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मंगलवार, 13 मई 2014

ख्वाइशों का समंदर

        ख्वाइशों का समंदर

खायेगें वो भिगोकर के चाय में,
                   कुरकुरे बिस्किट उन्हें पर चाहिये
जिनके सर पर गिनती के ही बाल है,
                    उन्हें ही कंघे अधिकतर  चाहिये
भले निकले खट्टा और रेशे भरा ,
                     दिखने में पर आम सुन्दर  चाहिये
काटे बिन तरबूज को वो चाहते,
                     मीठा भी और लाल अंदर   चाहिये
लगा देंगे करने घर का काम सब ,
                      मगर  नाजुक ,हसीं  दिलवर चाहिये
सर्दियों में चाहिए गरमी हमें,
                      गरमी में सर्दी   का मंजर   चाहिये
नेताजी के पाँव लटके कब्र में,
                       तमन्ना ,बनना  मिनिस्टर  चाहिये
कुवे तक तो बाल्टी जाती नहीं,
                        ख्वाइशों का पर  समन्दर  चाहिये

घोटू 

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