जो दिखता है-वो बिकता है
जो दिखता है -वो बिकता है
बिका हुआ रेपिंग पेपर में ,
छुप प्रेजेंट कहाता है
पर जब रेपिंग पेपर फटता ,
तो फिर से दिखलाता है
बन जाता प्रेजेंट ,पास्ट,
ज्यादा दिन तक ना टिकता है
जो दिखता है -वो फिंकता है
लाख करोडो रिश्वत खाते ,
नेताजी ,कर घोटाले
पोल खुले तो फंसते अफसर ,
मारे जाते बेचारे
छुपे छुपे नेताजी रहते ,
दोषी अफसर दिखता है
जो दिखता है-वो पिसता है
गौरी का रंग गोरा लेकिन,
खुला खुला जो अंग रहे
धीरे धीरे पड़ता काला ,
जब वो तीखी धुप सहे
छुपे अंग रहते गोरे ,
और खुल्ला ,काला दिखता है
जो दिखता है -वो सिकता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नयन स्वयं को देखते न
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नयन स्वयं को देखते न हम हमीं को ढूँढते हैं पूछते फिरते कहाँ हो ?हम हमीं को
ढूँढते हैं पूछता ‘मैं’ ‘तुम’ कहाँ हो ?खेल कैसा है रचाया अश्रु हर क्योंकर
बहाया, ...
17 घंटे पहले
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