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मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

शिकवा शिकायत

      शिकवा शिकायत

खिलाड़ी कुछ मोहब्बत ये ,बड़े होशियार होते है ,
            पहुँच झट जाते है दिल में,पकड़ते बस कलाई है
वो तितली की तरह कितने ही फूलों पर है मंडराते ,
            चुभे काँटा तो कहते ये  ,हमारी   बेवफाई   है
  ये उल्फत भी अजब शै  है,नहीं कुछ बोल हम पाते ,
             लगा होठों पे ताला है ,कसम उनने  दिलाई है
छुपा के उनकी यादों को ,रखा दिल की तिजोरी में ,
           यही तो एक दौलत  जो ,उमर भर में  कमाई है
सही हाथों में जो आती,हजारों नगमें लिख देती ,
            बहुत बदनाम कर देती,मुंह पर पुत सियाही है
सहा करती है धरती माँ ,हमारे सब सितम बरसों ,
           जो उफ़ कर थोड़ा हिल जाती ,मचा देती तबाही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शमा और परवाने

          शमा और परवाने

शमा जब जब भी जलती है,चले आते है परवाने ,
        खुदा ने ये मोहब्बत की ,रसम भी क्या,बनाई है
इधर परवाने जलते है ,उधर शायर ग़ज़ल कहते ,
         किसी की जान जाती है,किसी की वाह वाही है
किसी को क्या पडी किसकी साधते अपना मतलब सब,
           उन्हें करना था घर रोशन ,शमा जिनने  जलाई है
अगर ये ही रहा आलम, कौम का हश्र होगा,
           फना परवाने सब होंगे , तबाही  ही  तबाही  है
सभा ने परवानो की कल,मुकदमा कर दिया दायर ,
           उसे फांसी पे लटका दो  , शमा जिसने  बनाई है
सयाने ने सलाह दी हर चमन पे चिपके एक    नोटिस ,
           'यहाँ मधुमख्खियों का दाखिला  करना  मनाही है'
न बैठेंगी गुलों पर  वो ,न छत्ता और न मोम होगा ,
            शमाएँ बन न पाएंगी ,तो रुक सकती   तबाही है
तभी परवाना एक बोला ,शमा है तब तलक हम है ,
             शमा की ही बदौलत तो ,हमने  पहचान  पायी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बंधन- धागों का

               बंधन- धागों का
बचपन में,मेरी माँ ने,
मेरे  गले में ,एक काला धागा पहनाया था
मुझे जमाने की बुरी नज़र से बचाया था
जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ,
तो हुआ मेरा यज्ञोपवीत संस्कार
और धूमधाम और कर्मकांड के बाद,
 तीन धागों की जनेऊ ,
मुझे पहनाई गयी ,अबकी बार
जवान होने पर,
इन्ही धागों में था फूलों को गूंथ डाला
और मेरे गले में ,
मेरी दुल्हन ने डाली थी वरमाला
और मैंने भी उसके गले में ,
मंगलसूत्र   पहनाया था         
और इन्ही धागों  ने ,
मुझे गृहस्थी के जाल में फंसाया था
कभी बहना ने मेरी कलाइ पर,
राखी का धागा बाँध ,
अपने प्यार को दर्शाया  
कभी पंडितों से,
हर पूजा और कर्मकांड के बाद ,
कलाई पर कलावे का धागा बंधवाया
जीवन भर इंसान ,
उलझा हुआ रहता है, धागों के जाल में
और उसकी अरथी को भी,
धागों से बाँधा जाता है,अंतकाल में
जीवन की सुई में ,इंसान,
धागों की तरह ,बार बार पिरोया जाता है ,
और इसी तरह उम्र कटती है
और मरने बाद ,किसी दीवार पर ,
इन्ही धागों से ,उसकी तस्वीर लटकती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 26 अप्रैल 2015

भूकम्प

            भूकम्प

जब घर हिलता,तो घरवाले ,छोड़ छोड़ घर ,जाते बाहर
घरवालों के घर  को छोड़े  जाने  से भी ,हिलता है  घर
जो घर हमें आसरा देता , उसे छोड़ देते   मुश्किल  में
पहले फ़िक्र सभी को अपनी ,घर की कोई फ़िक्र न दिल में
पिता सरीखा ,घर संरक्षक ,और माता जैसी धरती है
यह व्यवहार देख बच्चों का ,ही धरती कांपा करती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रहम करो - रहम करो त्राहि माम - त्राहि माम...


सभी भूकम्प पीड़ितों के प्रति हार्दिक संवेदना
एवं प्रभावित क्षेत्र के सभी लोगों के लिये
ईश्वर से प्रार्थना के साथ...एक भाव, 
जो अनायास ही आ गया मन में...

कभी भूकंप - कभी बाढ़
कभी सूखा - कभी सुनामी
कभी दंगे - कभी दुर्घटना,
जैसे इस बहाने ईश्वर 
चाहता हो ये कहना कि
'भय बिनु होय न प्रीति...'
क्योंकि अगर न हों ये आपदायें
मनुष्य का शक्तिशाली मस्तिष्क
कहां मानेगा उसकी सत्ता को
कहां स्वीकारेगा उसकी प्रभुता को...
होती तो है पूरी कोशिश
होता तो है पूरा प्रयास कि
खोज ली जाये पूरी तकनीक
निचोड़ लिया जाये पूरा विज्ञान
सुलझा ली जायें सारी समस्यायें
जीत ली जायें सारी दिशायें
जीत लिया जाये पूरा ब्रह्माण्ड
गढ़ लिया जाये 
अपने जैसा दूसरा मानव,
गढ़ दिया जाये 
साक्षात ईश्वर को भी
गॉड पार्टिकल के रूप में...
लेकिन तभी लगता है एक झटका
और धरी की धरी रह जाती है
सारी तकनीक - सारा विज्ञान
सारी की सारी विद्यायें,
तब निकलता है मुँह से
'हे ईश्वर - या ख़ुदा - ओ गॉड
या फिर हे राम
रहम करो - रहम करो
त्राहि माम - त्राहि माम...'

- विशाल चर्चित

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

बुजुर्गों की पीड़ा

         बुजुर्गों की पीड़ा

हमारे एक बुजुर्ग मित्र,जो कभी हँसमुखी थे
अपने बच्चों के व्यवहार से,काफी दुखी थे
हमने समझाया,आपको रखना पडेगा थोड़ा सबर
क्योंकि ये जनरेशन गेप है याने पीढ़ियों का अंतर
इसलिए 'एडजस्ट 'करने में ही है समझदारी
खोल दो अपने दिल की बंद खिड़कियां सारी
इससे आपके नज़रिये में बदलाव आएगा
आपका दुखी जीवन संवर जाएगा
हमारी बात सुन कर ,वो गए बिफर
और बोले ये सब खिड़कियां खोलने का ही है असर
जब तक खिड़कियां बंद थी ,सुख था ,शांति थी,
घर में हमारी ही चलती थी
और खिड़कियां खोलना ही हमारी,
सब से बड़ी गलती थी
जब से बाहर की हवा के झोंके ,
खिड़कियों से अंदर आये है
ये अपने साथ धूल और गंदगी लाये है
मच्छर भिनभिनाते है ,
मख्खियां मंडराने लगी है
हमारी व्यवस्थित गृहस्थी ,
तितर बितर होकर,डगमगाने  लगी है
ये हमारे खिड़कीखोलने का ही है नतीजा
अब मक्की की रोटी नहीं बनती ,
हमारे घर आता है'पीज़ा'
इन बाहरी ताक़तों ने ,मेरे बच्चों पर ,
अपना कब्जा जमा लिया है
और धीरे धीरे मुझे बेबस बना दिया है
मेरा वजूद घटता जा रहा है ,
और मैं एक पुराने किले सा ढह गया हूँ
सिर्फ वार त्योंहार के अवसर   पर,
पाँव छूने की चीज बन कर रह गया हूँ
मेरे मन में यही बात खट रही है
जैसे जैसे मेरी उमर बढ़ रही है
मेरी  कदर घट   रही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

हंसी हंसी में

                   हंसी हंसी में

चलो गम के जमाने में,हंसी की बात करते है
हंसी ही बस हंसी में हम,हंसी की बात करते है
हसीनो की हंसी हरदम ,बड़ी ही है हसीं  होती
वो हँसते है तो लगता है ,बिखरते जैसे हो मोती
डाल कर जब नज़र तिरछी,अदा से मुस्कराते है
लोग घायल,कई होते,बिजलियाँ वो गिराते है
हंसी नन्हे से बच्चे की,बड़ी प्यारी,बड़ी निश्छल
बड़ा दुलार आता है, बरसता लाड है प्रतिपल
हंसी बूढ़े बुजुर्गों की ,अधिकतर रहती है गायब
कभी वो हंस लिया करते ,पुरानी याद आती जब
मुंह पर दूल्हा दुल्हन के ,छिपी मुस्कान होती है
मिलन के मीठे सपनो की,यही पहचान होती है 
होंठ जब फूल से खिलते ,हंसी वो खिलखिलाहट है
फ़ैल मुस्कान गालों पर,हंसी की देती  आहट  है
निपोरे दांत कोई तो ,कोई बत्तीसी  दिखलाता
पोपले मुंह से दादी माँ ,जब हंसती है ,मज़ा आता
हंसी होती दबी भी है,हंसी खुल कर भी है आती
ठहाके मारती है जो,हंसी  अट्टहास  कहलाती
जबरजस्ती कोई हँसता ,हंसी होती है खिसयानी
बहुत ज्यादा हंसी आती,आँख में भरता है पानी  
कोई बदमाश,खलनायक,कुटिल सी है हंसी हँसता
कोई अपनी ही हरकत से ,हंसी का पात्र है बनता
हंसी कोई की खनखन सी,रुपय्यों जैसी खनकाती
कोई मुंह फाड़ कर हँसता ,छवि रावण की आ जाती
मनोवांछित कोई जब काम होता,चीज मिलती  है 
तोमन ही मन ख़ुशी होती,हमारी बांछें खिलती   है
अगर बचकानी हरकत पर ,तुम्हारी जो हंसी लड़की
गलत ये सोच होता है,हंसी तो फिर  फँसी लड़की 
 हंसाती हास्य कवितायें,चुटकुले गुदगुदाते है
कभी हंस हंस के पागल तो,कभी हम मुस्कराते है
विदूषक हो या हो जोकर ,सभी को जो हंसाता है
है उसके मन में क्या पीड़ा ,कोई क्या जान पाता है
आज के व्यस्त जीवन में ,हंसी सब की हुई है गुम
तभी 'लाफिंग क्लबों 'में जा,हंसी को ढूंढते है हम
हंसी के गोलगप्पे है ,तो हंसगुल्ले  रसीले है
हंसा करते है जिंदादिल ,हंसा करते रंगीले है
कभी खुशियां कभी गम है,नहीं बैठे रहो गुमसुम
भूल जाओगे सारे गम,कभी हंस कर तो देखो तुम
हमेशा खुश रहो हँसते ,हंसी से अच्छी सेहत है
हंसी खुशियों की दौलत है,हंसी जीवन का अमृत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

गर्मी का असर

       गर्मी का असर

अब हम तुमको क्या बतलाएं ,सितम गर्मियों ने क्या ढाया
खिला खिला  सुन्दर गुलाब सा ,चेहरा   गर्मी में  मुरझाया
गरमी आगे ,अच्छे अच्छों  की ,हालत  हो जाती   ढीली
हो जो गरम  सामने वाला ,सबकी सूरत  पड़ती   पीली
 गर्मी की ऋतू मे.अक्सर ही    जो मौसम के फल आते है
आम,पपीता  या खरबूजा  ,     पीले  ही पाये  जाते  है
पीले पड़ते  सब गर्मी में  ,जो कि सहमे और डरे   है
किन्तु  हिम्मती  तरबूजों से , हरदम रहते हरे भरे है

घोटू

प्रीत का रस

                       प्रीत का रस 

प्रीत का रस ,मधुर प्यारा,कभी पीकर तो  देखो तुम,
           पियो पिय प्यार का प्याला,नशा मतवाला  आता है
न तो फिर दिन ही दिन रहता ,रात ना रात लगती  है,
            आदमी खोता है सुधबुध ,दीवानापन वो  छाता  है           
चाँद की चाह में पागल,चकोरा छूता है अम्बर,
              प्रीत   की प्यास का  प्यासा ,पपीहा  'पीयू' गाता  है
प्रीत गोपी की कान्हा से ,प्रीत मीरा की गिरधर से,
              प्रीत के रस में जो डूबा,वो बस डूबा ही जाता  है
कभी लैला और मजनू का,कभी फरहाद शीरी का,
             ये अफ़साना दिलों का है ,यूं ही दोहराया जाता है   
कोई कहता इसे उल्फत ,कोई कहता मोहब्बत है,
             शमा  पे जल के परवाना,फ़ना होना सिखाता   है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

लौट के पप्पू घर को आये

         लौट के पप्पू घर को आये

बहुत कोशिश की मन की भड़ासे सब निकल जाए
हुआ दो माह को गायब,विपासन,आसन ,आजमाए
कहा अम्मा ने समझा कर ,न यूं नाराज़ होते है
समझदारी और धीरज से राज के काज होते है
मिलेगा दिल्ली में आकर ,समस्याओं का हल तुझको
और चमचों ने रैली में ,दिया पकड़ा एक हल उसको
हर जगह मात खायी थी ,तो दो महीने जुगाली की
जोर से आके रम्भाया ,और जी भर के गाली दी
मगर पप्पू ,रहा पप्पू ,कौन अब उसको समझाए
ख़ाक बेंकाक की छानी ,लौट के बुद्धू घर आये
कोशिशे लाख की उसने ,मगर आगे न बढ़ पाया
न तो कुर्सी पे चढ़ पाया ,नहीं घोड़ी पे चढ़ पाया

घोटू   

रविवार, 19 अप्रैल 2015

मोहब्बत और शादी

           मोहब्बत और  शादी

कभी लैला और मजनू के,कभी फरहाद शीरी के ,
      मोहब्बत करने वालों के ,कई किस्से नज़र आये 
मगर इन सारे किस्सों में ,एक ही बात  है 'कॉमन',
         हुई इनकी नहीं शादी ,या वो शादी न कर पाये
अगर हो जाती जो शादी ,वो बन जाते मियां बीबी ,
        मगर फिरभी रहे कायम ,मोहब्बत असली वो होती
सितम शादीशुदा जीवन के, हंस कर झेलते रहना ,
        और उस पे उफ़ भी ना करना ,शहादत असली वो होती
मोहब्बत के लिए कुरबान  होना,बात दीगर है,
         निभाना साथ ,शादी कर,बड़ा है काम हिम्मत का
भाव जब दाल आटे  के,पता लगते है तो सर से,
         बहुत जल्दी उतर  जाता ,चढ़ा जो भूत  उल्फत  का

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

विदेश यात्रा का बहाना

           विदेश यात्रा का बहाना

जब से सत्ताच्युत हुए ,मलते है हम हाथ
हमको चुभने लगी है,मोदी की हर बात
मोदी की हर बात ,दिया किस्मत ने धोखा
पोल हमारी खोले ,जब भी पाये मौका
हम विरोध करने मोदी संग  जा पहुंचेंगे
इसी बहाने ,घूम  विदेशों  में हम  लेंगे

घोटू

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

खुशहाल चमन

             खुशहाल चमन

जहाँ बेख़ौफ़ होकर खिलती  कलियाँ ,लहलहाती है
जहाँ पंछी करे कलरव ,कुहू कोकिल   सुनाती  है
जहाँ मंडराया करती ,नाचती है तितलियाँ सुन्दर
जहाँ पर आशिक़ी फूलों से करते ,भ्रमर गुनगुन कर
जहाँ छायी हो हरियाली , हवा बहती रहे  शीतल
जहाँ गुलाब,बेला और चमेली खिलते है मिलकर
चमन आबाद वो रहता ,महकते फूल मुस्काते
कभी भी उसकी शाखों पर ,न उल्लू घर बसा पाते
रहेगी उस गुलिस्तां में, हमेशा खुशियां,  खुशहाली
सींचता ख्याल रख जिसको ,लुटाता प्यार हो माली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मौसम और सियासत

              मौसम और सियासत
                           १
मौसम ने इस साल तो ,ऐसा खेला खेल
बारिश,ओले,आँधियाँ ,सर्द रहा अप्रेल
सर्द रहा अप्रेल ,देश प्रगती को रोका
बाहर गए नरेन्द्र ,इन्द्र ने पाया मौक़ा
अच्छे दिन ना आये उलटी आफत आयी
फसल हुई बरबाद ,बढ़ेगी अब मंहगाई
                      २
ख़ुशी विरोधी दल हुए,अपनी जीत बताय
पप्पू ने की साधना ,बेंकाक में जाय
बेंकाक में जाय ,'शत्रुहन्ता ' जप जापा
शायद दिन फिर जाय,दूर हो जाय सियापा
'घोटू'चालू राजनीति का खेल हो गया
टूटे ,बिखरे,जनता दल में मेल हो गया 

घोटू

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

सब्जियां और सियासत

           सब्जियां और सियासत
                         १
        जो जमीन से जुड़े होते है
         लोग उन्हें सस्ते में लेते है
         और गाजर ,मूली की तरह ,
          काट दिया  करते है
                  २
     बिना पेंदी के लोगों पर भी,
    ताज चढ़ाया  जाता है
    सब्जियों में यह उदाहरण ,
बैंगन के मामले में पाया जाता है
                    ३
  जब से अंग्रेजों ने भिन्डी को,
 'लेडी फिंगर' का नाम दिया है  
  तब से वो बड़ा अकड़ती है
जमीन से जुड़े ,आलू या गाजर,
 के साथ नहीं मिलती
अकेली ही पकती है
               ४
इटालियन पिज़्ज़ा पर ,
जबसे देशी टॉपिंग चढ़ने लगी है
भारत की राजनीती ही बदलने लगी है
                ५
पत्ता पत्ता मिल कर ,
एक दुसरे से बंध  कर,
बनती पत्ता गोभी है
'चाइनीज'समाज व्यवस्था भी,
ऐसी ही होती है
भोजन समाजका दर्पण है
इसीलिये पत्तागोभी से ही,
बनते कई 'चाइनीज'व्यंजन है 
             ६
सब्जियां यूं तो अपनी ही
खांप में सम्बन्ध बनाती है
और अक्सर आलू,प्याज या टमाटर
से अपना दिल लगाती है
पर जबसे मटरगश्ती करती मटर ने ,
विजातीय पनीर से ,
दिल उलझाया है
लोगों को बड़ा मन भाया है
              ७
जमीन से जुड़े आलू और प्याज ,
भले सस्ते बिकते है
पर लम्बे समय टिकते है
और सब सब्जियों के साथ ,
उनके मधुर  रिश्ते है
               ८
काशीफल याने कद्दू ,
बंधी मुट्ठी की तरह है
जब तलक बंद है,
तब तक सेहतमंद है
और एक बार जब खुल जाता है
ज्यादा नहीं टिक पाता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

किस्मत का चक्कर

            किस्मत का चक्कर

तमन्ना थी दिल में ,बड़ी थी ये हसरत
कभी हम पे हो उनकी नज़रे इनायत
मगर घास उनने , कभी  भी  डाली,
जरा सी भी हम पे, दिखाई  न उल्फत
         अब जाके उनपे हुआ कुछ असर है
         यूं ही खामखां, ये इनायत मगर है 
         हरी घास जब सूखने लग गयी  है,
         लगे डालने हमको ,शामो-सहर है
देखो खुदा  का ये  कैसा  करम है 
वो सत्तर की है और पचोत्तर के हम है
न खाने की हिम्मत ,न ही भूख बाकी,
न ही दांतों में जब चबाने का दम है
         क्यों होता हमारे ही संग हर दफा है
         वफ़ा चाहते तब,न मिलती वफ़ा है
         थे जब बाल सर पर तो कंघी नहीं थी,
        मिली कंघी ,जब बाल सर के सफा है
खुदा तेरा इन्साफ  कैसा अजब है
नहीं मिलता खाना,लगे भूख जब है
और जब पचाने के लायक न रहते ,
पुरसता है हमको ,तू पकवान सब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

शिकायतें-पत्नी की

       शिकायतें-पत्नी की

उनको कुछ ना कुछ शिकायत ,हमसे रहती सर्वदा
प्यार है  ये  उनका  या फिर सताने  की  है  अदा
हमने घूंघट उठाया उनका सुहागरात को
बोले मंहगी साडी है ,पहले समेटो और रखो
    तबसे घर के कपडे हम ही ,समेटे करते सदा
   उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
उनको ' बाइक' पर घुमाने ,ले गए एक दिन कहीं
बोले 'राइड' में तुम्हारे संग 'थ्रिल 'बिलकुल नहीं
     ब्रेक तुमने नहीं मारे और न कुछ झटका  लगा
     उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
एक दिन उनके लिए चाय बना के लाये हम
बोली क्या कुछ पकोड़े भी नहीं तल सकते थे तुम
            चाय के संग खिलाते हो हमको बिस्किट ही सदा
           उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
हमने अपना काट के सर ट्रे में रख उनको दिया
लगी कहने ,हेयर कट तो ,करवा तुम लेते मियां
       लगा था आंसू   बहाने ,कटा सर ,हो   गमजदा
       उनको कुछ न कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
ये करो  और  वो करो ,ऐसे  करो  ,वैसे   नहीं
सिखाती रहती है हमको क्या गलत,क्या है सही
            काम  है  इतना  कराती ,हमको  देती   है   पदा
            उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
कराते है उनको शॉपिंग ,ढीली होती जेब है
फिर भी वो खुश न रहती ,यही उनमे  एब है
       बोझ हम पर,लादती सब ,समझ कर हमको गधा
        उनको कुछ न कुछ शिकायत ,हमसे रहती सर्वदा 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

देखो हम क्या क्या खाते है

       देखो हम क्या क्या खाते है

कुछ चीजे ऐसी होती है ,नहीं निगलते ,नहीं चबाते
फिर भी हम सब,उनको अक्सर जीवनभर रहते है खाते
खाते ठंडी हवा रोज ही  ,खाते   धूप बैठ कर छत पर
पत्नीजी के तीखे तीखे ताने हम खाते है अक्सर
झूंठी सच्ची ,कितनी कसमे,हम खाते ,मौके,बे मौके
मिलती सीख,ठोकरे खाते ,कितनो से ही खाते धोखे
रिश्वत कभी घूस खाते है और कमीशन भी है खाते
इसीलिए स्विस की बैंकों में हमने खोल रखे है खाते
स्कूल में गुरु ,और दफ्तर में ,डाँट बॉस की हम खाते है
और डाट पत्नी की घर पर ,हम सारा जीवन खाते है
कभी कभी जब गुस्सा खाते  तो थोड़ा सा गम भी खाते
फिर अपने  आंसू पी लेते , पीड़ा मन की नहीं दिखाते
इश्क़ मोहब्बत के चक्कर में ,उनके घर के चक्कर खाते
शादी करते ,हवनकुंड के ,सात सात हम चक्कर खाते
गाली कभी मार खाते है ,खाने मिलते जूते,चप्पल
इसी तरह बस खाते पीते ,उमर गुजरती रहती पल पल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 
 
 


शनिवार, 11 अप्रैल 2015

मतलब की दुनिया

       मतलब की दुनिया
सबने अपने मतलब साधे
काम हुआ तो  ,राधे राधे
               १ 
कच्चा आम,अचार बनाया
चटकारे ले ले कर खाया
और पककर जब हुआ रसीला
दबा दबा कर,करके ढीला
जब तक रस था,चूसा जी भर
फेंक दिया ,सूखी गुठली कर
रस के लोभी,सीधे सादे
रस न बचा तो ,राधे राधे
             २
सभी यार मतलब के भैया
सब से बढ़ कर ,जिन्हे रुपैया
जब तक काम,हिलाते है दुम
मतलब निकला ,हो जाते गुम
अपना उल्लू सीधा करके
अपनी अपनी जेबें भर के
अपना ठेंगा ,तुम्हे दिखाते
काम हुआ तो राधे राधे
               ३
समरथ को सब शीश झुकाते
जय जय करते ,नहीं अगाथे
जब तक आप रहे कुर्सी पर
मख्खन तुम्हे लगाते जी भर
खुश करने को भाग,दौड़ते
कुर्सी छूटी  ,तुम्हे छोड़ते
नज़रें चुरा ,निकल झट जाते
काम हुआ तो राधे,राधे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

वही सुलतान होता है

           वही सुलतान होता है
काम  कितने ही ऐसे है ,देखने में सरल लगते ,
       सान  कर देखिये आटा ,नहीं आसान  होता है
निकल कर होंठ से आती,गाल पर फ़ैल जाती है,
        कान से लेना ना देना ,नाम मुस्कान होता  है 
मज़ा थोड़ा जरूर आता ,चंद लम्हे सरूर आता ,
        जाम जो रोज पीते है ,बुरा अंजाम  होता है
जिसे भी मिलता है मौका ,उसे सब चूसते रहते,
       आम की ही तरह यारों ,आम इंसान   होता है
फोटो छपती है पेपर मे ,नज़र आता है टी वी पर ,
       कोई बदनाम भी होता ,तो उसका नाम होता है
जो दबते है दबंगों से ,हमेशा रोते  रहते है ,
        जो सीना तान के रहता ,वही सुलतान  होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
    

क्या सेवा इसको कहते है ?

       क्या सेवा इसको कहते है ?

मुझे बिमारी ने था घेरा
थोड़ा ख्याल रखा क्या मेरा
        इसको तुम हो सेवा कहते
खुद को सेवाव्रती बता कर
पत्नीभक्त  पति बतला कर
       अपना ढोल पीटते रहते
पत्नी  ने जब ये फरमाया
हमको काफी गुस्सा आया
       हम बोले  ये बात गलत है
होता  देखा  है ये   अक्सर
अलगअलग जगहों,मौकों पर
          होता सेवा अर्थ अलग है
ठाकुरजी को यदि नहलाओ
पूजा कर, परसाद चढ़ाओ
          प्रभु जी की सेवा कहलाती
दादा दादी पौत्र खिलाते
ऊँगली थाम उसे टहलाते
           बच्चों की सेवा  कहलाती
दफ्तर में हो काम कराना
बाबू को देना, नज़राना
           इसको सेवा पानी कहते
साला आये ,  उसे घुमाओ
साली को तुम गिफ्ट दिलाओ
          इस सेवा से सब खुश रहते
साहब के घर ,सब्जी और फल
यदि  लाओगे, थैला भर भर
         पा सकते हो शीध्र प्रमोशन
अगर गाय को चारा डालो
उसकी सेवा करो ,सम्भालो
        दूध तभी मिलता भर बरतन
गुरु की सेवा आये काम में
अच्छे नंबर 'एक्जाम 'में
        सेवा से मेवा मिलता है
साधू संत  की करिये सेवा
मिलता  ज्ञान ,कृपा का मेवा
        खुशियों से जीवन खिलता है
पिता और माँ की सेवा कर
मिलती आशिषे  ,झोली भर
       बहुत पुण्य भागी हम होते
तुम बीमार पड़ी बिस्तर पर
दी दवाई तुमको टाइम  पर 
        ख्याल रखा था जगते सोते
इस पर भी ये तुम्हे ग़िला है
इसे नहीं कहते सेवा  है
      तो क्या करता ,पाँव दबाता
ये भी तो ना कर सकता था
हुआ ऑपरेशन घुटनो का
      इसीलिये बस मैं सहलाता
किया वही जो कर सकता था
ख्याल तुम्हारा मैं रखता था
      सेवा समझो इस सेवक की
मैं पति,तुम्हारा दीवाना
बदले में दो ,मेवा या ना
       ये तो है तुम्हारी   मरजी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन यात्रा

       जीवन यात्रा
जब जीवन पथ पर हम चलते
गिरते,  उठते  और  सँभलते
जीवन भर ये ही चलता है,
         खुशियां कभी तो कभी गम है
सरस्वती जैसी चिन्ताएँ ,
गुप्त रूप से आ मिलती है ,
सुख दुःख की गंगा जमुना का ,
            होता जीवन भर संगम  है
भागीरथ तप करना  पड़ता ,तभी स्वर्ग से गंगा आती
सूर्यसुता कालिंदी बनती ,जो यम की बहना कहलाती
एक उज्जवल शीतल जल वाली
एक   गहरी ,गंभीर    निराली
सिंचित करती है जीवन को,
                  दोनों की दोनों पावन है 
सुख दुःख की गंगा जमुना का,
                  होता जीवन भर संगम है
मिलन  पाट  देता  दूरी को,तभी  पाट  होता  है  चौड़ा
पतितपावनी सुरसरी मिलने ,सागर को करती है दौड़ा
गति में भी प्रगति आती है
गहराई  भी बढ़   जाती  है
 जब अपने प्रिय रत्नाकर से ,
                 होता उसका मधुर मिलन है
सुख दुःख की गंगा  जमुना का ,
                होता जीवन भर संगम है
भले चन्द्र  हो चाहे सूरज ,ग्रहण सभी को ही लगता है
शीत ,ग्रीष्म फिर वर्षा  आती ,ऋतू चक्र स्वाभाविकता है
पात पुराने जब  झड़ जाते 
तब ही नव किसलय है आते
जाना आना नैसर्गिक है ,
                 यह प्रकृति का अटल  नियम है
सुख दुःख की गंगा जमुना का ,
                  होता जीवन भर संगम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

आ गया कैसा युग है ?

            आ गया कैसा युग है ?

सूरज पहले भी पूरब से ही उगता था ,
        अब भी वह पूरब से ही तो आता उग है
प्रकृति ने तो अपना  चलन नहीं बदला है ,
         बदल गए है लोग,आ गया कैसा युग है 
                    १   
 नहीं ययाति जैसे तुमको पुत्र मिलेंगे ,
        जो कि पिता को अपना यौवन करदे अर्पित
नहीं मिलेंगे ,हरिश्चंद्र से सत्यव्रती भी ,
        राजपाट जो वचन रक्ष  ,करे समर्पित
राम सरीखे बेटे अब ना पैदा होते ,
     छोड़ राज्य हक़ ,पिता वचन हित ,भटके वन वन
अब तो घर घर में पैदा होते है अक्सर ,
       कहीं कंस  तो , कहीं दुशासन  और  दुर्योधन
मात पिता की आकंक्षाएँ जाय भाड़ में ,
       अब खुद की ,महत्वकांक्षएं  हुई  प्रमुख है 
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है ,
       बदल गए है लोग, आ गया कैसा  युग है
                २
अपना  अपना चलन हरेक युग का होता है ,
      होती है हर युग की है  अलग अलग गाथाएं
होता सीता हरण ,अहिल्या पत्थर बनती ,
       तब भी थी और अब भी है क्यों वही प्रथाएं
नारी तब भी शोषित थी ,अब भी शोषित है,
          अब भी जुए में है उसको दांव लगाते
अब भी द्रोपदियों का चीरहरण होता है,
       लेकिन कोई कृष्ण न उसका  चीर  बढ़ाते
तब भी नारी त्रसित दुखी थी और भोग्या थी ,
       अब भी उसका शोषण होता,मन में दुःख है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है,
       बदल गए है लोग ,आ गया कैसा युग है
                   ३     
हर कोई बैचेन व्यग्र है और व्यस्त है ,
       और पैसे के चक्कर में  पागल रहता है
अब कोई संयुक्त नहीं परिवार बचा है,
      आत्म केंद्रित हर कोई एकल रहता  है
संस्कारों को लील गयी पश्चिम की आंधी,
      बिखर गए सब ,छिन्न भिन्न ,हालत नाजुक है
जाने क्यों कुछ लोग प्रगति इसको कहते है ,
       जब कि पतन की ओर हो रहे हम उन्मुख  है
सतयुग गया ,गया त्रेता भी और द्वापर भी ,
     कल जैसे सब  हुए मशीनी,अब  कलयुग है
प्रकृती ने तो अपना चलन  नहीं बदला है,
      बदल गए है लोग ,आ गया कैसा  युग है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 5 अप्रैल 2015

सुख पत्नी सेवा का

          सुख पत्नी सेवा का

जिसने सच्चे मन से मेरी,सेवा की जीवन भर सारे
 उस पत्नी की सेवा स्रुषमा में मैंने कुछ रोज गुजारे
जब से आई ब्याह घर मेरे ,कर निज तनमन मुझको अर्पित
सच्ची  सेवा और लगन से ,पूर्ण रूप से रही समर्पित
 जिसने मुझको सुख देने को ,ही अपना सच्चा सुख माना
जिसकी बांहे थाम कट गया ,अब तक जीवन सफर सुहाना
मेरी हर पीड़ा,मुश्किल में,जिसने मुझको दिया सहारा
हर पल मेरा सम्बल बन के ,जिसने सब घरबार संभाला
रही हमसफ़र ,किन्तु आजकल,मुश्किल होती थी चलने में
क्योंकि समय के साथ हो गया ,क्षरण अस्थियों का घुटने में
शल्य चिकित्सा से घुटने का ,उनने  करा लिया प्रत्यार्पण
थोड़े दिन तक ,उनकी सारी ,गतिविधियों पर लगा नियंत्रण
थी अक्षम ,बिस्तर पर सीमित,बहुत दर्द और पीड़ा सहती
मुझ बोझ पड़े कम से कम ,फिर भी उसकी कोशिश रहती
पर मैंने उनकी सेवा की ,जितना कुछ भी मैं कर पाया
उनकी आँखों में मजबूरी,धन्यवाद का भाव समाया
सेवा में ही सच्चा सुख है, बात समझ आ गयी हमारे
 पत्नी  की सेवा स्रुषमा  में ,मैंने जब  कुछ रोज गुजारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

अहसास

           अहसास
बाल रंग लेने से होती है उमर कम तो नहीं ,
           मन में अहसास जवानी का मगर आता है
देख कर आईने में सर पे पुरानी रौनक,
           चन्द लम्हे ही सही ,दिल तो बहल जाता है
बुढ़ापा है तो क्या ,हम सजते और संवरते है,
           पड़ी चेहरे की सभी झुर्रियां  छुप जाती  है
रूप जाता है निखर ,चमचमाता चेहरा है ,
           पुरानी यादें जवानी की ,उभर  आती  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अदालत है उनकी

         अदालत है  उनकी

वो जालिम है कातिल,जुलम हम पे ढाते ,
         सताना दिखा के ,अदा ,लत है उनकी
 ऊपर से हमको ,बताते है मुजरिम ,
         वो हाकिम है और ये अदालत है उनकी
  तड़फाना अपने सभी आशिकों को,
          बुरी  ही  सही ,पर ये आदत है  उनकी
मगर फिर भी  हम तो   ,दिवाने है ऐसे ,
          बसी रहती   मन में ,चाहत है उनकी

घोटू

प्यार की झंकार

        प्यार की झंकार

जब पायल की छनछन ,दिल को छनकाती है
भटक  रहे  बनजारे  मन  की  बन   आती है
   जब अपना मन, बन जाता अपना ही दुश्मन
   नज़रें उलझ किसी से ,बन जाती है उलझन
छतरी तर होने से बचा नहीं पाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
       जब सपने ,अपने ,साकार ,सामने आते
       बन  हमराही कोई  बांह थामने   आते
जेठ भरी दोपहरी बन सावन जाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
     जब मैं और तुम मिल कर,एक हो जाते है हम
      गम  सारे  गुम  हो जाते , हो  जाता    संगम 
दिल की बस्ती में मस्ती सी छन जाती है
भटक  रहे  बनजारे मन की  बन आती  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

प्रोत्साहन

       प्रोत्साहन
एक छोटे से बच्चे ने ,
एक कविता लिखी
माँ को सुनाई
माँ ने सुनी ,ताली बजाई
जब माँ की सहेलियां आई,
उन्हें भी सुनवाया
सभी ने तारीफ़ की,सराहा
बच्चे ने वो कविता ,
अपने पिता को भी सुनाई
पिता ने जल्दी जल्दी सुनी ,
शायद पसंद भी आई होगी ,
क्योंकि उन्होंने डाट ना लगाईं
सिर्फ इतना बोला
पढाई पर भी ध्यान दिया करो थोड़ा
बड़े भाई को सुनाई तो बोला ,
'ये तुकबंदी छोड़
थोड़ा स्पोर्ट में इंट्रेस्ट ले ,
सेहत बना,सुबह सुबह दौड़
छोटी बहन ने  सुनी तो ,
खुश होकर बोली छोटी बहना
 भैया ,एक कविता मुझ पर भी लिखो ना
स्कूल में दोस्तों को सुनाई
किसी ने मुंह बनाया  ,किसी  ने सराही
टीचर  ने सुनी तो दी शाबासी
स्कूल की मेंगज़िन  में छपवा दी
इन तरह तरह के प्रोत्साहनों ने ,
 बच्चे का उत्साह बढ़ाया
उसके अंदर के सोये कवि को जगाया
और आज वो साहित्य जगत में ,
जाना माना नाम है
ये उस बचपन में मिले ,
प्रोत्साहन का ही अंजाम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नज़र लग गयी

           नज़र लग गयी
बड़े गर्व से कहता था मैं ,मेरी   उमर  हुई   चौहत्तर
फिर भी मैं फिट और फाइन हूँ,कई जवानो सेभी  बेहतर
किन्तु हो रहा है कुछ ऐसा ,बढ़ने लगी खून में   शक्कर
करता मुझको परेशान है ,घटता ,बढ़ता ब्लड का प्रेशर
चक्कर आने लगे मुझे है ,डाक्टर के घर ,खाकर चक्कर
कहते है ये लोग सयाने, मेरी  नज़र लग गयी मुझ पर

घोटू

उनकी आदत नहीं बदलती

                उनकी आदत नहीं बदलती

कितना ही साबुन से धोलो ,काले काले ही रहते है,
        क्रीम पाउडर मल लेने से ,उनकी रंगत नहीं बदलती
कितना ही पैसा आ जाए ,लेकिन कृपण, कृपण रहता है ,
        मोल भाव सब्जी वाले से,करने की लत नहीं बदलती 
कितना ही बूढा हो जाए ,नेता ,नेता ही कहलाता  ,
        उदघाटन ,भाषण करने की ,उनकी चाहत नहीं बदलती
बंगलों के हो या सड़कों के ,कुत्ते ,कुत्ते ही रहते है ,
        सुबह ढूंढते खम्बा ,टायर,उनकी आदत नहीं  बदलती
प्यार पिता भी करता है पर,मन ही मन,दिखलाता कम है,
        लेकिन खुल कर प्यार लुटाती,माँ की फितरत नहीं बदलती
पति पत्नी यदि सच्चे प्रेमी ,जनम जनम का जिनका बंधन,
        चाहे जवानी ,चाहे बुढ़ापा ,उनकी  उल्फत  नहीं  बदलती
लक्ष्मी तो चंचल माया है ,कई धनी  निर्धन हो जाते ,
          विद्या की दौलत पर ऐसी ,है जो दौलत नहीं बदलती
कहते है बारह वर्षों में ,घूरे के भी दिन फिरते है,
           होते करमजले कुछ ऐसे ,जिनकी किस्मत नहीं बदलती
जिनके मन में लगन लक्ष्य की,मुश्किल से लड़ ,बढ़ते जाते ,
             होते है जो लोग जुझारू , उनकी हिम्मत नहीं  बदलती
माया के चक्कर में मानव ,सारी उमर खपा देता है,
              खाली हाथ सभी जाते है ,यही हक़ीक़त  नहीं बदलती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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