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रविवार, 27 अक्तूबर 2013

बात -कल रात की

       बात -कल रात की

रात सुहानी सी प्यारी थी ,मन में भरी मिलन अभिलाषा
तुम मुझसे नाराज़ हो गए ,मैंने किया मज़ाक जरा सा
तुमने भी एक चादर ओढ़ी ,मैंने भी एक चादर ओढ़ी
तुम उस करवट,मै इस करवट ,ना तुम बोले ,ना मै बोली
पौरुष अहम् तुम्हारा जागा ,फेरा मुंह,सोये दूरी पर
इस आशा में,मै मनाउंगी ,पड़े रहे यूं ही मुंह ढक  कर
मुझे बड़ा गुस्सा था आया ,मै  भी खिसक ,दूर जा लेटी
तुममे भी थोडा गरूर था ,मुझ में भी थी थोड़ी हेठी
कोई किसी को तो मनायेगा ,जायेंगे हम डूब प्यार में
नींद आगई हम दोनों को,बस ऐसे ही ,इंतज़ार में
उचटी मेरी नींद जरा जब ,तुम सोते थे,खर्राटे भर
अपने सीने पर रख्खा था ,तुमने मेरा हाथ पकड़ कर
मै पागल सी हुई दीवानी ,लिपटी तुमसे और सो गयी
बंधा रहा बाहों का बंधन ,आँख खुली ,जब सुबह हो गयी
छुपा प्यार एक दूजे के प्रति,हो जाता है प्रकट हमेशा
हम अपने अवचेतन मन में ,आ जाते है निकट हमेशा
मेरा जीवन सदा अधूरा ,अगर तुम्हारा संग  नहीं है
कभी रूठना ,कभी मनाना ,जीवन का आनंद यही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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