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मंगलवार, 24 सितंबर 2013

बेतुकी रचना

सूरज की तपिश,चाद की शीतलता
चॉद की चादनी में निखरता चेहरा
दिन के उजाले में उभरी प्रतिभा की बाते
की बात करता एक कव‍ि है

शब्‍दो केा मालो में पिरोता कवि
फिॅर भी गुमनामी की जिन्‍दगी जीता कवि है
गुमसुम उदास आखेा में हसीन सपने दिखाता कवि है
भागभाग की जिन्‍दगी में सकून के पल देता कवि है

फिर भी गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता कवि है...
रोते हुए चेहरे को हसाता एक कवि है
जिन्‍दगी से हारे हुए को हौसला देता कवि है
फिर भी गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता एक कवि है

प्रेम की परिभाषा बताता कवि है
दिल का दर्द दिल की बाते बताता एक कव‍ि है
हर शख्‍स को आइना दिखता है एक कव‍ि है
फिर गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता एक कव‍ि है

चंद सिक्‍को का भूखा नहीं है कवि अखंड
सम्‍मान का मोहताज नहीं है कवि
कवि तो बस भूखा है दशाहीन ,दिशाहीन समाज को
दशा और दिशा देने का,भटकते समाज केा सुधारने का 

अखंड को हसाने का दुख और भागमभाग के दौर में
दो पल आपको सूकून के देना का
यह सब केवल सोचता एक कवि है मगर आज भी
गुमनामी की जिन्‍दगी जीता एक ''''''''''''''''

बेटी काहे भईल पराई


लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई
कइ देहलन कन्‍यादान बाबू 
भईया लौआ देइलस मिलाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

नौ महीनवा रहनी तोरा खोखिया में माई 
बधनी रखीवा हम भइया तोरा कलाई 
इस सभे बतीया कैसे हम भूलाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

सास ससुर देवर ननद के करी सेवकाई 
पति के हम देवता बूझी ओकरो करी सेवकाई 
भले देई डाल किरासन उ हमके जराई 
बैईठत डोली इहे बतउलस हमार माई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई |

इंदिरा गाधी,किरण बेदी,कल्‍पना चावला 
केतना नाम हम बताई इहो सब त बेटीये रहली 
देहली कुल के नाम चमकाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई |

बेटी ना करी अब खाली चौका बरतन 
ना रही अब बन के खाली दाई 
तोरा बेटवन से भी आगे 
जा के नाम आगे नाम कमाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

नइखे अब अब कौनो अन्‍तर 
नहीरा ससुरा में ए माई 
कुल के दीपक बेटवे ना 
बेटीओ अब कहाई | 

बेटवे ना जरीई हे अब कुल के दीपक 
अखंड बेटीयो अब जराई 
लगते सिंदूरवा ये माई 
बेटी ना होई पराई | 

सास ससुर मरदा के संगें 
नमवा तोरे आई ये माई 
चढते डोलीया ये अखंड भईया 
बेटीया ना होई पराई |

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