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बुधवार, 30 जनवरी 2013

ये दूरियां

        ये दूरियां
मै बिस्तर के इस कोने में ,
                           तुम सोई उस कोने में
कैसे हमको नींद आएगी ,
                             दूर दूर यूं    सोने में
ना तो कुछ श्रृंगार किया है ,
                          ना ही तन पर आभूषण
ना ही स्वर्ण खचित कपडे है ,
                           ना ही है हीरक  कंगन
सीधे सादे शयन वसन में ,
                           रूप तुम्हारा अलसाया
कभी चूड़ियाँ,कभी पायलें,
                            बस खनका  करती खन खन 
तेरी  साँसों की सरगम में,
                           जीवन का संगीत भरा,
तेरे तन की गंध बहुत है ,
                              मेरे पागल होने  में
मै बिस्तर के इस कोने में,
                               तुम सोई उस कोने में
तुम उस करवट,मै इस करवट,
                              दूर दूर हम सोये  है
देखें कौन पहल करता है ,
                              इस विचार में खोये है
दोनों का मन आकुल,व्याकुल,
                              गुजर न जाए रात यूं ही ,
टूट न जाए ,मधुर मिलन के,
                                सपने ह्रदय  संजोये है
हठधर्मी को छोड़ें,आओ,                  
                             एक करवट तुम,एक मै लूं,
मज़ा आएगा,एक दूजे की ,
                               बाहुपाश बंध ,सोने में
मै बिस्तर के इस कोने में,
                                 तुम सोयी उस कोने में
कैसे हमको नींद आएगी ,
                                दूर दूर यूं सोने  में

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे घोटू जी आपने तो एक दम घोट घोट के लिख दिया कविता में | आनंद आ गया पढ़कर | एक दम सत्य कहा आपने "देखें कौन पहल करता है, इस विचार में खोये हैं" | अक्सर इस विचार के करने में गाडी छूट जाती है और फसलें बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  2. अनावश्यक रूप से एवं प्रसंग हीन विद्वता के ज्ञापनार्थ वृहत
    शब्दों का प्रयोग जिसमें भावाभिव्यक्ति की न्यूनता हो,
    शब्दाडंबर कहलाता है.....
    " समझदार को इशारा ही काफी "

    जवाब देंहटाएं

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