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सोमवार, 25 अगस्त 2014

औरत के आंसू

              औरत के आंसू

औरत के आंसू से,हर कोई डरता है
धनीभूत गुस्सा जब ,आँखों से झरता है
चंद्रमुखी की आँखें,ज्वालामुखी बन जाती ,
लावा से बहते है ,आंसू जब गालों पर
तो उसकी गर्मी से ,पिघल पिघल जाते है,
कितने ही योद्धा भी,जिनका दिल है पत्थर
घातक है नयन नीर,अबला  का ये बल है
जब टपका करता है,आँखों से बन मोती
एक जलजला जैसे ,घरभर में आ जाता,
गुस्से में विव्हल हो,घरवाली जब रोती
बड़े धाँसू होते है,औरत के ये आंसूं ,
चार पांच ही बहते ,प्रलय मचा देते है
वैसे तो जल की ही ,होती है कुछ बूँदें,
मगर जला देते है ,आग लगा देते है
अपनी जिद मनवाने का अमोघ आयुध ये,
वार कभी भी जिसका ,नहीं चूक पाता है
चाहे झल्ला कर के ,चाहे घबराकर के ,
पतिजी से जो सारी ,बातें मनवाता  है
बड़े बड़े शूरवीर ,ध्वस्त हुआ करते है ,
औरत का ब्रह्म अस्त्र ,जब भी ये चलता है
मृगनयनी आँखों से ,छलक छलक बहा नीर ,
देता है ह्रदय चीर ,आदमी पिघलता है
बस उसका ना चलता ,बस बेबस हो जाता ,
बात  मान लेता बस ,मरता क्या करता है
 घनीभूत गुस्सा जब आाँखो से झरता है
औरत के आंसूं से ,हर कोई डरता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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