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शनिवार, 1 नवंबर 2014

मिज़ाज़ -मौसम का

             मिज़ाज़ -मौसम का

बदलने लग गया है इस तरह मिज़ाज़ मौसम का,
कभी सर्दी में गर्मी है कभी बरसात रहती है
हवा के रुख का बिलकुल भी ,नहीं अबतो पता चलता ,
कभी थमकर के रह जाती ,कभी तेजी से बहती है
बदलने लग गयी है ऐसे ही इंसान की फितरत ,
भरोसा क्या करे,किस पर ,पता ना कब दगा दे दे ,
भुला बैठा है सब रिश्ते ,पड़ा है पीछे  पैसों के ,
करोड़ों की कमाई की ,हमेशा  हाय रहती  है
कमाने की इसी धुन में ,हजारों गलतियां करता ,
भुला देता धरम ईमान और सच्चाई का रास्ता ,
पड़ा  नन्यानवे  के  फेर में रहता भटकता  है,
उसे अच्छे बुरे की भी ,नहीं पहचान  रहती   है
इमारत की अगर बुनियाद ही कमजोर हो और फिर,
मिला दो आप सीमेंट में,जरुरत से अधिक रेती ,
बिल्डिंगें इस तरह की अधिक दिन तक टिक नहीं पाती  ,
जरा सा झटका लगता तो,बड़ी जल्दी से ढहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तकिया-प्यार की दीवार

        तकिया-प्यार की दीवार

बिस्तरे पर पड़ा रहता ,यूं ही आँखें मीच मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी,तकिया हमारे बीच में
 
नरम और चिकना ,मुलायम,सुहाना अनमोल था
बाहों में कितना दबालो ,नहीं कुछ भी बोलता
कभी था सर का सिरहाना ,देता सुख की नींद था
और विरह के पलों में जो  तुम्हारे  मानिंद  था
नियंत्रित वो आजकल, कर रहा अपना प्यार है
बीच  में  मेरे तुम्हारे ,बन  गया  दीवार  है
बीच में संयम का दरिया हम न करते पार ,पर
बदलते रहते है करवट,तुम इधर और मैं उधर
चाहता हूँ पार करना ,रोज ये दहलीज   मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी ,तकिया हमारे बीच में
एक इसके साथ ही थे ,रात भर हम जागते
एक इसके सामने ही ,लाज थे हम त्यागते
एक ये ही साक्षी है  अपने मिलन,उन्माद का 
एक ये ही था सहारा ,सुख,शयन का,रात का
आजकल संयम शिखर सा ,बीच में है ये खड़ा
मौन मैं भी,मौन तुम भी ,मौन ये भी है पड़ा
मन बहलता आजकल बस दूर से ही देख कर
इधर मै प्यासा  तरसता ,तड़फती हो तुम उधर
देख ये बाधा मिलन की बहुत जाता खीज मै
नींद क्या खाक आएगी  ,तकिया हमारे बीच में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेल

                        मेल
इस दुनिया में बहुत से लोग ऐसे भी खिलाड़ी है ,
          दिलों से खेलना जिनके लिए एक खेल होता है
बहुत इतराते है कुछ तिल ,जो उनके गाल पर बैठे ,
         मगर ये तिल ,नहीं वो तिल कि जिनमे तैल होता है
परीक्षा प्यार की हर एक को ही देनी पड़ती है ,
         नतीजा जब निकलता   पास ,कोई फ़ैल होता है
यूं मिलना जुलना तो किसी से कब भी हो सकता,
         नहीं हो मैल जब मन में ,तो मन का मेल   होता है

घोटू

कम्बल

            कम्बल

मुश्किल से ही मिल पाता  है ,
            जो सुख हमको केवल,कुछ पल
उस सुख से लाभान्वित होते ,
                  रहते हो तुम,रात रात भर 
बड़े प्यार से छाये रहते
                  हो गौरी के तन के ऊपर
लोग तुम्हे कहते  है कम्बल ,
                   पर तुममे सबसे ज्यादा  बल

घोटू

पहली तारीख

             
                    
                   पहली तारीख
 
पहली तारीख की रही ना,पहली वाली बात अब,
          नगद नोटों में मिला करती थी हमको सेलरी
एक दिन तो समझते थे ,हम भी खुद को बादशाह,
            जब कि  नोटों से हमारी ,जेब रहती थी भरी 
करती थी बीबी प्रतीक्षा,बना अच्छा नाश्ता ,
            बच्चों की फरमाइशों का दौर आता था नया
जब से तनख्वाह बैंक में होने लगी है ट्रांसफर ,
            वो करारे नोट गिनने का का सुहाना थ्रिल गया

घोटू

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