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शुक्रवार, 3 मार्च 2017

सास बहू का रिश्ता

सास ऐसी कौन सी है ,जो बहू से तंग ना हो
रहना ही पड़ता है दबके ,कितनी ही दबंग ना हो
सास की नज़रें बहू में ,सदा कमियां खोजती है
बहू  जो भी सोचती है ,सास  उल्टा सोचती है
इसलिए उनका समन्वय ,बना करता मुश्किलों से
साथ रहती पर अधिकतर ,जुड़ नहीं पाती दिलों से
कौन बेटा ,चढ़ा  जिस पर,बीबीजी का रंग ना  हो
  सास ऐसी  कौन सी है,जो बहू से  तंग ना हो
पडोसी सत्संग में जब ,मिला करती कई सासें
बहुओं की करके बुराई ,निकाला करती  भड़ासे
सिखाती बेटी को कैसे ,सास रखना नियंत्रण में
वो ही यदि जो बहू करती ,आग लगती तनबदन में
काम करने का बहू को ,आता कोई ढंग ना हो
सास ऐसी कौन सी है , जो बहू से तंग ना हो
बात में हर एक निज,गुजरा जमाना ढूंढती हो
 जासूसी करने बहू की,नज़र जिसकी घूमती हो
सोचती है बहू ने आ ,छीन उससे लिया  बेटा
मगर फिर उस ही बहू से ,चाहती है जने  बेटा
दादी बनने की हृदय में ,जिसके ये उमंग ना हो
सास ऐसी कौन सी है ,जो बहू से  तंग ना हो

घोटू

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