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गुरुवार, 13 मार्च 2014

अगन और जीवन

       अगन और जीवन               

होली पर होली  जलती है
          लोढ़ी पर है लोढ़ी  जलती
दीवाली पर दीपक जलते ,
                   नवरात्रों में ज्योति जलती
दशहरे पर जलता रावण,
                दीपक जलते हर पूजन में
आतिशबाजियां जलती है,
                    हर उत्सव के आयोजन में
जलती है अग्नी हवनकुंड में 
                    होता है जब यज्ञ ,हवन
अग्नी के फेरे सात  लिए,
                  बंध  जाता है जीवन बंधन  
जब घर में चूल्हा जलता है,
                   तो पेट सभी का पलता  है
सब त्योहारों में जले अगन,
                   अग्नी से जीवन चलता है
है पंचतत्व में अग्नि तत्व ,
                    और अग्नी देव कहाती है
दो पत्थर के टकराने से
                  भी अग्नी प्रकट हो जाती है
है अग्निदेव पालक , पोषक ,
                       और अग्नी ही विध्वंशक है
अंधियारे में जलती बाती ,
                        तो होती राह प्रदर्शक है
कुछ एक दूसरे से जलते ,
                कुछ विरह अगन में जलते है
जीवन भर चिंता में जलते ,
                    मर,चिता अगन में जलते है
अग्नि से जीवन चलता हम ,
                     जीवन भर जलते रहते है
जो पानी आग  बुझाता है,
                      हम क्यों उसको जल कहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
                        

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