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गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

आँखें

           आँखें

आँखें ,सबसे बड़ा दिया उपहार प्रभु का,
       चमका करती ,सूरज चंदा सी ,चेहरे पर
भेद बताती ,सुन्दर और असुंदर का ये,
        ज्योतिपुंज सी राह दिखाती है जीवन भर
दो आँखे ,मानव तन की शोभा होती है ,
         हमको जो ये सारी दुनिया दिखलाती है
पर इनकी तासीर बड़ी उल्टी होती है,
        खोई खोई जग कहता , जब मिल जाती है
हो जाता है प्यार,लड़ा करती जब आँखें,
         जब ये झुकती ,मतलब हामी भर देती है
थोड़ी तिरछी हो जाती,बिजलियाँ गिराती ,
         और दुखी होती , आंसूं  ढलका देती है
काला मुख होने पर है बदनामी होती,
        इन पर कालिख लगती ,ये होती कजरारी
कोई मृगनयनी है कोई मीनाक्षी है,
       चंचल,चपल और सुन्दर ये लगती  प्यारी
होती जिसकी एक आँख समदर्शी होता ,
       लोगबाग उसको काणा भी कह देते है
अगर किसी के साथ छेड़खानी करनी है ,
      एक आँख बंद करते ,आँख मार देते है
कोई बारीक काम सुई में धागा पोना ,
       या कि लक्ष्य भेदन करने को तीर चलाना
इनमे एक आँख बंद करके ही देखा जाता ,
      हो पाता  संभव तब ही  ये सब  हो पाना
दो आँखें तो सब की ही मन भावन होती,
       खुले तीसरी आँख ,कोप बरसाती भारी
शिवशंकर त्रिनेत्र ,खोलते नयन तीसरा ,
       होते है जब कुपित,कहाते प्रलयंकारी
और ये ही आँखें जब होती चार किसी से ,
        इसको कहते प्यार हुआ,जब टकराती है
चार आँखें हो जाने का चक्कर है प्यारा ,
          पर इससे ,आँखों की निंदिया उड़ जाती है
ये होती है बंद मगर देखा करती है ,
             सोयी आँखों से सपने देखा करते हम      
तन का यह अंग ,सबसे ज्यादा मूल्यवान है,
              पलकें है तैनात,सुरक्षा करती   हरदम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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