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सोमवार, 28 सितंबर 2015

चक्कर चुनाव का

    चक्कर चुनाव का

खुद आये है हार पहन कर ,
और कहते है हमें जिता  दो
हाथ जोड़ मनुहार कर रहे,
अबके नैया पार लगा दो
पार्टी और न निशान देखिये
बस काबिल इंसान  देखिये
प्रत्याशी की भरी भीड़ में,
कोई भी इन सा न देखिये
इधर उधर की तुम सोचो मत
बस हमको दे दो अपना मत
और किसी को मत,मत देना ,
मत दो हमें,बढ़ाओ हिम्मत
ये तुम्हारा वोट नहीं है ,
ये तो एक 'बोट '  है भैया
इस चुनाव के भवसागर को,
पार कराएगी  ये  नैया
मत दे,मतलब पूरा कर दो,
हमे जीत उपहार दिला  दो
हाथ जोड़ मनुहार कर रहे ,
प्यार दिखा कर ,पार लगा दो

घोटू

          

प्रताड़ना

             प्रताड़ना

मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झांक रहे हो,
    अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो
मैं सोने की,मेरा मूल्य आंकते हो क्या ,
   थोड़ी अपनी भी औकात आंक कर देखो
यूं क्यों ताक झाँक करते हो नज़र बचा कर,
       तुम्हारे मन के अंदर क्या जिज्ञासा   है
एक झलक पा भी लोगे,क्या मिल जाएगा
      पूर्ण न होती इससे मन की अभिलाषा है
मैं ही क्या,तुमको जो भी कोई दिखती है,
     उसको आँखे फाड़ फाड़ घूरा करते तुम
कौन कामना तुम्हारी जो पडी अधूरी ,
      हर नारी को देख ,जिसे पूरा करते तुम
लो मैं ही बतला देती हूँ इनके अंदर,
      छिपे हुए है वो स्नेहिल ,ममता के निर्झर
जिनसे तुम्हारी माँ ने था दूध पिलाया ,
     तुमको बचपन में ,अपनी गोदी में लेकर
जिनसे चिपका कर तुमको बाहों में बांधे,
     कितनी बार गाल तुम्हारे चूमे होंगे
निज ममता के गौरव पर इतराई होगी,
    जब तुम उसकी बाहों में आ झूमे  होगे
नारी तन की सौष्टवता के ये प्रतीक है,
   इनमे छिपी विधाता की वह अद्भुत रचना
जिस ज्वालामुखी की झलक ढूंढते हो तुम,
   वो हर माँ के गौरव है,ममता का झरना
पर तुम्हारी नज़रें काली भँवरे जैसी ,
    दिखला रही कलुषता है तुम्हारे मन की
तुम्हारी माँ,बहन सभी संग होती होगी ,
     ये विडंबना है ,हर नारी के जीवन की
अरे कभी कुछ तो सोचो ,ये क्या करते हो  ,
   अपना  गिरेबान में कभी ताक  कर  देखो
मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झाँक रहे हो ,
     अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 

आरक्षण के पौधे

        आरक्षण के पौधे

वर्ण व्यवस्था के चक्कर में ,बरसों तलक गये रौंदे है
 हम  आरक्षण के पौधे है 
अब तक दबे धरा के अंदर , कहलाते  कंद मूल रहे हम 
खाद मिला आरक्षण जब से ,तब से ही फल फूल रहे हम 
  फ़ैल गई जब जड़ें हमारी, तो क्यों कोई हमे  रौंदे है  
 हम आरक्षण के पौधे है  
 सत्तर प्रतिशत ,सरकारी पद, परअब तो अपना कब्जा है
  कौन उखाड़ सकेगा  हमको,किसमे अब इतना जज्बा है
 दलितों के उत्थान हेतु ,हम किये गए समझौते है 
हम आरक्षण के पौधे है    
कुछ मांग समय की ऐसी थी ,दलितों को उन्हें उठाना था
 राजनीति के भवसागर में अपनी नाव चलाना था   
वोटों के खातिर चुनाव में ,किये सियासी सौदे है
 हम आरक्षण के पौधे है   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                      
      

         सच्चे मित्र     
               1
जब रहती रौशनी ,तब तक साया साथ
संग छोड़ते है सभी, जब आती है  रात
जब आती है रात , व्यर्थ सब रिश्ते नाते
बुरे वक़्त में लोग तुम्हे पहचान न पाते
 कह घोटू कविराय ,सगा भी तुम्हे भगाये 
केवल सच्चा मित्र ,अंत तक साथ निभाये  
                 2     
कल तक तपती धूप थी ,बादल छाये आज
 बदल रहा है इस तरह ,मौसम का मिजाज
मौसम का मिजाज ,ऋतू सब आती,जाती
कभी शीत  या ग्रीष्म,कभी मौसम बरसाती
पग पग पर जो हर मौसम में साथ निभाये
कह 'घोटू 'कवि,वो ही सच्चा मित्र  कहाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             
                                             

 
 

ईश वंदना

        ईश वंदना

हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो 
मुझ में तुम स्थिरता भर दो 
नहीं चाहता डेढ़ ,पांच या दस दिन का मैं बनू गजानन
या नौ दिन की दुर्गा बन कर,करवाऊं पूजन और अर्चन
और बाद  में धूम धाम से ,कर  दे मेरा  लोग  विसर्जन 
मुझको तुलसी के पौधे सा ,
निज आँगन स्थपित कर दो
हे प्रभु मुझको  ऐसा वर   दो
न  तो जेठ की दोपहरी  बन, तपूँ ,आग सी बरसाऊँ  मैं
या बारिश की अतिवृष्टी सी, बन कर बाढ़,कहर ढ़ाऊं मैं
ना ही पौष माघ की ठिठुरन ,बन कर बदन कँपकँपाऊँ मैं
मेरे जीवन का हर मौसम ,
हे भगवन  बासंती  कर दो 
हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो
मेंहदी लगा,हाथ पीले कर ,मुझको सजा,बना कर दुल्हन
ले बारात ,ढोल बाजे संग ,मुझे लाओ घर ,बन कर साजन
चार दिनों के बाद लगा दो ,करने घर का ,चौका ,बरतन
मुझको सच्ची प्रीत दिखा कर ,
अपने मन मंदिर में धर  दो
हे प्रभु मुझको ऐसा  वर  दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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