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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

बोलो मै तुमसे क्या बोलूँ

    बोलो मै तुमसे क्या बोलूँ

                 बोलो मै तुमसे क्या बोलूँ
                 मन की कितनी परतें खोलूँ 
जब तुम आये,मुस्काये थे
मेरे    मानस पर छाये थे 
दुनिया कुछ बदली बदली थी
उम्मीदों ने करवट ली थी
सपन सुनहरे ,मन में जागे
लेकर अरमानो के धागे 
                  मैंने जो भी ख्वाब बुने थे ,
                   उन्हें उधेड़ू ,फिर से खोलूँ        
                   बोलो मै तुमसे  क्या  बोलूँ
शायद किस्मत का लेखा  था 
मैंने जब तुमको देखा था
मेरा दिल कुछ ऐसा धड़का
ना कुछ सोचा,ना कुछ परखा
और तुम्हे दिल दे बैठी बस
लुटा दिया जीवन का सब रस
                     उस नादानी,पागलपन पर ,
                      हसूं बावरी सी या रो लूं
                       बोलो मै तुमसे क्या बोलूँ
भले ,बुरे,सुन्दर जो भी थे
पर तुम तो रस के लोभी थे
दिखला कर के प्यार घनेरा
घूँट घूँट रस पी कर मेरा
तुमने अपनी प्यास बुझाली
गए छोड़ कर मुझको खाली
                     छिन्न भिन्न अब टूट गया दिल,
                       टुकड़े टुकड़े ,कहाँ टटोलूं
                       बोलो मै  तुमसे क्या बोलूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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