एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 23 मार्च 2014

न होली ना दिवाली है

                 न होली ना दिवाली है

अजब दस्तूर दुनिया का ,प्रथा कितनी निराली है
खता खुद करते, लेकिन दूसरों को देते गाली है
न तो जलती कहीं होली,न ही दीपक दिवाली  के,
भूख से पेट जब जलता ,न होली ना  दिवाली  है
अगर खींचो ,चढ़े ऊपर ,ढील दो तो जमीं पर है,
हवा में उड़ रही कोई ,पतंग तुमने सम्भाली है
पराया माल फ़ोकट में ,बड़ा ही स्वाद लगता है,
मज़ा बीबी से भी ज्यादा ,हमेशा देती साली है
अगर वो कोठरी काली है जिससे हम गुजरते है,
सम्भालो लाख ,लेकिन लग ही जाती लीक काली है 
भले एक बार खाते पर, मज़ा दो बार लेते  है ,
मनुज से तो  पशु अच्छे ,वो जो करते जुगाली है
जमा करने की आदत में,ऊँट हम सबसे अव्वल है ,
 खुदा ने  पानी की टंकी ,जिस्म में उनके  डाली है
छोड़ बाबुल का घर जाती ,किसी की बन वो घरवाली ,
किसी औरत के जीवन की ,प्रथा कितनी निराली है
सुनो बस बात तुम मीठी ,मिठाई ना मयस्सर है ,
खुदा  ने चाशनी 'घोटू 'के खूं  में, इतनी  डाली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-