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शनिवार, 5 अगस्त 2017



ये दिल कितना पगला होता 

बीती बातें भुला न पाता ,लक्ष्य सामने अगला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
अपनी तीन गर्लफ्रेंडों संग ,वो मुश्किल से निभा रहा है 
लेकिन फिर भी मन ना भरता,वो चौथी को पटा रहा है  
उसे पता जब शादी होगी, बीबी नहीं भटकने  देगी 
कन्ट्रोल रख ,नहीं किसीको ,उसके पास फटकने देगी 
लेकिन फिर भी,उनके पीछे,ये दीवाना  कंगला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
मौज मस्तियाँ ,चार दिनों की,यूं ही अचानक छूट जायेगी 
परिवार का भार पड़ेगा  ,यारी सारी ,टूट   जायेगी 
वो अपने घर,तुम अपने घर,देख नहीं पहचानो तक भी 
पत्नीजी के अनुशासन में ,नहीं सकोगे ,उसको तक भी 
इधर उधर की सोच बावला ,क्यों फिर यूं ही गंदला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
ये तो लालच का मारा है,माँगा करता ,मोर हमेशा 
साथ एक के रहते रहते ,हो जाता है ,बोअर हमेशा 
दिखता कितना ही शरीफ हो,मन में रहता चोर हमेशा 
कितना ही शाकाहारी हो ,रहता आदमखोर  हमेशा 
और ये चक्कर नहीं छूटता ,चाहे सर है टकला होता 
ये दिल कितना पगला होता 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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