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सोमवार, 23 सितंबर 2013

मन-वृन्दावन

     मन-वृन्दावन

हमारे पड़ोस के प्रोढ़ होते हुए एक सज्जन
हर महीने दो महीने बाद
अपनी पत्नी के साथ
चले जाते  है वृन्दावन
एक दिन हमने उनसे पूछ लिया श्रीमान
दे दो हमको थोडा सा ज्ञान
वो ही मंदिर है ,वो ही मूरतें है
पंडित,पुजारी,धर्माचार्यों की ,वो ही सूरतें है
और जहाँ तक हमें ज्ञान है
हर जगह मौजूद रहते भगवान है
अगर सच्ची भावना से देखो,
तो हर मूर्ती में प्राण है
आपके घर में भी ,राधा कृष्ण की मूरत है
तो हर महीने आपको ,
वृन्दावन जाने की क्या जरूरत है
उन्होंने हमसे मुस्करा कर पूछा
आप  कभी वृन्दावन गए है क्या ?
वहां के चप्पे चप्पे में,बसते घनश्याम है
और हर गली में गूंजता राधा का नाम है
 पूरा वृन्दावन ,राधा कृष्ण मय लगता है
वहां का वातावरण ,
उनके प्यार की,खुशबू से महकता है
वहां के प्रेममय वातावरण की ,हवाओं मे
लेकर तो देखो ,कुछ साँसे
ढलती उमर के साथ ,आपका ढलता प्यार
भी पुनर्जीवन पा जाएगा
आपकी पत्नी को आप कृष्णमय लगेंगे ,
और आपको पत्नी में राधा का रूप नज़र आयेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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