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गुरुवार, 25 मई 2017

होटल के बिस्तर की आत्मकथा 

जाने कितनी बार मिलन की सेज मुझी पर सजती है 
खनका करती कई चूड़ियां ,और पायलें बजती है 
 कितने प्रेमी युगल ,मिलन का खेल यहाँ करते खेला 
कितनी बार दबा करता मै और झटके करता झेला 
नित नित नए और कोमल तन का मिलता स्पर्श मुझे 
देख  प्रेम लीलाएँ उनकी ,कितना मिलता हर्ष मुझे 
कई प्रौढ़ और बूढ़े भी आ करते याद जवानी को 
मै सुख का संरक्षण देता ,थके हुए हर प्राणी को 
मै निरीह ,निर्जीव बिचारा ,बोझ सभी का हूँ सहता 
नहीं किसी से कुछ भी कहता ,बस चुपचाप पड़ा रहता 
कोई होता मस्त,पस्त  कोई ,कोई उच्श्रृंखल सा 
मै सबको सुकून देता हूँ , मै हूँ बिस्तर होटल का  

घोटू 
मिलन की आग 

जगमगाती हो दिलों में ,प्यार की जब रौशनी,
अन्धेरा हो या उजाला ,फर्क कुछ पड़ता नहीं 
भले दीपक रहे जलता ,या बुझाया जाय फिर,
मिलन की अठखेलियों में ,फर्क कुछ पड़ता नहीं
 
दिल के अंदर जब सुलगती हो मिलन की आग तो. ,
रात दिन ना देखता है,नहीं मौसम देखता 
गमगमाता पुष्प हो तो प्यार में पागल भ्र्मर ,
डूबता रसपान में ,ना मुहूरत ,क्षण देखता 
स्वयं ही होता समर्पण ,हो मिलन का जोश जब ,
होश रहता कब किसी को ,फर्क कुछ पड़ता नहीं 
जगमगाती हो दिलों में प्यार की जब रौशनी,
अँधेरा हो या उजाला ,फर्क कुछः पड़ता नहीं 

डूबता जब प्यार में तो भूल जाता आदमी ,
देखती है चाँद ,तारे और सूरज की नज़र 
प्रेम लीला में रंगीला होता है वो इस कदर ,
डूबता अभिसार में है ,पागलों सा बेखबर 
इस तरह अनुराग की वह आग में है झुलसता ,
मस्त होकर पस्त  होता ,फर्क कुछ पड़ता नहीं 
जगमगाती हो दिलों में,प्यार की जब रौशनी,
अन्धेरा हो या उजाला फर्क कुछ पड़ता नहीं 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 23 मई 2017

आधार कार्ड 

मेरी आँखों की पुतली में वास तुम्हारा 
मेरे हाथों के पोरों पर  छाप   तुम्हारा 
तुम बिन मेरी कोई भी पहचान नहीं है 
बिना तुम्हारे ,होता कुछ भी काम नहीं है 
तुम ही मेरा संबल हो और तुम्ही सहारा 
मैं ,मैं तब हूँ ,जब तक कि है संग तुम्हारा
रहते मेरे साथ हमेशा ,यत्र तत्र हो  
तुम मेरे आधार कार्ड,पहचानपत्र हो 

घोटू  
दोहे 
१ 
सीख गर्भ से आ रही,कम्प्यूटर का ज्ञान 
अभिमन्यु सी हो रही,पैदा अब संतान 
२ 
लिए झुनझुना खेलना ,हुई पुरानी बात 
अब है बच्चे खेलते ,मोबाइल ले हाथ 
३ 
घर घर में ऐसी हुइ,कंप्यूटर की पैठ 
ए बी,सी डी हो गया ,गूगल,इंटरनेट 
४ 
पोती से दादी कहे ,हमको दो समझाय 
व्हाट्सएप पर संदेशे, ,कैसे भेजे जाय 
टीचर से बढ़ कर गुरु ,गूगल ,गुरुघंटाल 
सेकंडों में हल करे, सारे प्रश्न,सवाल 

घोटू 
कबूतर कथा 

जोड़ा एक कबूतर का ,कल ,दिखा ,देरहा मुझको गाली 
क्यों कर मेरी 'इश्कगाह ' पर ,तुमने लगवा  दी  है जाली 
प्रेम कर रहे दो प्रेमी पर  ,काहे को  प्रतिबंध  लगाया 
मिलनराह  में वाधा डाली ,युगल प्रेमियों को तडफाया 
बालकनी के एक कोने में , बैठ गुटर गूँ  कर लेते थे 
कभी फड़फड़ा पंख,प्यार करते,तुम्हारा क्या लेते थे 
मैंने कहा कबूतर भाई ,मैं भी हूँ एक प्रेम  पुजारी 
मुझको भी अच्छी लगती थी ,सदा प्रेम लीला तुम्हारी 
लेकिन जब तुम,हर चौथे दिन ,नयी संगिनी ले आते थे 
उसके संग तुम मौज मनाते ,पर मेरा दिल तड़फाते थे 
क्योंकि युगों से मेरे जीवन में बस एक कबूतरनी  है 
जिसके साथ जिंदगी सारी ,मुझको यूं ही बसर करनी है 
तुम्हे देखता मज़ा उठाते,अपना साथी बदल बदल कर 
मेरे दिल पर सांप लौटते,तुम्हारी किस्मत से जल कर 
मुझको बड़ा रश्क़ होता था ,देख देख किस्मत तुम्हारी 
रोज रोज की घुटन ,जलन ये देख न मुझसे गयी संभाली 
और फिर धीरे धीरे  तुमने ,जमा लिया कुछ अड्डा ऐसा 
तुमने मेरी बालकनी को ,बना दिया प्रसूतिगृह जैसा 
रोज गंदगी इतनी करते ,परेशान होती  घरवाली 
इसीलिए इनसे बचने को ,मैंने लगवा ली है जाली 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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