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शनिवार, 14 जनवरी 2017

आओ हम संग संग धूप चखें 

हो सूरज किरण से आलोकित ,दूना  तुम्हारा रूप सखे 
इस ठिठुराती सी सर्दी में आओ हम संग संग धूप चखें 
निज नाजुक कर से मालिश कर ,तुम मेरे सर को सहलाओ 
मैं छील मुंगफलियाँ तुमको दूं,तुम गजक रेवड़ी संग खाओ 
आ जाए दोहरा मज़ा अगर, मिल जाए पकोड़े खाने को ,
और संग में हो गाजर हलवा  जो मौसम के अनुरूप सखे 
                                   आओ हम संग संग धूप  चखें 
मक्की की रोटी गरम गरम और संग साग हो सरसों का 
मख्खन से हाथों से खाऊं ,पूरा हो सपना  बरसों का 
हो उस पर गुड़ की अगर डली,गन्ने के रस की खीर मिले ,
सोने पे सुहागा हो जाए ,हमको सुख मिले अनूप  सखे 
                                  आओ हम संग संग धूप  चखे 
मैं कार्य भार  से मुक्त हुआ ,चिंता है नहीं फिकर कोई 
हम चौबीस घंटे साथ साथ ,मस्ती करते,ना डर  कोई 
सूरज ढलने को आया पर ,मन में ऊर्जा है ,गरमी  है,
हो गयी शाम,चुस्की ले ले,अब पियें टमाटर सूप  सखे 
                                आओ हम मिलकर धूप चखें 

मदनमोहन बाहेती;घोटू'
मकर संक्रांति पर प्रणयनिवेदन 

दिन गुजारे ,प्रतीक्षा में ,शीत में ,मैंने  ठिठुर कर 
सूर्य  आया  उत्तरायण,नहीं  तुमने  दिया  उत्तर 
है मकर संक्रान्ति आयी ,शुभ मुहूरत आज दिन का 
पर्व है यह खिचड़ी का ,दाल चावल के मिलन का 
हो हमारा मिलन ऐसा ,एक दम ,हो जाए हम तुम 
दाल तुम ,मैं बनू चावल,खिचड़ी बन जाय हमतुम 
कहते कि आज के दिन ,दान तिल का पुण्यकारी 
पुण्य कुछ तुम भी कमा लो,बात ये मानो  हमारी 
इसलिए तुम आज के दिन,प्रिये यहअहसान करदो  
तिल तुम्हारे होठ पर जो है,मुझे  तुम  दान  कर दो 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 4 जनवरी 2017

 परेशां हम खामखां है 

उम्र का ये तो असर है ,परेशां हम खामखां है 
कल तलक हम शूरमा थे ,बन गए अब चूरमा है 

उगलते थे आग हम भी ,थे कभी ज्वालामुखी हम 
पड़े है जो आज  ठन्डे ,हो रहे है क्यों  दुखी हम 
कभी गरमी ,कभी सरदी ,बदलता मिज़ाज़ मौसम 
एक जैसा वक़्त कब  है ,कभी खुशियां है कभी गम 
सूर्य की तपती दुपहरी ,शाम बन कर सदा ढलती 
राख में तबदील होती  है हमेशा  आग जलती 
जोश हर तूफ़ान का  ,एक मोड़ पर आकर थमा है 
उमर का ये तो असर है ,परेशां हम खामखां  है 
क्यों हमारी सोच में अब आ गयी मायूसियां है 
सूरमाओं ने हमेशा  ,शेरो सा जीवन  जिया है 
हमेशा ,हर हाल में खुश ,मज़ा तुम लो जिंदगी का 
सूर्य की अपनी तपिश है ,अलग सुख है चांदनी का 
सख्त होती बाटियाँ है ,चूरमा होता  मुलायम 
दांत में अब दम नहीं तो क्यों इसका स्वाद ले हम 
रौशनी दें जब तलक कि तेल दिए में बचा है 
उमर का ये तो असर है ,परेशां हम खामखां है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

टावर वन की पिकनिक 
१ 
पिकनिक किट्टी के लिए,छोड़ा अपना 'नेस्ट'
टावर वन की  रानियां, जा  पहुंची  ' फारेस्ट'
जा पहुंची ' फारेस्ट ', मचाई  मस्ती  ऐसी 
खुली हवा में ,सजधज ,उडी तितलियों जैसी 
सबने अपना अपना एक  पकवान  बनाया 
सबने मिलजुल ,बीस घरों का स्वाद उठाया 
२ 
वन्दनाजी की सेन्डविच,और पीनट की चाट 
मीनाजी के सूप का ,था अपना ही ठाठ 
था अपना ही ठाठ ,ढोकले तृप्तिजी के 
एक से बढ़ एक स्वाद रहे पकवान सभी के  
सुनीता जी की खीर, जलेबी तारा जी  की 
राज आंटी की चाय ,रही फेवरिट सभी की 
 सीमाजी की पूरियां,मिस्सी ,बड़ी लजीज 
शालिनी जी के दहीबड़े,बड़े गजब की चीज
बड़े गजब की चीज ,स्नेहा जी  के छोले 
अनीता जी की दाल बाटियाँ ,सर चढ़ बोले 
मोनिका जी का चिल्ली चाप ,चटपटा सुहाया 
कंचन जी का फ्रुटसलाद ,सभी को भाया 
४ 
मिले जुले पकवान थे ,मिलाजुला था स्वाद 
मिल जुल खाये सभी ने,सदा रहेंगी याद 
सदा  रहेगी  याद ,किट्टी के पिकनिक वाली 
खुली  धूप  में खेलकूद और मस्ती प्यारी 
फिर भी दिल का एक कोना था सूना सूना 
होते पति जो साथ,मज़ा आ जाता  दूना 

घोटू 
  
 


              

रविवार, 1 जनवरी 2017

गुजरते लम्हे.

हर "दिन" अपने संग कुछ लेकर आता है
कभी कुछ  हमसे ले कर चले जाता है,

जो कभी टूटे जाये कोई ख़्वाब अपना,
तो अगला पल फिर नयी उम्मीदे ले अाता है,

किसी पल जो गम में भींग जाये आँखे,
तो अगला लम्हा यार के मानिद रुमाल थमाता है,

जो एक पल को ख़ुशी हो भी जाए जुदा तुमसे,
तो अगला पल मुस्कुरा के बाँहे फैलाता है,

कोई लम्हा ले आता हैै, मौसम ऐ हिज़्र
तो कोई दिन यहाँ, शाम ऐ वस्ल दे जाता है,

कोई दिन यहां वीरानियों के मेले दिखाता है
तो दिन का कोई लम्हा महफ़िल ऐ अहवाब सजाता है,

कोई लम्हा ठोकर देकर गिराता है ,
तो अगला लम्हा फिर से उठकर जीना सिखाता है,

यूँ ही लम्हे दर लम्हे, एक लम्हे में साल गुज़र जाता है,
तो आता लम्हा अपने संग एक नया साल ले आता है,

बस जीना होता है, हर लम्हे में ज़िन्दगी को यहाँ,
की रिवाज़ ऐ वक़्त है "शज़र"
जो बीता तो फिर वापस नही आता.!

©अंकित आर नेमा "शज़र"






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