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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

उसकी कुछ मजबूरी होगी

          उसकी कुछ मजबूरी होगी
 
तुम्हे शिकायत भूल गई औलाद तुम्हे है
भूले भटके से  ही  करती   याद तुम्हे  है
हो सकता है  उसकी कुछ मजबूरी  होगी
तभी बनाई उसने  तुमसे  दूरी   होगी
अब तक वो तुम्हारा ,प्यारा ,मृगछौना था
जो पुलकित करता  घर का कोना कोना  था
बंधा हुआ था  तुम्हारे   ममता   बंधन  में
बिखराया करता था खुशियां घर ,आँगन में
बड़ा हुआ कुछ जिद्दी और स्वच्छंद,मचलता
तुम्ही ने तो दूर हटाने , यह  उच्श्रृंखलता
ख़ुशी ख़ुशी  से बाँधा था गृहस्थ बंधन में
जाने क्या क्या ,सुन्दर सपन सजाये मन में
प्यारी सी पायल खनकाती ,बहू  नवेली
और बाद में ,पोते  की  प्यारी  अठखेली
शायद  यहीं गलत सा था कुछ तुमने आँका
ये गठबंधन ,बन जाएगा ,ऐसा   टांका
जो कि काँटा बन कर पीर तुम्हे ही देगा
तुमसे  ,तुम्हारा प्यारा बेटा  छीनेगा
जिस पर इतना प्यार लुटाया ,पाला ,पोसा
जिस पर तुमने ,इतना ज्यादा किया भरोसा ,
इतने वर्षों ,किया कराया ,व्यर्थ जाएगा
चार दिनों में ,पत्नी संग पा ,बदल जायेगा
सागर सीना चीर ,उठे है दल ,बादल   के
जब भी पड़े दबाब ,वहीँ उनका जल  छलके
सागर ,जनक बादलों के ,इसमें न जरा शक
रहता नहीं बादलों पर उनका कोई हक़
करता उन्हें दबाब नियंत्रित और  हवायें
जो कि घुमाती रहती उनको दांयें,बाएं
नीर भरे वो पर अब  बेबस से लगते है
अरे सूर्य को सूर्य जनित ,बादल  ढकते है
होता ये ही हाल  पति का  सम्मोहन से 
शक्तिहीन वह होता ,पत्नी के दोहन   से
होता दूध पिलाया सारा  ,असरहीन है
पूर्ण रूप से होता वह पत्नी  अधीन  है
जिसके साथ बिताना उसको जीवन सारा
तो फिर ख्याल रखे उसका या फिर तुम्हारा
शेष तम्हारा जीवन कितना,चंद  घड़ी है
उसके आगे , उसकी लम्बी  उमर  पडी है
रोज रोज की किच किच और झगड़े बच कर
अपने ढंग से चाह  रहा है,वो जीना  गर
तो जीने दो ,तुम भी अपने ढंग से खेलो
उमर बची है जितनी भी,पूरा रस ले लो
सच्चे दिल से सदा रही है  चाह तुम्हारी
ख़ुशी ,स्वस्थ और  सुखी रहे  औलाद तुम्हारी 
 चाह  सुखी जीवन की उसकी पूरी  होगी
तभी बनाई उसने तुम से  दूरी होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 





नए साल का आगाज़ 2000 +16 =2016

       नए साल का आगाज़
         2000 +16 =2016

ये 'दोहज़ारन ' अपनी, जवान  हो गई है
हो गई  उमर  सोलह ,शैतान   हो गई  है
कभी 'ओबामा' की बाहों, में डाले है गलबैयां
कभी 'पुतिन' को पटाये ,कभी 'ली'से छैयां छैयां
कभी वो नवाज शरीफ पे,मेहरबान हो गई है
ये 'दो हज़ारन' अपनी ,जवान हो गई   है
शोहदे गली के छेड़े, उसको  अकड़ अकड़ कर
दुनिया में उसका जादू ,बोले है सर पर चढ़ कर
उड़ती  फिरे हवा में ,तूफ़ान हो गई  है
ये ' दोहज़ारन' अपनी,जवान  हो गई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

               

नए साल का आगाज़ 2000 +16 =2016

       नए साल का आगाज़
         2000 +16 =2016

ये बीस हज़ारो अपनी, जवान  हो गई है
हो गई  उमर  सोलह ,शैतान   हो गई  है
कभी 'ओबामा' की बाहों, में डाले है गलबैयां
कभी 'पुतिन' को पटाये ,कभी 'ली'से छैयां छैयां
कभी वो नवाज शरीफ पे,मेहरबान हो गई है
ये बीस हज़ारो अपनी ,जवान हो गई   है
शोहदे गली के छेड़े, उसको  अकड़ अकड़ कर
दुनिया में उसका जादू ,बोले है सर पर चढ़ कर
उड़ती  फिरे हवा में ,तूफ़ान हो गई  है
ये बीस हज़ारो अपनी,जवान  हो गई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

               

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

जमीन से जुडी चीजें

        जमीन से जुडी चीजें

जो चीजें जमीन से जुडी हुई होती है ,
जमीन से जुड़े लोगों के बहुत काम आती है
दुःख ,तकलीफ में ,हमेशा साथ निभाती है
पेट भरती है,प्यास बुझाती है
और जमीन से ऊपर उठे हुए ,
लोग ही नहीं,वृक्ष और फूल और फल,
जो अपनी ऊंचाई के कारण बड़े इतराते है
ये भूल जाते है
कि क्योंकि उनकी जड़ें जमीन से जुडी हुई है ,
इसीलिये ही वो फूल फल पाते है
जल जीवन होता है
वह भी जमीन से जुड़ा होता है
भले ही आसमान से बरसता है 
पर पहले जमीन से जुड़ता है
और फिर दुनिया की प्यास बुझाता है
 इंसान के हर काम में ,
सुबह से शाम आता है   
जमीन से जुडी हुई सब्जियां ,
आलू और प्याज सब है
हमेशा सस्ती और सुलभ है
भले ही दालों के दाम आसमान  चढ़ जाए
भले ही मंहगाई कितनी भी जाए
गरीबो के भोजन में हमेशा साथ निभाये
जमीन से जुडी अदरक महान है
और दबी हुई लहसुन ,गुणों की खान है
और अच्छे अच्छे रईसो के,
बावर्ची खाने की शान है
जमीन से जुडी हुई हल्दी ,
न केवल भोजन का स्वाद बढ़ाती है
वरन गौरी के हाथ भी पीले करवाती है
जब शरीर पर लगती है ,रूप निखार देती है
उसका जीवन संवार देती है
और जमीन से जुडी हुई मूंगफली ,
गरीबों की बादाम है
इसका अपना स्वाद है,अपनी शान है
धरती हमारी माता है
इसलिए इससे जुडी हुई चीजों में ,
मातृत्व का गुण समाता है
जमीन से जुडी हुई अधिकतर सब्जियां,
ज्यादा टिकाऊ होती है,जैसे माँ का प्यार
आलू,प्याज,अदरक,लहसुन ,आदि आते है पूरे साल
बाकी सब सब्जिया मौसमी कहलाती है 
और ऋतु के अनुसार आती जाती है 
जमीन से जुडी चाहे मूली सफेद हो या गाजर लाल है
पर सब की सब  ढेर सारे गुणों का भण्डार है
इसलिए जो लोग धरती ,
याने अपनी माँ  से जुड़े रहते है  
लोग उन्हें धरती का लाल कहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बाप का माल

             बाप का माल

भगवान ने पहले सूर्य,चन्द्र  को बनाया ,
सुन्दर  पहाड़ों,वृक्षों और प्रकृती का सृजन किया 
नदियां बनाई ,हवाये चलाई ,
और फिर जीव ,जंतु और इंसान को जनम दिया
हमने सूरज के ताप से बिजली चुराई
हवाओं के वेग से भी बिजली बनाई
नदियों का प्रवाह से वद्युत का उत्पादन किया
प्रकृती की हर सम्पति  का दोहन किया
हम हवा से ऑक्सीजन चुराते है
तब ही तो सांस ले पाते है
धरा की छाती को छील ,अन्न उपजाते है
तब ही जीवन चलाते है
सूरज की धूप से गर्मी और रोशनी चुराते है
जमीन की रग रग में बहते पानी से प्यास बुझाते  है
प्रकृति की हर वनस्पति और फलों पर,
अपना  अधिकार रखते है
और तो और ,अन्य जीवों को भी पका कर ,
अपना पेट भरते है
हम सबसे बड़े चोर है
 और खुले  आम चोरी करते है
और उस पर तुर्रा ये ,
किसी से नहीं डरते है
और इस बात का हमारे मन में,
जरा भी नहीं मलाल है
क्योंकि हम भगवान की संतान है ,
और ये हमारे बाप का माल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर

 सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर

मैंने अपने दिल के कोरे,
 कैनवास पर सच्चे मन से
सुंदर सी एक तस्वीर बनाई थी ,
बड़ी लगन से
चाँद को चूमने की आशा लिए ,
एक मासूम विहंग
अपने  पंख फैलाये ,गगन में,
उड़ रहा था स्वच्छंद
मैंने उस चित्र को ,
सोने की फ्रेम मे जड़वा ,
अपने ड्राइंग  रूम में टांगा
यह सोच कर कि इससे ,
हो  जाएगा सोने में सुहागा
पर मैं  कितना गलत था
आज मुझे वो पंछी ,
अपने पंख पसारे ,
आसमान में उड़ता हुआ नहीं ,
सोने की फ्रैंम के पिंजरे में ,
छटपटाता नज़र आता  है
कई बार सोने की फ्रेम में फंस ,
जीव कितना मजबूर हो जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


ऊंचे लोग -ऊंची पसंद

      ऊंचे लोग -ऊंची पसंद

शिराओं में ,उच्चस्तरीय रक्तचाप
बातों में मधुमेह मयी  मिठास
आँखों में मोतियाबिंद बिराजमान
सर पर चांदी से केशो की शान
स्वर्ण के प्रति मोह इतना कि ,
स्वर्ण को भी भस्म करके खाते  है
लोह तत्व की अल्पता के कारण ,
हर किसी से लोहा लेने को तैयार हो जाते है
प्रकृती से प्रेम इतना कि सर्दियों में भी,
'बसंत कुसुमाकर रस'और  'चंद्रप्रभा वटी 'का
 लेते है  आनंद
ऊंचे लोग ,ऊंची पसंद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेस बुक स्टेटस

     फेस बुक स्टेटस

विदेश बसे  बेटे से बाप ने फोन किया ,
बेटा कई दिनों तुमने कोई समाचार नहीं दिया
सप्ताह में कम से कम
एक बार तो फोन कर लिया करो तुम
बेटा बोला 'पापा ,चिंता मत किया करो
फेसबुक पर रोज मेरा स्टेटस देख लिया करो
और आप की  फेसबुक पर भी ,
यदि आपका स्टेटस' अप टू  डेट'रहेगा
तो हमको भी ,आपके बारे में ,
सब पता लगता रहेगा
पिता के अंतर्मन ने ,बुझे स्वर में कहा,बेटा
ये बूढ़ा  जब  अचानक  मरेगा
तो स्टेटस कौन 'अप टू डेट' करेगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम वो पुराना माल है

               हम वो पुराना माल है

चूरमे की तरह वो ,मीठी,मुलायम,स्वाद है ,
 और बाटी की तरह ,मोटी  हमारी खाल है
वो है जूही की कली ,प्यारी सी खुशबू से भरी,
फूल हम भी मगर  गोभी सा हमारा हाल है
वो है छप्पन भोग जैसी,व्यंजनों की खान सी ,
और हम तो सीधे सादे ,सिरफ़ रोटी दाल है
सारंगी से सुर सजाती है मधुर वो सुंदरी ,
हम पुरानी ढोलकी से , बेसुरे  ,बेताल  है
काजू की कतली सी है वो और हम गुड़ की गजक ,
खनखनाती वो तिजोरी ,हम तो ठनठन पाल है
एल ई डी का बल्ब है वो ,टिमटिमाते हम दिये ,
कबाड़ी भी नहीं ले ,हम वो पुराना  माल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
            

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

मन हुँकार बैठा है

उस आईने में खुद को देख रहा है कोई,
वो सज संवर के होने शिकार बैठा है ।

इस माहौल से हैं वाकिफ तुम और हम भी,
इस उजड़े हुए बाग में ढूँढने बहार बैठा है ।

फिर कोई आके सहला रहा है दिल को,
दे देने को फिर गम कोई तैयार बैठा है ।

ये प्यार करने वाले, अब फिर दिख रहे,
वो लूटने को फिर दिल-ए-करार बैठा है ।

जो जिंदा है वो बस, सो रहा है बेखबर,
जो कत्ल हो चुका वो यूँ  पुकार बैठा है ।

चुन लिए हैं हमने कुछ दोस्त ऐसे ऐसे,
जो पास मैं बुलाऊँ वो फरार बैठा है ।

अब मौत की खबर भी वो गा कर सुनाता,
लेने को भी अर्थी, देखो कहार बैठा है ।

है आस रखो जिसपे वो सपने ही दिखाता,
हर सपने तेरे लेकर वो डकार बैठा है ।

अपना जिसे समझो वो हो गया पराया,
गैर कोई आके किस्मत सँवार बैठा है ।

काम का समझकर, आगे किया जिसको,
विश्वास को लुटाकर वो बेकार बैठा है ।

हर आग को बुझाना, अंधकार को मिटाना,
अलख फिर जगाने, मन हुँकार बैठा है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

रविवार, 13 दिसंबर 2015

लूटो भी,लुट कर भी देखो

       लूटो भी,लुट कर भी देखो

कुछ दुनियादारी ने लूटा ,
           कुछ झूंठे सपनो ने लूटा
तुमने जिन पर प्यार लुटाया,
          तुमको उन अपनों ने लूटा
मीठी मीठी बात बना कर,
           लूटे हमे  जमाना   सगला
फिर भी ख़ुशी ख़ुशी लुटते  है,
          लोग समझते हमको पगला
अरे लूटता तो वो ही है,
          जिसके पास न कुछ होता है
और लुटता है वो ही जिसका ,
           कि  भण्डार  भरा होता  है
कभी किसी से प्यार करो तुम,
          कभी किसी पर लुट कर देखो
लुटने  की अपनी मस्ती  है,
           कभी किसी पर मर मिट देखो
लुटने में आनंद बहुत है
            कभी समर्पित हो क र देखो
मन में सच्चे भाव लिए तुम,
          अपना सब कुछ खोकर देखो
तुम जो कुछ खोवोगे उसका,
             तुम्हे कई गुणा  मिल जाएगा
मन की उलझन सुलझ जाएगी ,
           पुष्प प्यार का  खिल जाएगा
अगर लूटना है तो लूटो,
              राम नाम की लूट मची है 
लूटो नाम और यश लूटो,
               थोड़ी सी तो उमर बची है
लुटने और लूटने में बस ,
                एक मात्रा  का है अन्तर
अगर लुटोगे   सच्चे मन से ,
             सुख लूटोगे तुम जीवन भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             
                       
               
        
    
          
       

व्यवहार

             व्यवहार
कितनी ही मंहगी चमकीली,
फ्रेम  भले ही हो ,चश्मे की ,
लेकिन लेंस जब सही होते ,
तब ही साफ़ नज़र  आता है
सजधज कर कोई कितनी भी,
दिखने लग जाती हो सुन्दर ,
पर दिल कैसा ,यह तो  उसका ,
बस व्यवहार  बता पाता  है

          व्यवस्थाएं

अलग अलग लोगों की ,
अलग अलग जिद और व्यवहार
देता है समाज की ,
व्यवस्थाओं को आकार

घोटू

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

दीवाना दीवान

        दीवाना  दीवान

जो भी आता ,मुझमे बैठ पसर जाता है
मारता गप्पे है ,मस्ती से पीता , खाता है
कोई जल्दी में रहता है ,कोई फुरसत  से
मगर मैं ,इन्तजार ,करता जिसका शिद्द्त से
वो हंसीं ,मखमली ,कोमल गुलाबी जिस्म लिए
लबों में शरबती मिठास और तिलस्म  लिए
जिसके अहसास से मुझमे गरूर आ जाए
समा के अपने  में ,मुझमे  सरूर  आ जाए
जी ये करता है उसकी खुशबू बसा लूँ  खुद में
   जिसके स्पर्श से ही  हुआ करता , बेसुध मैं       
 जिसकी तहजीब ,जिसकी खिलखिलाती प्यारी हँसी     
,जिसकी चूड़ी की खनक ,देर तलक ,दिलमे बसी
जिसको गोदी में लिए ,बावरा मैं ,पागल सा
 मज़ा जीवन का उठाता हूँ पूरा, पल पल का
इतना खो जाता ,भीनी खुशबू वाले बालों में
डूब जाता हूँ ,इस कदर में उसके ख्यालों में
वो कब आई,कब गयी ,पता नहीं चलता
फिर वो ही सूनापन ,विरहा की अगन में जलता
हमेशा ,बाहें ,मैं अपनी पसार बैठा हूँ
कर रहा ,उनका ही बस इन्तजार,बैठा हूँ
अपना ये जिस्मोजिगरबस उन्ही को सौंपा हूँ
उनका दीवाना हूँ, दीवान हूँ, मैं  सोफ़ा   हूँ
आपके घर की ,सबसे शानदार ,रौनक हूँ
हुकुम मे आपके ,हाज़िर ,गुलाम , सेवक हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

टेस्ट ही टेस्ट

       टेस्ट ही टेस्ट

इधर टेस्ट है,उधर टेस्ट है
जिधर देखिये,उधर  टेस्ट है
कहीं 'मिसाइल'टेस्ट हो रहा
और कहीं ' प्रोटेस्ट 'हो रहा
'एड्मिशन' मे  टेस्ट चल रहा
क्रिकेट में टेस्ट मैच  चल रहा
पग पग पर 'कॉन्टेस्ट' हो रहे
कितने  पैसे ' वेस्ट ' हो रहे
हो बीमार ,डॉक्टर  को जाते
वो भी कितने टेस्ट कराते
मुझे डॉक्टरों से शिकवा है
जब भी देते  कोई दवा  है
'यूरिन 'खून ,टेस्ट  करवाते
तब ही कोई दवा लिख पाते
ये ना कहता कोई डॉक्टर
टेस्ट कराओ रबड़ी  मिस्टर
टेस्ट करो  गाजर का हलवा
रसगुल्लों के साथ लो दवा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


हम तुम -एक सिक्के के पहलू

         हम तुम -एक सिक्के के  पहलू

जब तुम तुम थी,और मैं ,मैं था ,एक दूजे से बहुत प्यार था
तुम मुझको देखा करती थी,छुप  छुप मैं तुमको निहारता
देख ,एक दूजे को खुश थे , मुलाक़ात हुआ करती थी
हाथ पकड़ कर तन्हाई में ,दिल की बात हुआ करती थी
 जब से हुई  हमारी शादी, हम एक सिक्के के दो पहलू 
आपस में चिपके रहते है , पर मैं ,मैं हूँ,और तू  है तू 
 साथ रह रहे ,एक दूजे के ,चेहरा भी पर नज़र न आता
खड़ी आईने आगे जब तुम ,रूप तुम्हारा  तब दिख पाता
क्या दिन थे शादी के पहले ,मैं  स्वच्छंद  जिया करता था
हंसी ख़ुशी से दिन कटते थे ,निज मन मर्जी का करता था
अब सिक्के की  'हेड',बनी तुम ,टेल' बना,पीछे मैं  डोलूँ  ,
तुम्हारी 'हाँ' ही  मेरी' हाँ' ,तुम 'ना' बोलो ,मैं ' ना' बोलूं        
 संग संग  रहते एक दूजे का ,पर हम ना कर पाते दर्शन    
 रह रह मुझे याद आता है ,शादी के पहले का जीवन       

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

             
           

मैं -पैसा हूँ

          मैं -पैसा हूँ

मैं निर्जीव ,मगर चलता हूँ
गिरता कभी ,कभी चढ़ता हूँ
पंख नहीं, पर लोग  उड़ाते
तरल नहीं ,पर लोग बहाते
दुनिया कहती मैं हूँ  चंचल
साथ बदलता रहता पल पल
छप्पर फाड़ कभी आ जाता
हर कोई  मेरे गुण  जाता
मैं सफ़ेद हूँ, मैं हूँ काला
जिसे मिलूं ,होता मतवाला
जब भी मैं हाथों में आता
दुनिया के सब रंग दिखाता
मैं  मादक, मदिरा से बढ़कर
लोग  बहकते ,मुझको,पाकर
अच्छे लोग बिगड़ जाते है  
बिगड़े लोग संवर जाते  है
मुझको पाने सब आतुर है
मेरी खनखन बड़ी मधुर है
सभी तरसते मेरे स्वर को 
नचा रहा  मैं दुनिया भर को
पहले होता  स्वर्ण ,रजत का
पर अब हूँ कागज का,हल्का
मैं तो हूँ भूखों  की  रोटी
वस्रहीन के लिए  लंगोटी
मैं देता घर, चार दीवारी
रहन सहन की सुविधा सारी
पति पत्नी का प्यार मुझी से
 आभूषण ,श्रृंगार मुझी से
मुझसे मिलते नए नाम है
परसु,परस्या ,परसराम है 
दान ,धर्म करवाता मैं  ही
पाप कर्म ,करवाता मैं   ही
मैं तीरथ  और धाम कराता
जेलों में चक्की पिसवाता
मेरे कितने, भिन्न  रूप है 
अफसर कहते ,पत्र पुष्प है
चंदा  कहते है  नेताजी
चपरासी ,चाय पी राजी
मंदिर में, मैं बनू  चढ़ावा 
रेल बसों में बनू किराया
मुख विहीन ,मैं ,मगर बोलता
पा सबका  ,ईमान डोलता
कोई किस्मत का खेल समझता
कोई हाथ का मैल  समझता
मुझसे सारे ऐश्वर्य है 
मान प्रतिष्ठा और गर्व है
ये मत पूछो ,मैं कैसा हूँ
मै जैसा हूँ ,बस वैसा हूँ
हर युग में बस एक जैसा हूँ
हाँ,जनाब ,मैं ही पैसा हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

चालक जी

(सड़क सुरक्षा पर मेरी एक रचना जो कि एक आग्रह है, सभी प्रकार की गाड़ियाँ चलाने वालों से)


संयम बरत लेने से तेरा क्या जायेगा चालक जी,
उच्च गति का रौब दिखा कर क्या पायेगा चालक जी ।

गलती एक तेरी होगी पर भुगतेंगे कई और भी,
तेरा जो होगा सो होगा, तड़पेंगे कई और भी ।

देर अगर थोड़ी होगी तो क्या जायेगा चालक जी,
जान सुरक्षित रहेगी सबकी, सुख पायेगा चालक जी ।

कहीं मवेशी पार हैं करके, बच्चे इधर-उधर हैं होते,
नहीं समझ हैं इन्हें गति की, मन माफिक वे जिधर भी होते ।

तू थोड़ा गर समझ ये लेगा, पूण्य पायेगा चालक जी,
छोटे-छोटे कदमों से खुशियाँ लायेगा चालक जी ।

सड़क नियम के हर पहलू को मान अगर तू लेता है,
खुद के साथ तू कईयों के जीवन को सुरक्षा देता है ।

नियम तोड़ना शान नहीं गर समझ जायेगा चालक जी,

चक्के कितने भी गाड़ी में, संभल जायेगा चालक जी ।

रविवार, 29 नवंबर 2015

      बिमारी और इलाज

छोटी सी सर्दी खांसी थी ,ठीक स्वयं हो जाती
तंग करती दो चार दिवस या हफ्ते भर में जाती
शुभचिंतक मित्रों ने देकर तरह तरह की रायें
बोले भैया ,किसी डॉक्टर ,अच्छे को दिखलायें
कहा किसी ने बीपी देखो,ब्लड टेस्ट करवाओ
कोई बोला काढ़ा पियो, ठंडी चीज न खाओ
कहे कोई लो चेस्ट एक्सरे ,कोई देता चूरण
कोई कहता होम्योपैथी की गोली खाए हम
चार डॉक्टरों के चक्कर में ,पैसा खूब उड़ाया
मुझे बिमारी ने घेरा या मैंने ही घिरवाया
एक्यूप्रेशर भी करवाया ,दस दस गोली खाई
दिन दिन बढती गई बिमारी,ठीक नहीं हो पाई
गया उलझता इस चक्कर में ,परेशान,बेचारा
तरह तरह इलाज करा कर ,बुरी तरह से हारा
माँ बोली कि बहुत हुआ अब छोड़ दवाई  बेटा
यूं ही डॉक्टरों के चक्कर में ,तू बीमार बन बैठा
बिगड़ी  हालत हुई, हो गए तन के पुर्जे  ढीले
तू है स्वस्थ ,सोच बस इतना,हंसी खुशी से जी ले


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वो चूसी हुई टॉफी-ये टॉफी का डब्बा

  वो चूसी हुई टॉफी-ये टॉफी का डब्बा 

भाईदूज पर बड़े इसरार के बाद,
मेरा भाई आया
मैंने उसे टीका लगाया
और अपने हाथों बनाई
उसकी पसंद की मिठाई
बेसन की बर्फी खिलाई
भाभी के अनुशासन मे बंधे,
भाई ने बर्फी का एक टुकड़ा मात्र खाया
और मुझे बदले में ,चॉकलेट का एक डिब्बा पकड़ाया
और बोला दीदी,मुझे जल्दी जाना है
तेरी भाभी को भी ,अपने भाइयों को निपटाना है
ये निपटाना शब्द मुझे नश्तर चुभो गया
आदमी क्या से क्या हो गया
वो रिश्ते ,वो प्यार, जाने कहाँ खो गया
न चाव ,न उत्साह ,वही भागा दौड़
कब समझेगा वो रिश्तों का मोल
रिश्ते निभाने के लिए होते है ,
निपटाने के लिए नहीं,
ये रस्मे मिलने मिलाने के लिए होती है,
सिर्फ देने दिलाने के लिए नहीं
फिर मैंने जब चॉकलेट का डिब्बा खोला ,
तो बचपन का एक किस्सा याद आया
एक दिन छोटे  भाई   स्कूल में ,किसी बच्चे ने ,
अपना जन्म दिन था मनाया
और उसने सबको थी बांटी
दो दो चॉकलेट वाली टॉफी
उसने एक खाई और एक मेरे लिए रख दी
पर उसका स्वाद उसे फिर से याद आगया जल्दी
उसने चुपके से रेपर खोला ,थोड़ी चूसी ,
और रख दी रेपर मे 
उसने यह प्रति क्रिया फिर दोहराई ,
जब तक मैं देर तक  ना पहुंची घर में
फिर उसका जमीर जागा
उसने अपनी कमजोरी और लालच त्यागा
और मम्मी को आवाज लगाईं
मम्मी ये टॉफी इतनी ऊपर रखदो
जहां तक मेरे हाथ पहुंच ही पाएं नहीं
माँ,उसकी मासूमियत पर कुर्बान हो गई
 और मैं जब पहुंची ,तो उसने झिझकते हुए बोला था
दीदी टॉफी अच्छी है ,मैंने चखली थी
उसकी ये मासूमियत ,लगी मुझे बड़ी भली थी         
 मुझे याद आ गया ,उसका वो बचपन का प्यार
और आज वो बर्फी खाने से इंकार
 शादी के बाद ,
क्यों बदलजाता है आदमी का व्यवहार
आज मैं सोचती हूँ ,
कि जो स्वाद उस भाई की चूसी हुई ,
और प्यार से सहेजी हुई टॉफी में आया था,
क्या वह वह स्वाद ,
रसम निपटाने के लिए दी गयी ,
डब्बे की सौ टॉफियों में भी आ पायेगा
क्या जीवन ,इसी 'फॉर्मेलिटी'में गुजर जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

सब कुछ -बीबी के भाग्य से

        सब कुछ -बीबी के भाग्य से
 
सास कहती है बेटी मेरी भाग्यशाली है
तुम्हारे घर की इसने शक्ल बदल डाली है
लक्ष्मी सी है ये ,पैरों में इसके बरकत  है
पड़े है जबसे पाँव ,जाग गई  किस्मत है
माँ भी कहती है हुआ जबसे इसका पगफेरा
लाखों में खेलने लग गया है बेटा मेरा
चलाने वंश दिए ,पोते ,दो दो हीरों से
आजकल ठाठ से जीते है हम अमीरों से
हमारे पास आज ,इतना धन और दौलत है
बहू का भाग्य है ,सब उसकी ही बदौलत है
और भी रिश्तेदार ,जितने घर पर आते है
बहू के भाग्य के ही ,सबके सब गुण गाते है
रोज जब सुनता हूँ मैं लोगों की ऐसी बातें
पेट में फड़फड़ाने लगती है मेरी   आंतें
पढाई मैंने की,दिनरात जग कर मेहनत की
मिली है तब कहीं डिग्री ये काबलियत की
सुबह से शाम तक ,खटता हूँ रोज दफ्तर में
तब कहीं आती है ,इतनी कमाई इस घर में
बॉस की डाट सुने ,टेंशन हम झेलें  है
मुफ्त में यूं ही सारा यश मगर ये ले ले है
बिचारे मर्द  की दुर्गत हमेशा होती है
चैन से घर में बीबी,मौज करती ,सोती है 
मैं  जो मेहनत न करू, ख़ाक भाग्य चमकेगा
उसकी तक़दीर से ,पैसा न यूं ही बरसेगा
लोग पतियों के बलिदान को भुलाते है
भाग्य की सारी  वजह ,बीबी को बताते है
मैं भी ये मानता हूँ,बीबी भाग्यशाली है
तभी बन पायी ,मुझ कमाऊ की घरवाली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नई जनरेशन के भाव

    नई  जनरेशन के भाव

ना तो देती भाव किसी को ,
उस पर भाव सभी से खाती ,
बड़ी भावना शून्य हो गयी
        अरे आज की ये जनरेशन
ब्रांडेड शोरूमों में जा कर ,
सीधे से परचेसिंग  करती ,
मोल भाव करना ना जाने ,
        सिर्फ देखती ताज़ा फैशन
सबको आदर भाव  दिखाना 
प्रेम  और सदभाव  दिखाना
भूल  गई सब संस्कार को,
         ऐसा अजब स्वभाव हो गया
उल्टा सीधा रहन सहन है
उल्टा सीधा खाना पीना ,
वेस्टर्न कल्चर  का उन पर,
         इतना अधिक प्रभाव  हो गया
 इतनी ज्यादा आत्मकेंद्रित ,
और गर्वित रहती है खुद पर ,
मातपिता और भाई बहन के ,
         भुला दिए है रिश्ते  सारे
 ये सब माया की माया है
जिसने उनमे अहम भर दिया ,
ढलने जब ये उमर  लगेगी,
           दूर बहम तब होगें सारे    

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'           



 

बोनसाई

      बोनसाई

अपनी जड़ें कटवाने के बाद,
पनपे हुए पौधे ,
बोनसाई हो जाते है
उनकी मानसिकता भी बौनी हो जाती है
उनके पत्ते ,फूल या फल ,
सजावट के लिए सुंदर दिखते है ,
पर उनकी उपयोगिता ,शून्य हो जाती है
इसलिए ,जड़ों से जुड़े रहो ,
जड़ें मत कटवाओ
वरना संगेमरमर की टेबल मे ,
जड़े हुए रत्नो की तरह ,
तुम भी जड़ हो जाओगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ की पीड़ा

          माँ की पीड़ा

बेटा,तेरी ऊँगली पकड़े ,तुझे सिखाती थी जब चलना,
मैंने ये न कभी सोचा था , ऊँगली मुझे दिखायेगा तू 
माँ माँ कह कर,मुझको पल भर ,नहीं छोड़ने वाला था जो,
ख्याल स्वपन में भी ना आया ,इतना मुझे सताएगा तू
तुझको अक्षर ज्ञान कराया ,हाथ पकड़ कर ये सिखलाया ,
कैसे ऊँगली और अंगूठे ,से पेंसिल पकड़ी  जाती है
कैसे तोड़ी जाती रोटी ,ऊँगली और अंगूठे से ही ,
कैसे कोई चीज उठा कर , मुंह तक पहुंचाई जाती है
जब भी शंशोपज में होती ,मैं दो ऊँगली तेरे आगे ,
रखती ,कहती एक पकड़ ले,मेरा निर्णय वो ही होता
तुझे सुलाती,गा कर लोरी,इस डर से मैं चली न जाऊं ,
तू अपने नन्हे हाथों से ,मेरी उंगली   पकड़े  सोता
ऊँगली पकड़ ,तुझे स्कूल की बस तक रोज छोड़ने जाती,
बेग लादती,निज कन्धों पर,तुझ पर बोझ पड़े कुछ थोड़ा
मेला,सड़क,भीड़ सड़कों पर ,तेरी ऊँगली पकड़े रहती ,
इधर उधर तू भटक न जाए,तू मुझको देता था  दौड़ा   
मैं ये  जो इतना करती  थी ,मेरी ममता और स्नेह था,
और कर्तव्य समझ कर इसको,सच्चे दिल से सदा निभाया
जब वृद्धावस्था आएगी,  तब तू मुझे सहारा देगा  ,
हो सकता है  भूले भटके ,ऐसा ख्याल जहन  में आया
बड़े चाव से हाथ तुम्हारा ,थमा दिया था  बहू हाथ में ,
मैं थोड़ी निश्चिन्त हुई थी, अपना ये कर्तव्य निभा कर
मेरी ऊँगली  छोड़ नाचने ,लगा इशारों पर तू उसके ,
मुझको लगा भूलने जब तू,पीड हुई,ठनका मेरा सर
लेकिन मैंने टाल दिया था  ,क्षणिक मतिभ्रम ,इसे समझ कर,
सोचा जोश जवानी का है ,धीरे धीरे समझ आएगी
फिर से कदर करेगा माँ की,तू अपना कर्तव्य समझ कर,
मेरी शिक्षा ,संस्कार की,मेहनत व्यर्थ नहीं जायेगी
लेकिन तूने मर्यादा की ,लांध दिया सब सीमाओं को ,
ऐसे मुझे तिरस्कृत करके ,शायद चैन न पायेगा तू
बेटा तेरी ऊँगली पकड़े,तुझे सिखाती थी जब चलना ,
मैंने ये न कभी सोचा था ,ऊँगली मुझे दिखायेगा  तू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 


सोमवार, 23 नवंबर 2015

रास्ते में इम्तहान होता जरूर है...

क्या हुआ जो
कुछ मिला तो
कुछ नहीं मिला,
क्या हुआ जो
कुछ खो गया तो
कुछ छिन गया...
देखो तो जरा गौर से
रह गया होगा बहुत कुछ
अब भी तुम्हारे पास,
देखो आ गया होगा 
कुछ कीमती-कुछ खास
चुपके से तुम्हारे पास...
और अगर नहीं 
तो रुको जरा 
थोड़ा सब्र करो,
क्योंकि -
देर या सबेर 
वो देता जरूर है,
उजाला कभी ना कभी
होता जरूर है,
याद रहे मकसद 
छोटा हो या बड़ा हो,
पर रास्ते में इम्तहान
होता जरूर है...

- विशाल चर्चित

शनिवार, 21 नवंबर 2015

शादी के पहले -शादी के बाद

           
                               
 पहले पहले ही 'ओवर' में,कर डाला हमको 'क्लीन बोल्ड' ,
कुछ बात थी तेरी 'बॉलिंग 'में,कुछ बात थी मेंरी 'बेटिंग' में 
वो फेस,'फेसबुक' पर तेरा ,वो' व्हाट्सऐप' के संदेशे ,
दीदार प्यार ' स्काइप 'पर,कुछ बात थी तेरी 'चेटिंग' में 
तुझको अपना दिल दे बैठे ,और तेरे दीवाने हो बैठे ,
वो छुपछुप करमिलना जुलना ,कुछ बात थी तुझ संग डेटिंग में  
कुछ बात थी मेंरे कहने में ,कुछ बात थी तेरे  सुनने में , 
कुछ बात थी दिल के लुटने में,कुछ बात थी अपनी सेटिंग में 

पर  जब  से  है 'मेरेज' हुई,  इस तरह जिंदगी  कैद  हुई ,
सब   दीवानापन  फुर्र  हुआ ,अपनी  वो  गुटरगूं  बंद  हुई 
दिन भर मैं पिसता दफ्तर में,तुम दिन भर मौज करो घर में ,
मैं थका पस्त ,और  अस्तव्यस्त ,अब जीवन की गति मंद हुई  
मैं ऐसा फंसा गृहस्थी में ,सब आग लग गयी मस्ती में,
स्वच्छंद जिंदगी होती थी ,वो आज बड़ी पाबन्द हुई 
ये तबला अब बेताल हुआ , मेरा  ऐसा कुछ हाल हुआ ,
मैं मंहगाई में पिचक गया ,तुम   फैली  सेहतमंद हुई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 19 नवंबर 2015

बेटे और बेटियां

                बेटे  और बेटियां             

बेचारा पितृत्व हमेशा रहा तड़फता है,
               विजय पताका पत्नीत्व  की  ही लहराई है
येन केन और प्रकारेण कुछ ऐसा होता है,
                 जीत हमेशा गठबंधन की होती आई है
मातपिता जिनने  बचपन से पालपोसा था,
                   धीरे धीरे उनकी जब कम हुई महत्ता है
और पराये घर से बेटा जिसे ब्याहता है,
                   उसके हाथों में आ जाती घर की  सत्ता है        
 जिसको लेकर सुख के सपने बुने बुढ़ापे में,
                  अच्छे दिन की आशाओं के, कभी, टूटते है
 जैसे बढ़ती उमर ,क्षरण काया  का होता  है,   
                    एक एक कर, साथी संगी सभी छूटते है
 आता आपदकाल ,बुढ़ापा ,जब दुःख देता है,
                  फंसी भंवर में नाव,जिंदगी डगमग करती है
बेटे अपने परिवार संग मौज उड़ाते है,
                    किन्तु बेटियाँ सदा सहारा, पग पग बनती है 
वही बेटियां जिन्हे पराया धन हम कहते है ,
                       साथ हमेशा दुःख पीड़ा में बढ़ कर आई है 
अक्सर बेटों को देखा है,हुए पराये है,
                           बेटी सदा  रही अपनी, ना हुइ पराई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

                                        ,
                  



                

सोमवार, 16 नवंबर 2015

अरे जिन्दगी जाग जा - जाग जा...


ब्रह्म वाक्य

           ब्रह्म वाक्य

अपनी संतानो से उपेक्षित,
 वरिष्ठजनो ने करवाया  यज्ञ बड़ा
जिसके  प्रभाव से ब्रह्माजी को,
प्रकट हो  स्वयं धरती पर आना पड़ा
उन्होंने आकर प्रश्न किया ,
भक्तों मुझे किसलिए किया याद 
यजमानो  ने कहा ,
प्रभु,आपने ये कैसी बनाई है औलाद
अपने जन्मदाताओं को ,
धता दिखा देती है,शादी के बाद
बिलकुल ख्याल नहीं करती ,
तिरस्कृत  कर दिल तोड़ देती है
उन्हें बुढ़ापे में तड़फ़ने के लिए ,
अकेला छोड़ देती है
आपने ही तो उन्हें बनाया है
पर उनके दिमाग में ,
पितृभक्ती वाला प्रोग्राम नहीं लगाया है
ब्रह्माजी बोले मैं  खुद हैरान हूँ
दुखी और परेशान हूँ
मेरे इस उत्पाद में जरूर कुछ कमी है भारी
पर अब तक ठीक ही नहीं हो पा रही ,
ये निर्माता को भूलने की बिमारी
इसे सुधारने का मेरा हर प्रयास व्यर्थ जाता है
क्योंकि शादी के बाद ,
उसमे  'पत्नी' नाम का'वायरस' लग जाता है
वैसे मैंने आप लोगों का भी निर्माण किया है
पर क्या आपने कभी ,मेरी ओर ध्यान दिया है
पालनकर्ता विष्णु के अवतारों की भी पूजा करते है
राम राम और कृष्ण कृष्ण जपते  है
हर्ता शिवजी से डर कर उन्हें ध्याते है
पूरे सावन भर जल चढ़ाते है
और तो और उनकी पत्नी दुर्गा को ,
वर्ष में दो बार नवरात्री में पूजा जाता है
विष्णु पत्नी लक्ष्मी की पूजा के  लिए भी,
दीपावली का त्योंहार आता है
सब ही देवी देवताओं  के पूजन और व्रत के लिए ,
वर्ष में कोई ना कोई दिन नियत है 
पर मेरे लिए ,न कोई दिन है ,
न पूजन होता है ,न कोई व्रत है
सभी  के देवताओं के पूरे देश में मंदिर अनेक है
पर पूरे विश्व में,मेरा मंदिर ,बस पुष्कर में एक है
तुम मेरी संतान हो पर तुमने ,
मेरी जो अवहेलना की है ,ये उसी का परिणाम है
कि तुम्हारी अवहेलना करती ,तुम्हारी संतान है
ये दुनिया का नियम है ,इस हाथ दो,उस हाथ लो
मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगा ,तुम मेरा ख्याल रखो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

बिहार की हार

           बिहार की हार   
                  १
                
लोग लाख कहते थे ,कि दम  है बन्दे में ,
           हार कर बिहार लेकिन बन्दे की साख गई
चींखें भी,चिघाड़े भी शेर से दहाड़े भी ,
           शोर हुआ इतना कि जनता थी जाग गई
लोग तो ये कहते है ,छुरी मारी अपनों ने ,
            बड़ी बड़ी बातें थी ,लेकिन कट नाक गई 
 घूमता परदेश रहे ,इज्जत कमाने को ,
               पर घर की बेटी ही ,गैरों संग भाग गई     
                       २
 मोदीजी की रैलियों में ,रेला तो उमडा  था बहुत ,
                 वोट कम क्यों,पता ये कारण लगाना चाहिए
कोई कहता मिडिया है,कुछ कहे अंतर्कलह ,
               कुछ कहे मंहगाई बढ़ती ,अब घटाना  चाहिए
मोदीजी तो जा रहे लंदन है मिलने क़्वीन से,
          हमको भी थोड़े दिनों ,अब मुंह  छुपाना चाहिए
हमको भी इस हार के ,सब कारणों को जानने ,
            आत्मचिंतन के लिए,   'बैंकॉक' जाना  चाहिए  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लक्ष्मीजी की पीड़ा

       लक्ष्मीजी की पीड़ा 

दिवाली की रात लक्ष्मी माई
मेरे सपनो में आई
मैं हतप्रभ चकराया
मैंने ना पूजा की ना प्रसाद चढ़ाया
बस एक आस्था का,
 छोटा सा दीपक जलाया
फिर भी इस वैभव की देवी को ,
इस अकिंचन का ख्याल कैसे आया
मुझे विस्मित देख कर ,
लक्ष्मी माता मुस्कराई
बोली इस तरह क्यों चकरा रहे हो भाई
तुमने सच्चे मन से याद किया ,
मैं  इसलिए तुम्हारे यहाँ आई
लोग इतनी रौशनी करते है ,
आतिशबाजी चलाते है
मनो तेल के लाखों दीपक जलाते है
लेकिन उनको  ये समझ नहीं आता है
 मेरी पूजा अमावस को इसलिए होती है,
क्योंकि मेरे  वाहन उल्लू को,
अंधियारे में ही ठीक से नज़र आता है
 वो उजाले से घबराता है
तुम्हारे यहां अँधियारा दिखलाया
इसीलिये वो मुझे  यहाँ पर ले आया
 मुझे एक बात और चुभती है
दिवाली पर जितना तेल ,
लोग दियों  में जलाते है ,
उतने में कई गरीबों को ,
चुपड़ी हुई रोटी मिल सकती है
मेरी पूजा और आगमन की चाह में ,
मुझी को पानी की तरह बहाना ,
मेरे साथ नाइंसाफी है
मुझे प्रसन्न करने के लिए तो,
श्रद्धा से जलाया ,एक दीपक ही काफी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


मंगलवार, 10 नवंबर 2015

बदलता मौसम

        बदलता मौसम

धुंधली धुंधली सुबह ,साँझ  भी धूमिल  धूमिल
शिथिल शिथिल सा तन है,मन भी बोझिल बोझिल 
शीतल शीतल पवन ,फ़िज़ा बदली बदली है
 मौसम  ने ये  जाने  कैसी  करवट  ली  है
बुझा बुझा सा सूरज कुछ खोया खोया  है
अलसाया अलसाया दिन, सोया सोया  है 
सिहरी सिहरी रात ,हुई  हालत पतली  है
मौसम ने  ये  जाने  कैसी  करवट ली  है
टूटे टूटे सपन , कामना  उधड़ी  उधड़ी
चिन्दी चिन्दी चाह,धड़कने उखड़ी उखड़ी
छिन्न छिन्न अरमान ,तबियत ढली ढली है
मौसम   ने  ये  जाने  कैसी  करवट ली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फिर से मेग्गी -चार दोहे

         फिर से मेग्गी -चार दोहे

ना तो भाये पूरी कचौड़ी ,और ना भाये मिठाई
बहुत दिनों के बाद प्लेट में ,मेग्गी माता आई

मन में फुलझड़ियाँ छूटे ,फूटे खूब पटाखे
लक्ष्मीमाता को पूजेंगे ,मेग्गी नूडल खाके

वही सुनहरी प्यारी आभा,वो  ही स्वाद पुराना
बहुत दिनों के बाद मिला  है ये मनभावन खाना

नरम मुलायम यम्मी यम्मी ,खाकर मन मुस्कायो
दीवाली पर तुम्हे देख कर,'प्रेम रतन धन पायो '

घोटू

सोमवार, 2 नवंबर 2015

वो कौन है

          वो कौन है

जिसकी एक नागा भी नागवार गुजरे ,
 वो जब तक ना आये ,बैचैनी  बढ़ती
जिसके आने से मिलती दिल को राहत ,
जिसका रास्ता ,रोज निगाहें है तकती
मुझसे भी ज्यादा मेरी बीबीजी को ,
इन्तजार होता है जिसके आने का
उसके संग होती मीठी मीठी बातें,
जली कटी सब मुझको सिर्फ सुनाने का
आस पास की सारी खबरें जो देती,
किस का किस के साथ चल रहा है लफड़ा 
जिस दिन उसकी मेहर नहीं होती है तो,
उस दिन सारा घर लगता उजड़ा उजड़ा
जिसके आने से घरबार संवर जाता ,
जिसकी,फुर्ती,तेजी ,हर बात निराली है
मुझसे भी ज्यादा मेरी बीबीजी को,
लगती प्यारी ,वो बाई  कामवाली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
          

पिछलग्गू पुरुष

       पिछलग्गू पुरुष

पुरुष की अग्रणीयता ,
शादी के पहले चार फेरों तक ही सीमित रहती है
क्योंकि उसके बाद,बाकी तीन फेरों में,
औरत आगे आ जाती है ,
और उसके बाद,उमर भर,पति से आगे ही रहती है
पति बेचारा,पिछलग्गू बना ,
उसकी हर बात मानता है
उसके इशारों पर नाचता है ,
ये बात सारा जमाना जानता है
अंग्रेजी में भी 'लेडीज फर्स्ट' याने,
महिलाओं को वरीयता दी जाती है
पुरुष मेहनत कर , धनार्जन करता है ,
पर औरतें गृहलक्ष्मी कहलाती है
घर की सुख शांति के लिए ,
इनकी हाँ में हाँ मिलाना आवश्यक होता है
और जो पति ये नहीं करता,रोता है
इसलिए जो भी पुरुष ,
पत्नी का अनुगामी बन ,
उसके पीछे पीछे चलता है
उसे जीवन के सब सुख प्राप्त होते है ,
और वो फूलता,फलता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

Hello


Hello,

How are you today .

I thank God I'm alive to have this opportunity to contact you for help today. I'm writing you from Ivory Coast. My name is Rokia and I am currently facing difficulties in life soon after my parents were killed by last month bombardment by the rebels in the northern part of my country. My father was a wealthy agro allied farmer and a political figure in our district. He left behind $3.6 million according to the document I found in his secret vault. My life is not safe, I need your help to relocate to your country with this money to start a new life and to continue my education since I'm just 22 years old college student.
Hope to hear from you.

Rokia dodo

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

ऊनी वस्त्रो की पीड़ा

          ऊनी वस्त्रो की पीड़ा

अजब तक़दीर होती है ,हम स्वेटर और शालों की
सिर्फ सर्दी में मिलती है ,सोहबत हुस्नवालों की
गर्मियों वाले मौसम में, विरह की  पीर  सहते है
बड़े घुट घुट के जीते है ,सिसकियाँ भरते रहते है
दबे बक्से में रखते है ,दबाये  दिल के सब अरमां
आये सर्दी और हो जाए,मेहबाँ हम पे मोहतरमा
याद आती,भड़क जाती,दबी सब भावना मन की
गुलाबी गाल की रंगत ,वो संगत रेशमी तन की
भुलाये ना भुला पाते, तड़फती हसरतें दिल की   
थी कल परफ्यूम की खुशबू,है अब गोली फिनाइल की
बड़ी मौकापरस्ती है ,ये फितरत हुस्नवालों की
अजब तक़दीर होती है ,इन स्वेटर और शालों की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मौसम के मुताबिक़ चलो

           मौसम के मुताबिक़ चलो

गर्मी में गोला  बर्फ का ,सर्दी में रेवड़ी ,
                           जो बेचते है ,साल भर उनकी कमाई है
सर्दी में शाल,कार्डिगन,गमी में स्लीवलेस ,
                             पहनावा पहने औरतें पड़ती दिखाई है
 गर्मी में ऐ सी ,कूलरों में आती नींद है ,
                             सर्दी में हमको ओढ़नी पड़ती  रजाई है
मौसम के मुताबिक़ ही बदलो अपनेआप को ,
                            इसमें ही सुख है ,फायदा,सबकी भलाई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'            

किस्मत -कुत्ते की

          किस्मत -कुत्ते की

हर कुत्ते की ऐसी किस्मत कब होती है ,
           कोई कोठी या बंगलें में पाला जाए
हो उसको नसीब सोहबत ऊंचे लोगों की,
          बिस्किट और दूध खाने को डाला जाए
जब जी चाहे प्यार दिखाए 'मेडम जी'कॉ ,
       जब जी चाहे उनके चरण कमल को चूमे 
नाजुक नाजुक प्यारे हाथ जिसे सहलाएं ,
       जब जी चाहे ,मेडम  की बाहों  में  झूमे
साहब को घर छोड़ ,सवेरे शाम प्रेम से ,
       घर की मेडम जिसे प्यार से हो टहलाती
उसके संग संग ,खेल खेल कर गेंदों वाला ,
       बड़े प्यार से हो अपने मन को बहलाती
जिसको घर के अंदर बाहर ,हर कोने में,
        हो स्वच्छंद विचरने की पूरी आजादी
जो मालिक के बैडरूम में और बिस्तर पर,
          प्रेमप्रदर्शन  करने का हो हरदम आदी
अगर अजनबी कोई जो घर में घुस जाए,
         भौंक भौंक कर ,वो उसका जी दहलाता हो
लेकिन एक इशारे पर मालिक के चुप हो,
          दुम को दबा  ,एक कोने में छुप जाता  हो
बाकी कुत्ते गलियों में घूमा करते है ,
          फेंकी रोटी खा कर पेट भरा  करते  है
उनका कोई ठौर ठिकाना ना होता है,
           आवारा से आपस में  झगड़ा करते है
 पर ये किस्मतवाला रहता बड़े शान से ,
              खुशबू वाले शेम्पू से नहलाया जाए
 हर कुत्ते की कब ऐसी किस्मत होती है ,
               कोई कोठी या बंगले में पाला जाए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                       
              

दास्ताने मोहब्बत

           दास्ताने मोहब्बत

चाहे पड़ा हो कितने ही पापड़ को बेलना ,
         कैसे भी खुद को,उनके लिए 'फिट 'दिखा दिया
मजनू कभी फरहाद कभी महिवाल बन ,
        हुस्नो अदा और इश्क़ पर ,मर मिट दिखा दिया
उनकी गली मोहल्ले के ,काटे कई चक्कर,
         चक्कर  में  उनके  डैडी  से भी पिट दिखा दिया 
देखी हमारी आशिक़ी ,वो मेहरबाँ हुए,
           नज़रें झुका  के  प्यार का 'परमिट'दिखा दिया
पहुंचे जो उनसे मिलने हम ,गलती से खाली हाथ,
          मच्छर समझ के हमको काला'हिट' दिखा दिया
दिल के हमारे  अरमाँ सब आंसूं में बह गए,
           'एंट्री' भी  ना  हुई  थी  कि ' एग्जिट' दिखा दिया 

 'मदन मोहन बाहेती'घोटू'             

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बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

  शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

इसने तो पिया था अमृत ,ये चाँद शरद का क्या जाने
होते है   कितने  दर्द  भरे, बुझते  दीयों के  अफ़साने
कहते है शरद पूर्णिमा पर ,चन्दा अमृत बरसाता है
अपनी सम्पूर्ण कलाओं पर ,इठलाता वह मुस्काता है
ये रूप देख उसका मादक ,मन विचलित सा हो जाता है
यमुना तट के उस महारास की यादों में खो जाता  है
उस मधुर चांदनी में शीतल,तन मन  हो जाता उन्मादा
याद आते  गोकुल,वृन्दावन ,आती है याद बहुत राधा
यूं ही हंस हंस कर रस बरसा,क्या जरूरत है तरसाने की
ये नहीं सोचता कान्हा की ,अब उमर न रास रचाने की
मदमाता मौसम उकसाता ,और चाह मिलन की जगती है
पर दम  न रहा अब साँसों में ,ढंग से न बांसुरी  बजती है
ये  चाँद पहुँच के बाहर है,फिर भी करता है बहुत दुखी
जैसे हमको ललचाती है ,पर घास न डाले  चन्द्रमुखी
वो यादें  मस्त  जवानी की ,लगती है मन को तड़फाने
इसने तो पिया था अमृत , ये चाँद  गगन का क्या जाने
होते   है   कितने  दर्द  भरे ,बुझते  दीयों  के  अफ़साने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

अजीब रिश्ते

        अजीब रिश्ते

ये रिश्ते भी ,कैसे अजीब होते है
पासवाले दूर ,और दूर वाले करीब होते है
माँ को अपने दामाद पर ,
बेटे से ज्यादा प्यार आता है
क्योंकि वह उसकी बेटी पर  ,
अपना जी भर के प्यार लुटाता है
और दामाद भी ,अपने माँ बाप से ज्यादा,
प्यार करता है अपने ससुर और सास से
जिन्होंने अपनी पाली पोसी बेटी ,
उसके हवाले करदी,उसके विश्वास पे
उसे पराये घर से आये ,
अपने दामाद की हर बात सुहाती है
लेकिन पराये घर से आयी ,
अपनी बहू में कई कमियां नज़र आती है
सोचती है कि बहू ने कुछ जादू टोना किया है
उससे उसका बेटा छीन लिया है
उसके मायके से आयी हर चीज लगती है ,
सस्ती और बेकार
उसको ताने मारे जाते है हर बार
और दामाद को ,बिठाया जाता है,पलकों पर
उसकी आवभगत में जुट जाता है सारा घर
वो तो क्या ,उसके घरवालो का भी ,
'वी आई पी ' की तरह होता है सत्कार
त्योंहारों पर उन्हें भेजे जाते है उपहार
ये उपहार या शादी में दिया हुआ दहेज ,
एक तरह की रिश्वत है ,जिसका मतलब साफ़ है
जरा ख्याल रखियेगा ,
हमारी फ़ाइल आपके पास है
लेकिन मेरी समझ में ये बात नहीं आये
बहू और दामाद के लिए ,
अलग अलग मापदंड क्यों जाते है अपनाये?
जिन्हे समझदार बहू औरअच्छा दामाद मिलता है ,
वो बड़े खुशनसीब होते है
ये रिश्ते भी अजीब होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर की शान-सपाट मैदान

      सर की शान-सपाट मैदान
 
काले काले घुंघराले बाल ,
जो हुआ करते थे कभी जिस सर की शान
वहां है आज एक सपाट मैदान
बढ़ती हुई उमर के साथ
अक्सर कई लोगों में होती है ये बात
सर होने लगता है सपाट 
याने क़ि हम दिखने लगते है खल्वाट
बचपन से कमाई हुई ,सर के बालों की दौलत ,
होने जब लगती है गायब
परेशान हो जाते  है सब
आदमी बेचारा रोता है
क्या आपने कभी सोचा है ,
ऐसा मर्दों के साथ ही क्यों होता है ?
क्या औरतों को कभी मर्दों की तरह ,
इस तरह टकले होते हुए देखा है
या मर्दों ने ही ले रखा इसका ठेका है
टकले होने के बतलाये जाते कई कारण है
संस्कृत में एक उक्ती है,
खल्वाट क्वचित ही होते निर्धन है
याने कि अधिकतर टकले होते है धनवान
लक्ष्मीजी उन पर होती है मेहरबान
दूसरा कारण ये कि कुछ समझदार मर्द,
दिमाग पर जोर डाल कर,ज्यादा सोचते है
और जब बात समझ में नहीं आती ,
तो खीज कर अपना सर नोचते है
हो सकता है इनमे से कोई बात ,
उनके सर के बाल उड़ाती है
पर मेरी समझ में तो तीसरी ही वजह आती है
आदमी शादी के बाद,
बीबी का गुलाम हो जाता है 
उसकी हर बात मानता है ,
उसके आगे सर नमाता है
और उसके आगे ,सर टेकते टेकते ,
हो जाता है उसका बुरा हाल
और उड़ने लगते है उसके सर के आगे के बाल
दफ्तर में भी ,वो बॉस के आगे सर रगड़ता है
तब ही तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता है
इसलिए धीरे धीरे ,सर के आगे का,
बीच का मैदान ,सपाट हो जाता है
सड़क की दोनों तरफ ,वृक्षों की तरह,
कुछ ही बाल उगे रहते है,
और आदमी खल्वाट हो जाता है
कुछ पुरुषार्थी लोगों के,
आगे के बाल तो ठीक रहते है ,
पर पीछे की चाँद निकल आती है
ये उनकी पत्नी के भाई के प्रति,
उनका प्रेम दिखलाती है
चाँद को बच्चे मामा कहते है ,
याने वो बीबी का भाई ,आपका साला है
उसके कारण ही ये गड़बड़ घोटाला है
आपको साले की सेवा करनी पड़ती है,
उसे आप सर पर बैठाते है
इसीलिए सर पर चाँद धरे नज़र आते है
और जिनके जीवन में बहुत सारे घपले होते है
अक्सर वो पूरे के पूरे टकले होते है
कुछ भी हो ,चमकती हुई टाँट के अपने ठाठ है ,
उससे व्यक्तित्व निराला होता है
अनुभवों की पाठशाला होता है
चेहरे पर गंभीरता ,ओढ़ी हुई नज़र आती है
पर जब लड़कियां ,उन्हें अंकल कहती है,
तो दिल पर सैकड़ों छुरियाँ चल जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

पटाया माँ को कैसे था

             पटाया माँ को कैसे था

थे छोटे हम ,पिताजी से ,डरा करते थे तब इतना ,
         कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था
और ये आज के बच्चे, हुए 'मॉडर्न' है  इतने ,
         पिता से पूछते है ,'मम्मी' को ,कैसे पटाया  था
न 'इंटरनेट'होता था,न ही 'व्हाट्सऐप'होता था,
         तो फिर मम्मी से तुम कैसे,कभी थे 'चेट' कर पाते
 सुना है उस जमाने में,शादी से पहले मिलने पर,
           बड़ा प्रतिबन्ध होता था,आप क्या 'डेट'पर जाते 
बड़े 'हेण्डसम 'अब भी हो,जवानी में लड़कियों पर,
           बड़ा ढाते सितम होगे,उस समय जब कंवारे थे
'फ्रेंकली'बात ये सच्ची ,बताना हमको डैडी जी ,
            माँ ने लाइन मारी थी ,या तुम लाइन मारे थे
 कहा डैडी ने ये हंस कर ,थे सीधे और पढ़ाकू हम,       
      कहाँ हमको थी ये फुरसत ,किसी लड़की को हम देखें
तुम्हारी माँ थी सीधी पर ,तुम्हारे 'नाना' चालू थे ,
              पटाया उनने 'दादा' को,'डोवरी 'मोटी  सी देके

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
                                    
         

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

रंग-ए-जिंदगानी: लघु-कथा - मजबूरी या समझदारी

रंग-ए-जिंदगानी: लघु-कथा - मजबूरी या समझदारी: शर्मा जी ने जब अपने बेटे राजेश से अपने खर्चे के सिए कुछ पैसे मांगे, तो राजेश नाक-भौं सिकोड़ने हुए बोला, “ पिताजी आपका क्या हैं ? आप तो ...

ऐसा क्यूँ होता है ?

        ऐसा क्यूँ होता है ?

मिलन के रात हो ,नींद नहीं आती है
पिया जब साथ हो,,नींद नहीं  आती है
खुशी की बात हो,नींद  नहीं   आती है
दुःख ,अवसाद हो ,नींद नहीं   आती है
पेट जब भूखा हो, नींद नहीं आती है
अधिक लिया खा हो,नींद नहीं आती है
हाल ,बदहाल  हो,नींद नहीं आती है
जमा खूब माल हो,नींद नहीं  आती है
आप परेशान हो,नींद नहीं आती है
सर्दी या जुकाम हो,नींद नहीं आती है 
बहुत अधिक गर्मी हो,नींद नहीं आती है
बहुत अधिक सर्दी हो ,नींद नहीं आती है
यदि निर्मल काया है,जी भर के सोता है
घर में ना माया है ,जी भर के सोता है
मेहनतकश थक जाता ,जी भी के सोता है
जब घोडा बिक जाता ,जी भर के सोता है
निपट जाती जब शादी,जी भर के सोता है
बिदा बेटी हो जाती ,जी भर के सोता  है
चिंता ना करता है,जी भर के  सोता है
या फिर जब मरता है,जी भर के सोता है
कई बार सोच सोच,'घोटू ' ना सोता है
 नींद नहीं आती है,ऐसा क्यूँ   होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संगत का असर

          संगत का असर

एक कथा ,आपने सुनी हो या ना सुनी,
फिर से सुनाता हूँ
संगत का असर कैसा होता है,
बतलाता हूँ
समुद्र मंथन के बाद जब अमृत निकला
उसे पाने को,
देवता और दानव में,आरम्भ हो गया झगड़ा
तब भगवान विष्णु ने ,मोहिनी रूप धार ,
अमृत बांटने का कार्य किया
तो एक असुर ने ,देवता की पंक्ती में घुस,
थोड़ा अमृत चख लिया
विष्णु जी को पता लगा तो,
सुदर्शन चक्र से काट दिया उसका सर
तब उसके गले में अटकी ,
अमृत की कुछ बूँदें ,गिर गई थी धरती पर
और जहां वो बूंदे गिरी थी,
वहां पर दो पौधे थे उग आये
जो बाद में लहसुन और प्याज कहलाये
दोनों में ही ,अमृत के गुण पाये जाते है,
और सबके लिए फायदेमंद है
पर क्योंकि ,राक्षस के साथ ,
 उनका सम्पर्क हो गया था ,
इसलिए आती उनमे दुर्गन्ध है
सम्पर्क का असर ,आदमी में,
गुण या अवगुण भर देता है,
अपना असर दिखलाता है
भगवान बुद्ध के सम्पर्क में आकर ,
डाकू अंगुलिमाल भी ,साधू बन जाता है
और 'रॉल्सरॉयल'भी ,
जब कीचड़ से गुजरती है
तो उसके पहियों में भी गंदगी लगती है
मिट्टीके ढेले पर भी ,जब गुलाब गिरता है ,
उसमे गुलाब की खुशबू आ जाती है
सज्जन की संगत ,
हमेशा आपको अच्छा बनाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रंग भेद

          रंग भेद

        मैं गेंहूँ वर्ण ,तुम हो सफेद
         हम   दोनों  में है  रंग भेद
मैं गेंहूँ सा ,तुम अक्षत सी ,
मैं पीसा जाता,तुम अक्षत
मैं रहता दबा कलश नीचे,
तुम रहती हो मस्तक पर सज
कुमकुम टीका लगता मस्तक
  उसपर  लगते अक्षत  दाने
 प्रभु की पूजा में अक्षत की 
 महिमा को हम सब पहचाने
चावल उबाल सब खा लेते ,
गेंहू को पिसना  पड़ता है
या फिर खाने में तब आता ,
जब उसका दलिया बनता है
गेंहू बनता हलवा प्रसाद,
चावल से खीर बना करती
जो हवन यज्ञ में,पूजन में ,
डिवॉन का भोग बना करती
चावल का स्वाद बढे दिन दिन,
जितनी है उसकी बढे उमर
 और साथ उमर के गेंहू में ,
पड़ने लगते है घुन अक्सर
चावल होते है देव भोज ,
गेंहू  गरीब  का  खाना है
दो रोटी खा कर भूख मिटे  ,
और पेट तभी भर जाना है
गेंहूँ  के ऊपर है दरार ,
वो इसिलिये क्षत होते है
तुम से सुंदर और चमकीले ,
चावल ही अक्षत होते है
पुत्रेष्ठी यज्ञ हुआ था और
परशाद खीर का खाया था
तब ही तो कौशल्या माँ ने ,
भगवान राम को जाया  था
चावल प्रतीक है समृद्धि का ,
धन धान्य इसलिए कहते है
है मिलनसार ,खिचड़ी बनते,
इडली , डोसे  में रहते है 
      चाहे बिरयानी या पुलाव,
      सब खुश हो जाते तुम्हे देख
      मैं गेंहूँ वर्ण,तम हो सफेद
       हम दोनों में है रंग भेद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

जय जय आरक्षण

       जय जय आरक्षण

आरक्षण महाराज ,आपकी महिमा न्यारी ,
             तुमने मेरी सात सात पुश्तों को तारा
तुम्हारे ही बल पर मैं सत्ता में आया,
           आज हो रहा है लाखों का वारा ,न्यारा
तुम ना थे तो कोई नहीं पूछता हमको,
           निम्न वर्ग के हम सेवक माने जाते थे     
ब्राह्मण,बनिए और क्षत्रिय राज्य करते थे ,
          हम पिछड़े थे और क्षुद्र बस कहलाते थे         
लेकिन जब से आरक्षण वरदान मिला है,
                तब से ही हो रहे हमारे ,वारे न्यारे
भले हमारा शिक्षण और योग्यता कम हो,
               सरकारी पद ,आरक्षित है,लिए हमारे
 आरक्षण है नहीं सिरफ़ भरती में हमको,
             आरक्षण का हक है हमे प्रमोशन में भी
बहुत बड़ी हम वोट बैंक है इसीलिये तो,
              कई चुनावी  सीटें  है ,आरक्षण में भी
आरक्षण के देख इस तरह कई फायदे ,
           उच्चवर्ग भी आज चाह  रहा आरक्षण है
आज दलित बनने को वो सब भी आतुर है ,
      जिनने बरसों तक दलितों का किया दलन है
आरक्षित वर्गों के भी अब कई वर्ग है ,
       सबके लिए सुरक्षित ,प्रतिशत भांति भांति
कोई दलित,महादलित,कोई बैकवर्ड है,
           कोई अल्पसंख्यक है,तो कोई जनजाति
सबसे ज्यादा मज़ा उठती क्रीमी लेयर ,
             लाखों और करोड़ों में जो खेल रही है    
 लेकिन कितनी दलित अल्पसंख्यक जनता है,
        अब भी वो की वो ही मुसीबत झेल रही है
आरक्षण से क्षरण हो रहा प्रतिभाओं का,
         आगे बढ़ने से ,अगड़े ना रोके जाएँ
साथ साथ सब दौड़ें ,जो भी अव्वल आये,
        उसको ही पारितोषिक से बक्शा  जाए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                          



                              

हमवतनो से

       हमवतनो से

यह कह कर वो मुसलमान ,तू हिन्दू है
मारकाट कर ,झगड़ रहा आपस में तू है
गाय और सुवर के चक्कर में पड़ कर के,
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ  है
नेता लोग रोटियां अपनी सेक रहे है
और पड़ोसी ,चटखारे ले देख रहे है
साथ साथ कितने वर्षों से रहते आये,
भाई भाई से,हिन्दू मुस्लिम एक रहे है
कुछ भी दे दो नाम,राम हो चाहे अल्लाह ,
परमपिता वो ऊपरवाला ,एक प्रभू  है
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ  है
मंदिर हो ,मस्जिद हो चाहे हो गुरद्वारे
पूजा के स्थल ,ईश्वर के घर है सारे 
अपने अपने धर्म ,आस्था अपनी अपनी ,
मिलजुल रहते,आपस में थे भाईचारे
नाम धरम का लेकर के,तुमको लड़वाकर ,
नेता लोग कर रहे सीधा निज उल्लू है 
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ है 
हम सब भाई भाई से है,ईश्वर के बन्दे
झगड़ रहे आपस में हो नफरत में अंधे
गोटी हमको बना ,सियासी खेल खेलते ,
ये सब तो है  नेताओं के गोरख धंधे
इनके बहकावे ना आये,एक रहे हम,
एक तरह का लाल ,तुम्हारा ,मेरा खूं है
आपस में इतनी नफरत फैलाई क्यूँ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हमवतनो से

       हमवतनो से

यह कह कर वो मुसलमान ,तू हिन्दू है
मारकाट कर ,झगड़ रहा आपस में तू है
गाय और सुवर के चक्कर में पड़ कर के,
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ  है
नेता लोग रोटियां अपनी सेक रहे है
और पड़ोसी ,चटखारे ले देख रहे है
साथ साथ कितने वर्षों से रहते आये,
भाई भाई से,हिन्दू मुस्लिम एक रहे है
कुछ भी दे दो नाम,राम हो चाहे अल्लाह ,
परमपिता वो ऊपरवाला ,एक प्रभू  है
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ  है
मंदिर हो ,मस्जिद हो चाहे हो गुरद्वारे
पूजा के स्थल ,ईश्वर के घर है सारे 
अपने अपने धर्म ,आस्था अपनी अपनी ,
मिलजुल रहते,आपस में थे भाईचारे
नेता उल्लू साध रहे तुमको लड़वाकर ,
एक तरह का लाल ,तुम्हारा ,मेरा खूं है
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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