एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

अपनी अपनी किस्मत

       अपनी अपनी किस्मत

जब तक बदन में था छुपा ,पानी वो पाक था,
बाहर  जो निकला पेट से ,पेशाब बन गया
बंधा हुआ था जब तलक,सौदा  था लाख का,
मुट्ठी खुली तो लगता है वो खाक बन गया
कितनी ही बातें राज की,अच्छी दबी हुई,
बाहर जो निकली पेट से  ,फसाद बन गया
हासिल जिसे न कर सके ,जब तक रहे जगे,
सोये तो ,ख्याल ,नींद में आ  ख्वाब बन गया
जब तक दबा जमीं में था,पत्थर था एक सिरफ ,
हीरा निकल के खान से ,नायाब   बन गया
कल तक गली का गुंडा था ,बदमाश ,खतरनाक,
नेता बना तो गाँव की वो नाक बन गया
काँटों से भरी डाल पर  ,विकसा ,बढ़ा हुआ ,
वो देखो आज महकता  गुलाब बन गया
घर एक सूना हो गया ,बेटी  बिदा  हुई,
तो घर किसी का बहू पा ,आबाद हो गया
अच्छा है कोई छिप के और अच्छा  कोई खुला,
नुक्सान में था कोई,कोई लाभ बन गया
किस का नसीब क्या है,किसी को नहीं खबर,
अंगूर को ही देखलो ,शराब   बन  गया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

2 टिप्‍पणियां:

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-