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मंगलवार, 5 अगस्त 2014

बादल और धरती

            बादल और धरती

बड़े सांवले से ,बड़े प्यारे प्यारे
ये बादल नहीं ,ये सजन है हमारे
कराते प्रतीक्षा ,बहुत, फिर ये आते
मगर प्रेम का नीर इतना  बहाते
मेरे दग्ध दिल को ,ये देतें है ठंडक
बरसते है तब तक ,नहीं जाती मैं थक
ये  रहते है जब तक,सताते है अक्सर
कभी सिलसिला ये ,नहीं थमता दिनभर
मेरी गोद भरते ,चले जातें है फिर
भूले ही भटके,नज़र आते है फिर
शुरू होती नौ माह की इंतजारी
पिया मेरे बादल,धरा हूँ मैं प्यारी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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