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सोमवार, 30 सितंबर 2013

पुनर्मिलन

      पुनर्मिलन

निवेदन तुमसे प्रणय का
भाव था मेरे ह्रदय का
प्रकट जो मैंने किया था
झटक बस तुमने दिया था
और फिर रह अनमने से
गर्व से थे पर तुम सने से
आपने ये क्या किया था
निवेदन ठुकरा दिया था
अगर तुम जो ध्यान देते
बात मेरी मान लेते
प्रीत की बगिया महकती
जिंदगानी थी चहकती
पर नहीं एसा हुआ कुछ
चाह  थी,वैसा हुआ  कुछ
आपने दिल तोड़ डाला
मुझे  तनहा छोड़ डाला
आज हम और तुम अकेले
कब तलक तन्हाई झेले
आओ फिर से जाए हम मिल
दूर होगी सभी मुश्किल
लगे ये जीवन चहकने
प्यार की बगिया महकने
देर पर दुरुस्त  आये
फिर से जीवन मुस्कराये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेंकू

         फेंकू

दिल्ली में शेर दहाड़ा
तो सत्तारुढो ने  ताड़ा
मोदी आया पोस्टर फाड़
देगा सबको फेंक ,उखाड़
इसीलिए पोस्टर लगवाया
आया आया ,फेंकू  आया

घोटू

इन्टेरियर

              इन्टेरियर

एक ज़माना होता था जब हम ,
अपने दिवंगत पुरखों को करते थे याद
श्रद्धानत होकर के ,करते थे श्राद्ध
अपने घरों में उनकी तस्वीर टांगा  करते थे
पुष्पमाला चढ़ा ,आशीर्वाद माँगा करते थे
पर आज के इस युग में
ढकोसला कहलाती है ये रस्मे
नयी पीढी ,अक्सर ये तर्क करती है
ब्राह्मण को भोजन कराने  से,
दिवंगत आत्मा को,तृप्ति कैसे मिलती है
आजकल के   सुसज्जित घरों में ,
दिवंगत पुरखों की कोई भी तस्वीर को,
नहीं लटकाया जाता है
क्योंकि इससे ,घर का,
 'इन्टेरियर 'ही बिगड़ जाता है
सच तो ये है कि पाश्चात्य संस्कृति का,
रंग आधुनिक पीढी पर इतना चढ़ गया है
कि इस भौतिकता के युग में,
उनका 'इन्टेरियर'ही बिगड़ गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 29 सितंबर 2013

mere patne by akhand gahmari

वो कहती है हम उनके दिल अजीज है
जान है वो हमारी हम उनकी जान है
उमड पडा उनका प्‍यार एक दिन
कर दिया निहाल प्‍यार से अपने एक दिन
क्‍या बताउू यारो कैसे किया प्‍यार एक दिन
झाडू मार कर जगाया कुत्‍ते की तरह
घर की सफाई करवायी महरी की तरह
मजवाया बर्तन हमसे कुछ यू इस तरह
पटक कर बर्तन बोली हिटलर की तरह
जानू बर्तन चमकाना बिम बार की तरह
उनके जानू कहने पर जोश था आया
बर्तन क्‍या बतर्न के वाप को चमकाया
चल पडा ये सोच कर करके स्‍नान
करूगा मैटम केा प्‍यार एक मजनू की तरह
लगा ग्रहण मेरे प्‍यार केा चॅाद की तरह
कपडेा की गठरी ले प्रकट हुई भत की तरह
कपडे धुलवाये,खाना बनवायी बास की तरह
हो गया पसीने लतपथ मैं
बैठा पंखे की नीचे मजदूर की तरह
तभी आकर पसर गयी सोफे पर जल्‍लाद की तरह
मेरे माथे पर अपना हाथ प्‍यार से फेर दिया
कोई काम ठीक से नही करते हेा
कह कर सेडिल से हमें पीट दिया
फिर बडे प्‍यार से पास बुलाया
बोली जानू तुम बडे अच्‍छे हेा
कितना प्‍यार करते हेा
आई लव यू कहती हू तुम लव टू ये बोलो जरा
फिर वह हसते हुए बोली जानू
क्‍या करती जानू आज महरी नहीं आयी थी
और मैं 5लाख रूपया दहेज में लेकर आयी थी
मेरे परम ससूर जी ने मेरे पापा से कहा था
बेटी 5 लाख लेकर जायेगी तेा सुख से रहेगी
पाव जमीन पर नहीं पडेगें उसे कामो से रहेगी
अब तुम ही बताओ जानू कैसे मिलता सुख
महरी नही आयी थी इस लिये करना पडा आपको
मैने सोचा सही है अखंड 5 लाख लेकर आयी
डाडू पोछा करने लिये,5 लाख में उसने खरीद लिया
बिक गया है हर इंसान दहेज की लालच में
जल रही दहेज की आग में लडकी लकडी की तहर
अगर मेरी बीबी ने काम ही करनवा महरी कती तरह
तो क्‍या गम है मैं उका जानू और वह मेरी जानू है
5 लाख में बिका हुआ एक खुशनसीब मजदूर हू
अखंड गहमरी

रात से सुबह तक -चार छोटी कवितायें

रात से सुबह तक -चार छोटी कवितायें
                       १
                  झपकी
दिन भर के काम की थकावट
पिया से मिलन की छटपटाहट 
जागने का मन करे ,नींद आये लपकी
                                        झपकी
                    २
             खर्राटे
अधूरी कामनाये ,दबी हुई बांते
जिन्हें दिन में हम ,बोल नहीं पाते
रात को सोने पर ,निकलती है बाहर
                         बन कर खर्राटे
                      ३
             उबासी 
चूम चूम बार बार ,बंद किया मुंह द्वार
निकल ही नहीं पायी ,हवाएं बासी
उठते जब सोकर ,बेचैन होकर ,
निकलती बाहर है ,बन कर  उबासी
                       ४
              अंगडाई
प्रीतम ने तन मन में ,आग सी लगाई
रात भर रही लिपटी ,बाहों में समायी
प्रेम रस लूटा ,अंग अंग टूटा ,
उठी जब सवेरे तो आयी अंगडाई

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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