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मंगलवार, 24 सितंबर 2013

एक चुप्पी

एक चुप्पी, 
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ है ,
तुम्हारे इतने करीब होकर भी 
बेशुमार दूरियाँ है ;

बाते तो कहने को हजार है 
लेकिन कैसी मजबुरियाँ है 
तुम्हारे लफ्ज, 
मेरे लफ्जो पे संवर भी नहीं पाते है 
क्यों शब्द बिखर-बिखर रह जाते है |

जुबान पे आते आते ऐसा क्यों 
जज्बात आँखों से
पिघल पिघल के गिर रहे है 
ऐसा लगे बरसो बाद 
बिछड़े दिल मिल रहे है ...

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