एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

खाते पीते लोग

          खाते पीते लोग

भूख अपनी मिटाने में,
रहे हम व्यस्त  खाने में
बताएं आपको अब क्या,कि हम क्या क्या नहीं खाये
भाव हमने  बहुत खाये
घाव हमने  बहुत  खाये
वक़्त की मार जब खाई ,तब कहीं जा संभल पाये
रिश्वतें भी बहुत खायी
कमीशन भी बहुत खाया ,
बड़े ही खानेपीने वाले,ऑफिसर थे कहलाये 
गालियां खाई लोगों से,
और खाये बहुत  धोखे ,
ठोकरें खा के दर दर की ,मुकाम पे हम पहुँच पाये
मन नहीं लगता था घर में
पड़े उल्फत के चक्कर में ,
पटाने उनको,उनके घर के चक्कर भी बहुत खाये
मिली बस दाल रोटी घर
दावतें खाई,जा होटल,
मिठाई खूब खाई ,चटपटी हम ,चाट चटखाये
डाट साहब की दफ्तर में
और  घरवाली की घर में
खूब खाई ,तभी तो हम,ढीट है इतने बन  पाये
बुढ़ापे में है ये आलम
दवाई खा रहे है हम
हो गया है हमें अरसा ,मिठाई कोई भी खाये
कमाया कम,अधिक खाया
मगर वो पच नहीं पाया
माल चोरी का मोरी में ,बहा  कैसे ,क्या बतलायें
इधर भी जा ,उधर भी जा
सारी दुनिया का  चक्कर खा
गये थे घर से हम बुद्धू ,लौट बुद्धू ही घर आये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-