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रविवार, 13 जुलाई 2014

अगर- मगर

        अगर- मगर

जो तुम गर्मी की लू होती ,मैं कच्चा आम,पक गिरता,
         अगर होती जो तुम बारिश,भीगता तुममे रहता मैं  
अगर तुम होती जो सर्दी ,रजाई में दबा लेता ,
          अगर  बासंती ऋतू होती,तो फूलों सा महकता   मैं
अगर तुम आग होती तो ,मैं भुट्टे सा सिका करता,
            अगर होती हवा जो तुम,तुम्हारे साथ  बहता  मैं
अगर होती जो तुम पानी,तो तुममे डूब मैं जाता,
           तुम्हारा साथ पाने को ,सितम कितने ही सहता मैं
मगर तुम बन गयी बीबी ,और शौहर मैं बेचारा,
            तुम्हारे मूड के संग संग ,बदलते रहते है मौसम
तुम्हारी उँगलियों के इशारों पर ,नाचता मैं रहता ,
            बनी हो जब से तुम हमदम,निकाला तुमने मेरा दम

  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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