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बुधवार, 16 जनवरी 2013

बिन तुम्हारे

      बिन तुम्हारे

क्या बतलाऊँ ,बिना तुम्हारे ,    कैसे कटती          मेरी रातें
मिनिट मिनिट में नींद टूटती ,मिनिट मिनिट में सपने आते 
बांह पसारूं,तो सूनापन,
                 तेरी बड़ी कमी लगती है
बिन ओढ़े सर्दी लगती है,                    
                   ओढूं तो गरमी  लगती है
तेरी साँसों की सरगम बिन,
                        सन्नाटा छाया रहता है
करवट करवट ,बदल बदल कर,
                      ये तन अलसाया रहता है
ना तो तेरी भीनी खुशबू ,और ना मीठी ,प्यारी बातें
क्या बतलाऊँ ,बिना तुम्हारे ,कैसे कटती ,मेरी रातें     
कितनी बार,जगा करता हूँ,
                     घडी  देखता,फिर सो जाता
तकिये को बाहों में भरता ,
                      दीवाना सा ,मै  हो जाता
थोड़ी सी भी आहट होती ,
                    तो एसा लगता  तुम आई
संग तुम्हारे जो बीते थे,
                    याद आते वो पल सुखदायी
सूना सूना लगता बिस्तर ,ख्वाब मिलन के है तडफाते
क्या बतलाऊँ,बिना तुम्हारे,  कैसे कटती ,    मेरी रातें
  तुम जब जब, करवट लेती थी,
                       होती थी पायल की रुन झुन
बढ़ जाती थी ,दिल की धड़कन ,
                       खनक चूड़ियों की ,प्यारी सुन
अपने आप ,अचानक कैसे,
                       बाहुपाश में हम  बंध  जाते
बहुत सताती ,जब याद आती ,
                         वो प्यारी  ,मदमाती  राते
फिर से वो घडियां  आयेंगी ,दिल को ढाढस ,यही बंधाते
क्या बतलाऊँ,बिना तुम्हारे,     कैसे कटती  ,मेरी रातें 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

1 टिप्पणी:

  1. इहाँ तो हास अउर सिंगार बिच अंतर
    धरना कठिन है.....बहुँत कठिन है.....
    डगर पनघट की झटपट भर लाओ.....

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