कर ले हम 
तुम्हारी आँख में आंसूं ,
देख सकता कभी मैं ना  
अगर मैं जाऊं पहले तो ,
कसम है तुमको मत रोना 
रखूंगा खुद पे मैं काबू,
अगर पहले गयी जो तुम 
तुम्हारी याद में जीवन ,
काट लूँगा,यूं ही गुमसुम 
        मिलेंगे उस जहाँ में हम ,
        रखूंगा ,मन को समझाये 
       अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जाये 
भले ही यूं अकेले में ,
लगेगा ना ,किसी का जी 
काटना वक़्त पर होगा ,
बड़ी मुश्किल से ,कैसे भी 
साथ में रहने की आदत ,
बड़ा हमको सतायेगी 
तुम्हारा ख्याल रखना ,
प्यार,झिड़की ,याद आयेगी 
सवेरे शाम पीना चाय 
तनहा ,बहुत अखरेगा 
दरद  तेरी जुदाई का ,
कभी आँखों से छलकेगा 
        पुरानी यादें आ आ कर ,
       भले ही दिल को तड़फाये 
       अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जायें 

मदन मोहन बहती'घोटू'

सोमवार, 6 नवंबर 2017


Conversation opened. 1 read message.

Skip to content
Using Gmail with screen readers
7
Search


in:sent 

Gmail
COMPOSE
Labels
Inbox (581)
Starred
Important
Sent Mail
Drafts (31)
[Imap]/Sent
[Imap]/Trash
abc
baheti sir
BIRTHDAY
favourite
kavita
More 
 
 
Move to Inbox More 
10 of 2,459  
 
Print all In new window
(no subject)

madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com>
Nov 1 (5 days ago)

to baheti.mm.t., baheti.mm.tara2, baheti.mm.tara4 
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
जाल में जुल्फ के ,ऐसे उलझे नयन ,
        मैं उलझता,उलझता उलझता गया 
ऐसा बाँधा मुझे,रूप के जाल में ,
        होके खुश बावरा ,मैं तो फंसता  गया 
उबली सी सब्जी सा ,मैं तो फीका रहा ,
          और प्रिये दाल तुम,माखनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
             गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'


भाव नहीं देती है 

ऐसा है स्वभाव ,करती सबसे है मोलभाव ,
सब्जी हो या साड़ी सब ,सस्ती लेकर आती है 
मन में है उसके न दुराव न छुपाव कहीं,
सज के संवर  ,हाव भाव  दिखलाती  है 
रीझा पति पास जाय ,भाव नहीं देती है ,
मन में लगाव पर बहुत भाव खाती है  
रूप के गरूर में सरूर इतना आ जाता ,
पिया के जिया के भाव ,समझ नहीं पाती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नींद क्यों नहीं आती 

कभी चिंता पढाई की ,थी जो नींदें उड़ाती थी 
फंसे जब प्यार चक्कर में ,हमे ना नींद आती थी 
हुई शादी तो बीबीजी,हमें  अक्सर  जगाती थी 
करा बिजनेस तो चिंतायें ,हमे रातों सताती थी 
फ़िक्र बच्चो की शादी की,कभी परिवार का झंझट 
रात भर सो न पाते बस ,बदलते रहते हम करवट 
किन्तु अब इस बुढ़ापे में,नहीं जब कोई चिंतायें 
मगर फिर भी ,न जाने क्यों ,मुई ये नींद न आये 
न लेना कुछ भी ऊधो से ,न देना कुछ भी माधो का 
ठीक से सो नहीं पाते ,चैन गायब है रातों का 
जरा सी होती है आहट ,उचट ये नींद जाती है 
बदलते रहते हम करवट,बड़ा हमको सताती है 
एक दिन मिल गयी निंदिया ,तो हमने पूछा उससे यों 
बुढ़ापे में ,हमारे साथ,करती बदसलूकी क्यों 
लाख कोशिश हम करते ,बुलाते ,तुम न आती हो 
बड़ी हो बेरहम ,संगदिल,मेरे दिल को दुखाती हो
कहा ये निंदिया ने हंस कर,जवां थे तुम ,मैं आती थी 
भगा देते थे तुम मुझको,मैं यूं ही लौट जाती थी 
नहीं तब मेरी जरूरत थी ,तो था व्यवहार भी बदला 
है अब जरूरत ,मैं ना आकर ,ले रही तुमसे हूँ बदला 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 
अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी 

आलस तन में बसा ,रहे ना अब फुर्तीले 
खाना वर्जित हुए ,सभी पकवान रसीले 
मीठा खाना मना,तले पर पाबंदी  है 
भूख न लगती,पाचनशक्ति भी मंदी है
खा दवाई की रोज गोलियां ,हम जीते है 
चाट पकोड़ी मना ,चाय फीकी पीते है 
दांत गिर गए ,चबा ठीक से ना पाते हम 
पुच्ची भर में बदल गया हो जैसे चुंबन 
यूं ही मन समझाने वाली उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी 
'आर्थराइटिस 'है घुटनो में रहती जकड़न 
थोड़ी सी मेहनत से बढ़ती दिल की धड़कन 
'डाइबिटीज 'के मारे सब अंग खफा हो गए 
मिलन और अवगुंठन के दिन ,दफा हो गए 
वो उस करवट हम इस करवट ,सो लेते है 
आई लव यू आई लव यू ,कह खुश हो लेते है 
कभी यहां पीड़ा है ,कभी वहां दुखता है 
फिर भी दिल का दीवानापन ,कब रुकता है 
अब तो बस ,सहलानेवाली  ,उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर  आगयी 
 कहने,सुनने की क्षमता भी क्षीण हो चली 
अंत साफ़ दिखता पर आँखें धुंधली धुंधली 
छूटी मौज मस्तियाँ ,मोह माया ना छूटी 
देते रहते खुद को यूं ही तसल्ली ,झूठी 
कोसों दूर बुढ़ापा ,हम अब भी जवान है 
मन ही मन ,अंदर से रहते परेशान है 
बात बात पर अब हमको गुस्सा आता है 
बीती यादों में मन अक्सर खो जाता है 
यूं ही मन बहलानेवाली उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर आ गयी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
दिल मगर दिल ही तो है 

हरएक सीने में धड़कता ,है छुपा बैठा कहीं,
चाह पूरी जब न होती,मसोसना भी पड़ता है 
कभी अनजाने ही जब ,जुड़ जाता ये है किसी से,
नहीं चाहते हुए उसको ,तोडना भी पड़ता  है 
कभी चोंट खाकर जब ,पीता है वो खूं के आंसू,
उसकी मासूमियत को ,कोसना भी पड़ता है 
कभी देख कर किसी को,जब मचल जाता है,
तो किसी के साथ उसको ,जोड़ना भी पड़ता है 
बात दिल की है ,कोई दिलदार कोई दिलपसंद,
तो कोई है दिलरुबाँ ,दिलचस्प है और दिलनशीं 
कोई दिलवर है कोई दिलसाज कोई दिलफरेब ,
दिल दीवाने को सुहाती है किसी की दिलकशी 
कोई होता संगदिल तो कोई होता दरियादिल ,
जब किसी पे आता तो देता ये मुश्किल ही तो है 
इसकी आशिक़ मिजाजी का ओर है ना छोर है,
कुछ भी हो,कैसा भी हो,ये दिल मगर दिल ही तो है 


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

थोड़े बड़े भी बन जाइये 

सवेरे सवेरे चार यार ,मिलो,घूमो फिरो,
नींद खुले औरों की ना जोर से चिल्लाइये 
भंडारा परसाद खूब खाओ लेके स्वाद मगर ,
डब्बे भर लाद लाद ,घर न ले जाइये 
औरतें और बच्चे सब ,घूम रहे आसपास ,
अपनी जुबान को शालीन तुम  बनाइये 
सर की सफेदी का लिहाज करोऔर डरो
बूढ़े हो गए हो यार,बड़े भी बन जाइये 

घोटू 

बुधवार, 1 नवंबर 2017

तुम रहो हमेशा सावधान 

वह कलकल करती हुई नदी 
तट  की  मर्यादा बीच   बंधी 
उसकी सुन्दरता ,अतुलनीय 
वह सुन्दर,सबको बहुत प्रिय 
मैं था सरिता को सराह रहा 
एक वृक्ष किनारे ,कराह रहा 
बोला ,तुम देख रहे कल कल 
पर मैंने देखा है बीता  कल 
जब इसमें आता है उफान 
मर्यादाओं का छोड़  भान 
जब उग्र रूप है यह धरती 
सब कुछ है तहस नहस करती  
जैसे शीतल और मंद पवन 
मोहा करती है सबका  मन 
पर जब तूफ़ान बन जाती है 
तो कहर गजब का ढाती है 
है मौन  शांत  धरती माता 
पर जब उसमे  कम्पन आता 
तब  आ जाती ऐसी तबाही 
सब कुछ हो जाता धराशायी 
सुंदर,सज धज कर मुस्काती 
पत्नी सबके ही मन भाती 
जीवन में खुशियां भरती है 
पर उग्र रूप जब धरती है 
तो फिर वह कुपित केकैयी बन 
जिद मनवाती ,जा कोप भवन 
पति असहाय हो दशरथ सा 
लाचार बहुत और बेबस सा 
माने पत्नी की जिद हरेक 
बनवास बने ,राज्याभिषेक 
ये नदी,हवा,धरती,नारी 
जिद पर आती ,पड़ती भारी 
कब बिगड़ जाय ,ना रहे ज्ञान 
तुम रहो हमेशा  सावधान 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

वो ऊपर वाला 

आप हम करते अच्छे बुरे जो करम 
कोई ना देखता,मन में रहता भरम 
है मगर देखता ,ऊपरवाला  सभी,
उसकी नजरें सदा ,है सभी पर रही 
उसको बोलो खुदा,गॉड या ईश्वर ,
सबका मालिक है वो,हाँ वही बस वही 
तुमने किसी को सताया,हुई एंट्री 
खाना भूखे को खिलाया,हुई एंट्री 
सब तुम्हारे भले और बुरे कर्म का ,
है रखती हिसाब उसकी खाता बही 
उसको बोलो खुदा,गॉड या ईश्वर ,
सबका मालिक है वो,हाँ वही बस वही 
जर्रे जर्रे में उसकी हुकूमत कायम 
 जैसे नचवाता वो,नाचा करते है हम 
कोने कोने में दुनिया के मौजूद है ,
वो यहाँ है वहां है ,कहाँ वो नहीं 
उसको बोलो खुदा ,गॉड या ईश्वर,
सबका मालिक है वो ,हाँ वही बस वही 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
लड़कियां 

लड़कियां,लड़कियां,लड़कियां लड़कियां 
ऐसा लगता है फैशन की हो पुतलियां 
रूप है मदभरा ,सबमे जादू भरा 
स्वर्ग की ये तो लगती कोई अप्सरा 
और दिखाने को अपने बदन की झलक ,
अपने वस्त्रों  में रखती ,खुली खिड़कियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 
नाज़ नखरे दिखा कर लुभाती हमें 
अपने जलवे दिखाकर ,रिझाती हमें 
आगे पीछे अगर इनके हम डोलते ,
प्यार मांगे,तो देती ,हमें  झिड़कियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 
सज संवर रूप अपना सुहाना बना 
ये नचाती है हमको ,दीवाना बना 
हम जरा छेड़ भी दें तो चप्पल पड़े,
माफ़ होती है इनकी सभी गलतियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 

घोटू 
दो सवैये 
१ 
लुगाई 

बेटी पराई ,मुस्काई ,मनभायी ऐसी 
नैनों के द्वारे आई ,दिल में समाई है 
रूप छलकाई ,शरमाई ,मन लुभाई अरु,
नखरे दिखाई आग तन में लगाईं है 
प्यार दरशाई ले कमाई की पाई पाई ,
पति को पटाई ऐसो जादू सीख आई है 
नज़रें झुकाई ,करे नाहीं जामे छुपी हाँइ ,
सबसे सवाई होत , घर में लुगाई है 
२ 
बेचारा आदमी 

एक बिचारो प्यारो,मुश्किल को मारो ,हारो,
हार वरमाला को ,गले जबसे  डारो है 
बाहर जो शेर ,हुयो ढेर ,फेर बीबी के ,
पालतू बंदरिया सो ,नाचे पा इशारो है 
लॉलीपॉप लालच को मारो वो बिचारो ऐसो ,
दौड़ दौड़ काम करे ,घरभर को सारो है 
मूछन को ताव गयो ,मारयो बेभाव गयो ,
ऐसो सात फेरन ने ,फेरा में डारो  है  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

नारी ,तुझमे ऐसा क्या है 

नारी तुझमे ऐसा क्या है 
जिसकी दीवानी दुनिया है 

क्या वह तेरी कोमलता है ,
या फिर तेरा कमनीय बदन 
या फिर तेरी सुंदरता है ,
या मांसल और गदराया तन 
या फिर ये नयन कटीले  है,
या चाल हिरणियों  वाली है 
रेखाएं वक्र,बदन की है ,
या फिर होठों को लाली है 
या अमृत कलश सजे तन पर ,
या मीठी बोली कोयल सी 
या लहराते कुन्तल तेरे ,
मन में करते कुछ हलचल सी 
पर शायद ये सब नहीं सिरफ ,
ये तो बस एक दिखावा है 
तेरी माँ बनने की क्षमता 
ने  देवी तुझे बनाया है 
ईश्वर ने कोख तुझे दी है ,
तुझमे प्रजनन की शक्ति है 
नवजीवन का इस दुनिया में ,
संचार तू ही कर सकती है 
तू माँ है,तुझमे ममता है ,
लालन ,पालन और पोषण है 
कोमल तन से ज्यादा कोमल ,
होता हर नारी का मन है 
तू अन्नपूर्णा है देवी ,
गृहणी,घर की संचालक है 
तू लक्ष्मी तू ही सरस्वती ,
तू दुर्गा ,शक्तिदायक है 
संगम है रूप गुणों का तू,
तू गंगा है तू यमुना है 
तू जीवनदात्री  देवी है ,
जिससे चलती ये दुनिया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
परेशानियां -पति पत्नी की 

हर पत्नी से पति परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
फिर भी एकदूजे पर आश्रित ,
एक दूजे बिन ना चले काम 
पत्नी कहती ये ऐसे है 
मत पूछो ये कि कैसे है 
घर में ही सदा घुसे रहते,
कुवे के मेंढ़क जैसे  है 
रत्ती भर काम नहीं करते ,
बस ऑर्डर देते रहते है 
मैं एक जान,सौ करू काम,
ये मुझे छेड़ते रहते है 
मैं इनसे कहूँ चलो पिक्चर ,
ये सो जाते है खूँटी तान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 
पति कहता है पत्नी ऐसी 
कर दी मेरी ऐसी तैसी 
खुद को ऐश्वर्या समझे है 
और फूल रही टुनटुन जैसी 
है खीर बहुत ये टेढ़ी सी,
दिखने में सीधी  दिखती है 
तितली जैसी उड़ती फिरती ,
घर पर मुश्किल से टिकती है 
है चीज बहुत ये बातूनी,
कैंची जैसी चलती जुबान 
हर पत्नी से पति परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
पति होते लापरवाह बड़े ,
अपना कुछ ख्याल नहीं रखते 
पैसे  कपड़े, खाने पीने की 
साजसँभाल नहीं रखते 
अपनी हर गलती का जिम्मा ,
सौंपा करते है पत्नी पर 
पति कुछ बोले एक कान सुने ,
और दूजे से कर दे बाहर 
चीजे रख जाते भूल स्वयं,
घरभर को करते परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 
पत्नी खुद पर खर्चा करती ,
 बाकी सब पर कंजूसी है 
शक्की मिजाज इतनी होती ,
पति पर करती जासूसी है 
पति सेवक सास ससुर का है,
करता जो पत्नी की मरजी 
पत्नी को अपने सास ससुर ,
से हरदम रहती एलर्जी 
पत्नी को देवर ,ननद चुभे,
पति सालीजी पर मेहरबान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कमियां 

शादी के बाद 
बेटी और दामाद 
पहुंचे पहली बार ,ससुराल 
बाप ने पूछा बेटी खुश है ना,
कैसा है तेरा हाल 
बेटी ने शरमा कर कहा ,
पापा,मैं बहुत खुश हूँ '
आपके दामाद ,
मेरा बड़ा ख्याल रखते है 
बड़े 'रिस्पॉन्सीबल 'है 
मेरी पूरी साज संभाल रखते है 
बस एक ही शिकायत है ,
ये मुझे छेड़ते रहते है 
और हमेशा मुझमे कमियां ढूंढते रहते है 
पिताजी बोले बेटा ,
ये तो बड़ी प्रसन्नता की बात है 
अपने दिए हुए संस्कारों पर हमें नाज़ है 
वरना मोबाईल में डूबी हुई ,
आज की जनरेशन 
बस इनसे करवा लो फैशन 
पर गृहस्थी चलाने में होती है अनाड़ी 
इतनी कमिया होती है कि ,
मुश्किल से खिसकती है गृहस्थी की गाडी 
शादी के बाद हर पति,
 अपनी पत्नी में ,अपनी माँ की तरह,
 कुशल गृहणी देखना चाहता है 
और जब उसकी उम्मीद के विपरीत ,
निकलती उसकी ब्याहता है 
उसमे इतनी कमियां होती है अक्सर 
जो स्पष्ट आती है नज़र 
तो बात बात में टोका टाकी से ,
उनका अहम टकराने लगता है 
चार दिनों की चांदनी के बाद,
अँधियारा छाने लगता है 
मुझे ख़ुशी है कि तेरी माँ ने ,
तुझे ट्रेंड कर दिया है इतना 
कि तुझमे इतनी कम कमियां है कि ,
दामादजी को पड़ती है ढूंढना 
पत्नी अगर कुशल गृहणी हो तो,
 तो बड़े मजे की गुजरती है  
 और जिंदगी की गाडी ,
बड़े आनंद से आगे बढ़ती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
घर का खाना 

चाट से अच्छी तो बीबी की डाट है ,
और मीठी ,मिठाई से ,तक़रार है 
पेट इनसे हमारा बिगड़ता नहीं ,
बाद में मिलता जी भर हमें प्यार है 
ना शुगर और न बढ़ना क्लोस्ट्रोल का 
है असर ऐसा बीबी के कंट्रोल का 
जेब भी अपनी ढीली है होती नहीं,
खर्च होता नहीं कोई बेकार है 
जिद नहीं करती बीबी कि होटल चलें 
क्योंकि वेज़ नॉनवेज संग जाते तले 
सब्जी दो सौ की ,रोटी मिले तीस की ,
यूं न पैसे लुटाते समझदार है 
चाट ठेले पर खाने का मन ना करे 
धुल मिटटी से सब है सने से पड़े 
गोलगप्पे का पानी ,भरोसा नहीं ,
कितना 'इंफेक्शियस 'और बेकार है 
इसलिए छोड़ होटल के सब चोंचले 
घर में बीबी के हाथों के फुलके भले 
मिलती तृप्ति है सच्ची इसी खाने से,
क्योंकि खाने में घर के बसा प्यार है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

क्या बात है उस घरवाली की 

रंगीन दशहरे मेले सी ,
       जो चमक दमक दीवाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की, 
       क्या बात है उस घरवाली की 
नवरात्री के गरबे जैसी ,
       ज्योतिर्मय दीपक जो घर का 
जिसमे फूलों की खुशबू है,
          जिसमे गहनों की सुंदरता 
जो रंगोली सी सजीधजी ,
          मीठी ,मिठाई से ज्यादा है 
जो फूलझड़ी ,रंग बरसाती,
          जो लगती कभी पटाखा है 
जो चकरी सी खाती चक्कर,
         आतिशबाजी ,खुशिहाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की ,
          क्या बात है उस घरवाली की 
जो करवाचौथ वरत करती ,
          भूखी प्यासी रहकर ,दिनभर 
जो मांगे पति की दीर्घ उमर ,
             और उसे मानती परमेश्वर 
जो शरदपूर्णिमा का चंदा ,
            माथे बिंदिया सी सजी हुई 
सिन्दूरी मांग भरी घर की ,
             हाथों की मेंहदी ,रची हुई 
है  अन्नकूट सी मिलीजुली,
         वह  खनक चूड़ियों वाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की,
          क्या बात है उस घरवाली की 
वह जो गुलाल है होली की,
            उड़ता गुबार जो रंग का है 
जीवनभर जो रखता मस्त हमें,
             उसमे वो नशा भंग का है 
मावे की प्यार भरी गुझिया ,
           वह दहीबड़े सी स्वाद  भरी 
रस डूबी गरम जलेबी सी ,
            रसगुल्ले सी ,आल्हाद भरी 
मुंह लगी फिलम के गीतों सी,
             और ताली है कव्वाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की,
          क्या बात है उस घरवाली की 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
     गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी 
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
        पाट  चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
ऐसा टॉफी का लालच मुझे दे दिया ,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
तुम इशारों पर अपने नचाती रही,
    आज तक भी थमा ना है वो सिलसिला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             पटाखा तुम भी-पटाखा हम भी 

छोड़ती खुशियों का फव्वारा तुम अनारों सा,,
              हंसती तो फूलझड़ी जैसे फूल ज्यों झरते 
हमने बीबी से कहा लगती तुम पटाखा हो ,
             सामने आती हमारे ,जो सज संवर कर के 
हमने तारीफ़ की,वो फट पडी पटाखे सी,
            लगी कहने  पटाखा मैं  नहीं ,तुम हो डीयर 
मेरे हलके से इशारे पे सारे रात और दिन,
           काटते रहते हो,चकरी  की तरह,तुम चक्कर  
भरे बारूद से रहते हो ,झट से फट पड़ते,
           ज़रा सी छूती  मेरे प्यार की जो चिनगारी 
लगा के आग,हमें छोड़, दूर भाग गयी,
            हुई  हालत हमारी ,वो ही  पटाखे वाली 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

दिवाली मन गयी 
१ 
कल गया घूमने को मैं तो बाज़ार था 
कोना कोना वहां लगता गुलजार था 
हर तरफ रौशनी ,जगमगाहट दिखी 
नाज़नीनों के मुख,मुस्कराहट दिखी 
चूड़ियां ,रंगबिरंगी ,खनकती  दिखी 
कोई बरफी ,जलेबी,इमरती   दिखी 
फूलझड़ियां दिखी और पटाखे दिखे 
सब ही त्योंहार ,खुशियां,मनाते दिखे 
खुशबुओं के महकते नज़ारे  दिखे 
आँखों आँखों में होते इशारे   दिखे 
कोई हमको मिली,और बात बन गयी 
यार,अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
२ 
कल गया पार्क में यार मैं घूमने 
देख करके नज़ारा, लगा झूमने 
जर्रा जर्रा महक से सरोबार था 
यूं लगा ,खुशबूओं का वो बाज़ार था
 थे खिले फूल और कलियाँ भी कई
रंगबिरंगी दिखी ,तितलियाँ भी कई 
कहीं चम्पा ,कहीं पर चमेली दिखी 
बेल जूही की ,झाड़ी पर फैली दिखी 
थे कहीं पर गुलाबों के गुच्छे खिले 
और भ्रमर उनका रसपान करते मिले 
एक गुलाबी कली ,बस मेरे मन गयी 
यार अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
३ 
 मूड छुट्टी का था,बैठ आराम से 
देखता था मैं टी वी ,बड़े ध्यान से 
आयी आवाज बीबी की,'सुनिए जरा 
कुछ भी लाये ना,सूना रहा दशहरा 
व्रत रखा चौथ का,दिन भर भूखी रही 
तुम जियो सौ बरस,कामना थी यही 
और बदले में तुमने मुझे क्या दिया 
घर की करने सफाई में उलझा दिया 
आज तेरस है धन की ,मुहूरत भी है 
सेट के सोने की,मुझको जरुरत भी है 
अब न छोडूंगी ,जिद पे थी वो ठन गयी 
यार अपनी तो ऐसे दिवाली मन गयी 

घोटू  



मेहमान 

उमर के एक अंतराल के बाद 
 एक कोख के जाये ,
और पले बढे जो एक साथ,
उन भाई बहनो के रिश्ते भी ,
इस तरह बदल जाते है 
कि जब वो कभी ,
 एक दूसरे के घर जाते है ,
तो मेहमान कहलाते है 
जिंदगी में  परिभाषाएं ,
इस तरह बदलती है 
अपनी ही जायी बेटी भी ,
शादी के बाद ,
हमे मेहमान लगती है 

घोटू 
बंटवारा 

जब हम छोटे होते है 
और घर में कोई चीज लाई जाती है 
तो सभी भाई बहनो में ,
बराबर बाँट कर खाई जाती है 
कोई झटपट का लेता है 
कोई बाद मे,सबको टुंगा टुंगा,
खाकर के  मजे लेता है 
बस इस तरह ,हँसते खेलते ,
जब हम बड़े होते है 
तब फिर होना शुरू झगड़े होते है  
एक दूसरे के छोटे हुए,
उतरे कपडे पहनने वाले ,अक्सर 
उतर आते है इतने निम्न स्तर पर 
कि समान 'डी एन ए 'के होते हुए भी ,
अपने अपने स्वार्थ में सिमट जाते है 
और बचपन में लाइ हुई चीजों की तरह ,
आपस में बंट जाते है 

घोटू 
रिश्ते 

जीवन के आरम्भ में ,
किसी के बेटे होते है आप 
और बढ़ते समय के साथ,
बन जाते है किसी के पति ,
और फिर किसी के बाप 
उमर जब बढ़ती है और ज्यादा 
तो आप बन जाते है ,
किसीके ससुर और किसी के दादा 
और इस तरह,
तरह तरह के रिश्ते निभाते हुए,
आप इतने थक जाते है 
कि तस्वीर बन कर ,
दीवार पर लटक कर ,
अपना अंतिम रिश्ता निभाते है 
 
 घोटू                             

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
     गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी 
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
        पाट  चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी 
अपने पीतम का ' पी 'तुमने ऐसा पिया ,
     रह गया 'तम' मैं, तुम रौशनी बन गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम'मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी           

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

अहमियत आपकी क्या है 

हमारी जिंदगानी में ,अहमियत आपकी क्या है 
खुदा की ये नियामत है,मोहब्बत आपकी क्या है 
कभी चंदा सी चमकीली ,कभी फूलों सी मुस्काती ,
आपसे मिल समझ आया कि दौलत प्यार की क्या है 
मेरे जीवन का हर मौसम,भरा है प्यार से हरदम,
बनाती लोहे को कुंदन,ये संगत  आपकी क्या  है 
अपनी तारीफ़ सुन कर के ,आपका मुस्कराना ये,
बिना बोले ,बता देता ,कि नीयत  आपकी क्या है 
सुहाना रूप मतवाला ,मुझे पागल बना डाला ,
गुलाबी ओठों को चूमूँ ,इजाजत आपकी क्या है 
कभी आँचल हटा देती,कभी बिजली गिरा देती,
इशारे बतला देते है कि हालत  आपकी  क्या है 
हो देवी तुम मोहब्बत की ,या फिर हो हूर जन्नत की,
बतादो हमको चुपके से, असलियत आपकी क्या है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मुक्ती 

मैं जनम पत्रिकायें   दिखाता रहा ,
और ग्रहों की दशाएं बदलती रही 
पर दशा मेरी कुछ भी तो बदली नहीं ,
जिंदगी चलती ,वैसे ही चलती रही 
कोई ज्योतिष कहे ,दोष मंगल का है,
कोई पंडित कहे ,साढ़ेसाती चढ़ी 
कोई बोले चंदरमा ,तेरा नीच का,
उसपे राहु की दृष्टी है टेढ़ी पड़ी 
तो किसी ने कहा ,कालसर्प दोष है,
ठीक कर देंगे हम ,पूजा करवाइये 
कोई बोलै तेरा बुध कमजोर है ,
रोज पीपल पे जल जाके चढ़वाईये 
कोई बोलै कि लकड़ी का ले कोयला ,
बहते जल में बहा दो,हो जितना बजन 
दो लिटर तैल में ,देख अपनी शकल ,
दान छाया करो,मुश्किलें होगी कम 
मैं शुरू में  ग्रहों से था घबरा गया ,
पंडितों  था  इतना  डराया  मुझे 
मंहगे मंहगे नगों की अंगूठी दिला ,
सभी ने मन मुताबिक़ नचाया मुझे 
और होनी जो होना लिखा भाग्य में ,
वो समय पर सदाअपने घटता गया 
होता अच्छा जो कुछ तो उसे मुर्ख मैं ,
सब अंगूठी बदौलत ,समझता रहा 
रोज पूजा ,हवन और करम कांड  में ,
व्यर्थ दौलत मैं अपनी लुटाता रहा 
जब अकल आई तो ,अपनी नादानी पे,
खुद पे गुस्सा बहुत ,मुझको आता रहा 
उँगलियों की अंगूठी ,सभी फेंक दी ,
और करमकांड ,पूजा भी छोड़े सभी 
भ्रांतियों से हुआ ,मुक्त मानस मेरा ,
हाथ दूरी से पंडित से  जोड़े तभी 
और तबसे बहुत,हल्का महसूस मैं ,
कर रहा हूँ और सोता हूँ मैं चैन से 
रोक सकता न कोई विधि का लिखा,
जो भी घटता है,लेता उसे प्रेम से 
जबसे ज्योतिष और पंडित का चक्कर हटा ,
मन की शंकाये सारी निकलती गयी 
दूर मन के मेरे ,भ्रम सभी हो गए ,
जिंदगी जैसे चलनी थी,चलती रही 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 8 अक्तूबर 2017

मजबूरी 

नींद तो अब लगने का ,नाम नहीं लेती है 
आशिक़ी दूर भगने का,नाम नहीं लेती है 
जी तो करता है ,सेकना अलाव में तन को,
लकड़ियां पर सुलगने का नाम नहीं लेती है 

घोटू 
बदलाव-शादी के बाद 

शिकायत तुमको रहती है,
बदलता जा रहा हूँ मैं ,
रहा हूँ अब न पहले सा,
बना कर तुमसे नाता हूँ 
मैं बदला तो हूँ ,पर डीयर,
हुआ हूँ ,दिन बदिन ,बेहतर 
मैं क्या था ,अब हुआ हूँ क्या ,
हक़ीक़त  ये   बताता  हूँ 
तुम्हारा साथ पाकर के ,
मैं फूला हूँ पूरी जैसा ,
मैं आटा था,छुआ तुमने ,
बना अब मैं परांठा हूँ 
मैं तो था दाल ,पर तुमने,
गला,पीसा,तला मुझको ,
दही में प्यार के डूबा ,
बड़ा अब मैं कहाता हूँ 
मैं खाली गोलगप्पे सा ,
हो खट्टा मीठा पानी तुम,
तुम मेरे साथ होती तब ,
सभी के मन को भाता हूँ 
फटा सा दूध था मैं पर ,
प्यार की चासनी डूबा ,
चौगुना स्वाद भर लाया ,
मैं रसगुल्ला  कहाता हूँ 
भले ही टेढ़ामेढ़ा सा ,
दिया था जिस्म कुदरत ने ,
तुम्हारे प्यार का रस पी,
जलेबी बन लुभाता हूँ 
तुम्हारा साथ पाकर के ,
हुआ है हाल  ये मेरा ,
तुम तबियत से उड़ा देती,
मैं मेहनत से कमाता हूँ 
तुम्हारे मन मुताबिक जब ,
नहीं कुछ काम कर पाता ,
सुधरने की प्रक्रिया में ,
हमेशा जाता डाटा हूँ 
भले कलतक मैं था पत्थर,
बन गया मोम हूँ अब पर,
मिले जब प्यार की गरमी ,
पिघल मैं झट से जाता हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं एक पेड़ हूँ 

मैं सुदृढ़ सा पेड़ ,जड़े है मेरी गहरी 
इसीलिए तूफानों में भी रहती ठहरी 
भले हवा का वेग ,हिला दे मेरी डालें 
पके अधपके ,पत्ते तोड़ ,उड़ादे सारे  
पर मैं ये सब,झेला करता ,हँसते हँसते 
कभी हवा से ,मैंने नहीं बिगाड़े  रिश्ते 
क्योंकि हवा से ही मेरी गरिमा है कायम 
मैं न बदलता,लाख बदलते रहते मौसम 
तेज सूर्य का,जब मुझसे,करता टकराया 
धुप प्रचंड भले कितनी,बन जाती छाया 
छोटे बड़े सभी पत्ते ,संग संग लहराते 
मेरी डालों पर विहंग  सब  नीड बनाते 
मुझे बहुतआनंदित करता,उनका कलरव 
थके पथिक ,छाया में करते,शांति अनुभव 
जड़ से लेकर ,पान पान से ,मेरा रिश्ता 
सेवा भाव,दोस्ती देती ,मुझे अडिगता 

मदन मोहन बाहेती;घोटू'

भगवान का कम्पनसेशन 

भगवान ,
जब तूने रचे नर और नारी 
औरतों के गालों को बालविहीन चिकना बनाया,
और मर्दों के गालों पर उगा दी दाढ़ी 
पर जो एक्स्ट्रा बाल दिए मर्दों के गालों पर 
तो क्षतिपूर्ति के लिए   ,
विशेष कृपा बरसा दी ,नारी के बालों पर 
उन्हें दे दिए ,घने,रेशमी और काले कुंतल 
जिनके जाल में फंस कर ,
आदमी मुश्किल से ही सकता है निकल 
आपने देखा होगा कि बढ़ती हुई उम्र के साथ 
आदमी के सर के बाल उड़ जाते है 
वो कभी आगे से गंजे ,
या कभी पीछे से खल्वाट नज़र आते है 
पर ईश्वर की अनुकम्पा से औरतों के सर पर ,
बालों की छटा ,हरदम रहती छाई है 
क्या आपको कभी कोई औरत ,
आदमी की तरह गंजी नज़र आयी है 
भगवान ,तू बड़ा ग्रेट है 
तेरी नज़र में सब बराबर है,
तू किसी में न रखता भेद है 
अगर तेरी रचना में,
 कहीं कुछ असमानता आयी है 
तो तूने किसी न किसी तरह,
किया 'कम्पनसेट'है 

घोटू 
नकलची औरतें 

औरतें,
अपने अपने पति के ,
हृदय की स्वामिनी होती है 
फिर भी उनकी अनुगामिनी होती है 
उनके पदचिन्हो पर चलती है 
हमेशा उनका अनुसरण करती है 
जब कि आदमी ,
जो कि उन पर रीझा करता है 
उनकी तारीफों के पुल बाँध ,
उनपर मरता है 
पर कभी भी उनके,
 परिधानों की नकल नहीं करता है 
और न ही उनकी तरह ,
पहनता है कोई गहने 
क्या आपने किसी पुरुष को देखा है 
हीरे का नेकलेस या लटकते इयररिंग ,
और  हाथों में कंगन पहने 
हिंदुस्थानी औरतों का लिबास 
जो होता है साड़ी या चोली ख़ास 
क्या किसी पुरुष ने अपनाया है 
क्या कोई मर्द,
 पेटीकोट पहने नज़र आया है 
जबकि औरतें ,
पहन कर मर्दों वाले परिधान 
दिखाती है अपनी शान 
आदमी ने जीन्स पहनी,
औरतें भी पहनने लग गयी 
मर्दों जैसा ही टीशर्ट ,
जिस पर जाने क्या क्या लिखा रहता है ,
पहन कर टहलने लग गयी 
और आदमी ,
जब उस पर क्या लिखा है ,
पढ़ने  को नज़र डालता  है 
तो औरतें शिकायत करती है ,
कि वो उन पर लाइन मारता है 
आदमी का कुरता और पायजामा ,
औरतों ने पूरी तरह हथिया लिया है 
चूड़ीदार पायजामे को 'लेगिंग',
और ढीले पायजामे को'प्लाज़ो'बना लिया है 
मर्दों की हर चीज पर ,
नकलची औरतें दिखाती अपना हक़ है 
और ये एक हक़ीक़त है ,इसमें क्या शक है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 27 सितंबर 2017

विराट 

मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खिलाडी  है   धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
 खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थम कर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर  
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

विराट कोहली 

क्रिकेट का जो धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना 
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले 
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
तिल 

दिखने में अदना होता पर ,बहुत बड़ा इसका दिल होता 
यूं तो तेल ,तिलों से निकले,बिना तेल का भी  तिल होता 
इसकी लघुता मत देखो ,यह ,होता बड़ा असरकारक है 
ख़ास  जगह पर तिल शरीर में ,हो तो वो लाता 'गुडलक'है 
गालों पर तिल ,जालिम होता ,होठों पर तिल ,कातिल होता 
किस्मतवाला वो होता है ,जिसके हाथों में तिल  होता 
तिल मस्तक पर ,बुद्धिदायक,अच्छी बुद्धि,सद्विचार दे
तिल कलाई में ,देता कंगना,तिल गर्दन में,कंठहार दे 
तिल 'ब्यूटीस्पॉट'कहाता ,सबके मन को प्यारा लगता 
चन्द्रमुखी के चेहरे का भी,दूना रूप निखारा करता 
तिल में भी तो रंगभेद है ,कुछ सफ़ेद तिल ,कुछ तिल काले 
कर्मकांड और यज्ञ हवन में , काले तिल ही  जाते  डाले 
तिल सफ़ेद,मोती के जैसा ,कभी रेवड़ी पर है चढ़ता 
स्वाद बढ़ाता है चिक्की का,और गजक को खस्ता करता 
विरह पीर में तिलतिल जल कर ,दिन गुजारना खेल नहीं है 
बात बना, कुछ कर ना पाते ,उन तिल में कुछ तेल  नहीं है  
छोटी सी हो बात लोग कुछ ,इतनी उसे हवा देते है 
अपनी बातों के तिलिस्म से,तिल का  ताड़ बना देते है 
तिल भर होती जगह नहीं पर ,फिर भी लोग समा सकते है 
तिलतिल कर ,हम आगे बढ़ कर,अपनी मंजिल पा सकते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
विरह विरह बहु अंतरा 

शादी के बाद 
जब आती है अपने मम्मी पापा की याद 
और बीबियां मइके चली जाती है 
पर सच,दिल को बड़ा तड़फाती है 
रह रह कर आता है याद 
वो मधुर मिलन का स्वाद 
जो वो हमे चखा जाती है 
रातों की नींद उड़ा जाती है 
उचटा उचटा रहता है मन 
याद आतें है मधुर मिलन के वो क्षण 
दिन भर जी रहता है अनमना 
और जीवन में पहली बार ,
हमें सताती है विरह की वेदना 
फिर नौकरी के चक्कर में 
कईबार आदमी नहीं रह पाता है घर में 
और क्योंकि बच्चों के स्कूल चलते रहते है 
पत्नी घर पर रहती है और हम ,
मजबूरी वश बाहर रहते है 
बीबी बच्चों को अकेला छोड़ते है 
और सटरडे ,सन्डे की छुट्टी में ,
सीधे घर दौड़ते है 
मजबूरी ,हमे वीकएंड हसबैंड देती है बना 
और जीवन में दूसरी बार ,
हमे झेलनी पड़ती है विरह की वेदना 
और फिर जब कोई बच्चा बड़ा हो जाता है 
पढ़लिख अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है 
विदेश में नौकरी कर ,अच्छा कमाता है 
हमारा सीना गर्व से फूल जाता है 
तो मन में भर कर बड़ा उत्साह 
हम कर देतें है उसका विवाह 
वो बसा लेते है विदेश में अपना घरबार 
और मिलने आजाते है कभी कभार 
पर जब हो जाते है बहू के पैर  भारी 
तब उसका ख्याल रखने
 और करने जजकी की तैयारी 
बहूबेटे को अम्मा की याद आती है 
और हमारी बीबीजी ,विदेश बुलवाई जाती है 
तब हमे जीवन में तीसरी बार 
विरह की पीड़ा का होता है साक्षात्कार 
क्योंकि हम होते है कई परिस्तिथियों पर निर्भर 
दोनों एकसाथ नहीं छोड़ सकते है घर 
कभी नौकरी में छुट्टी नहीं मिलती है 
कभी दुसरे बच्चों की पढाई चलती है 
रिटायर हो तो भी ढेर सारी 
आदमी पर होती है जिम्मेदारी 
तो भले ही मन पर लगती है ठेस 
पत्नी को अकेले भेजना पड़ता है विदेश 
बढ़ती उमर में उसकी इतनी आदत पड़ जाती है 
कि हरपल ,हरक्षण वो याद आती है 
वो उधर पूरा करती है अपना दादी बनने का चाव 
इधर हम सहते है विरह की पीड़ा के घाव 
फोन पर बात कर मन को बहला लेते है 
अपने दुखते दिल को सहला लेते है 
जवानी की विरह पीड़ाएँ तो जैसे तैसे सहली जाती है 
पर बुढ़ापे में बीबी से जुदाई,बड़ा जुलम ढाती है 
क्योंकि इस उमर में आदमी ,
पत्नी पर इतना निर्भर हो जाता है 
कि उसके बिना जिंदगी जीना दुर्भर हो जाता है 
एक दुसरे की कमी हमेशा खलती रहती है 
पर जीवन की गाडी,ऐसे ही चलती रहती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ऐसा बाँधा तुमने बाहुपाश में 

बड़ी ही रंगत थी तेरे हुस्न में ,तुम्हे देखा लाल चेहरा हो गया 
बड़ा तीखापन था तेरे हुस्न में,दिल में मेरे घाव गहरा हो गया 
बड़ी ही गर्मी थी तेरे हुस्न में,देख मन में आग सी कुछ लग गयी 
बड़ा आकर्षण था तेरे हुस्न में ,चाह मन में मिलन की थी जग गयी 
बड़ी मादकता थी तेरे हुस्न में ,देख कर के नशा हम पर छा गया 
बड़ी ही दिलकश अदाएं थी तेरी,देख करके,दिल था तुझ पर आ गया 
बड़ी चंचलता थी तेरे हुस्न में ,देख कर मन डोलने सा लग गया 
बावरा सा मन पपीहा बन गया ,पीयू पीयू बोलने सा लग गया 
बड़ा भोलापन था तेरे हुस्न में ,प्यार के दो बोल बोले,पट गयी 
बड़ी शीतलता थी तेरे हुस्न में ,मिल के तुझसे,मन में ठंडक ,पड़ गयी 
ताजगी से भरा तेरा हुस्न था,देख कर के ताजगी सी आ गयी 
सादगी से भरा तेरा हुस्न था,देख कर दीवानगी सी छा गयी 
देख ये सब इतने हम पागल हुए,हमने तुझ संग सात फेरे ले लिए 
लगा हमको ,चाँद हमने पा लिया,क्या पता था ,संग अँधेरे ले लिए 
क्या बने शौहर कि नौकर बन गए,इशारों पर है तुम्हारे नाचते 
क्या पता था ये तुम्हारी चाल थी,हमारा दिल रिझाने के वास्ते 
लुभाया था गर्मी ने जिस जिस्म की,आजकल है वो जलाने लग गयी 
तेरी कोयल सी कुहुक गायब हुई,ताने दे दे ,अब सताने लग गयी 
नज़र तीखी कटारी जो थी चुभी,बन गयी है धार अब तलवार की 
पति बन, हम पर विपत्ति आ गयी,ऐसी तैसी हो गयी सब प्यार की 
पड़ी वरमाला ,बनी जंजीर अब ,पालतू से पशु बन कर रह गए 
ऐसा बाँधा तुमने बाहुपाश में, उमर भर को बन के कैदी रह गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 20 सितंबर 2017

मन बहला लिया करता 

मैं अपने मन को बस इस तरह से ,बहला लिया करता 
तुम्हारे हाथ, कोमल उँगलियाँ ,सहला  लिया करता 
कभी कोशिश ना की,पकड़ ऊँगली,पहुँचू ,पोंची तक,
मैं अपनी मोहब्बत को ,इस तरह  रुसवा नहीं करता 
जी करता है बढ़ूँ आगे ,शराफत रोक लेती  पर ,
जबरजस्ती कभी ना, तुमसे 'हाँ' कहला लिया करता 
भावना की नदी में जब उमड़ कर बाढ़ आती है,
मैं उसका रुख ,किसी और रास्ते ,टहला लिया करता 
जाम हो सामने ,पीने की पर जुर्रत न कर पाता ,
सब्र का घूँट पीकर ,खुद को मैं बहला लिया करता 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-