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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो देख तू

अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो  देख तू     

अपने मन की कोई खिड़की,खोल कर तो देख तू

प्यार के दो बोल मीठे  , बोल कर तो देख तू
            मिटा दे मायूसियों को, मुदित होकर  मुस्करा
             खोल मन की ग्रंथियों को,हाथ तू आगे  बढ़ा
            सैकड़ों ही हाथ तुझसे ,लिपट कर मिल जायेंगे
             और हजारों फूल जीवन में तेरे खिल जायेंगे
             महकने जीवन लगेगा,खुशबुओं से प्यार की
             जायेंगी मिल ,तुझे खुशियाँ,सभी इस संसार की
अपने जीवन में मधुरता,घोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे ,  बोल कर तो देख   तू
             धुप सूरज की सुहानी सी लगेगी ,कुनकुनी 
             तन बदन उष्मित करेगी,प्यार से होगी सनी
             और रातों को चंदरमा,प्यार बस बरसायेगा
              मधुर शीतल,चांदनी में,मन तेरा मुस्काएगा
              मंद शीतल हवायें, सहलायेगी तेरा  बदन
              तुझे ये दुनिया लगेगी ,महकता सा एक चमन
घृणा ,कटुता,डाह ,इर्षा,मन के बाहर फेंक  तू
प्यार के दो बोल मीठे ,बोल कर तो  देख तू
              क्यों सिमट कर,दुबक कर,बैठा हुआ तू खोह में
              स्वयं को उलझा रखा है,व्यर्थ  माया मोह में
              कूपमंडूक,कुए से ,बहार निकल कर  देख ले
              लहलहाते सरोवर में ,भी उछल कर   देख ले
              किसी को अपना बना कर,डूब जा तू प्यार में
              सभी कुछ तुझको सुहाना लगेगा संसार  में
उलझनों के सामने मत,यूं ही घुटने टेक तू
प्यार के दो बोल मीठे, बोल कर तो देख तू 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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