नशा -बुढ़ापे का
आदमी पर जब नशा छाता है
वो ठीक से चल भी नहीं सकता ,
डगमगाता है
उसे कुछ भी याद नहीं रहता ,
सब कुछ भूल जाता है
मेरी माँ भी ठीक से चल नहीं सकती ,
डगमगाती है
और मिनिट मिनिट में ,
सारी बातें भूल जाती है ,
नशे के सारे निशां उसमे नज़र आते है,
उमर नब्बे की में भी ऐसा भला होता है
मुझे तो ऐसा कुछ लगता है कि मेरे यारों ,
बुढापे का भी कोई ,अपना नशा होता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जीना है जीवन भूल गए
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जीना है जीवन भूल गए जब संसार सँवारा हमने मन पर धूल गिरी थी आकर, जग पानी
पी-पी कर धोया मन का प्रक्षालन भूल गए !नाजुक है जो, जरा ठेस से आहत होता,
किरच चुभे ...
2 दिन पहले
बहुत ही सुन्दर पद,आभार.
जवाब देंहटाएंहर उम्र का अपना एक नशा होता है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ...