एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

सोमवार, 26 अगस्त 2013

मोर,कबूतर और आदमी

      मोर,कबूतर और आदमी

झिलमिलाते सात रंग है ,मोर के पंखों में सब,
नाचता है जब ठुमुक कर ,मोरनी को लुभाता
गौर से गर्दन कबूतर की अगर देखोगे तुम,
जब कबूतरनी को पटाने ,है वो गरदन हिलाता
रंग तब मोरों के पंखों के है सारे उभरते ,
गुटरगूं कर मटकाता है कबूतर गर्दन है जब
कबूतरनी मुग्ध होकर ,फडफडाती पंख है ,
प्यार का ये निमंत्रण मंजूर होता उसको तब
पंछियों के प्यार से ये सीखता है आदमी ,
पत्नीजी के इशारों पर ,नाचता है मोर सा
पत्नीजी को पटाने को वो कबूतर की तरह ,
हिलाता रहता है गर्दन ,हो बड़ा कमजोर सा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-