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शुक्रवार, 28 जून 2013

संगत का असर


    संगत का असर 
हम रहते है जिनके संग मे 
हमे रंगना पड़ता है,उनही के रंग मे 
हमारे सोचने का ढंग,
उनके जैसा ही हो जाता है 
और उनके सुख दुख का ,
हम पर भी असर आता है 
नेताओं के साथ साथ ,चमचे भी पूजे जाते है 
पति और पत्नी ,
एक दूसरे के साथ,हँसते गाते है 
आपने देखा होगा ,मंदिर मे,
शिवलिंग पर जब लोग जल चढ़ाते है 
तो पास मे बैठी हुई ,
अच्छी ख़ासी चूनरी ओढ़े ,
पार्वती जी  को भी भिगाते है
और तो और ,उनके बेटे गणेशजी और 
कार्तिकेय के साथ साथ,
उनके वाहन नंदी को भी नहलाते है 
सारा परिवार जब साथ साथ रहता है 
तो सारे सुख और दुख,संग संग सहता है 
इसलिए ये बात हमे ठीक ठीक समझना चाहिए 
हमे किसी का भी साथ,
सोच समझ कर ही करना चाहिए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

एक कवि पत्नी की व्यथा


     एक कवि पत्नी की व्यथा 

एक हनुमान जी थे,
जो अपने बॉस के दोस्त की,
 बीबी को ढूँढने के लिए  
समुंदर भी लांघ गए थे 
एक तुलसी दास जी थे,
जो बीबी से मिलने को बेकल हो,
उफनती नदी को पार कर,
साँप को रस्सी समझ लटक गए थे 
और एक हमारे हनुमान भक्त ,
कविराज पति जी है,
जो करते तो है बड़ी बड़ी बातें 
पर रात को बिस्तर पर पड़ा ,
एक तकिया तक नहीं लांघ पाते 
कविजी की पत्नी ने ,
अपनी व्यथा सुनाई,शर्माते,शर्माते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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गुरुवार, 27 जून 2013

बुढ़ापे की पीड़ा-चार मुक्तक


        
          बुढ़ापे  की पीड़ा -चार मुक्तक
                       1
क्या गज़ब का हुस्न था,वो शोख थी,झक्कास थी
धधकती ज्वालामुखी के बीच जैसे आग   थी
देख कर ये,कढ़ी बासी भी उबलने  लग गयी,
मन मचलने लग गया,नज़रें हुई  गुस्ताख़ थी
                        2
हम पसीना पसीना थे,हसीना को देख कर
पास आई ,टिशू पेपर ,दिया हमको ,फेंक कर
बोली अंकल,यूं ही तुम क्यों,पानी पानी हो रहे ,
किसी आंटीजी को ताड़ो,उमर अपनी देख कर
                        3
  जवानी की यादें प्यारी,अब भी है मन मे बसी
  बड़े ही थे दिन सुहाने,और रातें थी  हसीं
  बुढ़ापे ने मगर आकर,सब कबाड़ा कर दिया ,
  करना चाहें,कर न पाये,हाय कैसी  बेबसी
                     4
घिरते तो बादल बहुत हैं,पर बरस पाते नहीं
उमर का एसा असर है ,खड़े हो पाते नहीं
देखकर स्विमिंगपूल को,मन मे उठती है लहर,  
डुबकियाँ मारे और तैरें,कुछ भी कर पाते नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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