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सोमवार, 4 सितंबर 2017

मैं क्यों बोलूं ?

मैं क्या बोलूं,? मैं क्यों बोलूं?
सब चुप,मैं ही ,क्यों मुख  खोलूं ?
चीरहरण हो रहा द्रोपदी का सबकी आँखों के आगे 
कुछ अंधे है,कुछ सोये है,मज़ा ले रहे है कुछ जागे  
और कुछ की लाचारी इतनी,मुख पर लगे हुए है ताले 
कुछ चुप बैठे ,डर  के मारे, अपने को रख रहे संभाले 
चीख चीख गुहार कर रही ,त्रसित द्रौपदी,मुझे बचाओ 
मैं ,असमंजस में व्याकुल हूँ ,कोई मुझको राह दिखाओ 
कुटिलों की इस भरी सभा में,मैं सर पर यह आफत क्यों लू 
मैं क्या बोलूं? मैं क्यों बोलूं?
मेरा मन विद्रोह कर रहा ,शशोपज है,उथलपुथल  है
एक तरफ तो मर्यादा है ,एक तरफ शासन का बल है 
मेरा अंतःकरण कह रहा ,गलत हो रहा,सही नहीं है 
लेकिन मैं विद्रोह कर सकूं,हिम्मत मुझमे अभी नहीं है 
मेरा मौन ,स्वकृति लक्षण बन ,मुझे कर रहा है उद्वेलित
किसे पता है ,महासमर का ,बीजारोपण ,है ये किंचित 
मेरा ही जमीर गायब है ,औरों की क्या नब्ज  टटोलूं 
मैं क्या बोलूं?मैं क्यों बोलूं?
होनी को जब होना होता,तारतम्य  वैसा बनता है 
संस्कार सब लोग भुलाते ,बैरभाव मन में ठनता है 
धीरे धीरे ,ये घटनाये ,बन जाती है ,विप्लव मिलकर 
छोटी छोटी कुछ भूलों के ,होते है परिणाम ,भयंकर 
क्या मेरे तटस्थ रहने से ,यह माहौल ,सुधर पायेगा 
दुष्ट और प्रोत्साहित होंगे ,महासमर ना टल पायेगा 
इस विध्वंशक गतिविधि का,करूं विरोधऔर मुंह खोलूं 
मैं क्या बोलूं ?मैं क्यों बोलूं?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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