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रविवार, 10 अगस्त 2014

कितना सुख होता बंधन में

      कितना सुख होता बंधन में

 लौट नीड़ में पंछी आते ,दिन भर उड़, उन्मुक्त गगन में
                                     कितना  सुख होता बंधन में
दो तट बीच ,बंधी जब रहती ,नदिया बहती है कल कल कर
तोड़ किनारा ,जब बहती है , बन  जाती है , बाढ़   भयंकर
मर्यादा के  तटबन्धन में,  बंधा उदधि ,सीमा में रहता
भले उछल ,ऊंची लहरों में , तट की ओर भागता रहता 
रोज उगा करता पूरब में ,और पश्चिम मे ,ढल जाता है
रहता बंधा,प्रकृति नियम में,सूरज की भी मर्यादा   है
अपने अपने ,नियम बने है,हर क्रीड़ा के,क्रीडांगन  में
                                       कितना सुख होता बंधन में  
इस दुनिया में,भाई बहन का ,रिश्ता होता, कितना पावन
बहना, भाई  की  कलाई पर  ,बाँधा करती , रक्षा बंधन
कुछ बंधन ,ऐसे होते है ,सुख मिलता है ,जिनमे बंध कर
पिया प्रेम बंधन में बंधना ,सब को ही ,लगता है सुखकर
नर नारी ,गठबंधन में बंध ,जब पति पत्नी,बन जाते है
ये वो बंधन है जिसमे बंध  ,सारे  बंधन  हट  जाते  है
घिस घिस ,प्रभु मस्तक पर चढ़ती,बंधी हुई ,खुशबू चन्दन में
                                              कितना सुख होता बंधन में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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