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सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

हम पटाखे

        हम पटाखे

हम पटाखे ,हमारा अस्तित्व क्या ,
           जब तलक बारूद,  तब तक जान है
कोई चकरी की तरह है नाचता ,
           कोई उड़ कर छू रहा आसमान है
कोई रह जाता है होकर फुस सिरफ ,
           जिसमे दम है वो है बम सा फूटता
फूल कोई फुलझड़ी से खिलाता,
           कोई है अनार  बन  कर  छूटता
पटाखे ,इंसान में एक फर्क है ,
            आग से आता पटाखा   रंग में
और इन्सां रंग दिखाता उम्र भर ,
              आग में होता समर्पित  अंत में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

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