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बुधवार, 13 मई 2015

वादे और हक़ीक़त

          वादे और हक़ीक़त

मैं कहता था तुम्हारी मांग ,तारों से सजाऊंगा ,
पढ़ी साइंस जब मैंने और ये बात जब जानी ,
कि हर एक तारा ही अपना  ,अलग भूखंड  होता है ,
             सितारों से तुम्हारी मांग भरना मैं ,भुला बैठा
सजा करके मैं पलकों में ,रखूंगा तेरी तस्वीरें,
बड़ा ही बावरा था मैं ,जो कहता बात नामुमकिन ,
ज़रा सी किरकिरी भी ,आँख में है  दर्द भर देती ,
       बिठा के तुझको पलकों में,प्यार करना भुला बैठा  
तेरे खातिर मैं इस दिल में ,आशियाना बनाऊंगा ,
तुझे रानी बना कर के ,वहीँ पर मैं  बिठाऊंगा ,
कहाजब डॉक्टर ने दिल के ,ये क्या बकवास करते हो,
          नहीं रह पाओगे ज़िंदा ,वो वादा भी भुला बैठा
मैं सीना तान कर के प्यार से ,करता था ये वादे ,
अगरजो तुम कहो तुम पर, मैं अपनी जां निसार करदूं,
मुझे मालूम था कि ये कभी भी तुम न चाहोगी   ,
             इसी विश्वास से ही मैं ,  ये सब बातें बना बैठा
चलो अब हो गयी शादी ,तो अब हो जाएँ प्रेक्टिकल,
छोड़ सपनो की दुनियां को,जमीं पर अब उतर आएं ,
आशिक़ी में किये वादे , सभी बकवास  होते है,
   पता ना क्या क्या बक देते,जवानी की हम मस्ती में
बड़ी रंगीन  बातें थी,मुंगेरी लाल के सपने ,
हक़ीक़त जिंदगी की अब ,समझ ही लें तो अच्छा है ,
मुझे कर नौकरी ,करना कमाई, चलाना घर है ,
          तुम्हे भी चूल्हे चौके में और फंसना है गृहस्थी  में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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