एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 7 अगस्त 2013

मुझको दिया बिगाड़ आपने

           मुझको दिया बिगाड़ आपने
          
    मुझ पर इतनी प्रीत लुटा कर,सचमुच किया निहाल आपने
         मै पहले से कुछ बिगड़ा था,थोडा दिया बिगाड़     आपने
पहले कम से कम अपने सब ,काम किया करता था मै खुद
अस्त व्यस्त से जीवन में भी,रखनी पड़ती थी खुद की सुध
अब तो मेरे बिन बोले ही ,काम सभी हो कर देती तुम
टूटे बटन टांक देती  हो ,चाय     नाश्ता  धर देती तुम 
मेरी हर सुख और सुविधा का ,पूरा ध्यान तुम्हे रहता है
मुझ को कब किसकी जरुरत है,पूरा भान तुम्हे रहता है
     मुझे आलसी बना दिया है ,रख कर इतना ख्याल आपने 
      मै पहले से कुछ बिगड़ा था,   थोडा दिया बिगाड़  आपने 
भँवरे सा भटका करता था ,कलियों पीछे ,हर रस्ते में
लेकिन जब से तुम आई हो , मेरे दिल के गुलदस्ते में
तुम्हारे ही पीछे अब तो ,  मै बस  हूँ  मंडराया करता
लव यूं  लव यूं, का गुंजन ही ,अब मै दिन भर गाया करता
पागल अली ,कली  के चक्कर ,में इतना पाबन्द हो गया
इधर उधर ,होटल में खाना ,अब तो मेरा बंद हो गया
     ऐसी स्वाद ,प्यार से पुरसी ,घर की रोटी दाल आपने 
     मै पहले से कुछ बिगड़ा था ,थोड़ा  दिया बिगाड़  आपने
मुझ पर ज्यादा बोझ ना पड़े ,रखती हो ये ख्याल  हमेशा
इसीलिये ,मेरे बटुवे से ,    खाली कर        देती सब पैसा 
मेरे लिए ,शर्ट  या कपडे ,लेने जब जाती बाज़ार हो
खुद के लिये , सूट या साडी ,ले आती तुम तीन चार हो
पैसा ,मेल हाथ का ,कह तुम,हाथ हमेशा धोती रहती
धीरे धीरे , लगी सूखने, मेरे धन की  ,गंगा बहती
        मुझको ए टी एम ,समझ कर,किया है इस्तेमाल आपने 
         मे पहले से कुछ बिगड़ा था  ,थोड़ा  दिया बिगाड़ आपने
मै पहले ,अच्छा खासा था ,तुमने क्या से क्या कर डाला
ये न करो और वो न करो कह,पूरा मुझे बदल ही  डाला
और अब ढल तुम्हारे सांचे में जब बिलकुल बदल गया मै
तुम्ही शिकायत ,ये करती हो,     पहले जैसा  नहीं रहा मै 
चोरी ,उस पर सीनाजोरी , ये तो  वो ही मिसाल हो गयी
ऐसा रंगा ,रंग में अपने , कि मेरी पहचान    खो गयी
          सांप मरे ,लाठी ना टूटे ,ऐसा  किया  जुगाड़  आपने
          मै पहले से कुछ बिगड़ा था ,थोडा दिया बिगाड़ आपने
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-