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रविवार, 6 मई 2012

नया जन-प्रतिनिधि

बनकर नव जन-प्रतिनिधि
हुआ आगमन मंच पर,
नमन कराकर सबसे
यह शीलवान ,
शुरू करता ह आत्म-आख्यान .....

शिक्षा- व्यापार में हूँ मैं,
राजनीति के प्रसार में हूँ मैं.
लोक-सभा में भी मैं,
और शोक सभा में भी मैं..!

मेरा अहं ही सब पर हावी,
सब की किस्मत की मैं चाबी,
ख्वाबो -ख्यालों में ही सही...

नग्न के झोपड़े में भी मैं,
इंसानी जूनूं के खोपड़े में भी मैं,
भोग-विलास में भी मैं,
निर्धनता की आस में भी मैं..!

नामौजूदगी में मेरी ,
ना हो कोई सौदा,
ना ही आंतरिक संधि,
ना ही कोई मसोदा क्योंकि...

हर व्यापार मैं भी मैं,
देश के सार में भी मैं,
कामगार में भी मैं,
और सरकार में भी मैं..!

तो समझ लूं..
मिलेंगें सब वोट मुझे ,
दावा है ये मेरे मन का,
पर प्रतिनिधि का नाम जानना,
अधिकार है जन-जन का....!

सोचते होगें
ये प्रतिनिधि है कैसा,
अरे अज्ञानी मतदाता..!
मेरा नाम है "पैसा"...!!

रचनाकार-कविता राघव

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