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मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

पत्नियां -पांच चतुष्पदियां

     पत्नियां -पांच चतुष्पदियां
                      १
नहीं समझो कभी इनको ,कि ये जंजाल जी का है
है इनका स्वाद मतवाला ,चटपटा और तीखा है
पचहत्तर वर्षों में मैंने , तजुर्बा  ये  ही  सीखा है
प्यार से ग़र जो खाओगे ,ये हलवा देशी घी का है
                     २
न सुनना बात   बीबी  की ,बड़ी  ये  भूल होती है
सिखाती तुमको अनुशासन ,ये वो स्कूल होती है  
कभी भी सोचना मत ये ,चरण की धूल  होती है
समझना डाट उसकी भी ,बरसता फूल होती है 
                         ३
 अगर तुमसे वो कुछ बोले ,उसे आदेश समझो तुम    
 हरेक उनके इशारे में , छुपा  संदेश  समझो  तुम
करो तारीफ़ तुम उनकी ,मिटेंगे   क्लेश,समझो तुम
करो ना काम ,पहुँचाये जो उनको  ठेस ,समझो तुम 
                         ४
 नहीं समझो ये आफत है,खुदा की ये नियामत है
 मुसीबत में  पड़ोगे  जो ,कहोगे  ये  मुसीबत  है
तुम्हारे घर की हर दौलत ,उसी की ही बदौलत है
है बीबी जो ,तो घर जन्नत ,यही सच है,हक़ीक़त है
                              ५
बतंगड़ बात का बनता ,राई का पहाड़ बन जाता
पकड़ती तूल जब बातें ,तो तिल का ताड़ बन जाता 
मान कर बात बीबी की ,जरा तारीफ़ तुम कर दो ,
उफनता उनका गुस्सा भी ,उमड़ता लाड़ बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                        
            

                    

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