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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

इश्क पर जोर नहीं

   वेलेन्टाइन  सप्ताह
(तृतीय प्रस्तुति)
    इश्क पर जोर नहीं

*कोई कहता प्रेम की सकडी गली है ,
                         एकसंग दो नहीं इसमें  समा सकते
**कोई कहता प्रेम बिकता हाट में ना,
                                प्रेम के पौधे बगीचे में न लगते  
***कोई कहता ढाई अक्षर प्रेम के जो,
                                ठीक से यदि पढ लिये  ,पंडित बनोगे
#कोई कहती प्रेम की वो है दीवानी,
                                दर्द उसका समझ भी तुम ना सकोगे 
$कोई कहती जानती यदि प्रीत का दुःख,
                                 तो ढिढोरा पीटती  ,जाकर नगर में
प्रीत कोई भी किसी से नहीं करना ,
                                  प्रीत पीडायें  बहुत देती जिगर में
प्रीत के निज अनुभवों पर,गीत,दोहे,
                                  कई कवियों ने लिखे हैं,जब पढूं मै
जाता हूँ पड़ ,मै बहुत ही शंशोपज में,
                                   प्रीत कोई से करूं या ना करूं    मै 
तब किसी ने कान में आ फुसफुसा कर,
                                    फलसफा मुझको बताया आशिकी का
प्रीत की जाती नहीं,हो जाती है बस,
                                      इश्क पर है जोर ना चलता  किसी का
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
* प्रेम गली  अति साकरी,जा में दो न समाय
**प्रेम न बड़ी उपजे ,नहीं बिकाये  हाट
***ढाई आखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय
#हे री मै तो प्रेम दीवानी ,मेरा दरद न जाने कोय
$सखी री जो मै जानती,प्रीत किये दुःख होय
   नगर ढिढोरा पीटती,प्रीत न करियो कोय 
 
     

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