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शनिवार, 3 जनवरी 2015

हमें बस केक खानी है

        हमें बस केक खानी है

हमारी अपने बचपन से  ,यही आदत पुरानी है
बहाना कुछ भी लेकर के ,हमें खुशियां मनानी है
है सर्दी जो अगर ज्यादा ,गरम हलवा हमें भाता ,
अगर बारिश जो हो जाए,पकोड़ी हमको खानी है
कहीं म्यूजिक अगर बजता ,थिरकने पैर लगते है,
जनम दिन हो किसी का भी ,हमें बस केक खानी है 
निकलती जब भी बारातें ,बेंड की धुन पर हम नाचे,
हम अब्दुल्ला दीवाने है  ,भले शादी बेगानी  है 
कभी गम को गलत करने ,ख़ुशी का या जशन करने ,
बहाना कुछ भी लेकर के ,दारु, पीनी पिलानी  है
ख़ुशी हो चाहे,चाहे गम, रहे हँसते हमेशा हम ,
जिंदगी चार दिन की है ,खुशी  से ही बितानी है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
        पुरानी  इमारत
न टूटे  जोड़  ईंटों  के, नहीं  उखड़ा  पलस्तर है
दरो दीवार इस घर की ,अभी तक सब सलामत है
नहीं  वीरानगी  इसमें ,बसावट  तेरी यादों की ,
लखोरी ईंटों  वाली ये ,बड़ी पुख्ता  इमारत है
पुरानी प्यार की बातें , खुशबूयें वो  जवानी की,
यहाँ पर हर तरफ बिखरी मोहब्बत ही मोहब्बत है
नज़ारे  कितने ही रंगीनियों के , इनने  देखे  है ,
छुपा कर राज़ सब रखना ,दीवारों की ये आदत है
भले दिखती पुरानी है ,चमक आ जाएगी इनमे ,
 ज़रा सा रंग  रोगन बस ,कराने की जरुरत  है
न तो ये खंडहर होगी ,न ही स्मारक बनेगी ये,
बनेगी 'हेरिटेज होटल',पुरानी शान शौकत है
हो गए हम भी है बूढ़े ,पुरानी इस इमारत से ,
साथ यादों के जी लेंगे ,हमें फुरसत ही फुरसत है
नहीं दो रूम वाले फ्लेट की इस संस्कृति में हम,
कभी हो पाएंगे फिट ,हमें तो बंगले की  आदत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

पैसा और पानी

           पैसा और पानी

                                              
नहीं हाथ में बिलकुल टिकता,निकल उँगलियों से बहता है
                                             पैसा पानी  सा रहता है
पानी तब ही टिक पाता है,रखो बर्फ सा इसे जमा कर
पैसा भी तब ही टिकता है,रखो बैंक में   इसे जमा कर
ज्यादा गर्मी पाकर पानी  ,बनता वाष्प और उड़ जाता
लोगों की जब जेब  गरम  हो, पैसा खूब  उड़ाया जाता
पानी जब बनता समुद्र  है ,तो खारापन   आ जाता है
अक्सर ,ज्यादा पैसे वालों में  घमंड सा छा जाता है
पानी सींच एक दाने को ,कई गुना कर ,फसल उगाता
लगता जब पैसा धंधे में ,तो वह दिन दिन बढ़ता जाता 
जैसा पात्र ,उसी के माफिक, पानी अपना रूप बदलता
रूप बदल जाता लोगों  का ,जब उनका सिक्का है चलता
पानी जब बन बहे पसीना ,मेहनत  कर पैसा  आता है
पैसे वालों के चेहरे पर ,अक्सर पानी  आ  जाता है 
 जैसे  जल होता है जीवन,पैसा भी होता है जीवन
 पानी कलकल कर बहता  है ,तो पैसा चलता है खनखन
 पैसा लक्ष्मी सा चंचल है  ,पानी भी चंचल  बहता है
                                         पैसा  पानी सा रहता  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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