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सोमवार, 27 मार्च 2017

पति का रिटायरमेंट-पत्नीकी आनंदानुभूति 

हो गए पति देवता जब से रिटायर,
रूदबा उनका थोड़ा सा ठंडा पड़ा है 
निठल्ले है,वक़्त काटे से न कटता ,
व्यवस्थाये ,गयी सारी  गड़बड़ा है 
अब उमर संग आ गया बदलाव उनमे ,
या कि इसमें ,उनकी कुछ मजबूरियां है 
कोई उनकी आजकल सुनता नहीं है,
और बच्चों ने बना ली दूरियां  है 
जवानी भर ,जरा भी मेरी सुनी ना ,
दबा कर के रखा मुझको उम्र सारी 
बुढापे का फायदा ये तो हुआ है,
पतिजी अब लगे है,सुनने हमारी 
काटने को वक़्त ,कब तक पढ़ें पेपर ,
टीवी पर कब तलक नज़रोंको गढाये 
एक ही अवलम्ब उनका मैं बची हूँ,
साथ जिसके,चाय पियें,गपशपाये 
नहीं कुछ भी बताते थे,छुपाते थे,
बात दिलकी खोल अब कहने लगे है 
राय मेरी ,मांगते हर बात पर है,
सुनते है और कहने मे रहने लगे है 
मूड हो  तो खेल लेते,ताश पत्ती,
या सिनेमा में दिखाते नयी पिक्चर 
उमर संग व्यवहार में बदलाव आया,
जिसके खातिर तरसती थी जिंदगी भर 
ये रिटायरमेंट उनका एक तरह से,
मेरे खातिर आया है वरदान बन के 
जवानी में ना ,बुढापे मे ही सही पर,
हो रहे है ,पूर्ण सब अरमान मन के 
बच्चे सेटल हो गए अपने घरों में ,
नहीं चिता कोई भी है ,या फिकर है 
कट रही अब जिंदगी ये चैन से है ,
मौज मस्ती मनाने की ये उमर है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उमर इसमें क्या करेगी 

साथ अपनी कबूतरनी को लिए करना गुटरगूं ,
अरे ये है हक़ हमारा,उमर इसमें क्या करेगी 
पंख फैला ,आसमां में,रोज खाना कलाबाज़ी ,
अरे ये है 'लक 'हमारा ,उमर इसमें क्या करेगी 
मन मसोसे देखते रहना और जल कर ख़ाक होना ,
ये निकम्मापन है उनका,उमर इसमें क्या करेगी 
मिली जितनी जिंदगी है,करो तुम एन्जॉय खुल कर,
व्यर्थ है दिल को जलाना ,उमर इसमें क्या करेगी 
कोई घर की रोटी खाये ,कोई मंगवाता है पिज़ा,
सभी का  अपना तरीका ,उमर इसमें क्या करेगी 
कोई की पत्नी पुरानी,पड़ोसन पर कोई रीझा ,
लगे घर का माल फीका ,उमर इसमें क्या करेगी 
आदतें जो पालते हम ,है शुरू से ,ना  बदलती,
रहा करती मरने तक है ,उमर इसमें क्या करेगी 
हसीनो की ताकाझांकी ,का अलग ही लुफ्त होता ,
छूटती ये नहीं लत है,उमर इसमें क्या करेगी 
अगर घंटी नहीं बजती,फोन साइलेंट मोड़ पर है,
बेटरी या हुई डाउन ,उमर इसमें क्या करेगी 
उसको फिर रिचार्ज करवाने,का समय अब आगया है 
नया मॉडल या पुराना ,उमर इसमें क्या करेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 26 मार्च 2017

      करिश्मा कृष्ण का 
                  १ 
बिन लिए हथियार कर में,महाभारत के समर में ,
पांडवों की जय कराना, ये करिश्मा कृष्ण का था 
छोड़ अपना राज मथुरा,समंदर के किनारे जा ,
द्वारिका नूतन बसाना ,ये करिश्मा कृष्ण का था 
बालपन में ,उँगलियों से ,बांसुरी की धुन बजाना ,
गोपियों का मन रिझाना ये करिश्मा कृष्ण का था 
और बड़े हो उसी ऊँगली ,पर चढ़ा कर के सुदर्शन ,
चक्र ,दुनिया को हिलाना, ये करिश्मा कृष्ण का था 
                    २ 
लोग अक्सर ऐश्वर्य पा ,भूल जाते सखाओं को ,
दोस्ती पर सुदामा के ,संग निभाई  कृष्ण ने थी 
एक पत्नी झेलना मुश्किल ,मगर रख आठ रानी,
जिंदगी, खुश सभी को रख कर बितायी कृष्ण ने थी 
फलों की चिता किये बिन,कर्म की महिमा बता कर,
 महाभारत के समर  में ,गीता सुनाई कृष्ण ने थी 
ऐसा बंशी बजाने का महारथ हासिल किया था ,
उमर भर ही चैन की  ,बंशी बजायी  कृष्ण ने थी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'              

शार्ट कट 

मूर्ती को प्रभु समझ हम,पाहनो को पूजते है 
देव क्या ,हम देवता के वाहनों को पुजते है 
शिव का वाहन ,नन्दी है तो,हम उसे भी जल चढाते 
और मन की कामना हम ,कान में उसके  सुनाते 
गजानन वाहन है मूषक ,चढाये मोदक उड़ाता 
कान में उसके मनोरथ ,फुसफुसा  कर कहा जाता
चढ़ाते हनुमानजी को, राम का हम नाम लिखते 
भला क्यों सीधे प्रभु से , मांगने में हम  हिचकते 
सोचते है प्रभु से यदि ,करेगा रिकमंड  वाहन 
तो प्रभु जल्दी सुनेंगें, मिलेगा जो चाहता  मन 
काम चमचों से कराना , शार्ट कट का  रास्ता है
 रीति लेकिन ये पुरानी  ,बन गयी अब आस्था  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शिकायत -पत्नी की 

छोटा सा सौदा लेने में,कितना मोलभाव करते हो 
एक पेंट भी लेनी हो तो ,तुम दस पेंट ट्राय करते हो 
कभी डिजाइन पसन्द न आती ,कभी फिटिंगमे होता संशय 
बना कोई ना कोई बहाना,टाल दिया करते तुम निर्णय 
तो शादी के पहले जिस दिन,मुझे देखने तुम आये थे 
कुछ मिनिटों में ,कैसे शादी का निर्णय तुम ले पाए थे 
जब तुमने मुझको देखा था ,क्या देखा बस चेहरा ,मोहरा 
केवल  नाकनक्श देखे थे,या देखा था बदन  छरहरा 
या फिर मेरे बाल जाल में, अपनी नज़रें उलझाई थी 
या फिर मेरी मीठी बातें ,तुम्हारे  मन को भायी  थी 
देख आवरण ही बस मेरा क्या तुम मुझको आंक सके थे 
सच बतलाना रत्ती भर भी ,मेरे दिल में झाँक सके थे 
जबकि तुम्हे मालूम था तुमको ,जीवन भर है साथ निभाना 
बहुत मायना रखती उस दिन ,तुम्हारी छोटी  हाँ या ना 
कुछ मिनिटों में कितना मुश्किल,होता है ये निर्णय करना 
अपना जीवन साथी चुनना,जिस के संग है जीना ,मरना 
आपस में कितनी मिलती है ,सोच हमारी और तुम्हारी 
एक गलत निर्णय जीवन भर,दोनों पर पड़ सकता भारी 
तो फिर उस दिन क्या अंदर से,तुम्हारा दिल कुछ बोला था 
या फिर शायद मुझे देख कर ,तुम्हारा भी दिल डोला था 
टालमटोल नहीं कर पाए ,तुमने बस ,हामी भर दी  थी 
ये तुम्हारा निर्णय था या ,फिर ये ईश्वर  की मरजी   थी 
कहते है कि सभी जोड़ियां ,है ऊपर से बन कर आती 
यह नियति का निर्णय होता,किसका ,कौन बनेगा साथी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 21 मार्च 2017

बूढ़े भी कुछ कम नहीं 

क्या जवानों ने ही ठेका ले रखा ,
           आशिक़ी का,बूढ़े भी कुछ कम नहीं 
बूढ़े सीने में भी है दिल धड़कता ,
             बूढ़े तन में होता है क्या  दम  नहीं 
जवानी में बहुत मारी फ़ाक्ता ,
                अनुभव से काबलियत आ गयी ,
बात ये दीगर है ,पतझड़ आ गया ,
              रहा पहले जैसा अब मौसम नहीं 

घोटू 
परशादखोर 

तरह तरह के प्राणी रहते ,है इस दुनिया के जंगल में 
कुछ गिरगिट जैसे होते है ,रंग बदलते है पल पल में 
बचाखुचा शिकार शेर ,गीदड़ से खाते चुपके से ,
ये परशादखोर ऐसे है ,खुश हो जाते  तुलसीदल  में 
इनको बस मतलब खाने से ,वो भी अगर मिले फ़ोकट में,
वो बस खाते है भंडारा ,जाते नहीं कभी होटल में 
गैरों की शादी में घुस कर ,मज़ा लूटते है दावत का ,
इनसे जब चन्दा मांगो तो ,गायब हो जाते है पल में 

घोटू 
कथनी और करनी 

न जाने लोग कितनी ही ,अजब बातें किया करते ,
जिनकी कथनी और करनी में,न कोई मेल होता है 
प्यार में कहते सजनी से,सितारे मांग में भर दूं ,
सितारे तोड़ कर लाना ,न कोई खेल होता है 
कभी मिलती नहीं आँखें ,मगर कहते नज़र लड़ना,
होठ से होठ मिलने से ,सदा होती नहीं पप्पी 
मिले जब होठ ऊपर का ,तुम्हारे होठ निचले से ,
इसे सीधी  सी भाषा में ,कहा जाता रखो चुप्पी 
न जाने उनकी मुस्काहट,गिराती बिजलियाँ कैसे ,
हंसी उनकी कहाती है ,भला क्यों फूल सा खिलना 
हमारा दिल अलग धड़के ,तुम्हारा दिल अलग धड़के ,
मगर क्यों लोग उल्फत में ,कहा करते है दिल मिलना 
अलग से पकते है चांवल,अलग से दाल भी पकती ,
मगर जब मिल के पकते है ,खिचड़ी गल रही कहते 
जरा भी ना खिसकती है,उसी स्थान पर रहती ,
मगर जब हिलती डुलती तो ,जुबां ये चल रही कहते 
हाथ से हाथ मिलने पर ,दोस्ती होती ना हरदम ,
इस तरह होती क्रिया को ,बजाना ताली कहते है 
वो हरदम बॉस ना होता,डरा करते है हम जिससे,
नाचते जिसके ऑर्डर पर ,उसे घरवाली कहते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
फिर भी जल बिच मीन पियासी 

पाने को मैं प्यार तुम्हारा ,कितने दिन से था अभिलाषी 
मुझे मिला उपहार प्यार का,कहने को है बात जरा सी 
दिन भर चैन नहीं मिलता है ,और रात को नींद न आती 
ऐसी  तुमसे प्रीत लगाई,  हुई  मुसीबत अच्छी खासी 
दिल के बदले दिल देने की ,गयी न तुमसे  रीत निभाई ,
मैंने तुम्हे दिया था चुम्बन, तुमने मुझको दे दी  खांसी 
देखी  आँखे लाल तुम्हारी  ,समझा छाये गुलाबी डोरे ,
ऐसी तुमसे आँख मिलाई ,'आई फ्लू' में आँखे फांसी 
मैंने जबसे ऊँगली पकड़ी ,तुम ऊँगली पर नचा रही हो,
मेरी टांग खींचती रहती ,कह खुद को चरणों की दासी 
ऐसे तुमसे दिल उलझाया ,बस उलझन ही रही उमर भर ,
मैंने इतने पापड़ बेले ,फिर भी जल बिच मीन पियासी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
औरत की  व्यथा 

हर औरत की अपनी अपनी कोई कथा है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सब के अपने अपने दुःख है  परेशानियां 
सबकी होती अपनी अपनी कई कहानियां 
कोई दुखी है , उसका बेटा, कँवारा बैठा ,
और किसी की बहू दिखाती उसे धता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
घर भर पर पहले चलती थी जिसकी सत्ता 
बिना इजाजत जिसकी ना हिलता था पत्ता 
वो बेचारी बहुत दुखी और परेशान है ,
आज नहीं घर में कोई उसकी सुनता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सास ससुर से तंग,त्रस्त  कोई की बेटी 
सुविधा और अभाव ग्रस्त,कोई की बेटी 
परेशान माँ ,बेबस सी तिलतिल घुटती है 
बेटी को दामाद , किसी की  रहा  सता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
घर की रोज रोज की किचकिच से कुछ ऊबी 
काम छोड़ कर ,पूजा पाठ भक्ति में  डूबी 
लेकिन मन अब भी घर में ऐसा उलझा है ,
करते हुए बुराई बहू की , ना थकता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
कोई घर की सब जिम्मेदारी  ढोती  है 
फिर कदर नहीं ,ये सोच ,दुखी होती है 
कोई रसोई में घुस रहे  पकाती व्यंजन ,
पोते पोती की तारीफ़ सुन सुख मिलता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है
कोई सुखी है लेकिन दुःख ओढा करती है 
और ठीकरा बहुओं पर फोड़ा  करती  है 
कभी,कहीं भी खुश ना रहती किसी हाल में,
उनके मन में हरदम रहती व्याकुलता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई कथा है  
सुने पिता की बचपन में ,यौवन में पति की 
 बढ़ी उमर तो  ,बेटों पर आश्रित हो जीती
वह जननी है,अन्नपूर्णा , दुर्गा ,लक्ष्मी ,
फिर जीवनभर ,उसमे क्यों ये परवशता है 
हर औरत किअपनी अपनी कोई व्यथा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शनिवार, 18 मार्च 2017

औरत की  व्यथा 

हर औरत की अपनी अपनी कोई कथा है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सब के अपने अपने दुःख है  परेशानियां 
सबकी होती अपनी अपनी कई कहानियां 
कोई दुखी है , उसका बेटा, कँवारा बैठा ,
और किसी की बहू दिखाती उसे धता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
घर भर पर पहले चलती थी जिसकी सत्ता 
बिना इजाजत जिसकी ना हिलता था पत्ता 
वो बेचारी बहुत दुखी और परेशान है ,
आज नहीं घर में कोई उसकी सुनता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सास ससुर से तंग,त्रस्त  कोई की बेटी 
सुविधा और अभाव ग्रस्त,कोई की बेटी 
परेशान माँ ,बेबस सी तिलतिल घुटती है 
बेटी को दामाद , किसी की  रहा  सता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
घर की रोज रोज की किचकिच से कुछ ऊबी 
काम छोड़ कर ,पूजा पाठ भक्ति में  डूबी 
लेकिन मन अब भी घर में ऐसा उलझा है ,
करते हुए बुराई बहू की , ना थकता  है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
कोई घर की सब जिम्मेदारी  ढोती  है 
फिर कदर नहीं ,ये सोच ,दुखी होती है 
कोई रसोई में घुस रहे  पकाती व्यंजन ,
पोते पोती की तारीफ़ सुन सुख मिलता है 
हर औरत की अपनी अपनी कोई व्यथा है 
सुने पिता की बचपन में ,यौवन में पति की 
 बढ़ी उमर तो  ,बेटों पर आश्रित हो जीती
वह जननी है,अन्नपूर्णा , दुर्गा ,लक्ष्मी ,
फिर जीवनभर ,उसमे क्यों ये परवशता है 
हर औरत किअपनी अपनी कोई व्यथा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बुधवार, 15 मार्च 2017

                बदलता व्यवहार

मैं कई बार सोचा करता ,ऐसा क्या जादू चल जाता
कि अलग अलग स्थानों पर ,सबका व्यवहार बदल जाता
ले नाम धरम का भंडारे ,करवा खाना बांटा करते
सब्जीवाले से धना मिर्च ,हम मगर मुफ्त माँगा करते
रिक्शेवाले से किचकिच कर ,हम उसे किराया कम देते
पानीपूरी के ठेले पर , हम  एक पूरी फ़ोकट लेते
छोटी दूकान पर मोलभाव,शोरूमो में दूना पैसा 
हम खुश होकर दे देते है,व्यवहार बदलता क्यों ऐसा 
लगता है सेल जहां कोई,हम दौड़े दौड़े जाते है 
हालांकि आने जाने में ,दूने पैसे लग जाते है
हम तीन चार सौ का पिज़ा ,घर मंगवा खाते खुश होकर
पर घर के परांठे ना खाते,मोटे  होने से लगता डर
जा पांच सितारा होटल में,दो सौ की खाते एक रोटी
और उस पर शान दिखाने को ,वेटर को देते टिप मोटी
मन्दिर में जा,प्रभु चरणों में ,जेबें टटोल,सिक्का फेंकें
परशाद चढ़ा खुद खाते है,बाकी जाते है घर लेके
दांतों से पैसे को पकड़े ,हम लेन देन में है पक्के
अपना बदला व्यवहार देख ,हम खुद हो जाते भौंचक्के
सुन्दर साड़ी में सजी हुई ,पत्नी पर ध्यान नहीं धरते
पर देख पराई नारों को ,तारीफ़ के पुल बांधा  करते
बिन ढूंढें ही मिल जाती है,औरों में  कमियां हमें कई
अपनी कमियां ,कमजोरी का,लेकिन होता अहसास नहीं
ये कैसा है मानव स्वभाव ,हम में क्यों आता परिवर्तन
हम क्षण क्षण रूप बदलते क्यों,आओ हम आज करें चिंतन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                   होली में

परायों से भी अपनों सा ,करो व्यवहार  होली में
भुला कर भेद सब मन के,लुटाओ प्यार होली में 
कोई  चिकने है चमकीले,कोई ज्यादा मुलायम है,
गुलाबी पर नज़र आते ,सभी रुखसार  होली में
जब उनके अंग छूकर के ,तरंगें मनमे उठती है ,
भंग  का रंग चढ़ता है,हमें  हर  बार होली  में
गुलाबी दोहज़ारी नोट, ए टी एम से निकले,
तुम्हारे रूप का हो इस तरह ,दीदार होली में 
रंगों से रँगा हर चेहरा ,हमे अपना सा लगता है ,
खेलते खेल खुल्ला  है ,सभी दिलदार होली में
किसी भी गाल पर तुम हाथ फेरो ,छूट जब मिलती,
बड़े बेसब्रे हो जाते  है ,बरखुरदार  होली में
रंगों से तरबतर कपड़े,चिपककर जिस्म से लिपटे,
तुम्हारा  भीगा ये जलवा ,लगे अंगार होली में
बड़ा ही मौज मस्ती का ,है ये त्योंहार कुछ ऐसा ,
दिलों को जीत लेते हम,दिलों को हार होली में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 14 मार्च 2017

कल तक था सवाया,-आज हुआ पराया

एक जमाना था ,
जब एक रूपये का सिक्का ,चवन्नी के संग
याने कि सवा रुपया,भरता था जीवन में रंग
ये बड़ा शुभ माना जाता था
और समृद्धि का प्रतीक जाना जाता था
सवा रूपये के प्रसाद चढाने से,
पूरी होती मनोकामना थी 
सवा रूपये का चढ़ावा ,सवाया फल देगा ,
ऐसी धारणा थी
सुनते है मेरी दादी ने ,पोता पाने की आशा में ,
मनौती करवाई थी
और मेरे पैदा होने पर ,बालाजी को  ,
चूरमे की सवामनी चढाई थी
जब मैं स्कूल गया ,पण्डितजी को सवा रुपया चढ़ाया था
उसके बाद उन्होंने मुझे पढाया था
यूं तो मैं सच्ची लगन और मन से पढता था
पर मेरे पास होने पर हमेशा ,सवा रूपये का प्रशाद चढ़ता था
मेरी सगाई पर मेरे ससुर ने ,
मुझे चाँदी का रुपया और चवन्नी याने सवा रुपया दिया था
और अपनी बेटी के लिए ,मुझे फांस लिया था
और शादी के बाद ,जब मेरी बीबी घर में थी आयी
तो सब बोले थे,बहू तो है बेटे से सवाई
और आजतक भी वो मुझ पर सवाई ही पड़ रही है
हमेशा मुझ पर सवार रहती है ,सर पर चढ़ रही है
उन दिनों स्कूल मे ,अद्धा,सवैया और हूँठा के
पहाड़े रटाये जाते थे
और लोग सवा रूपये की दक्षिणा में ,
सत्यनारायण की कथा सम्पन्न कराया करते थे
और तो और हिंदी कविता  में ,
दो पंक्ति के दोहे और चार पंक्ति की चौपाई के संग
एक सवैया भी होता था,जिसका अपना ही था रंग
अब सवाल ये है कि आजकल,सवा को ये क्या हो गया है
सवा न जाने कहाँ  खो गया है
जबसे चवन्नी का चलन हवा हो गया है
तबसे बिचारा सवा,हमसे रुसवा हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

होली - एक अनुभव 
                        १  
न जाने कौन सी भाभी,न जाने कौन से भैया 
छिपा कर अपनी बीबी को ,थे रखते जौन से भैया 
पराये जलवों का जुमला  ,गए सब भूल होली में ,
हम मलते गाल भाभी के ,खड़े थे मौन से  भैया 
                            २ 

हुआ होली के दिन पूरा ,हमारा ख्वाब  बरसों का  
मली गुलाल गालों पर ,नहीं उनने  हमें  रोका 
इधर हम उनसे रंग खेलें,उधर पतिदेवता उनके,
हमारे माल पर थे साफ़ करते हाथ, पा  मौका 
                            ३ 
मुलायम ,स्वाद खोये सा,भरा मिठास है मन में 
श्वेत मैदे सा और खस्ता, गुथा  है रूप,यौवन में 
पगा है प्यार के रस में,बड़ी प्यारी सी है लज्जत,
तुम्हारे जैसा ही तो था,खिलाया गुझिया जो तुमने 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 13 मार्च 2017

चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा...


चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा
फिर भी बचे रहे तो, भूखा सुला के मारा

बरसों से चल रहा है, दहशत का सिलसिला ये
बीवी ने जिंदगी को, दोजख बना के मारा

कैसे बतायें कितनी मनहूस वो घडी थी
इक शेर को है जिसने शौहर बना के मारा

वैसे तो कम नहीं हैं हम भी यूं दिल्लगी में
उसपे निगाह अक्सर उससे बचा के मारा

चर्चित को यूं तो दिक्कत, चर्चा से थी नहीं पर
बीवी ने आशिकी को मुद्दा बना के मारा

- विशाल चर्चित

दुष्ट ने है छोड़ दिया बीपी बढ़ाय के...


जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा....

हमने फेंका गुब्बारा है भरके कई रंग
आओ होली खेलें दोस्तों शुभकामना के संग
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

खुशियों की अबीर बरसे और बरसे ढेरों प्यार
जीवन में सबके हो हमेशा हँसती हुई बहार
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

जो, जो चाहे - वो, वो पाये, कोई चाहत ना बच पाये
जब देखें-जिसको देखें हम - हँसता हुआ नजर आये
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

धन-दौलत-इज्जत-शोहरत, कहीं कमी कोई ना हो
हे ईश्वर, कुछ ऐसा कर कि दीन दुखी कोई ना हो
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

सभी जगह हो अमन - चैन, एकता औ भाईचारा हो
सभी दिलों में मानवता - नैतिकता का बोलबाला हो
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

'चर्चित' की है चाह यही, हरा - भरा सुखमय संसार
यही कुदरती रंग है सच्चा, होली का असली शृंगार
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

एक बार फिर से -

/////// होली बहुत - बहुत मुबारक ///////

- विशाल चर्चित

शनिवार, 4 मार्च 2017

        पत्नी पटाओ
                 १                                
वो ऊपरवाला ही ,जोड़ियां बनाता है ,
साथ कई जन्मो का ,शादी का बन्धन है
सब अपनी बीबी से प्यार किया करते है,
कभी कभी आवश्यक,प्यार का प्रदर्शन है
सैरसपाटे पर तुम ,पत्नी को ले जाओ,
हरेक साल हनीमून,बढ़ता अपनापन है
पत्नी संग सेल्फी ले ,फेसबुक पर पोस्ट करो,
व्हाट्सएप में डालो,आजकल ये फैशन है
                   २
कभी दिखाओ पिक्चर ,कभी डिनर होटल में ,
प्यार चौगुना करता ,भेंट दिया गहना है
घर में तो कोई भी ,नाम से पुकारो तुम ,
पब्लिक में पर 'डियर' ,'डार्लिंग 'ही कहना है
पत्नी की 'हाँ 'में 'हाँ', पत्नी की 'ना' में 'ना ',
पत्नी के रुख के ही संग तुमको  बहना है
पत्नी को देवी की तरह पूजना होगा ,
पतिपरमेश्वर बन के ,उसका जो रहना है

घोटू
                 


     बिचारे लोग

सोचते थे आप आयें है तो कुछ दे जाएंगे,
इकट्ठे इस वास्ते ही हुए सारे लोग थे
सूनी सूनी आँखों में ,सपने सजाये ढेर से,
प्रतीक्षा में खड़े हाथों को पसारे लोग थे
जिंदगी भर आश्वासन ,खातेऔर पीते रहे ,
अच्छे दिन की आस में वो बेसहारे लोग थे
रोटियां सबने सियासी अपनी अपनी सेक ली,
 भुखमरी के अब भी मारे ,वो बिचारे लोग थे
राजनीती का घिनौना ,खेल खेला कोई ने ,
भगदड़ी में मुफ्त में ही गए मारे लोग थे
फेंके थे पत्थर जिन्होंने और जिन्हें पत्थर लगे ,
कुछ तुम्हारे लोग थे और कुछ हमारे लोग थे

घोटू

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

पचहत्तरवें जन्मदिन पर

सही हंस हंस, उम्र की हर पीर मैंने 
नहीं खोया ,मुसीबत में , धीर मैंने
भले  ही हालात अच्छे थे या  बदतर
इस तरह मैं पहुंच पाया हूँ  पिचहत्तर
सदा हंस कर गले सबको ही लगाया
जो भी था कर्तव्य,अपना सब निभाया
खुले हाथों ,खुले दिल से प्यार बांटा
मुस्करा कर हर तरह का वक़्त काटा
धूप में भी तपा और सर्दी में ठिठुरा
बारिशों में भीग कर मैं और निखरा
तभी खुशियां मुझे हो पायी मय्त्सर
इस तरह मै पहुँच पाया हूँ  पिचहत्तर
प्रगति पथ पर ठोकरें थी,छाँव भी थी
मुश्किलें और मुसीबत हर ठाँव भी थी
गिरा,संभला ,फिर चला या डगमगाया
दोस्तों  ने   होंसला  भी  था  बढाया
मिले निंदक भी कई तो कुछ प्रशंसक
करी कोशिश डिगाने की मुझे भरसक
राह  मेरी ,रोक वो पाए नहीं ,पर
इस तरह मैं पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर 
साथ मेरे धीर भी था,धर्म भी था
माँ पिता का किया सब सत्कर्म भी था
दुश्मनो ने भले मेरी  राह रोकी
भाई बहनो और सगो ने पीठ ठोकी
निभाने को साथ जीवनसंगिनी थी 
दोस्तों की दुआओं की ना कमी थी
साथ सबने ही निभाया आगे बढ़कर
इसलिए मै पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर
अभी तक कम ना  हुई है महक मेरी
वो ही दम है ,खनखनाती चहक मेरी
किया हरदम कर्म में विश्वास मैंने 
सफलता की नहीं छोड़ी आस मैंने
लीन रह कर ,प्रभु  की आराधना में
जुटा ही मैं रहा जीवन साधना में
प्रगतिपथ पर ,अग्रसर था,उत्तरोत्तर
इसलिए मैं पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर
तपा हूँ,तब निखर कर कुन्दन बना हूँ
महकता हूँ,सूख कर चन्दन बना हूँ
जाने अनजाने बुरा कुछ यदि किया हो
भूल से  यदि हो गयी कुछ गलतियां हो
निवेदन करबद्ध है ,सब क्षमा करना
प्रेम और शुभकामनाएं ,बना रखना
प्यार सबका ,रहे मिलता  ,जिंदगी भर
इसलिए  मैं पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर
तीन चौथाई उमर तो कट गयी  है
रास्ते की मुश्किलें सब हट गयी है
भले ही तन में नहीं वो जोश बाकी
मगर अब भी चल रहा हूँ, होंश बाकी
वक़्त के संग भले जो मैं जाऊं थक भी
कामना है करूंगा ,पूरा शतक भी
पार  करना है  मुझे यह भवसमन्दर
इसलिए मैं पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
      तक़दीर वाली बीबी


हर किसी को नहीं होता ,इस तरह का सुख मयस्सर
मिला ऐसा पति तुमको ,ये तुम्हारा  है  मुकद्दर
तुम्हारा आदेश माने ,तुम्हारे आधीन हो जो
उँगलियों पर नाचने की कला में परवीन हो जो
तुम्हारी भृकुटी तने तो काँप जाए जो बिचारा
रात दिन सच्ची लगन से ,ख्याल रखता हो तुम्हारा
गृहस्थी के धर्म सारे ,ठीक से जो निभाता हो
होटलों में खिलाता हो ,खूब शॉपिंग कराता हो 
गाय सा सीधा सरल हो,फुर्तीला हो रंगीला
तुम्हारी फरमाइशों पर , करे झट से जेब ढीला
तुम्हारी हर भंगिमा को ठीक से पहचानता हो
समझता देवी तुम्हे हो,दास खुद को मानता हो
इस तरह का समर्पित पति ,अगर पाया आज तुमने
किया होगा मोतियों का दान कुछ पिछले जनम में
वरना सुनते आजकल तो ,कर दिए है बन्द  खुदा ने
इस तरह के आज्ञाकारी ,समर्पित पति  बनाने

घोटू
बुरी गत देखली

केश उजले ,झुर्राया तन ,ऐसी हालत देखली
पिलपिलाये चेहरे की,पीली रंगत   देखली
नरम है और पक गया पर स्वाद मीठा आम है,
चखोगे तो ये लगेगा ,तुमने  जन्नत देखली
कभी इस पर भी बहारों का नशा था,नूर था,
वक़्त ने जब सितम ढाया ,ये मुसीबत देखली
महकते थे गुलाबों से ,बन गए गुलकन्द अब ,
स्वाद ना,तुमने तो बस,बदली सी सूरत देखली
आपकी रुसवाई ने इस दिलके टुकड़े कर दिए,
हमने जीते जी हमारी ,ये बुरी गत देखली

घोटू
निकम्मे कबूतर

उठ कर सुबह सुबह जो उड़ते थे दूर तक,
जाते थे रोज रोज ही ,दाना  तलाशने
टोली में दोस्तों की ,विचरते थे हवा में,
रहते है घुसे घर में अब वो आलसी बने
लोगों ने जब से कर दिए ,दाने बिखेरने ,
आंगन में पुण्य वास्ते,लेकर धरम का नाम
तबसे निकम्मे हो गए कितने ही कबूतर ,
चुगते है दाना मुफ्त का ,हर रोज सुबहशाम
दाना चुगा ,मुंडेर पर ,जाकर पसर गए ,
कुछ देर कबूतरनी के संग ,गुटरगूँ किया
जबसे है मुफ्तखोरी का ,चस्का ये लग गया ,
जीने का उनने अपना तरीका बदल दिया
खाते है जहाँ वहीँ पर फैलाते  गन्दगी ,
वो इस तरह के हो गए ,आराम तलब है
तुमने कमाया पुण्य कुछ दाने बिखेर के ,
उनकी नस्ल पे जुल्म मगर ढाया गजब है

घोटू

सास बहू का रिश्ता

सास ऐसी कौन सी है ,जो बहू से तंग ना हो
रहना ही पड़ता है दबके ,कितनी ही दबंग ना हो
सास की नज़रें बहू में ,सदा कमियां खोजती है
बहू  जो भी सोचती है ,सास  उल्टा सोचती है
इसलिए उनका समन्वय ,बना करता मुश्किलों से
साथ रहती पर अधिकतर ,जुड़ नहीं पाती दिलों से
कौन बेटा ,चढ़ा  जिस पर,बीबीजी का रंग ना  हो
  सास ऐसी  कौन सी है,जो बहू से  तंग ना हो
पडोसी सत्संग में जब ,मिला करती कई सासें
बहुओं की करके बुराई ,निकाला करती  भड़ासे
सिखाती बेटी को कैसे ,सास रखना नियंत्रण में
वो ही यदि जो बहू करती ,आग लगती तनबदन में
काम करने का बहू को ,आता कोई ढंग ना हो
सास ऐसी कौन सी है , जो बहू से तंग ना हो
बात में हर एक निज,गुजरा जमाना ढूंढती हो
 जासूसी करने बहू की,नज़र जिसकी घूमती हो
सोचती है बहू ने आ ,छीन उससे लिया  बेटा
मगर फिर उस ही बहू से ,चाहती है जने  बेटा
दादी बनने की हृदय में ,जिसके ये उमंग ना हो
सास ऐसी कौन सी है ,जो बहू से  तंग ना हो

घोटू
बदलता मौसम

लगता है मौसम बदलने लगा है
समय धीरे धीरे ,फिसलने लगा है
दिनों दिन जवानी ,अब ढल सी गयी है
उमर हाथ से अब , निकल  सी गयी है
कभी हौसला था ,इशक में तुम्हारे
ला दूं तुम्हे , तोड़  कर  चाँद  तारे
मगर वक़्त ने यूं ,कमर तोड़ दी है
हमने वो अपनी ,जिदें छोड़ दी  है
पुरानी सब आदत,बदल सी गयी है
उमर हाथ से अब निकल सी गयी है
कभी होते थे दिन ,उमंगों के ऐसे
उडा करते थे हम, पतंगों के  जैसे
मगर बाल सर से अब उड़ने लगे  है
हक़ीक़त से जीवन की ,जुड़ने लगे है
आने लगी अब ,अकल सी गयी है
उमर हाथ से अब,निकल सी गयी है
बहुत याद आती है ,जवानी की बातें
थे चांदी से दिन और सोने सी  रातें
बुढापे में ये मन ,कसकने लगा है
झुर्राया तन हम पे ,हंसने लगा है
मुरझा ,चमकती ,शकल सी गयी है
उमर हाथ से अब ,निकल सी गयी है

घोटू

बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

हमारे बुजुर्ग....


पुरानी वेलेंटाइन से प्रणय निवेदन 

जमाना वो भी था तुम हूर लगा करती थी 
जवानी,हुस्न  पे  मगरूर लगा करती  थी
कितने ही लोग तुमपे लाइन मारा करते थे 
नज़र बचा के प्रोफ़ेसर भी ताड़ा करते थे 
शोख,चंचल और बला की तुम खूबसूरत थी 
दूध से नहाई ,तुम संगेमरमर की मूरत थी 
वक़्त की मार ने कुछ ऐसा जुलम ढाया है 
क्या से क्या हो गयी तुम्हारी कंचन काया है 
तुम्हारा प्यारा सा वो गुलबदन है फूल गया 
सुराहीदार सी गरदन पे मांस  झूल  गया 
छरहरा था जो बदन आज थुलथुलाया है 
थोड़ी धूमिल सी लगी ,होने कंचन काया है   
तो क्या हुआ जो अगर ढल गयी जवानी है 
न रही चेहरे पे रौनक  वो ही पुरानी  है 
हुस्न की जिसके हर तरफ ही शोहरत थी कभी
खण्डहर बतलाते ,बुलन्द इमारत थी कभी 
बन गयी आज तुम इतिहास का एक पन्ना हो 
बुजुर्ग आशिकों की आज भी तमन्ना  हो 
वैसे भी हम तो पुरातत्व प्रेमी  है , पुराने  है
इसलिए आज भी हम आपके  दीवाने  है 
आरज़ू है कि हम पे नज़रें इनायत  कर दो 
बड़ी बेरंग जिंदगानी  है ,इसमें  रंग भर दो
तुम्हारे प्यार का हम ऐसा कुछ सिला देंगे 
कसम से याद जवानी की हम  दिला देंगे 

घोटू     

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

माँ तुझे प्रणाम 

तूने मुझको पाला पोसा ,तू मेरी जननी है माता 
जब भी मुझे वेदना होती,नाम तेरा ही मुंह पर आता 
कैसे तुझे पता चल जाता,जब भी मुझको दर्द सताता 
अन्तरतल से बना हुआ है ,ऐसा तेरा मेरा  नाता 
तेरे चरणों में मौजूद है ,सारे तीरथ  धाम 
माँ तुझे प्रणाम 
नौ महीने तक रखा कोख में ,तूने कितना दर्द उठाया 
फिर जब मै दुनिया में आया,तूने अपना दूध पिलाया 
चिपका रखा मुझे छाती से ,तूने मुझको गोद उठाया 
ऊँगली पकड़ सिखाया चलना ,भले बुरे का बोध कराया 
इस दुनिया की उंच नीच का मुझे कराया ज्ञान 
माँ तुझे प्रणाम 
 धीरे धीरे ,बड़ा हुआ मैं ,गए बदलते कितने मौसम 
मुझको कुछ तकलीफ नहीं हो ,तूने ख्याल रखा ये हरदम 
मैं बीमार पड़ता तू रोती ,मैं हंसता तो खुश होती तुम 
करी कटौती खुद पर ताकि मुझको कुछ भी नहीं पड़े कम 
तूने मेरी खुशियों खातिर ,किया नहीं आराम 
माँ तुझे प्रणाम 
माँ तू ही मेरी ताक़त है ,मेरी शक्ति,मेरा बल है 
तेराआशीर्वाद हमेशा ,मेरे लिए बना सम्बल है 
मुझे बचाता ,हर पीड़ा से ,तेरा प्यार भरा आँचल है 
मैं उपकृत हूँ,ऋणी तुम्हारा ,मेरा रोम रोम हरपल है 
मुझ पर तेरी कृपा हमेशा ,बनी रहे अविराम 
माँ तुझे प्रणाम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
              जिंदगी 

तमन्ना थी जिंदगी में ,फतह कर लूं हर किला 
मगर जो था मुकद्दर में, मुझे बस वो ही मिला 
हार जो झेली कभी तो,कामयाबी भी मिली,
यूं ही बस चलता रहा इस जिंदगी का सिलसिला 
 दुश्मनो ने राह में ,कांटे बिछाये तो कभी,
दोस्तों ने हर कदम पर ,फूल भी डाले खिला 
मेरी कुछ कमजोरियों की,भी हुई आलोचना ,
तो मेरी अच्छाइयों का भी मिला,मुझको सिला 
दुनियाभर की सारी खुशियां ,मिलगयी उसदिन मुझे ,
तेरे जैसे हमसफ़र का ,साथ जिस दिन से मिला 
अब तो हँसते गाते सारी उमर ये कट जायेगी ,
जिंदगी मुझको नहीं है ,तुझसे कोई भी गिला 

घोटू 
 
सपने देखो 

दिन में देखो,चाहे देखो रात में 
मिलते है सपने  यहाँ खैरात  में
जी में आये ,उतने सपने देखिये ,
सपनो पर अब तक लगा ना टेक्स है 
कभी भी मन में न डरना चाहिए 
आदमी को वो ही करना चाहिए ,
जिससे उसको मिलती हो थोड़ी ख़ुशी,
रहता मन मष्तिस्क भी 'रिलेक्स' है 

घोटू  
                      जड़े 

जो ऊपर से लहराते है और मुस्काते,महकाते है 
निज सुंदरता पर नाज़ किये जो किस्मत पर इतराते है 
होती है किन्तु जड़े इनकी ,सबकी जमीन के नीचे है 
ये सब तो तभी पनप पाते,जब कोई इनको सींचे  है 
जब तक इनकी मजबूत जड़ें,ये तब तक शान हुआ करते 
जो जड़े हिल गयी थोड़ी सी,तो ये कुरबान  हुआ करते 
इतना महत्व है जब जड़ का ,उनकी सोचो जो खुद जड़ है 
इन ऊपर उगने वालों से ,ये सब के सब होते बढ़  है 
आलू जमीन  के नीचे है, बारह महीनो का भोजन है 
नीचे जमीन के ही बढ़ते ,ये प्याज और गुणी लहसन है 
अदरक जमीन के नीचे है ,जो कितने ही गुण वाला है 
भू के अंदर उगती हल्दी ,जो भेषज और मसाला है 
धरती नीचे मूली ,सलाद और शलजम बड़ी भली लगती 
देती है तैल ,स्वाद वाली ,भू में ही मुंगफली  लगती 
कितनी ही जड़ीबूटियां भी उगती जमीन के अंदर है 
पैदा जमीन में होता है ,तब ही गुणवान चुकन्दर है 
हर बीज पनपता धरती में,माँ सीने की ऊष्मा पाकर 
जड़ से ही होता है विकास ,बनता तब वृक्ष घना जाकर 
ये सब ही भले दबे रहते ,भीतर ही भीतर बढ़ते है 
माँ धरती से चिपटे रहते ,तब ही गुण इनके बढ़ते है 
रहते जमीन के नीचे जो ,वो गुण की खान हुआ करते 
इनके जमीन से जुड़ने से ,इनके गुणगान हुआ करते 
इसलिए जुडो तुम धरती से,ये देश  तभी तो संवरेगा
तुम्हारा धरती से जुड़ना ,तुम में कितने गुण भर देगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

बहुएं तो बहुएं होती है 

बेटे की शादी होने पर ,कुछ ऐसी हालत होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है
जिसके आने की खुशियों की ,घर में गूंजी शहनाई थी  
अपनों से भी ज्यादा प्यारी ,कल तक जो नार पराई थी
अपने संग गाडी भर कर के ,लेकर दहेज़ जो आई थी 
 दिल और दिमाग में बेटे के ,जो जादू बन कर छाई थी
 अक्सर माँ बेटे के रिश्तों में ,बीज कलह के बोती  है 
तुम लाख बेटियों सी समझो ,बहुएं तो बहुएं  होती है 
फिर प्रेम जता कर के पति पर फेंका करती जादू ऐसा 
ना रहता है बेटे का भी ,व्यवहार वही पहले  जैसा 
कर छल प्रपंच कब्ज़ाती है ,वो घर का सब रुपया पैसा 
यह सब तो घर घर होता है ,इसमें हमको अचरज कैसा 
वह रौब जमाती ,घर भर के ,सर पर सवार वो होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 
धीरे धीरे घर का सारा ,व्यवहार  बदलने लगता है 
बन कर गुलाम वो जोरू का,बेटा भी डरने लगता है 
जो रस्ता पत्नी दिखलाती,वह उस पर  चलने लगता है 
हो जाते है माँ बाप दुखी ,ये उनको खलने लगता है 
माँ के आंसू टेसुवे लगते ,बीबी के आंसू मोती  है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 
धीरे धीरे ये घटनाएं ,परिवार विभाजन  लाती है 
घर के अंदर की राजनीती ,कुछ ऐसे से गरमाती है 
वो एक दुसरे को घर में ,आपस में फिर लड़वाती है 
जिसने उससे माँ छुड़वाई ,उसकी वो माँ छुड़वाती है 
ये किस्सा नहीं एक घर का ,घर घर ये हालत होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

धंधा पॉलिटिक्स का 

ना तो डिग्री की जरूरत,ना ही पूँजी चाहिए ,
ना किसी की नौकरी ,ना काम कोई रिस्क का 
बोलने में हो पटुता ,आता हो दंदफंद अगर,
सबसे ज्यादा फायदेमंद ,धंधा पॉलिटिक्स का 
इसलिए ऐ दोस्त हमतुम ,मिल के कुछ ऐसा करें ,
एक दूजे के ओपोजिट ,करे हम नेतागिरी 
चन्द अपने अपने चमचों की जुटाएं भीड़ हम ,
धरना दे,वादे करें ,हर चीज कर देंगे फ्री 
बनने कॉमनमैन ज्यों गाँधी ने त्यागे वस्त्र थे ,
हुआ केजरीवाल जनप्रिय बाँध मफलर कान पर 
वैसे ही हमतुम बनाने ,छवि कॉमन मेन की ,
जब भी पब्लिक में जो जाएँ,फट कपड़े पहनकर
तुम मेरी बखिया उधेड़ो,मैं तुम्हे ऊँगली करू,
एक दूजे को यूं ही हम ,रहे देते गालियां 
इस तरह से हमारी दूकान भी चलती  रहे ,
मज़ा पब्लिक को मिले ,हम तुम बटोरें तालियां 
तुम किसी से ,मुझ पे जूता ,उछलवाओ सभा में,
क्योंकि ब्रेकिंग न्यूज़ बनते,इस तरह के वाकिये 
और हम तुम टीवी पर आते रहेंगे रोज ही ,
मिडिया को तो हमेशा ,कुछ मसाला चाहिये 
इस तरह पॉपुलरिटी हमारी बढ़ जायेगी ,
और फायरब्रांड नेता ,सब हमे बतलायेंगे 
हमारी भी छवि बनेगी ,लड़ेगे हम इलेक्शन ,
हमे है विश्वास कि हम ,जीत निश्चित  जाएंगे 
कितने ही मतभेद हममें तुममे दिखते हो मगर,
दोस्त बन सत्ता के खातिर ,मिलाएंगे हाथ हम 
भरेंगे तिजोरियां ,जनता को जी भर लूट कर,
पांच सालों तक अगर ,यूं ही रहे जो साथ हम 
यूं तो संग में बैठ कर ,मिल कर पियेंगे जाम हम ,
मगर पब्लिक को दिखाने ,करेंगे हम दुश्मनी 
धंधा पॉलिटिक्स का अपना चलाने वास्ते,
बहुत होती फायदेमंद ,इस तरह की अनबनी 
कोई गर जो फस भी जाए ,किसी रिश्वत काण्ड में,
दूसरा पावर में हो तो,मदद वो उसकी करे 
इस तरह बेख़ौफ़ होकर ,देश हम चरते रहें ,
सैया हो कोतवाल तो फिर,हम किसी से क्यों डरे 
राजनेता करे जो भी,होता है जायज सभी ,
राजनीति में न होता ,काम कुछ 'इथिक्स ' का 
इसमें होता ही नहीं है ,रिटायर कोई,कभी ,
सबसे ज्यादा फायदेमंद,धंधा पॉलिटिक्स का 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

अब तो शिद्दत हो गयी 

चर्चा  करते  करते  मुद्दों की ,तो  मुद्दत  हो  गयी 
नतीजा कुछ भी न निकला ,अब तो शिद्दत हो गयी  
अभी तक भी कंवारा ,बैठा है मेरा  यार वो ,
रोज कहता था फलां से ,उसको उल्फत हो गयी 
शमा जलती ही रही ,कुछ फर्क ना उसको पड़ा,
मुफ्त  में  परवाने कितनो , की शहादत हो गयी 
सीमा पर कितने ही सैनिक मरे ,सब चलता रहा ,
एक  एम पी मर गया  तो बन्द   संसद हो गयी 
करोड़ों का काला पैसा ,जमा जिनके पास था ,
नोटबन्दी क्या हुई ,उनको तो हाजत  हो गयी 
दे दिया औरों के हाथों ,साइकिल का हेंडिल,
बाप बेटे लड़ लिए , कुर्सी  मुसीबत हो गयी 
जबसे पिछड़ापन तरक्की की  गारन्टी बन गया ,
लाभ लेने वालों की ,लम्बी सी पंगत  हो गयी 
निगलते भी नहीं बनता ,ना ही बनता उगलते,
अब तो इस माहौल में ,रहने की आदत हो गयी 

मदन मोहन बाहेती;घोटू;

सोमवार, 30 जनवरी 2017

           आदमी की बेबसी

इस तरह की बेबसी में ,रहा जीता आदमी
खून कम था,गम के आंसू ,रहा  पीता आदमी
पैसे की परवाह में ,परवाह खुद की, की नहीं
ऐसा लापरवाह रहा कि जिंदगी जी ही नहीं
अपने पर ही सब कटौती ,रहा करता आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता  आदमी
गृहस्थी के बोझ में वो इस तरह पिसता रहा
खून तन का ,बन पसीना ,बदन से रिसता रहा 
रख के स्वाभिमान गिरवी ,औरों की सुनता रहा
कभी तो ये दिन फिरेंगे ,ख्वाब ये बुनता  रहा
ठोकरें खा,गिरता ,उठता , गया चलता आदमी
रोज ही जीने के खातिर रहा मरता   आदमी
 मुश्किलों  में दिन गुजारे,रात भी सो ना सका
इतने गम और पीड़ में भी ,खुल के वो रो ना सका
हंसा भी वो ,जो कभी तो ,खोखली  सी  एक हंसी
जिंदगी भर ,रही छायी,  मायूसी और  बेबसी
जुल्म ये खुद पर  हमेशा  ,रहा करता  आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता   आदमी
भाग्य के और आस्था के गीत वो गाता रहा
पत्थरों की ,मूरतों को,सर नमाता वो  रहा
पुण्य  थोड़ा सा कमाने ,पाप  करता वो रहा
इसी उलझन में हमेशा ,बस उलझता वो रहा
जमाने की बेरुखी से ,रहा डरता  आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता आदमी

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
बुढापा एन्जॉय करिये
 
मन मचलता ,सदा रहता ,कामना होती कई है
कुछ न कुछ मजबूरियों बस ,पूर्ण हो पाती नहीं है
आपका चलता नहीं बस ,व्यस्तता के कभी कारण
कभी मन संकोच करता ,गृहस्थी की कभी उलझन
भावना मन में अधूरी , दबा तुम  रहते   उदासे
पूर्ण करलो वो भड़ासें ,जब तलक चल रही साँसे
अभी तक जो कर न पाये ,वो सभी कुछ ट्राय करिये
,बुढापा एन्जॉय   करिये ,बुढापा  एन्जॉय  करिये
दांत से पैसा पकड़ कर ,बस जमा करते रहे तुम
अपने पर सारी कटौती ,खामखां करते रहे तुम
कोल्हू के बैल बन कर ,निभाया दायित्व अपना
मुश्किलों से भी न पूरा ,किया अपना कोई अपना
यूं ही बस मन को मसोसे ,काटी अब तक जिंदगानी
नए ढंग से अब जियो तुम,छोड़ कर आदत   पुरानी
घूमिये फिरिये मज़े से ,खाइये,सजिये ,सँवरिये
बुढ़ापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये 
जिंदगानी के सफर की ,सुहानी सबसे उमर ये
तपा दिनभर,प्रखर था जो सूर्य का ढलता प्रहर ये
सांझ की शीतल हवाएँ,दे रही तुमको निमंत्रण
क्षितिज में सूरज धरा  को,कर रहा अपना समर्पण
चहचहाते पंछियों के ,लौटते दल ,नीड में है
यह मधुर सुख की घडी है,आप क्यों फिर पीड़ में है
सुहानी यादों के अम्बर में,बने पंछी , बिचरिये
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
अभी तक तो जिंदगी तुम ,औरों के खातिर जिये है
जो कमाया या बचाया ,छोड़ना किसके लिए है
पूर्ण सुख उसका उठा लो ,स्वयं हित ,उपभोग करके
हसरतें सब पूर्ण करलो ,रखा जिनको  रोक करके
बचे जीवन का हरेक दिन ,समझ कर उत्सव मनायें 
मर गए यदि लिए मन में , कुछ अधूरी कामनाएं 
नहीं मुक्ति मिल सकेगी ,सोच कर ये जरा डरिये
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय  करिये

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
घोटूजी का टेक्स प्रपोजल

घोटूजी के टेक्स के ये कुछ प्रपोजल है किये
टेक्स फ्री हो सपने सारे ,जितने चाहे,देखिये
टेक्स फ्री हो दोस्ती  पर दुश्मनी पर टेक्स हो
छूट नेकी पर मिले ,लेकिन बदी  पर टेक्स हो
टेक्स आंसू पर लगाओ तो फिर होगा हाल ये
बहने  ना देंगे ,बचा कर, सब रखेंगे  माल  ये
टेक्स गुस्से पर लगाओ,झगड़े की जड़ है यही
दबाया जो ,लोगों ने तो ,मुश्किलें  होगी  नहीं 
टेक्स फ्री कर दो हंसी को ,मुस्कराना भी  फ्री
फ्री दिल का लेना देना ,दिल लगाना भी फ्री 
रूठने पर टेक्स हो  पर मनाने पर छूट हो
साल में दो बार मइके जाने पर भी छूट हो
पत्नीकी फरमाइशों को ,कोई  जब पूरा करे
इसके पहले जरूरी है,साठ प्रतिशत कर भरे
फायदा  ये  ,पत्नी की फरमाइशें घट जायेगी
रोज की किचकिच  कलह फिर घरों से हट जायेगी
टेक्स फ्री बदसूरती हो ,टेक्स ब्यूटीफुल   भरे
औरतें खुद  इसके खातिर ,अपना आलंकन करे
नाज़ और नखरों पे भी ,थोड़ा नियंत्रण चाहिए
बीस प्रतिशत कम से कम ,सरचार्ज लगना चाहिए 
कौन ज्यादा टेक्स दे ,यह कॉम्पिटिशन बढ़ेगा
फिर तो सरकारी खजाना ,चुटकियों में भरेगा

मदनमोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 28 जनवरी 2017

ऑन लाइन 

आजकल तो ऑनलाइन सभी चीजें मिल रही है 
लाइनों में खड़े होने का चलन फिर भी वही है 
बैंक,एटीएम में और सिनेमा में है  कतारें 
टिकिट तो है ऑनलाइन ,बैठने में पर कतारे 
और उनके आशिकों की ,लम्बी लाइन लग रही है 
आजकल तो ऑन लाइन सभी चीजे मिल रही है    
चाहिए दूल्हा या दुल्हन,गए पण्डित,गए नाइ 
कंप्यूटर की कई  साइट पर मिला करते जमाई 
बॉयोडाटा चेक करके ,बात आगे बढ़ रही है 
आजकल तो ऑनलाइन  सभी चीजे मिल रही है 
नहीं सौदा लाना पड़ता ,लाला की दूकान पर से 
मंगा सकते सभी  चीजें ,फोन पर एक ऑर्डर से 
घर पे पहुंचा दिया करते,बेचनेवाले कई है 
आजकल तो ऑनलाइन  कई चीजें मिल रही है 
वीडियो की कॉन्फ्रेसिंग ,काम निपटाती कई है 
मीटिंगों में भागने की ,अब तुम्हे जरूरत नहीं है 
ऑफिस में बैठे ही सारी  जानकारी मिल रही है 
तुम किसी से चेट  करलो,तुम किसी से डेट करलो 
फोन से खाना मंगा कर आप अपना पेट भरलो 
होटलों  में ,भटकने की ,अब तुम्हे जरूरत नहीं है 
आजकल तो ऑनलाइन  ,सभी चीजें मिल रही है 
पुराने से भी पुराना ,मन लुभाता गीत सुन लो 
सीख लो खाना बनाना ,रेसिपी कोई भी चुनलो 
फोन पर ऊँगली घुमाने की अब आदत बढ़ रही है 
आजकल तो ऑनलाइन सभी चीजें  मिल रही है 
दोस्तों गूगल नहीं है ,ज्ञान का भंडार है ये 
रास्ते सारे दिखाता ,करता बेड़ा पर है ये 
गागर में सागर की उक्ति ,उसी के खातिर कही है 
आजकल तो ऑनलाइन सभी चीजें मिल रही है 
वाई फाई ने बनादी ,हाई फाई जिंदगी है 
एप से भुगतान करदो , पर्स की जरूरत नहीं है 
नौकरी से छोकरी तक ,बताओ क्या क्या नहीं है 
आजकल तो ऑनलाइन सभी चीजें मिल रही है 
माँ की ममता ,भावनाएं,ऑनलाइन नहीं मिलती 
खुशबुओं से भरी कलियाँ ,ऑनलाइन नहीं खिलती 
ऑनलाइन सुविधाएं ,हमें निष्क्रिय कर रही है 
आजकल तो ऑनलाइन सभी चीजें मिल रही है 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू'
 जिंदगी का चलन 

आदमी कमजोरियों  का  दास  है 
जब तलक है सांस ,तब तक आस है 
ये तो तुम पर है की काटो किस तरह,
जिदगी के  चारों  दिन ही ख़ास है 
हम तो दिल पर लगा बैठे दिल्लगी 
उनको अब जाकर हुआ अहसास है 
बाल बांका कोई कर सकता नहीं ,
अगर खुद और खुदा में  विश्वास है 
उमर भर तुम ढूँढा करते हो  जिसे,
मिलता  वो, बैठा  तुम्हारे  पास  है 
बहुत ज्यादा ख़ुशी भी मिल जाए तो,
हर किसी को नहीं आती रास  है 
मुरादें मनचाही सब मिल जायेगी ,
कर्म में तुमको अगर विश्वास  है 
आया जो दुनिया में एक दिन जाएगा ,
फिर भी तुमको ,मौत का क्यों त्रास है 
स्वर्ग भी है और यहीं पर नर्क है ,
और बाकी  सभी कुछ बकवास है 

घोटू 
तजुर्बा 

मुँह बिचका दिया ध्या नहीं हमपे जरा सा,
         बस देख कर के रंग उजला मेरे बाल  का 
एक बार आजमा के अगर देख जो लेते,
          लग जाता पता ,भाव तुम्हे आटे  दाल का 
मेरी तुम्हारी उम्र में अंको का उलट फेर ,
         छत्तीस तुम ,मैं तिरेसठ ,अंतर  कमाल का 
इतने बरस तक ,खूब खाये खेले  हुए हम,
         हमको बहुत तजुर्बा है ,डीयर धमाल  का 

घोटू 
हो गयी ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 

गुजारा वक़्त मैने ,तेरा जाम ले लेकर 
जिया था लम्हा लम्हा ,तेरा नाम ले लेकर 
आपने हद ही करवा दी इंतजारी  की 
हो गयी ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 
बड़ा बेचैन ,बेकरार प्यार था  मेरा 
कई दिनों से कुछ ,तुम पर उधार था मेरा 
आज तारीख तय थी,चुकाने ,उधारी की 
हो गयी ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 
हमारे दिल को तरसा ,कब तलक यूं तोड़ोगे 
यूं ही तड़फाने का ,अंदाज कब ये छोड़ोगे 
क्या यही ,रस्म हुआ करती ,यार,यारी की 
हो गयी ,ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 
अब चले आओ कि तुम बिन नहीं जिया जाता 
अपने दीवाने पर, यूं ,जुल्म ना किया जाता  
आपसे दिल लगाया ,हमने भूल भारी की 
हो गयी,ऐसी की तैसी मेरी खुमारी की 

घोटू 
 जी का जंजाल 

इस जी का क्या ,जी तो क्या क्या सोचा करता है 
जी जी करके , जीता जाता,  जी जी  मरता  है 
कभी चाहता  वह ,परियों को,बाहों में ले लूं 
कभी मचलता जी,गुलाब की,कलियों संग खेलू
कभी ललकता ,पंख लगा कर ,अम्बर में घूमू  
कभी बावरा ,चाहा करता ,चन्दा को  चूमू 
पर क्या जी की ,हर एक इच्छा पूरी होती है 
हर जी की ,कुछ ना कुछ तो ,मजबूरी होती है 
हाथ निराशा ,जब लगती तो बहुत अखरता है 
इस जी का क्या,जी तो क्या क्या ,सोचा करता है 
इच्छाओ का क्या,इनका तो कोई अंत नहीं 
जिसको संतुष्टी मिल जाए ,जी वो संत नहीं 
एक इच्छा पूरी होती,दूजी जग जाती है 
यह अपूर्णता ,चिंता बन ,पीछे लग जाती है 
है प्रयास और लगन जरूरी ,इच्छा पाने को
और भाग्य भी आवश्यक है ,साथ निभाने को 
इसी चक्र में मानव,जीवन जीता ,मरता है 
इस जी का क्या,जी तो क्या क्या ,सोचा करता है 

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

बुढापा एन्जॉय करिये 

आपका चलता नहीं बस,कामना होती कई है 
कुछ न कुछ मजबूरियों बस ,पूर्ण हो पाती नहीं है 
आपका चलता नहीं बस ,व्यस्तता के कभी कारण 
कभी मन संकोच करता ,गृहस्थी की कभी उलझन 
भावना मन में अधूरी  दबा तुम  रहते   उदासे
पूर्ण करलो वो भड़ासें ,जब तलक चल रही साँसे 
अभी तक जो कर न पाये ,वो सभी कुछ ट्राय करिये 
,बुढापा एन्जॉय   करिये ,बुढापा  एन्जॉय  करिये 
जिंदगानी के सफर की ,सुहानी सबसे उमर ये 
तपा दिन भर,प्रखर था जो ,सूर्य का ढलता प्रहर ये 
सांझ की शीतल हवाएँ,दे रही तुमको निमंत्रण 
क्षितिज में सूरज धरा  को,कर रहा अपना समर्पण 
चहचहाते पंछियों के ,लौटते दल ,नीड में है 
यह मधुर सुख की घडी है,आप क्यों फिर पीड़ में है 
सुहानी यादों के अम्बर में,बने पंछी  बिचरिये 
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये 
अभी तक तो जिंदगी तुम ,औरों के खातिर जिये है
जो कमाया या बचाया ,छोड़ना किसके लिए है 
पूर्ण सुख उसका उठा लो ,स्वयं हित ,उपभोग करके 
हसरतें सब पूर्ण करलो ,रखा जिनको  रोक करके 
बचे जीवन का हरेक दिन ,समझ कर उत्सव मनायें  
मर गए यदि लिए मन में , कुछ अधूरी कामनाएं  
नहीं मुक्ति मिल सकेगी ,सोच कर ये जरा डरिये 
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय  करिये 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
 

रविवार, 22 जनवरी 2017

खराब मौसम

जब कभी भी ये मौसम खराब होता है
अपने हाथों में तो जाम ए शराब होता है
क्योंकि कहते है उसे काटता नहीं जूता ,
जो कि पैरों में ,पहने  जुराब  होता है
ठिठुरती सर्दियों में नींद आती मुश्किल से ,
चैन से  सोता ,जो ओढ़े लिहाफ होता है
चांदनी रोज कहाँ,एक दिन अमावस को,
न जाने गुम कहाँ ,वो आफताब  होता है
हजारों हसरतें होती सभी की दुनिया में,
नहीं पूरा किसी का ,हरेक ख्वाब होता है
एक दो चार ही अम्बानी ,बिरला बनते है,
मेहरबां अल्ला न ,सब पर जनाब होता है
कभी इठलाता जो जुल्फों में हुस्न की सजकर ,
 कभी मैयत में वो बिखरा  गुलाब होता  है
आज तो जी लें,मरेंगे तो देखा जाएगा ,
कयामत को तो सभी का हिसाब होता है

मदनमोहन बाहेती'घोटू'          
बूढा आशिक़

बूढा आशिक़ लोग कहते है मुझे ,
क्या बुढापे में न होती आशिक़ी
कुलबुलाता अब भी कीड़ा इश्क़ का ,
जवानी की उम्र ,जब कि  जा चुकी
क्या जवानों ने ही है लेकर रखा ,
आशिक़ी का ठेका ,बूढ़े कम नहीं
बूढ़े सीने में भी है दिल धड़कता,
बूढ़े तन में ,होता है क्या दम नहीं
दिल तो दिल है,बूढा हो या हो जवां ,
जाने किस पर,क्या पता,आजाय कब
लोग कहते ,छोडो चक्कर इश्क़ का ,
इस उमर में,राम का लो ,नाम  अब
राम को  भी  जो करेंगे याद  हम,
इश्क़ होगा वो भी सच्चा राम से
उम्र कुछ भी हो ,न लेकिन छूटती ,
इश्क़ की आदत  कभी ,इंसान से

घोटू 
घोड़ी पर बैठने की सजा

रहती सवार सर पे,हरदम है बीबीजी ,
सेवा में दौड़ दौड़ ,हुआ जाता पतला हूँ
जिद करते बच्चे की ,घोडा बनो पापाजी,
बिठा पीठ पर उनको,घुमा रहा,पगला हूँ
गृहस्थी की गाडी में ,जुता हुआ हूँ जबसे ,
घरभर का बोझा मैं ,उठा रहा सगला हूँ
गलती से एकबार ,घोड़ी पर क्या बैठा ,
घोडा बन बार बार,चूका रहा बदला हूँ

घोटू
पचहत्तरवें जन्मदिन पर

सही हंस हंस, उम्र की हर पीर मैंने 
नहीं खोया ,मुसीबत में , धीर मैंने
भले  ही हालात अच्छे थे या  बदतर
इस तरह मैं पहुंच पाया हूँ  पिचहत्तर
सदा हंस कर गले सबको ही लगाया
जो भी था कर्तव्य,अपना सब निभाया
खुले हाथों ,खुले दिल से प्यार बांटा
मुस्करा कर हर तरह का वक़्त काटा
धूप में भी तपा और सर्दी में ठिठुरा
बारिशों में भीग कर मैं और निखरा
तभी खुशियां मुझे हो पायी मय्त्सर
इस तरह मै पहुँच पाया हूँ  पिचहत्तर
प्रगति पथ पर ठोकरें थी,छाँव भी थी
मुश्किलें और मुसीबत हर ठाँव भी थी
गिरा,संभला ,फिर चला या डगमगाया
दोस्तों  ने   होंसला  भी  था  बढाया
मिले निंदक भी कई तो कुछ प्रशंसक
करी कोशिश डिगाने की मुझे भरसक
राह  मेरी ,रोक वो पाए नहीं ,पर
इस तरह मैं पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर 
साथ मेरे धीर भी था,धर्म भी था
माँ पिता का किया सब सत्कर्म भी था
दुश्मनो ने भले मेरी  राह रोकी
भाई बहनो और सगो ने पीठ ठोकी
निभाने को साथ जीवनसंगिनी थी 
दोस्तों की दुआओं की ना कमी थी
साथ सबने ही निभाया आगे बढ़कर
इसलिए मै पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर
अभी तक कम ना  हुई है महक मेरी
वो ही दम है ,खनखनाती चहक मेरी
किया हरदम कर्म में विश्वास मैंने 
सफलता की नहीं छोड़ी आस मैंने
लीन रह कर ,प्रभु  की आराधना में
जुटा ही मैं रहा जीवन साधना में
प्रगतिपथ पर ,अग्रसर था,उत्तरोत्तर
इसलिए मैं पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर
तपा हूँ,तब निखर कर कुन्दन बना हूँ
महकता हूँ,सूख कर चन्दन बना हूँ
जाने अनजाने बुरा कुछ यदि किया हो
भूल से  यदि हो गयी कुछ गलतियां हो
निवेदन करबद्ध है ,सब क्षमा करना
प्रेम और शुभकामनाएं ,बना रखना
प्यार सबका ,रहे मिलता  ,जिंदगी भर
इसलिए  मैं पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर
तीन चौथाई उमर तो कट गयी  है
रास्ते की मुश्किलें सब हट गयी है
भले ही तन में नहीं वो जोश बाकी
मगर अब भी चल रहा हूँ, होंश बाकी
वक़्त के संग भले जो मैं जाऊं थक भी
कामना है करूंगा ,पूरा शतक भी
पार  करना है  मुझे यह भवसमन्दर
इसलिए मैं पहुँच पाया हूँ पिचहत्तर

मदनमोहन बाहेती'घोटू'

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