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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

उम्र-ठगिनी

                      उम्र-ठगिनी

वक़्त चलता था हमारे साथ में ,
                      उम्र के संग तबदीली यूं  छागयी
नींद भी गुस्ताख़ अब होने लगी,
                       हम न सोये,उसके पहले आ गयी
आजकल तो ढलता है दिन बाद में,
                       उसके पहले ढलने लग जाते है हम
साँझ घिरते ,लगता छाई रात है ,
                       और उस पर नींद ढाती है सितम
सपन भी तो आजकल आते नहीं ,
                        कहते है कि आते आते थक गए
एक भी अंजाम तक पहुंचा नहीं ,
                         हमारे संग इस तरह वो पक गए   
 हमारी मर्ज़ी मुताबिक़ कल तलक,
                         चला करती थी हवायें ,बेदखल
अपनी मन मर्जी की सब मालिक हुई ,
                      बदला बदला रुख है उनका आजकल     
आफताबी चमक थी हममें कभी ,
                       पीड़ाओं की बदलियों ने  ढक  लिया
'माया ठगिनी' को बहुत हमने ठगा ,
                        'उम्र ठगिनी'ने हमें पर ठग लिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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