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सोमवार, 26 जनवरी 2015

यू टर्न

               यू टर्न

हुआ करता था कुछ ऐसा ,हमारी नींद का आलम,
      ख्वाब भी पास आने पर ,जरा सा हिचकिचाते थे
यूं ही बस बैठे बैठे ही ,झपकियाँ हमको आती थी,
       कभी हम आँख मलते थे,कभी गर्दन झुलाते थे
खराटोँ  की ही धुन से नींद का आगाज़ होता था,
      और अंजाम ये था ,पास वाला सो न पाता था,
पड़े रहते थे बेसुध ,नहीं कुछ भी होश रहता था ,
     हमें रावण का भैया ,कह के ,घरवाले बुलाते थे
लड़ी है आँख तुमसे जबसे है आँखे नहीं लगती ,
    मुई उल्फत ने जबसे दिल में आ के डेरा डाला है
तुम्हारी याद आती ,ख्वाब आते ,नींद ना आती ,
        हमारी आदतों ने इस तरह 'यू टर्न'   मारा  है  

घोटू

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