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रविवार, 17 नवंबर 2013

प्यार ,दिल के तार और चाशनी


   प्यार ,दिल के तार और चाशनी

आदमी की जिंदगी में ,पहली पहली बार
जब जुड़ते है दिल के तार
याने हो जाता है प्यार
तो उसकी मिठास
होती है कुछ ख़ास
जैसे चीनी और पानी
जब मिल कर गरम किये जाते है ,
तो बनती है चाशनी
शुरू शुरू में चाशनी होती है एक तार की
जैसे जवानी वाले प्यार की
अपने प्यार की गरम गरम जलेबी ,
इस में तल कर डालो
और प्यारी  और करारी लज्जत पा लो
या तुम्हारी महोब्बत का गुलाबजामुन
इसमें डूब कर रस से परिपूर्ण हो जाएगा
खाओगे तो बड़ा मज़ा आएगा
जैसे जैसे उमर बढ़ती जाती है
ये चाशनी दो तार की हो जाती है
इसमें जब प्यार का सिका हुआ खोया ,
या भुना हुआ बेसन मिलाओगे  
तो कलाकंद या बर्फी की तरह जम जाओगे
उसका नरम  और प्यारा स्वाद
दिल को देगा आल्हाद
और बुढ़ापे में चाशनी ,उमर के साथ
तीन तार की बनने लगती है
अपने आप जमने लगती है
इसमें जिसे भी डालो ,
उसी के साथ चिपक कर जम जाती है
उसी की होकर बाहर  साफ़ नज़र आती है
जैसे खुरमा या  चिक्की
कड़क भी होती है और देर तक रहती है टिकी
तो मेरे प्यारे दोस्तों ,मत शरमाओ
दिल के तारों को ,चाशनी के तारों से मिलाओ
और प्यार के मिठास का ,
हर उमर में आनन्द उठाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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