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गुरुवार, 12 नवंबर 2015

लक्ष्मीजी की पीड़ा

       लक्ष्मीजी की पीड़ा 

दिवाली की रात लक्ष्मी माई
मेरे सपनो में आई
मैं हतप्रभ चकराया
मैंने ना पूजा की ना प्रसाद चढ़ाया
बस एक आस्था का,
 छोटा सा दीपक जलाया
फिर भी इस वैभव की देवी को ,
इस अकिंचन का ख्याल कैसे आया
मुझे विस्मित देख कर ,
लक्ष्मी माता मुस्कराई
बोली इस तरह क्यों चकरा रहे हो भाई
तुमने सच्चे मन से याद किया ,
मैं  इसलिए तुम्हारे यहाँ आई
लोग इतनी रौशनी करते है ,
आतिशबाजी चलाते है
मनो तेल के लाखों दीपक जलाते है
लेकिन उनको  ये समझ नहीं आता है
 मेरी पूजा अमावस को इसलिए होती है,
क्योंकि मेरे  वाहन उल्लू को,
अंधियारे में ही ठीक से नज़र आता है
 वो उजाले से घबराता है
तुम्हारे यहां अँधियारा दिखलाया
इसीलिये वो मुझे  यहाँ पर ले आया
 मुझे एक बात और चुभती है
दिवाली पर जितना तेल ,
लोग दियों  में जलाते है ,
उतने में कई गरीबों को ,
चुपड़ी हुई रोटी मिल सकती है
मेरी पूजा और आगमन की चाह में ,
मुझी को पानी की तरह बहाना ,
मेरे साथ नाइंसाफी है
मुझे प्रसन्न करने के लिए तो,
श्रद्धा से जलाया ,एक दीपक ही काफी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


मंगलवार, 10 नवंबर 2015

बदलता मौसम

        बदलता मौसम

धुंधली धुंधली सुबह ,साँझ  भी धूमिल  धूमिल
शिथिल शिथिल सा तन है,मन भी बोझिल बोझिल 
शीतल शीतल पवन ,फ़िज़ा बदली बदली है
 मौसम  ने ये  जाने  कैसी  करवट  ली  है
बुझा बुझा सा सूरज कुछ खोया खोया  है
अलसाया अलसाया दिन, सोया सोया  है 
सिहरी सिहरी रात ,हुई  हालत पतली  है
मौसम ने  ये  जाने  कैसी  करवट ली  है
टूटे टूटे सपन , कामना  उधड़ी  उधड़ी
चिन्दी चिन्दी चाह,धड़कने उखड़ी उखड़ी
छिन्न छिन्न अरमान ,तबियत ढली ढली है
मौसम   ने  ये  जाने  कैसी  करवट ली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फिर से मेग्गी -चार दोहे

         फिर से मेग्गी -चार दोहे

ना तो भाये पूरी कचौड़ी ,और ना भाये मिठाई
बहुत दिनों के बाद प्लेट में ,मेग्गी माता आई

मन में फुलझड़ियाँ छूटे ,फूटे खूब पटाखे
लक्ष्मीमाता को पूजेंगे ,मेग्गी नूडल खाके

वही सुनहरी प्यारी आभा,वो  ही स्वाद पुराना
बहुत दिनों के बाद मिला  है ये मनभावन खाना

नरम मुलायम यम्मी यम्मी ,खाकर मन मुस्कायो
दीवाली पर तुम्हे देख कर,'प्रेम रतन धन पायो '

घोटू

सोमवार, 2 नवंबर 2015

वो कौन है

          वो कौन है

जिसकी एक नागा भी नागवार गुजरे ,
 वो जब तक ना आये ,बैचैनी  बढ़ती
जिसके आने से मिलती दिल को राहत ,
जिसका रास्ता ,रोज निगाहें है तकती
मुझसे भी ज्यादा मेरी बीबीजी को ,
इन्तजार होता है जिसके आने का
उसके संग होती मीठी मीठी बातें,
जली कटी सब मुझको सिर्फ सुनाने का
आस पास की सारी खबरें जो देती,
किस का किस के साथ चल रहा है लफड़ा 
जिस दिन उसकी मेहर नहीं होती है तो,
उस दिन सारा घर लगता उजड़ा उजड़ा
जिसके आने से घरबार संवर जाता ,
जिसकी,फुर्ती,तेजी ,हर बात निराली है
मुझसे भी ज्यादा मेरी बीबीजी को,
लगती प्यारी ,वो बाई  कामवाली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
          

पिछलग्गू पुरुष

       पिछलग्गू पुरुष

पुरुष की अग्रणीयता ,
शादी के पहले चार फेरों तक ही सीमित रहती है
क्योंकि उसके बाद,बाकी तीन फेरों में,
औरत आगे आ जाती है ,
और उसके बाद,उमर भर,पति से आगे ही रहती है
पति बेचारा,पिछलग्गू बना ,
उसकी हर बात मानता है
उसके इशारों पर नाचता है ,
ये बात सारा जमाना जानता है
अंग्रेजी में भी 'लेडीज फर्स्ट' याने,
महिलाओं को वरीयता दी जाती है
पुरुष मेहनत कर , धनार्जन करता है ,
पर औरतें गृहलक्ष्मी कहलाती है
घर की सुख शांति के लिए ,
इनकी हाँ में हाँ मिलाना आवश्यक होता है
और जो पति ये नहीं करता,रोता है
इसलिए जो भी पुरुष ,
पत्नी का अनुगामी बन ,
उसके पीछे पीछे चलता है
उसे जीवन के सब सुख प्राप्त होते है ,
और वो फूलता,फलता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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