एक सन्देश-

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बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

लालू उचाव

         लालू उचाव

मैं ग्वाला,मैंने सत्ता को खूब दुहा है ,
मैं चरवाहा ,मैंने सबको खूब चराया
पशु चरने को घास जंगलों में जाते है,
मेरा राज,इसलिए जंगलराज कहाया
चारा खाकर ,पशु दूध ज्यादा देते है ,
मैंने जमकर चारा खाया इतने सालो
अब मै बूढी भैंस हो गया,दूध न देता,
इसका मतलब नहीं मुझे तुम घास न डालो
अब मेरी औलादें है तैयार हो गयी ,
खूब चरेंगी,और दूध भी  देंगी  ज्यादा
उन्हें वोट का चारा डालो और जितादो ,
दूध मिलेगा तुमको, ये है  मेरा  वादा

घोटू  

जीवन यात्रा

           जीवन यात्रा

जीवन पथ पर तुमको बढ़ते ही जाना है,
ध्येय तुम्हारा अपनी मंजिल को पाना है
बाधाएं कितनी ही आ ,रोकेगी  रस्ता ,
धीरज रख तुमको उनसे ना घबराना है
तुम चुपचाप सड़क पर सीधे जाते होगे ,
तीव्र गति से पास कोई वाहन गुजरेगा
उसके पहिये से गड्ढे में पड़ा हुआ जो,
गंदा और ढेर सारा कीचड़ उछलेगा
और उसके कुछ छींटे ,जाने अनजाने ही ,
तुम्हारे उजले कपड़े ,गंदे  कर देंगे
इस जीवन में ऐसे कई हादसे होंगे ,
तुमको यूं ही परेशान कर,दुःख भर देंगे
इसका मतलब नहीं सड़क से तुम ना गुजरो,
 जीवनपथ लोग कई लोग धोखा करते है
हाथी जब भी चलता शान और मस्ती से,
तो सड़कों पर कुछ कुत्ते भौंका करते है
ये दुनिया है,कुछ ना कुछ होता रहता है,
कई तरह के अच्छे बुरे  लोग मिलते है
किन्तु सबर का फल हरदम मीठा होता है ,
जब मौैसम आता है ,फूल  तभी खिलते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लेंग्वेज प्रॉब्लम

         लेंग्वेज प्रॉब्लम

मेरे मित्र मुसद्दीलाल ,
जो कुछ दिन पहले ही हुए थे स्वर्गवासी
कल मेरे सपने में आये,चेहरे पर थी उदासी
हमने कहा यार ,
तुम तो स्वर्ग में रहे हो मज़े मार
तो फिर क्यों चेहरा ग़मगीन है
वो बोले यार,
वैसे तो स्वर्ग का माहौल बड़ा हसीन है
अप्सराएं भी आसपास डोलती है
पर मेरी समझ में कुछ नहीं आता ,
वो न जाने कौनसी भाषा बोलती है
पंडित जी मुझे बड़ा मूरख बनाया है
स्वर्ग आने का रास्ता तो बतलाया है
पर यहाँ की भाषा नहीं सिखलाई
इसलिए यहां ,
बड़ा 'कम्युनिकेशन गेप' है मेरे भाई
यहां के फ़रिश्ते और अप्सराएं
एक अलग ही भाषा में बोलें और गाये
जो हमारी समझ में बिलकुल नहीं पड़ता है
वैसे  यहाँ भी,लोकल और 'ऑउटसाइडर'का,
काफी 'पॉलिटिक्स' चलता है
धरती से जब भी कोई आता है
उसे किसी अनजान भाषा बोलने वाले ,
अजनबी के साथ ठहराया जाता है
जिससे आपस में कोई बातचीत नहीं हो पाती  है
थोड़ी शांती तो रहती है ,पर इस माहौल में,
अपनी तो तबियत घबराती है
सोमरस पियो और पड़े रहो
यार ये भी कोई लाइफ है,तुम्ही कहो
न गपशप ,न नोकझोंक,
 न व्हाट्सऐप ,न इंटरनेट
न फेसबुक ,न टी वी,
कोई क्या करे दिन भर यूं ही बैठ   
निर्धारित समय पर ,
कुछ देर के लिए ,अप्सराएं तो आती  है
थोड़ा मन बहलाती है
पर न हम कुछ कह पाते है
न उनकी समझ में कुछ आता है
और इतनी देर में ,उनका हमारे लिए ,
'अलोटेड 'टाइम भी खतम हो जाता है
भैया,इससे तो अपनी धरती की लाइफ ,
ही बड़ी अच्छी थी
गपसप होती रहती थी,मौजमस्ती थी
यहाँ पर आकर तो हम एक दम ,
 बड़े डिसिप्लीन में बंध  गए है
यार,कहाँ  आकर  फंस गए है ?


मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हम तुम -संग संग

    हम तुम -संग संग

मैं  काहे  कोठी, बंगला लूँ ,
या फ्लेट कहीं बुक करवालूँ
मेरे रहने को तेरे दिल का एक कोना ही काफी है
क्यों चाट पकोड़ी  मैं खाऊँ
'डोमिनो' पिज़ा  मंगवाऊँ
मेरे खाने को तुम्हारी ,मीठी सी झिड़की काफी है
क्यों पियूं कोई शरबत,पेप्सी
बीयर ,दारू  या  फिर  लस्सी
मेरे पीने को तुम्हारा ,ये रूप, प्रेम रस  काफी है
मैं तेरे  दिल में बस जाऊं
और नैनों में तुम्हे बसाऊं 
खुदमें खुद बस कर मुझे मिले,संग तुम्हारा काफी है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

बड़े कैसे बनते हैं

        बड़े कैसे बनते हैं

सबसे पहले अपनी दाल गलानी पड़ती ,
           और फिर मेहनत करना और पिसना पड़ता है
दुनियादारी की कढ़ाई के गरम तेल में,
               धीरे  धीरे  फिर  हमको  तलना  पड़ता  है
फिर जाकर मिलती है कुछ पानी की ठंडक,
            उसमे से भी  निकल, निचुड़ना फिर पड़ता  है
 तब मिलती है हमे दही की क्रीमी लेयर ,
               मीठी  चटनी  और  मसाला  भी  पड़ता  है
जीवन में कितनी ही मेहनत करनी पड़ती ,
                 तब जाकर के कहीं बड़े हम बन पाते है
कोई दहीबड़े कहता है कोई भल्ले ,
                      और  हमारे  बल्ले बल्ल हो जाते है
  
मदन मोहन बाहेती'घोटू'                     
                 
  
              
                 
  
              

गुल और गुलगुले

          गुल और गुलगुले

मित्र हमारे पहुंचे पंडित ,हमने पूछा ,
          है परहेज गुलगुलों से,गुड खाते रहते
मुंह में राम,बगल में छूरी क्यों रखते हो,
          छप्पन छुरियों के संग रास रचाते रहते
बन कर बगुला भगत ढूंढते तुम शिकार हो,
          कथनी और करनी में हो अंतर दिखलाते
सारे नियम आचरण लागू है भक्तों पर ,
         प्याज नहीं खाते पर रिश्वत  जम  कर खाते
उत्तर दिया मित्र ने हमको,कुटिल हंसी हंस ,
           है  परहेज  गुलगुलों से, पर  नहीं  गुलों  से
प्रभू की सुंदर कृतियों का यदि सुख हम भोगें ,
           जीवन का रस पियें ,कोई क्यों हमको कोसे
प्याज अगर खाएं तो मुख से आये बदबू ,
           प्याज खाई है,ये जग जाहिर हो जाता  है
रिश्वत की ना कोई खुशबू या बदबू है,
           पता किसी को इसीलिये ना  चल पाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

नदिया और जीवन

  नदिया और जीवन
         
मैं ,बचपन में थी उच्श्रृंखल
बच्चों सी ,चंचल और चपल 
पर्वतों से उतरते हुए ,
कुलांछे भरते हुए ,
जब जवानी के मैदानी इलाके में आई  ,
इतराई
मेरी छाती चौड़ी होने लगी
और मैं कल कल करती हुई,
मंथर गति से बहने लगी
मेरी जीवन यात्रा इतनी सुगम नहीं थी
मेरे प्रवाह में कई मोड़ आये
कभी ढलान के हिसाब से बही ,
कभी कटाव काट कर,
अपने रस्ते खुद बनाये
लोगों ने मुझे बाँधा ,
मुझ पर बाँध बनाया
मुझसे ऊर्जा ली ,
नहरों से मेरा नीर चुराया
 मेंरे आसपास ,अपना ठिकाना बनाया
मेरी छाती पर चढ़,
अपनी नैया को पार लगाया
किसी ने दीपदान कर ,
मुझे रोशन किया
किसी ने अपना सारा कचरा ,
मुझमे बहा दिया
कभी बादलों  ने ,अपना नीर मुझ में उंढेला
मैंने झेला ,
मुझे बड़ा क्रोध भी आया
मैंने क्रोध की बाढ़ में ,कितनो को ही बहाया
मुझे पश्चाताप हुआ,मैं शांत हुई
 और फिर आगे बढ़ती गयी
राह में कुछ मित्रों ने हाथ मिलाया
मेरे हमसफ़र बने
मेरी सहनशीलता और मिलनसारिता ,
मेरी विशालता का   सहारा बने
आज मैं ,विशाल सी धारा के रूप में,
बाहर से शांत बहती हुई दिखती हूँ
पर मेरे अंतर्मन में ,है बड़ी हलचल
क्योंकि महासागर में,विलीन होने का ,
आनेवाला है पल
आज नहीं  तो कल

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



 

बचत के रोमांटिक तरीके

        बचत के रोमांटिक तरीके

मंहगाई बढ़ रही हमें कुछ करना होगा ,
ऐसा जिससे मज़ा उठायें  मंहगाई का,
रोमांटिक ढंग से यदि थोड़ी बचत करें तो ,
          मंहगाई की चुभन  नहीं   तड़फ़ा पायेगी
तुम परफ्यूम लगाओ,तुम्हे बांह में ,मैं लूँ ,
तो  मुझ में भी आयेगी तुम्हारी  खुशबू ,
इससे परफ्यूमो का खर्चा घट  जाएगा ,
          हम दोनों में एक जैसी खुशबू आएगी
मेरी बढ़ी हुई दाढ़ी जब चुभती तुमकों ,
तुम्हे  सुहाती है ये हरकत मर्दों वाली ,
मैं दाढ़ी के बाल बढ़ा कर तुम्हे चुभाऊँ ,
          शेविंग क्रीम ,ब्लेड की लागत कम आएगी
बाथरूम में एक तौलिया सिरफ रखेंगे ,
तुम पहले नहा लेना ,अपना बदन पोंछना ,
फिर नहाऊंगा मैं ,और उससे  तन पोंछूँगा ,
                   मुझमे भी तुम्हारी रंगत आ जाएगी    
 दालें मंहगी ,पतली दाल बनाया करना ,
एक थाली में साथ बैठ ,हम तुम खांयेंगे ,
इससे प्यार बढ़ेगा ,बरतन भी कम होंगे,
        विम की टिकिया ,ज्यादा दिन तक चल पाएगी
जब भी मैं मांगूं मिठाई ,तुम मीठी पप्पी,
दे  दे  कर , मेरे मन को  बहलाती रहना ,
इससे डाइबिटीज का खतरा भी न रहेगा,
         खर्चा भी कम ,अच्छी सेहत हो जाएगी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
         
         

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी

कलम उठा जब लिखने बैठा,
बाॅस का तब आ गया फोन;
बाकि सारे काम हैं पड़े,
तू नहीं तो करेगा कौन ?

भाग-दौड़ फिर शुरु हो गई,
पीछे कोई ज्यों लिए छड़ी;
शब्द अंदर ही घुट से गए,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

घर बैठ आराम से चलो,
कुछ न कुछ लिख जायेगा;
घरवाली तब पुछ ये पड़ी,
कब राशन-पानी आयेगा ?

फिर दौड़ना शुरु हुआ तब,
काम पे काम की लगी झड़ी;
जगे शब्द फिर सुप्त पड़ गए,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

काम खतम सब करके बैठा,
शब्द उमड़ते उनको नापा;
लगा सहेजने शब्दों को जब,
बिटिया बोली खेलो पापा ।

ये काम भी था ही निभाना,
रही रचना बिन रची पड़ी;
जिम्मेदारी और भाग दौड़ मे,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

देर रात अब चहुँ ओर शांति,
अब कुछ न कुछ रच ही दूँ,
निद्रा देवी तब आकर बोली,
गोद में आ सर रख भी दूँ ।

सो गया मैं, सो गई भावना,
रचनामत्कता सुन्न रही खड़ी;
आँख तरेरते शब्द हैं घूरते,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

हर दिन की है एक कहानी,
जीवन का यही किस्सा है;
अंदर का कवि अंदर ही है,
वह भाग-दौड़ का हिस्सा है ।

जिम्मेदारी के बोझ के तले,
दबी है कविता बड़ी-बड़ी;
काम सँवारता चला हूँ लेकिन,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी ।

शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

काजल

        काजल

गौरी का गोरापन ही नहीं,
काजल की कालिख के बारे में भी ,
बहुत कुछ कहा जाता है
काजल ,सौ बार धोने  पर भी,
सफेद नहीं हो पाता है
काजल सी कालिख ,
मुंह पर जब पुत जाती है
बहुत बुरी लगती है
उसी काजल की धार,
अपनी आँखों पर लगा कर गौरी ,
छप्पनछुरी लगती है
लाडले बच्चे के माथे पर,
काजल का बिठौना ,
बुरी नज़र से बचा लेता है
और गौरी की आँखों का ,
फैला हुआ कजरा ,
उसकी बीती रात का ,
अफ़साना बता देता है
लोग  अंधियारे का भी, मज़ा ऐसे लेते है
मिलन की रात में ,दीपक बुझा देते है
ये दीपक ,जब बुझता है ,तो भी सताता है
और जलता है ,तो भी सताता है
जलते दीपक की बाती  का धुँवा ,
काजल बनाता है
और वो काजल जब उनकी आँखों में अंजता है
कितने ही दिलों को घायल  करता है
औरतों के सोलह सिंगार
में एक होती है कजरे की धार
जो करती है सबको बेकरार
इसलिए काजल की मार से डरिये
ये दुनिया काजल की कोठरी है ,
कहीं तुम पर काजल की कोई लीक न लग जाए ,
जरा सम्भल कर चलिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पक्षपात -प्रेमघात

                    पक्षपात -प्रेमघात
                      
तुम हो उजली शुक्ल पक्ष सी ,मै हूँ कृष्णपक्ष सा काला
तुम सत्ता में,मैं विपक्ष  में ,घर पर चलता  राज तुम्हारा
मुझे नचाती ही रहती हो ,अपने एक इशारे पर तुम,
मैं बेबस और परेशान हूँ ,मैं  हूँ पक्षपात  का  मारा 
                          
जैसे श्राद्ध पक्ष में पंडित,  न्योता खाना नहीं छोड़ते
सरकारी दफ्तर के बाबू, रिश्वत   पाना  नहीं छोड़ते
वैसे तुम मुझे रिझाते, दिखा दिखा कर अपना जलवा,
औरफिर छिटक छिटक जाते हो,मुझे सताना नहीं छोड़ते

होता जब मौसम चुनाव का ,वोटर तब पूजे जाते है
श्राद्धपक्ष में पंडित ही क्या,कौवे भी दावत खाते है
तुम्हे पूजता हूँ मै हरदम ,चाहे कोई भी हो मौसम ,
फिर भी घास न डालो मुझको,कितना आप भाव खाते है    

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                         
                         


     
             

मौत

        मौत

कलावे हाथों में अपने,भले कितने भी बँधवालो
कई ताबीज और गंडे ,गले में अपने लटकालो
उसे जिस रोज आना है ,वो आ ले जाएगी तुमको,
करो तीर्थ ,बरत कितने,टोटके  लाख   करवा लो 

घोटू

बहू ससुर संवाद

         बहू ससुर संवाद

सवेरे घूमते हो तुम ,रोज व्यायाम करते हो
विटामिन गोलियां कहते,फलों से पेट भरते हो
बहू बोली ससुर से तुम,प्रभू को पूजते हरदम,
वो तुमको याद ना करता,तुम जिसको याद करते हो
ससुर जी बोले यूं हंसकर,ये उसकी मेहरबानी है
उमर बोनस में उसने दी,हमें हंस कर बितानी है
परेशां व्यर्थ होती हो,करेगा याद जब भी वो,
हमारी सारी धनदौलत ,तुम्हारे पास आनी है

घोटू

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

अपनी अपनी किस्मत

         अपनी अपनी किस्मत

यूं ही पेड़ पर कच्चा झड़ जाता है कोई
कोई पक जाता तो सड़  जाता है कोई
कोई बेचारे का बन जाता  अचार है,
होता है रसहीन ,निचुड़  जाता है कोई
होता कोई स्वाद और बेस्वाद कोई है,
कोई किसी को भाता और कोई ना भाता
हर एक फल की कब होती ऐसी किस्मत है,
साथ उमर के वह सूखा  मेवा बन जाता
      कोई फूल डाल  पर बैठा इठलाता  है 
     कोई निज खुशबू से बगिया महकाता है
     कोई प्रभु पर चढ़ता ,कोई लाश पर चढ़ता , 
     कोई पंखुड़ी पंखुड़ी कर के खिर  जाता है  
         कोई सजता सेहरे या सुहाग सेज पर  ,
        और भोर तक,दबा हुआ, है कुम्हला जाता
       हरेक फूल की किस्मत कब होती गुलाब सी ,
       मिश्री संग मिल,बन गुलकंद ,सभी मन भाता
        हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
           साथ उमर के वह सूखा मेवा  बन जाता   
कोई की औलाद निकम्मी है नाकाबिल
लायक कोई होती,कर लेती सब हासिल
कोई की औलाद न पूछे मातपिता को,
तिरस्कार करती है और जलाती है दिल
कितने ही माबाप यूं ही घुट घुट कर जीते ,
और किन्ही को बेटा ,सर आँखों बैठाता 
कब होती सबके नसीब में वो औलादें ,
जिनसे उनका नाम और यश है बढ़ जाता
हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
साथ उमर के ,वह सूखा  मेवा बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जाने क्यूँ है ऐसा होता ?

     जाने क्यूँ है ऐसा होता ?

कुछ करने को मन ना करता ,
मन करता  ,हिम्मत ना होती  ,
हिम्मत होती ,थक जाता हूँ,
परेशान फिर मन है  रोता
                जाने क्यूँ है  ऐसा होता?
जी  ये करता , थोड़ा टहलूं
सुनु किसी की,अपनी कहलूं 
हंसलूँ  मैं भी मार ठहाका,
कल कल कर नदिया सा बहलूं
    घर से निकल न पाता पर बस
    कुछ करने में आता  आलस
    हो ना पाता मैं  टस  से  मस
            और मेरा धीरज है खोता 
              जाने क्यूँ है ऐसा होता?  
मन खोया रहता यादों में
डूबा रहता  अवसादों में
करवट यूं ही बदलता रहता,
नींद नहीं आती  रातों में
      जी न करे खाने पीने का
      मज़ा गया सारा जीने का  
      छुपा दर्द मेरे सीने  का ,
       आंसूं बन है मुझे भिगोता
         जाने क्यूँ है  ऐसा होता  ?
दिन दिन  बढ़ती हुई उमर है
क्या ये उसका हुआ असर है
दिन भर खोया खोया रहता,
चैन नहीं मुझको पल दो पल है
         कोई भी मन ना बहलाता
        कोई प्यार से ना सहलाता 
         भूल गए सब रिश्ता ,नाता
               यही सोच कर मन है रोता
                  जाने क्यों है ऐसा  होता  ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आशिकाना मिजाज -बचपन से

      आशिकाना मिजाज -बचपन से

पैदा होते ही पकड ली थी नर्स की ऊँगली ,
      और फिर बाहों में उसने हमे झुलाया था
कोई आ  नर्स बदलती थी हमारी नैप्पी ,
     गोद में ले के ,बड़े प्यार से खिलाया था
हम मचलते थे ,कोई देखने जब आती थी,
       बाहों में हमको भर के ,सीने से लगाती थी
हमारे घर के आजू बाजू की हसीनाएं ,
       आती जाती  हमारे गाल चूम जाती   थी
बीज जो आशिक़ी के पड़ गए थे बचपन में ,
      फसल को अच्छी बन के फिर तो उग ही आना है
बताएं आपको क्या ,ये मगर हक़ीक़त है,
      अपना मिजाज तो बचपन से आशिकाना  है 

घोटू

जीवन चुनाव

           जीवन चुनाव

ये जीवन क्या ,ये जीवन तो एक चुनाव है ,
        इसमें हम तुम ,और कितने ही प्रत्याशी है
इसमें कोई तो है झगड़ालू प्रकृति  वाला,
        तो कोई ,सीधासादा  और मृदुभाषी   है
सबसे पहले अपने इस जीवन चुनाव में ,
        अच्छा क्या है और बुरा क्या चुनना होगा
केवल अपनी ही हाँकोगे ,नहीं चलेगा ,
        बात दूसरों की भी तुमको  सुनना  होगा
तुम्हारा 'मेनिफेस्टो',क्या है ,कैसा है ,
        सोच समझ कर तुमको इसे बनाना होगा
हो सकता है ,बहुत विरोध तुम्हे मिल जाए ,
        विपदाओं से ,बिलकुल ना घबराना  होगा
अगर जीतना है तुमको यदि इस चुनाव में ,
         और नाव है यदि जो अपनी पार लगानी
कितना भी मिल जाय तुम्हे मौसम तूफानी,
          धीरज अगर धरोगे तो होगी  आसानी
कितने ही लालू ,तुमको आ गाली देंगे,
         कितने ही पप्पू ,विरोध आ, जतलायेंगे
लोग मिलेंगे ऐसे भी तुम्हारे बन कर,
         छेद  करें  उस   थाली में ,जिसमे खाएंगे
लेकिन ये सब एक हक़ीक़त है जीवन की,
         उतर अखाड़े में ,मलयुद्ध ,तुम्हे है लड़ना  
सिर्फ शक्ति ही नहीं ,युक्ति भी काम आएगी ,
         सीख दूसरों के अनुभव से होगा  चलना
 आलोचक भी कई मिलेंगे ,यदि जो तुमको ,
           कई चाहने वाले भी तो  मिल जाएंगे         
उनका सब सहयोग भुनाना होगा तुमको,
          इस चुनाव को तब ही आप जीत पाएंगे
और जीत के बाद बहुत रस्ता मुश्किल है,
         वादे जितने किये ,निभाने  होंगे  सारे    
इसीलिए ,ये उचित करो तुम वो ही वादे ,
         जिनको पूरा करना हो बस में तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गौमाता और मातापिता

         गौमाता और मातापिता

बचपन से अब तक तुमको, दूध पिलाया,पोसा,पाला
दूध हमारा ही पी पी कर ,हुआ हृष्ट पुष्ट ,बदन तुम्हारा
जब तक देती रही दूध हम,गौमाता कह,चारा डाला
दूध हमारा बंद हुआ तो, हमको भेज दिया  गौशाला
हम पशु है पर संग हमारे ,क्या ये अत्याचार नहीं है
हम क्या,अपने मातपिता संग,तुम्हारा व्यवहार यही है
जिनने खून पसीना देकर ,तुम्हे बनाया इतना काबिल
तिरस्कार करते हो उनका ,उनसे सब कुछ करके हासिल
तुमको लेकरउनने मन में ,क्या क्या थे अरमान जगाये
अपने पैरों खड़े क्या हुए ,वो लगते अब तुम्हे पराये
बहुत दुखी,पछताते होंगे,और सोचते होंगे मन में
निश्चित ही कुछ कमी रह गयी ,उनके ही लालन पालन में
दुर्व्यवहार देख तुम्हारा , डूबे रहते होंगे गम में
हमको भेजा गौशाला ,उनको भेजोगे  वृद्धाश्रम में

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

दीवानगी -तब भी और अब भी

           दीवानगी -तब भी और अब भी

गुलाबी गाल चिकने थे,नज़र जिन पर फिसलती थी,
        अब उनके गाल पर कुछ पड़ गए है,झुर्रियों के सल
इसलिए देखता जब हूँ ,नज़र उन पर टिकी रहती ,
        फिसल अब वो नहीं पाती ,अटक जाती है झुर्री  पर
गजब का हुस्न था उनका ,और जलवा भी निराला था,
        तरस जाते थे दरशन को,देख तबियत मचलती थी
हुई गजगामिनी है वो ,हिरण सी चाल थी जिनकी ,
       ठिठक कर लोग थमते थे ,ठुमक कर जब वो चलती थी
जवानी में गधी  पर भी ,सुना है नूर चढ़ता है,
        असल वो हुस्न ,जो ढाता ,बुढ़ापे में ,क़यामत  है
हम तब भी थे और अब भी है ,दीवाने उनके उतने ही,
      आज भी उनसे करते हम,तहेदिल से मोहब्बत  है
आज भी सज संवर कर वो,गिराती बिजलियाँ हम पर ,
      उमर के साथ ,चेहरे पर ,चढ़ा अनुभव का पानी है
जानती है ,किसे घायल ,करेंगे तीर नज़रों के ,
       उन्हें मालूम ,किस पर कब,कहाँ बिजली गिरानी है
उमर के संग बदल जाता, नज़रिया आदमी का है ,
       उमर  बढ़ती तो आपस में ,दिलों का प्यार है बढ़ता
बुढ़ापे में ,पति पत्नी,बहुत नज़दीक आ जाते ,
          समर्पित ,एक दूजे पर ,बढ़ा करती है निर्भरता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मैं और तू

                 मैं और तू

तू है मेरे साथ सफर में ,मुश्किल आये ,फ़िक्र नहीं है 
मेरी जीवन कथा अधूरी ,जिसमे तेरा  जिक्र  नहीं है
तेरी बाहें  थाम, कोई भी दुर्गम रस्ता कट जाएगा
जीवनपथ में ,कहीं कोई भी ,संकट आये,हट जाएगा
हम तुम दोनों,एक सिक्के के,दो पहलू है,चित और पट है 
दोनों एक दूजे से बढ़ कर ,कोई नहीं किसी से घट  है
जब भी मुश्किल आयी ,तूने,दिया सहारा,मुझे संभाला
मेरी अंधियारी रातों में ,तू दीपक बन ,करे उजाला
हम तुम,तुम हम,संग है हरदम ,एक दूजे के बन कर साथी
तू है चंदन ,मै हूँ पानी,मैं  हूँ  दीया  , तू  है  बाती
तू है चाँद,तू ही है सूरज,आलोकित दिन रात कर रही
बन कर प्यार भरी बदली तू,खुशियों की बरसात कर रही
तू है सरिता ,संबंधों की ,सदभावों का ,तू  है निर्झर
तू पर्वत सी अडिग प्रेमिका ,भरा हुआ तू प्रेम सरोवर
तू तो है करुणा का सागर ,प्रेम नीर छलकाती गागर
सच्ची जीवनसाथी बन कर ,जिसने जीवन किया उजागर
ममता भरी हुई तू लोरी,जीवन का संगीत सुहाना
तू है प्यार भरी एक थपकी,सुख देती,बन कर सिरहाना
तू सेवा की परिभाषा है , तू जीवन की अभिलाषा है
बिन बोले सब कुछ कह देती,तू वो मौन ,मुखर भाषा है
तू क्या क्या है,मै  क्या बोलूं ,तू ही तो सबकुछ है मेरी
तूने ही आकर  चमकाई,जगमग जगमग रात अंधेरी
तू है एक महकती बगिया ,फूल खिल रहे जहां प्यार के  
तेरे साथ ,हरेक मौसम में ,झोंके बासंती  बहार  के
दिन दूना और रात चौगुना ,साथ उमर के प्यार बढ़ रहा
तेरा रूप निखरता हर दिन ,अनुभव का है रंग चढ़ रहा
एक दूजे के लिए बने हम,हममे ,तुममे अमर प्रेम है
जब तक हम दोनों संग संग है ,इस जीवन में कुशल क्षेम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन दर्शन

                 जीवन दर्शन

  ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
अपनी गुजर चलाने घर में ,काफी चना चबेना है
  कोई मिलता 'हाई हेलो' ना ,राम राम कह देते है
उनका अभिवादन भी करते,राम नाम ले लेते है
यूं ही किसी की  तीन पांच में ,काहे बीच में पड़ना है
अच्छा मरना ,याने सु मरना ,हरी का नाम सुमरना है 
इस जीवन के भवसागर में,अपनी नैया खेना है
ना ऊधो का कुछ लेना है,ना माधो  का देना है
ऐसे करें आचरण हम जो ,सभी जनो को सुख दे दे
ऐसी बात न मुख से निकले ,जो कोई को दुःख दे दे
बहुत किया अपनों  हित,अब तो अपने हित भी कुछ कर लें
दीन  दुखी की सेवा करके ,पुण्यों से झोली भर लें
अब तो प्रभु के दरशन करने,आकुल,व्याकुल नैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
फंस माया में ,किया नहीं कुछ,हमने इतने सालों में
कब तक उलझे यूं ही रहेंगे,जीवन के जंजालों में
जितने भी है रिश्ते नाते,सब मतलब की है यारी
आये खाली हाथ , जाएंगे, हाथ रहेगें  तब खाली
तन का पिंजरा तोड़ उड़ेगी ,एक दिन मन की मैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

आरक्षण का भूत

          आरक्षण  का भूत

देश में हर तरफ ,
जिधर देखो उधर ,हो रहे है आंदोलन
हर कोई चाहता है ,सरकारी नौकरी में,
उसे भी मिल जाए आरक्षण
और तो और वो कौमे भी ,
जो करती थी ,दलितों का दलन
आज उनके समकक्ष होने के लिए ,
कर रही है आंदोलन
क्योंकि आजकल कई जगह ,
सत्तर प्रतिशत से भी ज्यादा ,सरकारी नौकरियां ,
विभिन्न जाति के लोगों के लिए आरक्षित है ,
इससे सवर्ण त्रसित है
और अब पिछड़ी नहीं,अगड़ी जाति के लोग,
सबसे ज्यादा शोषित है
इनके प्रतिभाशाली  बच्चे ,
अच्छे कॉलेजों में एडमिशन नहीं पाते है
क्योंकि आरक्षण की वजह से ,
घोड़ों की दौड़ में ,गधे घुस जाते है
इस चक्कर में  ,
प्रतिभाशाली  छात्र छले जाते है
और कुछ तो इसीलिये ,आगे की पढ़ाई के लिए ,
 विदेश चले जाते है
कुछ तो विदेशों की व्यवस्था और वैभव देख कर
वहीँ बस जाते है,नहीं आते लौट कर
और बाकी जो लौट कर आते है
अपनी काबलियत और विदेशी डिग्री के कारण ,
यहाँ भी खूब कमाते है
कोई इंजीनियर बना तो उद्योग लगाता है
देश को प्रगति  के पथ पर पहुंचाता है
कोई डॉक्टर बन ,अस्पताल चलाता है
और ये देखा गया है,
इनके प्रायवेट अस्पतालों में ,
मंहगे होने के बावजूद भी ,बड़ी भीड़ रहती है ,
हर कोई यहाँ इलाज कराता है
यहाँ तक की आरक्षित  कोटे से,
भर्ती हुआ बड़ा सरकारी अफसर भी ,
अपने इलाज के लिए ,सरकारी अस्पताल नहीं,
इन्ही प्रायवेट अस्पतालों में जाता है
शायद इन्हे खुद ही ,
अपने जैसे क्वालिफाइड लोगों की ,
कार्यकुशलता पर नहीं है विश्वास
इसलिए ,वो नहीं जाते उनके पास
नेता लोग वोट के चक्कर में ,लोगों को ,
आरक्षण का लोलीपोप चुसा कर,  
देश के साथ कर रहे है विश्वासघात
और अगर ऐसे ही रहे हालत
तो देश की प्रतिभाओं का विदेश में ,
यूं ही 'ब्रेन ड्रेन 'होता रहेगा
या फिर देश का काबिल युवा ,
आरक्षण की मार का मारा ,
अवसर से वंचित रह कर ,
बस यूं ही रोता रहेगा
जब बोये गए बीज ही कमजोर होंगे ,
तो फसल तो बिगड़ ही जाएगी
मेरे देश के कर्णधारों को ,
सदबुद्धि कब आएगी

मदन  मोहन बाहेती 'घोटू'


हुस्न और जवानी

      हुस्न और जवानी

जब हो  जाता हुस्न जवां है
करता सबकी खुश्क  हवा है
लोग  बावरे  से हो  जाते ,
देख देख उसका  जलवा  है
सबकी नज़रें फिसला करती ,
देखा करती  कहाँ  कहाँ  है
कई तमन्नाएँ जग जाती ,
और भड़क जाते  अरमाँ है
जब सर पड़ती जिम्मेदारी ,
होते सारे ख्वाब हवा  है
 'घोटू'कोई तो  बतला दे ,
दर्दे दिल की कौन दवा  है

घोटू
 

शादी और घरवाली

                  शादी और घरवाली

 हर औरत का ,अपने  अपने ,घर में राज हुआ करता है
हर औरत का अपना अपना ,एक अंदाज हुआ करता है
कभी प्यार की बारिश करती,और कभी रूखी रहती  है
जब भी सजती और संवरती ,तारीफ़ की भूखी रहती है
उसका मूड बिगड़ कब जाए ,मुश्किल है यह बात जानना
यह होता  कर्तव्य पति का, पत्नी   की हर बात मानना
हम सगाई  में पहनाते है ,एक ऊँगली में एक अंगूठी
बाकी तीन उँगलियाँ उनकी,इसीलिये रहती है रूठी
जो शादी के बाद हमेशा ,बदला लेती है गिन गिन कर
अपने एक इशारे पर वो ,हमें नचाती है जीवन भर
जिन आँखों के लड़ जाने से ,हुआ हमारा दिल था पगला
शादी बाद लिया करती है ,उस लड़ाई का हमसे बदला
एक इशारा उन आँखों का ,हम से क्या क्या करवाता है
उनकी भृकुटी ,जब तन जाती,बेचारा पति घबराता है
शादी समय ,आँख के आगे ,जो सेहरा पहनाया जाता
नज़रे इधर उधर ना ताके ,ये प्रतिबन्ध लगाया जाता
उनके आगे किसी सुंदरी ,को जो देखें नज़र उठा कर
तो परिणाम भुगतना पड़ता ,है हमको अपने घर आकर
फिर भी कभी कभी गलती से ,यदि हो जाती ये नादानी
तो फिर समझो ,चार पांच दिन,बंद हो जाता हुक्का पानी
उनके साथ,सात ले फेरे, अग्नि कुण्ड के काटे चक्कर
उनके आगे पीछे हरदम ,घूमा करते बन घनचक्कर
प्रेम,मिलन की,और शादी  की,जितनी भी होती है रस्मे
कस निकालती है कस कस कर ,शादी में जो खाते कसमें
पत्नी से मत  करो बगावत,वरना खैर नहीं तुम्हारी
शादी करके,सांप छुछुंदर ,जैसी होती  गति हमारी
शादी है  बूरे  के लड्डू  ,सभी चाहतें है वो खायें
जिसने खाए वो पछताए ,जो ना खाए ,वो पछताए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

वाहन के टायर से

         वाहन  के टायर से
ओ मेरे वाहन के टायर
समयचक्र की तरह हमेशा ,
तीव्रगति से दौड़ा करते
सबको पीछे छोड़ा करते
मुझको तुम मेरी मंजिल तक पहुंचाते हो
किन्तु अकेले ,तुमकुछ भी ना कर पाते हो
तुम्हे हमेशा ,अपने जैसे ,
भाईबन्धु का साथ चाहिये
और वो भी दिनरात चाहिए
ध्येय तुम्हारा ,संग संग चलना
समगति से गंतव्य पहुंचना
जब तक तुममे सांस ,याने कि भरी हवा है
तब तक जीवन का जलवा है
कुछ भी चुभा तुम्हारे तन को,
तो मन खाली हो जाता है
थोड़ा भी ना चल पाता है
किन्तु प्यार की एक चिप्पी से ,
मिलता तुमको पुनर्जन्म है
और फिर से आ जाता दम है
दिखने में चाहे काले हो
भाईचारा किन्तु निभाने वाले,
साथी मतवाले  है
बरसों से उपकार कर रहे,
 तुम दुनिया पर
सबको अपनी अपनी,
 मंजिल तक पहुंचा कर  
मैं भी था पागल दीवाना
एक बार जब बीच राह में
कुपित हुए तुम,
कदर तुम्हारी करना मैंने तबसे जाना
तब ही है गुणगान बखाना
सबका सोच भिन्न होता है
मेरा हृदय खिन्न होता है
जब भी मुझको है यह दिखता
जब आराम कर रहे होते हो ,
तुम,तब ही कोई कुत्ता
पहले तुम्हे सूंघता और फिर,
अपनी एक टांग ऊंची कर ,
तुमको गीला कर जाता है
मुझको बड़ा क्रोध आता है
फिर लगता हूँ अपने मन को मैं समझाने
कुत्ता तो कुत्ता ही होता ,
कदर तुम्हारी वो क्या जाने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

पूजा,प्रसाद और कामनायेँ

         पूजा,प्रसाद और कामनायेँ 

मैंने प्रभु से पूछा कि तेरे मंदिर में  ,
        कितने भगत रोज आते ,परशाद चढ़ाते
बदले में कितनी ही मांगें रख देते है ,
        तब तुझको कैसा लगता  ,ये मुझे बतादे
प्रभु ने मेरी बात सुनी और हंस कर बोले ,
        ऐसा प्रश्न किया है ,उत्तर क्या दूँ तुझको
यही सोच कर कि मैं पत्थर की मूरत हूँ ,
       लोग हमेशा मुर्ख बनाते  रहते  मुझको
एक किलो का डब्बा लाते है लड्डू का ,
      उसमे से दो चढ़ा ,शेष खुद घर ले जाते
मिलता मुझे पचास ग्राम ही है मुश्किल से ,
      एक किलो का वो मुझ पर अहसान चढ़ाते
इस पर ये तुर्रा वो मुझसे आशा करते,
      उन पर क्विंटल ,दो क्विंटल,किरपा बरसा दूँ
सबने मुझको बिलकुल बुद्धू समझ रखा है ,
      बतलाओ, ऐसे भक्तों को , मैं क्या क्या दूँ 
अक्सर उनकी मुझसे मांग हुआ करती है,
      दे दे लम्बी उमर ,हमें  दीर्घायु   कर दे
मुझे चढ़ा कर ,पांच,सात या ग्यारह रूपये,
      करें वंदना ,मेरा घर ,दौलत से भर दे
कोई लड़की ,व्रत करती,पूजा करती है,
      क्योंकि उसे चाहिए अच्छा जीवन साथी 
अच्छा जीवन साथी उसे दिलाया तो फिर ,
     चंद दिनो मे ,बेटा दो  ,अरदास लगाती
बेटा दिया ,चाहती उसको पढ़ा लिखा कर,
      मोटी तनख्वाह वाली कोई नौकरी दे दूँ
और ढेर सा ,संग दहेज लाये जो अपने,
       बहू  रूप  में ,ऐसी कोई  छोकरी  दे  दूँ
उसके मनमाफिक जब उसको बहू दिलादूँ  ,
      तो कुछ दिन में,दादी बनूं ,कामना जगती
हर दिन जब भी करने आती दर्शन ,मंदिर,
      कुछ परसाद चढ़ा,कुछ ना कुछ माँगा करती
इच्छाओं का ,कभी कोई भी अंत नहीं है,
      हर एक मन में रहती कुछ इच्छा जाग्रत है
ये कर दे तो इतना तुझे चढ़ाऊंगा मैं ,
      तरह तरह के देते  मुझे  प्रलोभन  सब  है
हद तब होती , कुछ वो बहुए ,बड़े चाव से,
       जिन्हे मांग कर ,सासू ने थे सपने  पाले
कहती बुढ़िया सासू बहुत तंग करती है,
      भगवन उसको ,जल्दी अपने पास बुलाले
तरह तरह की रोज मुझे फरमाइश मिलती ,
       तरह तरह  के  लोग, टोटके, टोने  करते
कोई नंदी के कानो में कुछ कहता है,
       कोई चूहे  के  कानो में फुसफुस   करते
यही सोच कर कि ये तो है प्रभु के वाहन ,
       प्रभु तक पहुंचा देंगे ,उनकी सब फरियादें
मन में कितना लालच भरा हुआ है सबके ,
      और दिखने में ,सब  दिखते  है सीधे सादे
स्कूल के बच्चे है मुझको शीश नमाते ,
       पेपर  बिगड़ गया है, नंबर बढ़वा  देना
नेतागण ,करवाते यज्ञ ,याचना करते ,
       इस चुनाव में ,हमको सत्ता दिलवा देना
प्रेमी शीश नमाता ,करता यही  कामना,
       उसे प्रेमिका मिलवा उसका घर बसवा दूँ
जो होते बेकार नौकरी माँगा करते ,
       कई चाहते ,उनका अपना घर बनवा दूँ
तरह तरह के लोगों की कितनी ही मांगें ,
       मैं सबकी सुन लेता ,करता अपने  मन की
नहीं जानते,कर्म करो तब फल मिलता है ,
       सबसे बड़ी हक़ीक़त यह होती जीवन की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
  

श्वान और शंका

          श्वान और शंका
मैंने पूछा एक श्वान से ,श्वान महोदय ,
       ये देखा है ,जब भी तुम करते लघुशंका
करने को यह कार्य पसंद तुमको आता है,
      कोई कार का टायर या बिजली का खम्बा 
कहा श्वान ने,जो निचेष्ट पडी रहती है ,
      ऐसी चीजें ,मुझको बिल्कुल नहीं सुहाती
सदा खड़ा ही देखा करता हूँ मैं खम्बा,
      आता मुझको क्रोध, ,टांग मेरी उठ जाती 
और जहाँ तक बात कार के टायर की है,
      कुछ करने के पहले उसे सूंघता हूँ मैं
दिनभर चलकर थका ,अगर आराम कर रहा ,
      मुझे पसीने की खुशबू आती है उसमे
 उसे छोड़,जब मिलता टायर कोई,जिसने,
       कभी किसी भी ,भाई बहन को मेरे कुचला
उसको गीला कर देता मै मूत्रधार से ,
        इसी तरह बस ,ले लेता हूँ ,अपना  बदला
मुझ में भी है भरी भावना,भाईचारा ,
        जो भी मुझे पालता ,करता बहुत प्यार हूँ
मुझमे और तुम इंसानो में फर्क यही है ,
        मैं अपने मालिक संग रहता वफादार  हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

शादी और घरवाली

                   शादी और घरवाली

 हर औरत का ,अपने  अपने ,घर में राज हुआ करता है
हर औरत का अपना अपना ,एक अंदाज हुआ करता है
कभी प्यार की बारिश करती,और कभी रूखी रहती  है
जब भी सजती और संवरती ,तारीफ़ की भूखी रहती है
उसका मूड बिगड़ कब जाए ,मुश्किल है यह बात जानना
यह होता  कर्तव्य पति का, पत्नी   की हर बात मानना
हम सगाई  में पहनाते है ,एक ऊँगली में एक अंगूठी 
बाकी तीन उँगलियाँ उनकी,इसीलिये रहती है रूठी
जो शादी के बाद हमेशा ,बदला लेती है गिन गिन कर
अपने एक इशारे पर वो ,हमें नचाती है जीवन भर
शादी समय ,आँख के आगे ,जो सेहरा पहनाया जाता
नज़रे इधर उधर ना ताके ,ये प्रतिबन्ध लगाया जाता
उनके आगे किसी सुंदरी ,को जो देखें नज़र उठा कर
तो परिणाम भुगतना पड़ता ,है हमको अपने घर आकर
फिर भी कभी कभी गलती से ,यदि हो जाती ये नादानी
तो फिर समझो ,चार पांच दिन,बंद हो जाता हुक्का पानी
उनके साथ,सात ले फेरे, अग्नि कुण्ड के काटे चक्कर
उनके आगे पीछे हरदम ,घूमा करते बन घनचक्कर
प्रेम,मिलन की,और शादी  की,जितनी भी होती है रस्मे
कस निकालती है कस कस कर ,शादी में जो खाते कसमें
पत्नी से मत  करो बगावत,वरना खैर नहीं तुम्हारी
शादी करके,सांप छुछुंदर ,जैसी होती  गति हमारी 
शादी है  बूरे  के लड्डू  ,सभी चाहतें है वो खायें
जिसने खाए वो पछताए ,जो ना खाए ,वो पछताए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

सोमवार, 28 सितंबर 2015

चक्कर चुनाव का

    चक्कर चुनाव का

खुद आये है हार पहन कर ,
और कहते है हमें जिता  दो
हाथ जोड़ मनुहार कर रहे,
अबके नैया पार लगा दो
पार्टी और न निशान देखिये
बस काबिल इंसान  देखिये
प्रत्याशी की भरी भीड़ में,
कोई भी इन सा न देखिये
इधर उधर की तुम सोचो मत
बस हमको दे दो अपना मत
और किसी को मत,मत देना ,
मत दो हमें,बढ़ाओ हिम्मत
ये तुम्हारा वोट नहीं है ,
ये तो एक 'बोट '  है भैया
इस चुनाव के भवसागर को,
पार कराएगी  ये  नैया
मत दे,मतलब पूरा कर दो,
हमे जीत उपहार दिला  दो
हाथ जोड़ मनुहार कर रहे ,
प्यार दिखा कर ,पार लगा दो

घोटू

          

प्रताड़ना

             प्रताड़ना

मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झांक रहे हो,
    अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो
मैं सोने की,मेरा मूल्य आंकते हो क्या ,
   थोड़ी अपनी भी औकात आंक कर देखो
यूं क्यों ताक झाँक करते हो नज़र बचा कर,
       तुम्हारे मन के अंदर क्या जिज्ञासा   है
एक झलक पा भी लोगे,क्या मिल जाएगा
      पूर्ण न होती इससे मन की अभिलाषा है
मैं ही क्या,तुमको जो भी कोई दिखती है,
     उसको आँखे फाड़ फाड़ घूरा करते तुम
कौन कामना तुम्हारी जो पडी अधूरी ,
      हर नारी को देख ,जिसे पूरा करते तुम
लो मैं ही बतला देती हूँ इनके अंदर,
      छिपे हुए है वो स्नेहिल ,ममता के निर्झर
जिनसे तुम्हारी माँ ने था दूध पिलाया ,
     तुमको बचपन में ,अपनी गोदी में लेकर
जिनसे चिपका कर तुमको बाहों में बांधे,
     कितनी बार गाल तुम्हारे चूमे होंगे
निज ममता के गौरव पर इतराई होगी,
    जब तुम उसकी बाहों में आ झूमे  होगे
नारी तन की सौष्टवता के ये प्रतीक है,
   इनमे छिपी विधाता की वह अद्भुत रचना
जिस ज्वालामुखी की झलक ढूंढते हो तुम,
   वो हर माँ के गौरव है,ममता का झरना
पर तुम्हारी नज़रें काली भँवरे जैसी ,
    दिखला रही कलुषता है तुम्हारे मन की
तुम्हारी माँ,बहन सभी संग होती होगी ,
     ये विडंबना है ,हर नारी के जीवन की
अरे कभी कुछ तो सोचो ,ये क्या करते हो  ,
   अपना  गिरेबान में कभी ताक  कर  देखो
मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झाँक रहे हो ,
     अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 

आरक्षण के पौधे

        आरक्षण के पौधे

वर्ण व्यवस्था के चक्कर में ,बरसों तलक गये रौंदे है
 हम  आरक्षण के पौधे है 
अब तक दबे धरा के अंदर , कहलाते  कंद मूल रहे हम 
खाद मिला आरक्षण जब से ,तब से ही फल फूल रहे हम 
  फ़ैल गई जब जड़ें हमारी, तो क्यों कोई हमे  रौंदे है  
 हम आरक्षण के पौधे है  
 सत्तर प्रतिशत ,सरकारी पद, परअब तो अपना कब्जा है
  कौन उखाड़ सकेगा  हमको,किसमे अब इतना जज्बा है
 दलितों के उत्थान हेतु ,हम किये गए समझौते है 
हम आरक्षण के पौधे है    
कुछ मांग समय की ऐसी थी ,दलितों को उन्हें उठाना था
 राजनीति के भवसागर में अपनी नाव चलाना था   
वोटों के खातिर चुनाव में ,किये सियासी सौदे है
 हम आरक्षण के पौधे है   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                      
      

         सच्चे मित्र     
               1
जब रहती रौशनी ,तब तक साया साथ
संग छोड़ते है सभी, जब आती है  रात
जब आती है रात , व्यर्थ सब रिश्ते नाते
बुरे वक़्त में लोग तुम्हे पहचान न पाते
 कह घोटू कविराय ,सगा भी तुम्हे भगाये 
केवल सच्चा मित्र ,अंत तक साथ निभाये  
                 2     
कल तक तपती धूप थी ,बादल छाये आज
 बदल रहा है इस तरह ,मौसम का मिजाज
मौसम का मिजाज ,ऋतू सब आती,जाती
कभी शीत  या ग्रीष्म,कभी मौसम बरसाती
पग पग पर जो हर मौसम में साथ निभाये
कह 'घोटू 'कवि,वो ही सच्चा मित्र  कहाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             
                                             

 
 

ईश वंदना

        ईश वंदना

हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो 
मुझ में तुम स्थिरता भर दो 
नहीं चाहता डेढ़ ,पांच या दस दिन का मैं बनू गजानन
या नौ दिन की दुर्गा बन कर,करवाऊं पूजन और अर्चन
और बाद  में धूम धाम से ,कर  दे मेरा  लोग  विसर्जन 
मुझको तुलसी के पौधे सा ,
निज आँगन स्थपित कर दो
हे प्रभु मुझको  ऐसा वर   दो
न  तो जेठ की दोपहरी  बन, तपूँ ,आग सी बरसाऊँ  मैं
या बारिश की अतिवृष्टी सी, बन कर बाढ़,कहर ढ़ाऊं मैं
ना ही पौष माघ की ठिठुरन ,बन कर बदन कँपकँपाऊँ मैं
मेरे जीवन का हर मौसम ,
हे भगवन  बासंती  कर दो 
हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो
मेंहदी लगा,हाथ पीले कर ,मुझको सजा,बना कर दुल्हन
ले बारात ,ढोल बाजे संग ,मुझे लाओ घर ,बन कर साजन
चार दिनों के बाद लगा दो ,करने घर का ,चौका ,बरतन
मुझको सच्ची प्रीत दिखा कर ,
अपने मन मंदिर में धर  दो
हे प्रभु मुझको ऐसा  वर  दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

पति और मच्छर

               पति और मच्छर

पत्नीजी ,जब भी करती कोई फरमाइश,
     पति देवता झट से तुनक तुनक जाते है
ऐसे पति को ज्यादा भाव नहीं मिलता  है,
        पत्नी द्वारा वो मच्छर  समझे जाते  है 
तुनक मिजाजी और आशिक़ी करते रहना ,
       ये दोनों ही गुण  ,हर पति में पाये जाते
मच्छर भी आशिक़ हो गाल चूमते है या,
       तुन तुन कर,पत्नी के इर्द गिर्द  मंडराते
हिटलर सी ले काला 'हिट',बेलन के जैसा ,
           जब पत्नी स्प्रे करती , तो घबराते है 
डर के मारे ,इधर उधर उड़ते फिरते है,
       जहाँ जगह मिलती छुपने को,छुप जाते है
 इस चक्कर में उनकी हो जाती पौबारह ,
         ऐसी ऐसी जगह ढूंढ लेते   छुपने को
कभी जुल्फ में उनकी छुप कर सहलाते है,
        और कभी चोली में मिल जाता  रहने को
थकी हुई जब रातों को वो सोई रहती,
         पति हो या मच्छर ,तंग दोनों ही करते है
धूम्रपान करने से कैंसर हो जाता है,
           धूम्रपान  से इसीलिए  ,दोनों डरते  है
 दोनों को ही पत्नी लेती हलके में है,
           इसीलिये ,ज्यादा ऊंचे वो ना उड़ पाते
पानी में पलते ,चेहरे पर पानी देखा,
         रोक न पाते खुद को ,दीवाने  हो जाते
जितना भी रसपान कर सको,करलो,वरना ,
         क्षणभंगुर है जीवन ,मन को ,समझाते है        
ऐसे पति को ज्यादा भाव नहीं मिलता है,
            पत्नी द्वारा वो मच्छर  समझे जाते  है  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वृद्धों का सन्मान करो तुम

           वृद्धों का सन्मान करो तुम

भूखे को भोजन करवाना,और प्यासे की प्यास बुझाना ,
अक्सर लोग सभी कहते है ,बड़ा पुण्यदायक  होता है
बड़ी उमर का त्रास झेलते ,जो   लाचार ,दुखी,एकाकी,
वृद्धों का सन्मान करो तुम ,ये तो उनका हक़ होता है
बूढ़े वृक्ष ,भले फल ना दें ,शीतल छाया तो देते है,
उनकी डाल डाल पर पंछी,नीड बना चहका करते है
बहुत सीखने को है उनसे ,वे अनुभव के गुलदस्ते  है,
फूल भले ही सूख गए हो,वो फिर भी महका करते है
कभी बोलकर के तो देखो , उनसे मीठे बोल प्यार के ,
 उनकी धुंधली सी  आँखों में , आंसूं  छलक छलक आएंगे
उन्हें देख कर मुंह मत मोड़ो ,सिरफ़ प्यार के प्यासे है वो,
 गदगद होकर ,विव्हल होकर,वो आशीषें बरसाएंगे
एक मधुर मुस्कान तुम्हारी,उनको बहुत सुखी करदेगी, 
ये भी काम पुण्य का है इक,हर्षित अगर उन्हें कर दोगे
ये मत भूलो ,आज नहीं कल,ये ही होगी गति तुम्हारी ,
कोई  बोले बोल प्यार के , तब  शायद तुम भी तरसोगे 
इसीलिए जितना हो सकता ,उतना उनका ख्याल रखो तुम,
 इससे   पुण्य बहुत मिलता है  ,इसमें जरा न शक होता  है
भूखे को भोजन करवाना,और प्यासे की प्यास बुझाना ,
अक्सर लोग सभी कहते है,बड़ा पुण्यदायक   होता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

टी वी और बुढ़ापा

            टी वी और बुढ़ापा

न होती चैनलें इतनी,न इतने सीरियल होते ,
बताओ फिर बुढ़ापे में,गुजरता वक़्त फिर कैसे
बिचारा एक टीवी ही ,गजब का है जिगर रखता ,
छुपा कर दिल में रखता है ,फ़साने कितने ही ऐसे
कभी भी हो नहीं सकता ,कोई 'ओबिडियन्ट' इतना,
कि जितना होता है टीवी ,इशारों पर,बदलता  स्वर
नाचता रहता है हरदम ,हमारी मरजी के माफिक ,
भड़ासें अपनी हम सारी ,निकाला करते है उसपर
हमेशा  ही किये  नाचा   ,हम बीबी के  इशारों पर,
नहीं ले पाये पर बदला, सदा हिम्मत ही  हारी है
इसलिए  हाथ में रिमोट ले,जब बदलते चैनल ,
ख़ुशी   होती है कम से कम ,कोई सुनता हमारी है
कभी देखे नहीं थे जो ,नज़ारे हम ने दुनिया  के ,
वो सतरंगी सभी चीजे ,दिखाता हमको टीवी है
फोन स्मार्ट भी अब तो , हमारे हाथ आया है ,
हुए इस युग में हम पैदा ,हमारी खुशनसीबी है
दूर से बैठे बैठे ही ,शकल हम देखते सबकी ,
तरक्की इतनी कर लेंगे ,कभी सोचा न था ऐसे
न होती  चैनलें इतनी ,न इतने सीरियल होते,
बताओ फिर बुढ़ापे में, गुजरता वक़्त फिर कैसे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

जानवर और मुहावरे

           जानवर और मुहावरे

कितनी अच्छी अच्छी बातें,हमें जानवर है सिखलाते
उनके कितने ही मुहावरे , हम  हैं  रोज  काम में लाते
भैस चली जाती पानी में ,सांप छुछुंदर गति हो जाती
और मार कर नौ सौ चूहे ,बिल्ली जी है हज को जाती
अपनी गली मोहल्ले में  आ ,कुत्ता शेर हुआ करता है
रंगा सियार पकड़ में आता ,जब वो हुआ,हुआ करता है
बिल्ली गले कौन बांधेगा ,घंटी,चूहे सारे  डर जाते है 
कोयल और काग जब बोले , अंतर तभी  समझ पाते है
बॉस दहाड़े दफ्तर में पर ,घर मे भीगी बिल्ली बनता
सांप भले कितना टेढ़ा हो,पर बिल में है सीधा घुसता
 काटो नहीं ,मगर फुंफ़कारो ,तब ही सब दुनिया डरती है
देती दूध ,गाय की  लातें , भी हमको सहनी पड़ती है
मेरी बिल्ली ,मुझसे म्याँऊ ,कई बार ऐसा होता है
झूंठी प्रीत दिखाने वाला ,घड़ियाली  आंसू  रोता है
चूहे को चिंदी मिल जाती ,तो वह है बजाज बन जाता
बाप मेंढकी तक ना मारी  , बेटा  तीरंदाज  कहाता
कुवे के मेंढक की दुनिया ,कुवे में ही सिमटी  सब है
आता ऊँट  पहाड़ के नीचे ,उसका गर्व टूटता  तब है
भले दौड़ता हो तेजी से ,पर खरगोश हार जात्ता है
कछुवा धीरे धीरे चल कर ,भी अपनी मंजिल पाता है
रात बिछड़ते चकवा,चकवी ,चातक चाँद चूमना चाहे
बन्दर क्या जाने अदरक का ,स्वाद भला कैसा होता है
रोटी को जब झगड़े बिल्ली ,और बन्दर झगड़ा सुलझाये
बन्दर बाँट इसे कहते है,सारी  रोटी खुद खा जाए
कोई बछिया के ताऊ सा ,सांड बना हट्टा कट्टा है
कोई उल्लू सीधा करता ,कोई उल्लू का पट्ठा  है
मैं ,मैं, करे कोई बकरी सा ,सीधा गाय सरीखा कोई
हाथी जब भी चले शान से ,कुत्ते भोंका करते यों  ही 
चींटी के पर निकला करते ,आता उसका अंतकाल है
रंग बदलते है गिरगट  सा ,नेताओं का यही हाल है
कभी कभी केवल एक मछली ,कर देती गन्दा तालाब है
जल में रहकर ,बैर मगर से ,हो जाती हालत खराब है
उन्मादी जब होगा हाथी ,तहस नहस सब कुछ कर देगा
है अनुमान लगाना मुश्किल,ऊँट कौन करवट  बैठेगा
जहाँ लोमड़ी पहुँच न पाती,खट्टे वो अंगूर बताती
डरते बन्दर की घुड़की से ,गीदड़ भभकी कभी डराती
सीधे  है पर अति होने पर,गधे दुल्लती बरसाते है
साधू बन शिकार जो करते ,बगुला भगत कहे जाते है
ये सच है बकरे की अम्मा ,कब तक खैर मना पाएगी
जिसकी भी लाठी में दम है ,भैस उसी की  हो जायेगी
कौवा चलता चाल हंस की ,बेचारा पकड़ा  जाता है
धोबी का कुत्ता ना घर का,और न घाट का रह पाता है
 घोडा करे  घास से यारी ,तो खायेगा  क्या बेचारा
जो देती है दूध ढेर सा ,उसी गाय को मिलता चारा
दांत हाथियों के खाने के ,दिखलाने के अलग अलग है
बातें कितनी हमें  ज्ञान की ,सिखलाते पशु,पक्षी सब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

ईश्वर पूजन और मनोकामना

 ईश्वर पूजन और मनोकामना

हम विघ्नहर्ता गणेशजी की,
 आराधना करते है
और उनसे ये याचना करते है
हमें सुख ,शांति,समृद्धि दे ,
व्यापार में वृद्धि दे
ऋद्धि और सिद्धि दे
जब क़ि हम ये जानते है,
ऋद्धि और सिद्धि ,गणेशजी की पत्नियां है
जो खड़ी रहती है उनके दांये,बाएं
हमारी ये कैसी आस्था है
पूजा कर,मोदक चढ़ा,
हम उनसे उनकी पत्नियां ,
ऋद्धि सिद्धि मांगते है,
ये हमारे लालच की पराकाष्ठा है
हम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं
और कामना करते है लष्मी को पाने की
यहाँ भी हमारी कोशिश होती है ,
उनकी पत्नी को हथियाने की
हम शिव जी की करते है भक्ती
और मांगते है उनसे  शक्ति
जबकि शक्ति स्वरूपा दुर्गा उनकी पत्नी है,
हम ये जानते है
फिर भी हम उनसे उनकी पत्नी,
याने  शक्ति मांगते है
कृष्ण के मंदिर में जाकर हम उन्मादे
रटा  करते है 'राधे राधे'
सबको पता है राधा कृष्ण के प्रेयसी है
उनके दिल में बसी है
इसतरह किसी की प्रेयसी नाम
उसी के सामने जपना ,सरे आम
वो भी सुबह शाम
जिससे वो हो जाए हम पर मेहरबान 
अरे कोई भी भगवान
हो कितना ही दाता और दयावान
आशीर्वाद देकर तुम्हे समृद्ध बनाएगा
पर क्या अपनी पत्नी ,
भक्तों में बाँट पायेगा
फिर भी ,हम थोड़ी सी पूजा कर ,
और चढ़ा कर के परसाद
करते है उनसे उनके पत्नी की फ़रियाद
और उसको पाने की ,
कामना करते हर पल है
सचमुच,हम कितने पागल है
घोटू 

मच्छर की फ़रियाद

                  मच्छर की फ़रियाद

गौर वर्ण तुम सुन्दर देवी ,मै अदना सा मच्छर काला
तुम्हारे गालों  पर  बैठूं , करूं रूप रसपान तुम्हारा
गोरे हाथों में काला'हिट' लेकर तुम मुझ पर बरसाती
इधर उधर उड़ता फिरता मैं ,नानी मुझे याद आ जाती
तुम हिटलर सी 'हिट'लेकर के,करती बहुत जुलम हो मुझ पर
मुश्किल से मैं जान बचाता ,तुम्हारी जुल्फों में छिप कर
पर तुमतो बगदादी जैसी ,बन जाती हो एक जेहादी
बड़ी क्रूर ,आतंकी बनकर ,सदा चाहो मेरी  बरबादी
या नरेंद्र मोदी सी बन कर ,जब तुम्हारा जादू चलता
मेरी हालत कॉंग्रेस सी ,हो जाती पतली  और खस्ता
तुम्हे पता है ,हम सब मच्छर ,पानी में है पनपा करते
पानीदार तुम्हारा चेहरा ,इसीलिये है उस पर मरते
गोर गालों पर काला तिल,बनू ,निखारूँ रूप तुम्हारा
मुझ पर दया करो तुम देवी ,मैं तुम्हारा ,आशिक प्यारा 
गौर वर्ण तुम सुन्दर देवी ,मैं अदना सा मच्छर काला    
तुम्हारे गालों पर बैठूं ,करूँ  रूप  ,रसपान  तुम्हारा
   
मदन मोहन बाहेती'घोटू'               

 '

मूल तो फिर मूल है पर ब्याज प्यारा है...


शनिवार, 19 सितंबर 2015

कथनी पर मत जाओ - करनी पर अक्ल लगाओ...


उचटी नींद

           उचटी नींद
आती है नींद मुझको ,थोड़ी ठहर ठहर के
मैं सो भी नहीं पाता ,आराम से,जी भर के
मुद्दत से नहीं आई ,है मुझको नींद गहरी
हो रात पूस की या फिर जेठ की दोपहरी
मैं वक़्त काटता हूँ,करवट बदल बदल के
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के
सीखा है जब से इसने ,यूं इस तरह उचटना
आता जो मुश्किलों से,जाता है टूट  सपना
रहता हूँ पड़ा यूं ही,तकिये को बांह भरके
आती है नींद मुझको ,थोड़ी ठहर ठहर के
यादें  पुरानी  मेरा  पीछा न छोड़ती  है
गाहे बगाहे आकर,मुझको झंझोड़ती है
आते है याद मुझको,किस्से इधर उधर के
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के
था जब बसंती मौसम ,हम फूल थे महकते
उड़ते थे आसमां में,पंछी  से हम चहकते
अब शिशिर में ठिठुरते है ठंडी आह भरके
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चुगलखोर

          चुगलखोर 

तुम मुझसे कुछ भी ना बोलो,मैं तुमसे कुछ भी ना बोलूं ,
हम समझ जाएंगे आपस में ,हमको जो सुनना कहना है
तुम चाहे मेरे पास रहो ,तुम  चाहे   मुझसे दूर  रहो ,
हमको इक दूजे के दिल में, बस साथ साथ  ही रहना है
कुछ भाषाएँ ऐसी होती ,जब मौन मुखर हो जाता है
आखें आँखों से कुछ कहती ,दिल दिल से कुछ कह जाता है
जब प्रेमी युगल मिला करते ,स्पर्श बहुत कुछ है कहता
बोला करते श्वासों के स्वर ,कहने को कुछ भी ना रहता
कुछ बिखरी जुल्फें कह देती,कुछ कह देता फैला काजल
कुछ थकी थकी सी अंगड़ाई ,कुछ कहता अस्तव्यस्त आँचल
वेणी के मसले हुए फूल,चूड़ी के टुकड़े  झड़े हुए
देते है सारा भेद खोल ,वो चादर के सल पड़े   हुए
है इतने सारे चुगलखोर ,इसलिए जरूरत ना पड़ती ,
कुछ कहने या बतलाने की,अब बेहतर चुप ही रहना है
तुम मुझसे कुछ भी ना बोलो,मैं तुमसे कुछ भी ना बोलूं ,
हम  समझ जाएंगे आपस में ,हमको जो सुनना ,कहना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सुलहनामा

        सुलहनामा

  हम दोनों के बीच जम गयी जो दीवार बरफ  की,
आओ उसे ,प्यार की गरमी  देकर हम पिघला लें
ना तुम करो शिकायत ,शिकवा ,ना मैं ही कुछ बोलूं ,
अपनी आपस की उलझन को,आपस में सुलझा लें
मैंने माना खता हो गयी ,कुछ गलती थी मेरी ,
पर थोड़ा तो दोष तुम्हारा भी था इस अनबन में
मेरी इस गुस्ताखी को तुम ,यूं ही टाल सकती थी, 
नहीं इसतरह ,विचलित होती,उसको लेकर मन में
उल्टा तुमने ,उन लपटों में ,तपता घी था डाला ,
तुम्हारी इस प्रतिक्रिया ने आग और भड़का दी
आपस में टकराव अहम का ,ऐसा हुआ हमारे ,
हम दोनों के बीच दूरियां ,इसने और बढ़ा दी
रहें एक छत के नीचे हम ,लेकिन अनजानों से,
तुम भी तड़फ़ो ,मैं भी तड़फूं,मन ना रहता बस में
तुम इस करवट,मैं उस करवट,जाग रहे है दोनों,
बेहतर ये होगा समझौता ,कर लें ,हम आपस में
पहले पहल कौन करता  इस ,इन्तजार में दोनों,
इस प्यारी वासंती ऋतू में,शीत  युद्ध है चलता
कुछ तो कमी रही होगी जो हुई ग़लतफ़हमी ये,
रहना यूं गहमागहमी में,बहुत मुझे है खलता
अब महसूस कर रहे हैं हम ,पीड़ा विच्छेदन की,
अलग एक दूजे से रह कर ,कैसे जी पाएंगे
चार कदम तुम आगे आओ ,चार कदम मैं आऊं ,
तब ही होगी दूर दूरियां ,हम तुम मिल पाएंगे
आओ मिलन राह पर चल कर,हम करीब आ जाएँ
अपने अपने अहम त्याग कर ,दूरी सभी मिटा लें
हम दोनों के बीच जम गई ,जो दीवार बरफ की,
आओ उसे प्यार की गरमी देकर हम पिघला लें

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

राम का नाम

         राम का नाम

बात रामायण काल  की है
लेकिन कमाल की है
राम की सेना के वानर
पत्थरों पर राम का नाम लिख कर 
पानी  में तैरा रहे थे
समुन्दर में पुल बना रहे थे
रामजी ने सुना ,तो चकराए ,
सोचा ये हो सकता है कैसे
वो दूर अकेले निकल गए ,
और उन्होंने एक पत्थर ,
पानी में फेंक दिया ,चुपके से
पत्थर तैरा नहीं,डूब गया तो राम ने ,
सकपका के देखा इधर उधर
तो उन्हें पास ही हनुमानजी आये नज़र
बोले ,हनुमान ,तूने कुछ देखा तो नहीं
तो हनुमान बोले ,प्रभु सब देख लिया
जिसने आपका नाम लिया ,वो तैर गया ,
आपने जिसको छोड़ा,वो डूब गया
ये बात तो हुई आध्यात्मिक
अब बताते है इससे भी कुछ अधिक
लंका में जब पहुंचा ये समाचार
कि समुन्दर के उस पार
पुल बन रहा है,धमाल हो रहा है
रामका नाम लिखा हुआ पत्थर ,
पानी में तैर रहा है,कमाल हो रहा है
रावण जब ये सुना ,तो सोचा ,
इससे तो लंका जनता का
'मोरल डाउन 'हो सकता है 
इसलिए कुछ करने की आवश्यकता है
इसलिए उसने करवा दिया एलान
कि  वो भी पानी में तैरायेगा ,
लिख कर के अपना नाम
एक निश्चित दिन ,जब रावण को था ,
पानी में पत्थर तैराना
लंका के सारी जनता ,एकत्र हो गयी ,
देखने रावण का ये कारनामा
और जब रावण ने ,अपना नाम लिख,
पत्थर को पानी में तैराया
तो पत्थर  डूबने लगा ,बाहर नहीं आया
रावण घबराने लगा
मन ही मन कुछ बुदबुदाने लगा
कुछ ही देर में चमत्कार दिखलाया
डूबता पत्थर ,तैरता हुआ वापस आया
रावण की सांस में सांस आयी ,
वो पसीने पसीने था ,पर मुस्कराया
जनता उसकी जयजयकार कर रही थी
पर मन ही मन ,
रावण की हवा खिसक रही थी 
रात मंदोदरी ने पूछा ,
आपने इतना बड़ा चमत्कार कर दिया ,
फिर क्यों इतना घबरा रहे थे
जब पत्थर डूब रहा था ,
आप कौनसा मन्त्र बुदबुदा रहे थे
रावण ने बोला रानीजी,
मैं कैसे ना घबराता
अगर पत्थर नहीं तैरता तो,
मेरी इज्जत का तो फलूदा हो जाता
इसलिए पत्थर को पानी में ,
 तैराने में आया जो मन्त्र काम
मैं मन ही मन बुदबुदा रहा था
राम का नाम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'





 

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

मेरी सुबह बन जाती है

    मेरी सुबह बन जाती है

सवेरे सवेरे ,
तुम्हारे हाथों से बनाया,
गरम चाय का प्याला ,
 जब मेरे हाथों में आता है
और उससे उठती हुई ,
गरम गरम वाष्प की लहरें ,
जब मेरे ओठों से टकराती है
मुझे तेरे जिस्म की गर्मी ,
महसूस कराती है
चाय के गुलाबी रंग में ,
तेरी छवि दिखलाती है
तेरा ये स्वरूप देख कर ,
मेरे होंठ कुलबुलाने लगते है
मे ,बावरा सा ,
रूप रास पान करने की लालसा में,
उसे होठों से लगा लेता हूँ
और देर तक मेरे होंठ,
उस ऊष्मा की ,
गरमाहट की झनझनाहट से  ,
तरंगित होते रहते है
ऐसा मेरे साथ ,
रोज रोज होता है
जब चाय के रूप में ,
तू मुझे लुभाती है
और मेरी सुबह बन जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जल कण

          जल कण

स्नानोपरांत ,
तुम्हारे कुन्तलों से टपकती हुई ,
जल की बूँदें ,
तुम्हारे कपोलों को सहलाती हुई ,
जब तुम्हारे वक्षस्थल में समाती है
बड़ी सुहाती है
ऊष्मा से उपजी ,
स्वेद की धारायें ,
जब तुम्हारे गालों पर बहती है
तुम्हारा श्रृंगार बिगाड़ देती है
भावना से अभिभूत हो,
तुम्हारी आँखें,
जब मोती से आंसू टपकाती है
तुम्हारे गालों पर,
अपनी छाप छोड़ जाती है
सुख में या अवसाद में ,
या किसी की याद में ,
बारिश या धूप में
किसी भी रूप में ,
जल के कण ,
जब भी मौका पाते है
तेरे गालों को सहलाते है
बड़े इतराते है
काश मैं भी ……

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंहगाई की महिमा

           मंहगाई की महिमा

औरत को घर की मुर्गी ,कहते थे लोग अक्सर
और उसकी हैसियत थी  बस दाल के बराबर
दालों का दाम जब से  ,आसमान  चढ़  गया है
वैसे ही औरतों का  ,रुदबा  अब  बढ़  गया है
मुर्गी और दाल सबको ,मंहगा  बना दिया  है
मंहगाई  तूने   अच्छा , ये  काम तो किया है

घोटू

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