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एक सन्देश-
pradip_kumar110@yahoo.com
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शुक्रवार, 31 अगस्त 2012
देशी और विदेशी लोगों में अंतर
उनने पूछा विदेशों में घूमते रहते हो तुम,
विदेशी लोगों में ,हममे,फर्क क्या बतलाईये
हमने बोला वो भी इन्सां,हम भी इन्सां,रहने को,
उनको भी घर चाहिए और हमको भी घर चाहिये
दोनो को ही अपना तन ढकने को कपडे चाहिये,
और सोने के लिये ,तकिया और बिस्तर चाहिये
गोरे है वो ,काला करते ,धूप में बैठे बदन ,
और हमको गोरा होने क्रीम पावडर चाहिये
पेट भरने,उनको ,हमको,सबको खाना चाहिये,
मगर उनको साथ में ,वाईन या बीयर चाहिये
एक के संग घर बसा कर उम्र भर रहते है हम,
और बदलते पार्टनर ,उनको अधिकतर चाहिये
हमको पढने और उनको पोंछने के वास्ते,
सवेरे ही सवेरे ,दोनों को पेपर चाहिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 27 अगस्त 2012
aaj tumne kuchh likha kya
गाँव में या फिर गली में
देश भर की खलबली में
तुम्हे कुछ अच्छा दिखा क्या?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
बाढ़ है तो कहीं सूखा
अन्न सड़ता,देश भूखा
बेईमानी और करप्शन
विदेशों में देश का धन
कहीं रेली, कहीं धरना
रोज का लड़ना झगड़ना
बात हर एक में सियासत
साधते सब अपना मतलब
कई अरबों के घोटाले
लीडरों के काम काले
और इस सब खेल में है
कई नेता जेल में है
लुट रहा है देश का धन
हर एक सौदे में कमीशन
फिर कोई नेता बिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
चरमराती व्यवस्थाएं
डगमगाती आस्थाए
कीमतें आसमान चढ़ती
भाव और मंहगाई बढती
लूट और काला बाजारी
मौज करते बलात्कारी
अस्मते लुटती सड़क पर
और सोती है पुलिस पर
हर तरफ है भागादौड़ी
पिस रही जनता निगोड़ी
प्रतिस्पर्धा लिए मन में
जी रहे सब टेंशन में
लड़ रहे नेता सदन में
बदलते निज रूप क्षण में
बात पर कोई टिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
संत योगी,योग करते
चेलियों संग भोग करते
धर्म अब बन गया धंधा
स्वार्थ में है मनुज अँधा
छा रहा आतंक सा है
आदमी हर तंग सा है
पडोसी ले रहे पंगे
कर रहे ,घुसपेठ,दंगे
बड़ी नाजुक है अवस्था
हुई चौपट सब व्यवस्था
घट रही है kkकी दर
है सभी नज़र हम पर
आगे ,पीछे,दायें,बायें
आँख है सारे गढ़ाये
चाईना क्या,अमरिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
kharrate
नींद में गाफिल जो रहते,होंश है उनको कहाँ
उनके खर्राटों को सुन कई,लोग होते परेशां
खुद तो सोते चैन से और दूसरों को जगाते
आदमी को अपने खर्राटे नहीं है सुनाते
इस तरह ही दूसरों की बुराई आती नज़र
लोग अपनी बुराई से,रहा करते बेखबर
झांक कर के देखिये अपने गरेंबां में कभी
नज़र आ जाएगी तुमको,स्वयं की कमियां सभी
कमतरी का अपनी सब,अहसास जिस दी पायेंगे
खर्राटे या बुराई सब खुद बखुद मिट जायेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
manmohan uchav
कई दिनों से,हमारी छवि ,
बड़ी मैली हो रही थी
हमारी सरकार,
कई आरोपों का बोझा ढो रही थी
हमें अपनी छवि का करना था,
स्वच्छ और साफ़ आलांकन
इसलिए हमने सस्ते में करदिया,
कोल ब्लोक का आबंटन
क्योंकि एक्टिवेटेड कार्बन,
पानी कि अशुद्धियों को ,
साफ़ कर पीने लायक बनाता है
और कोयला भी कार्बन का एक स्वरूप कहाता है
ये सच है ,माल थोडा सस्ते में बिका
पर लोगों को हमारे इस शुध्धिकरण प्रयास में भी,
घोटाला दिखा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 18 अगस्त 2012
Sahitya Surbhi: अगज़ल - 44
गुरुवार, 16 अगस्त 2012
ये बुड्डा मॉडर्न हो गया
उम्र का आखरी पड़ाव है करीब आया,
मज़ा भपूर मोडर्न होके मै उठाता हूँ
पहन कर जींस,कसी कसी हुई टी शर्टें,
दाल रोटी के बदले रोज पीज़ा खाता हूँ
अपने उजले सफ़ेद बालों को रंग कर काला,
मोड सी स्टाईल में ,उनको सजा देता हूँ
बड़े से काले से गोगल को पहन,मै खुलकर,
ताकने ,झाँकने का खूब मज़ा लेता हूँ
नमस्ते,रामराम या प्रणाम भूल गया,
'हाय 'और ' बाय' से अब बातचीत होती है
फाग का रंग नहीं ,अब तो 'वेलेनटाइन डे' पर ,
लाल गुलाब ही देकर के प्रीत होती है
वैसे तो थोड़ी समझ में मुझे कम आती है,
आजकल देखने लगा हूँ फिलम अंग्रेजी
उमर के साथ अगर हो रहा हूँ मै मॉडर्न,
लोग क्यों कहते हैं कि हो रहा हूँ मै क्रेजी
सवेरे जाता हूँ जिम,सायकिलिंग भी करता हूँ,
कभी स्टीम कभी सोना बाथ लेता हूँ
और स्विमिंग पूल जाता तैरने के लिए,
अपनी बुढिया को भी अपने साथ लेता हूँ
बड़ी कोशिश है कि फिट रहूँ,जवान रहूँ,
जाके मै पार्लर में फेशियल भी करता हूँ
आदमी सोचता है जैसा वैसा रहता है,
बस यही सोच कर ,ये सारे शगल करता हूँ
घर में मै,आजकल,न कुरता,पजामा ,लुंगी,
पहनता स्लीव लेस शर्ट और बरमूडा
सैर करता हूँ विदेशों कि,घूमता,फिरता,
तभी तो लगता टनाटन है तुमको ये बुड्डा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है
सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है
बेटियां,
यूं तो माइके में,नोर्मल सी ,
हंसी ख़ुशी रहती है,
पर गले मिल मिल कर रोती है,
जब ससुराल जाती है
राजनेतिक पार्टियाँ,
यूं तो दुनिया भर के टेक्स लगाती है,
पर चुनाव के पहले,
राहत का अम्बार लुटाती,
सुनहरे सपने दिखाती है
दीपक की लौ ,
यूं तो नोर्मल सी जलती रहती,
पर जब बुझने को होती,
बहुत चमक देती है,
फडफडाती है वैसे ही नींद सारी रात ,
यूं ही आती जाती रहती है ,
पर सुबह जब,
उठने का समय होता है
सवेरे नींद बड़ी जोर से ही आती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुधवार, 15 अगस्त 2012
सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है
बेटियां,
यूं तो माइके में,नोर्मल सी ,
हंसी ख़ुशी रहती है,
पर गले मिल मिल कर रोती है,
जब ससुराल जाती है
राजनेतिक पार्टियाँ,
यूं तो दुनिया भर के टेक्स लगाती है,
पर चुनाव के पहले,
राहत का अम्बार लुटाती,
सुनहरे सपने दिखाती है
दीपक की लौ ,
यूं तो नोर्मल सी जलती रहती,
पर जब बुझने को होती,
बहुत चमक देती है,
फडफडाती है वैसे ही नींद सारी रात ,
यूं ही आती जाती रहती है ,
पर सुबह जब,
उठने का समय होता है
सवेरे नींद बड़ी जोर से ही आती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है
आम आदमी की तरह,जमीन से जुड़े है
हाथ हमारे हमेशा,आपस में जुड़े है
सब अपने अपने काम धाम से जुड़े है
कई दलों ने आपस में जुड़ कर,
बनायी भारत की गवेर्नमेंट है
फिर भी हम कहते ,हम इंडीपेंडेंट है
फसल के लिये हम मानसून पर निर्भर है
पेट्रोलियम के लिये,हम खाड़ी देशों पर निर्भर है
विकास के लिये ,विदेशी सहायता पर निर्भर है
हर जरूरत की चीज के लिये,
हम किसी ना किसी पर डिपेंडेंट है
फिर भी हम कहते ,हम इंडीपेंडेंट है
हम सब आस्था और संस्कार से बंधे है
हम परंपरा और व्यवहार से बंधे है
हम शादी और परिवार से बंधे है
कितने ही देशों से हमने कर रखे ,
संधि,ट्रीटी और कई एग्रीमेंट है
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है
बॉस के इशारों पर,नाचते है हम
बच्चों की जिदों पर,नाचते है हम
बीबी के इशारों पर ,नाचतें है हम
पत्नी के आज्ञा मानने वाले ,
सबसे ओबीडियन्ट सर्वेन्ट है
फिर भी हम कहते,हम इंडीपेंडेंट है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंगलवार, 14 अगस्त 2012
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये
एक प्रश्न
पत्नियों की स्मार्टनेस
ये बात है जग जाहिर
पति को पटाने में,
पत्निया होती है बड़ी माहिर
पत्नियाँ होती है बड़ी स्मार्ट,
और उनके लिए ,उनके पति,
होते है क्रेडिट कार्ड
और उन्हें आता है ,
क्रेडिट कार्ड को एन्केश करने का आर्ट
अगर आपको पत्नी से मोहब्बत है
तो आपकी क्या जुर्रत है
जो कहे ,उसे न दिलवाओ,
वर्ना हो जाती फजीहत है
जरुरत की हो या बिना जरुरत की,
वो जो भी खरीदें ये उनकी मर्जी है
आप जो भी खरीद करते है,
ये उनके हिसाब से फिजूल खर्ची है
अपने पति के पर्स पर,
उनका पूरा अधिकार है
पर्स का मुंह खुला रखो,
ये ही सच्चा प्यार है
आपके पास जितना भी पैसा या द्रव्य है
ये सब उनका ही तो है,
और उनकी फरमाइशें पूरी करना,
आपका परम कर्तव्य है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सपने सभी सच हो गए
१
नज़र तिरछी डाल अपने हुस्न से जादू किया,
तीर इतने मारे उनके खाली तरकश हो गए
जाल उनने बिछाया,हमको फंसाने के लिए,
मगर कुछ एसा हुआ की जाल में खुद फंस गए
बस हमारी दोस्ती की दास्ताँ इतनी सी है,
उनने देखा,हमने देखा,दिल में कुछ कुछ सा हुआ,
उनने दिल में झाँकने की सिर्फ दी थी इजाजत,
हमने गरदन और फिर धड,डाला,दिल में बस गए
२
आग उल्फत की जो भड़की,बुझाये ना बुझ सकी,
वो भी बेबस हो गए और हम भी बेबस हो गए
लाख कोशिश की निकलने की निकल पाए नहीं,
दिल की सकरी गली में यूं टेढ़े होकर फंस गए
सोचते है बिना उनके जिंदगी का ये सफ़र,
कैसे कटता,हमसफ़र बन,अगर वो मिलते नहीं,
शुक्रिया उनका करूं या शुक्र है अल्लाह का,
वो मिले,संग संग चले,सपने सभी सच हो गए
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एपल की मेहरबानी
आज हम जो भी है,जैसे भी है,हुए कैसे,
बात ये आपने सोची है,कभी जानी है
आज जो इतनी तरक्की करी है दुनिया ने,
दोस्तों ,ये तो बस,एपल की मेहरबानी है
बनायी जब थी ये दुनिया खुदा ने तो पहले,
बनाए हव्वा और आदम थे और कुछ एपल
हिदायत दी थी कि इस फल को नहीं खाना तुम,
मगर हव्वा ने आदम ने चख लिया ये फल
और फिर खाते ही एपल,अकल उनमे आई,
कैसे क्या करना है और कैसी है दुनियादारी
दोस्तों ये इसी एपल का ही नतीजा है,
आज अरबों की ही संख्या में है दुनिया सारी
दूसरा एक था एपल गिरा दरख्तों से,
एक इंसान था ,न्यूटन कि जिसने देख लिया
और विज्ञान ने है इतनी तरक्की करली,
जब से सिद्धांत ग्रेविटी का उसने जग को दिया,
और एक तीसरा एपल दिया है दुनिया को,
जब से बिल गेट्स ने घर घर दिया है कंप्यूटर
आज मैंने भी देखो चौथा एपल खाया है,
देखते हैं ,ये दिखाता है,कैसा कैसा असर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
याद वो आता बहुत है जब दूर जाता है
शराब कोई भी,कैसी भी,कहीं भी पीलो,
हलक से उतरी तो पीकर सरूर आता है
भले ही पायी हो,मेहनत से या दुआओं से,
कामयाबी जो मिलती ,गरूर आता है
भटकलो कितना ही तुम इधर उधर मुंह मारो,
कभी ठहराव ,कहीं पर जरूर आता है
इतने मगरूर ना हो देख कर के आइना,
जवानी में तो गधी पर भी नूर आता है
बड़े बड़े गुनाह करके लोग बच जाते,
पकड़ में बेचारा ,एक बेक़सूर आता है
उसके मिलने में गजब की कशिश सी होती है,
जब भी वो पीके,नशे में हो चूर, आता है
किये अच्छे करम ,ता उम्र ,इसी हसरत में,
करे जो नेकी ,वो जन्नत में हूर पाता है
हमने देखें है होंश उनके सभी के उड़ते,
जो भी दीदार आपका हजूर पाता है
पास वो होता है तो उसकी कदर कम करते,
याद वो आता बहुत है जब दूर जाता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
एक बार चख कर तो देखो
मेरे प्रियतम,
शादी के इतने सालों बाद,
कितने बदल गए हो तुम
अक्सर जताते हो कि,
करते हो मुझसे बहुत प्यार
पर आपकी सब बातें है बेकार
जब मेरी तारीफ़ करते हो,
तो कहते हो मै हूँ बड़ी स्वीट
और जब मै पास आती हूँ ,
तो कहते हो तुम्हे है डाईबिटीज
और डाक्टर ने कहा है,
मीठी चीजों से परहेज रखो
पर डियर,एक बार प्रेम से तो चखो
तब तुम्हे हो जायेगा यकीन
कि मीठी ही नहीं, मै हूँ बड़ी नमकीन
एक बार जो स्वाद पाओगे
बार बार खाना चाहोगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पानी-तीन कवितायें
१
पानी का संगीत
पानी का एक अपना संगीत होता है
आसमान से बरसता है,तो रिमझिम करता है
नदिया में बहता है तो कलकल करता है
झरनों से झरता है तो झर झर करता है
सागर की लहरों में,सर सर उछलता है
वैसे तो शांतिप्रिय है,पर जब उफान पर आता है
तो तांडव नृत्य करता हुआ,
बाढ़,तूफ़ान और सुनामी लाता है
२
पानी का स्वभाव
पानी जब जमीन पर रहता है
कल कल कर बहता है,
मधुर मधुर संगीत देता है
और जब थोडा ऊपर उठता है
श्वेत रजत सा बर्फ बना,
पहाड़ों पर चमकता है
और जब और भी ज्यादा ,
ऊँचा उठ जाता है
उसमे गरूर आ जाता,
काले काले बादल सा बन जाता है
कभी बिजली सा कड़कता है
कभी जोरों से गरजता है
कभी तरसाता है,कभी बरसता है
उसका रंग,रूप और स्वभाव,
ऊंचाई के साथ साथ,बदलता रहता है
पानी का और मानव का स्वभाव,
कितना मिलता जुलता है
क्योंकि मानव के शरीर में,
70 % से भी अधिक,पानी रहता है
३
पानी और संगत का असर
धरा के संपर्क में पानी,
कल कल करता रहता है
मानव के संपर्क में आ वो पानी,
मल मूत्र बन बहता है
समुन्दर के संपर्क में आकर,
खारा हो जाता है
सूरज के संपर्क में आकर,
बादल बन जाता है
साथ मिला गर्मी का,
वाष्प है बन जाता
और मिली सर्दी तो,
बर्फ बन जम जाता
पानी वही पर जैसी होती है,
उसकी संगत या साथ
बदल जाता है उसका रंग रूप,
रहन सहन और स्वाद
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भविष्य का बोझ
मै रोज सुबह सुबह देखता हूँ,
बच्चे जब स्कूल जाते हैं,
उन्हें बस तह छोड़ने के लिए ,
उनके माता या पिता,
उनके संग जाते है
और बस तक,
उनके भारी स्कूल बेग का बोझा ,
खुद उठाते है
बाद मे दिन भर ये भारी बोझा,
अच्छों को खुद ही उठाना होता है
जिंदगानी के साथ भी,
एसा ही कुछ होता है
क्योंकि माँ बाप,एक हद तक,
जैसे स्कूल की बस तक,
तो बच्चों का बोझा उठा सकते है
पर जिंदगानी के सफ़र मे,
हर एक को,
अपने अपने बोझे,
खुद ही उठाने पड़ते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 13 अगस्त 2012
कसक मन में रह गयी है
भावनायें बह गयी,संभावनायें ढह गयी है
मिलन फिर हो पायेगा, ये आस धूमिल रह गयी है
अब तो कहने सुनने को बाकी बचा ही और क्या है,
ये तुम्हारी बेरुखी ही बात सारी कह गयी है
एक तो वातावरण में,हवाएं फैली,विषैली,
और उस पर फिर अचानक,हवा उलटी बह गयी है
कलकलाती थी नदी पर जब से पानी थम गया है,
हो गयी फिसलन यहाँ पर,काई की जम तह गयी है
आस में ,मौसम बसंती,आयेगा,पत्ते लगेंगे,
जिंदगानी एक सूखा वृक्ष बन कर रह गयी है
पता ना,किस दिन ढहेगी,पर टिकी,मजबूत है ,
ये पुरानी इमारत,भूचाल इतने सह गयी है
क्यों हुआ,कैसे हुआ,क्यों कर हुआ,क्या बतायें,
मगर ये होना न था,ये कसक मन में रह गयी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रविवार, 12 अगस्त 2012
माँ बाप और बेटा
मेरा बेटा,
जब नर्सरी स्कूल में पढता था
तो जो उसकी मिस कहती थी ,
उसी को सच जानता था
माँ बाप कुछ भी कहे,
उनकी बात नहीं मानता था
और अब जब उसकी शादी हो चुकी है,
उसमे कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया है
अब मिस नहीं,
उसकी मिसेस जो भी कहती है,
उसी को सच जानता है
माँ बाप कुछ भी कहे,
उनकी बात नहीं मानता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है
चोंट इतनी जमाने की खा चुके है
जितने भी आंसू थे आने,आ चुके है
विदारक घड़ियाँ दुखों की टल गयी है,
सैंकड़ों ही बार अब मुस्का चुके है
मुकद्दर में लिखा है वो ही मिलेगा,
अपने दिल को बारहा समझा चुके है
किये होंगे करम कुछ पिछले जनम में,
जिसका फल इस जनम में हम पा चुके है
मोहब्बत के नाम से लगने लगा डर,
मोहब्बत का सिला एसा पा चुके है
हम तो है वो फूल देशी गुलाबों के,
महकते है ,गो जरा कुम्हला चुके है
रहे वो खुश और सलामत ये दुआ है,
उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 11 अगस्त 2012
चंद पंक्तियाँ
सूरज,चाँद और तारे
सूरज
सूरज सूर है बड़ा,
जहाँ जहाँ जाता है
अँधेरे को हराता है
और जीती सीमा पर,
उजाला फैलाता है
उन्ही उन्ही जगहों पर,
दिन होता जाता है
चाँद
चंद्रमा की तो बड़ी,
निराली कहानी है
दुनिया में एसा ना,
कोई भी दानी है
सूरज से रौशनी,
वो उधार लेता है
और प्रकाश दुनिया में,
वो बाँट देता है
जब उधार कम मिलता,
तो वो घट जाता है
जब उधार ज्यादा मिलता,
तो वो बढ़ जाता है
पूनम को खुशहाल है
अमावास को कंगाल है
तारे
नन्हे नन्हे से तारे
दिन भर खेलने के बाद,थके हारे
बेचारे
आसमान में जाकर ,नींद के मारे
कभी पलक बंद करते,
कभी जाग जाते है
और हमको लगता है,
कि वो टिमटिमाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आजकल हम रोज जिम जाने लगे है
प्यार में हम जिनके पगलाने लगे है
आजकल वो हमसे कतराने लगे है
तहे दिल से उनसे करते है मोहब्बत,
और उनको हम तो दीवाने लगें है
थोड़ी सी अच्छी हुई सेहत हमारी,
कहते है कि हम अब मोटियाने लगे है
दिल मिलाने की कहो तो तिलमिलाते,
आजकल वो नखरे दिखलाने लगे है
पेट या सरदर्द का करके बहाना,
किस तरह भी हम को टरकाने लगे है
दुबले होने डाइटिंग के नाम पर हम,
उबली सब्जी ,टमाटर ,खाने लगे है
'घोटू 'हम स्टीम ,सोना बाथ लेकर,
अपनी चर्बी , थोड़ी छटवाने लगे है
जब से उनने हमको मोटा कह दिया है,
आजकल हम रोज जिम जाने लगे है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शुक्रवार, 10 अगस्त 2012
चोरी की परमिशन
यदुवंशी किशन कन्हैया,
खुद माखन चुराते थे
और साथी ग्वालबालों से,
ये भी कहते जाते थे
तुम भी थोडा माखन चुरा सकते हो,
अपना ही माल है
और जन्माष्टमी के अवसर पर,
एक यदुवंशी नेता ने,
कृष्णजी की याद में,
यदि अपने अफसरों को,
थोड़ी बहुत चोरी करने की परमिशन देदी,
तो फिर क्यों बवाल है?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
***आ जाओ गोपाल***
कब आओगे ,ओ! बनवारी
नयन जोहते बाट तुम्हारी
कब आओगे, ओ! बनवारी
रोज रोज माकन हांड़ी भर,
ताके राह यशोदा मैया
यमुना तक सुनसान पड़ा है,
कब आओगे रास रचैया
गोपी,राधा,सब दुखियारी
कब आओगे ओ! बनवारी
मन है मलिन ,देह कुब्जा सी,
मोह माया के निकले कूबड़
कब निज चरणों के प्रसाद से,
ठीक करोगे इनको गिरधर
आस लगाए है बेचारी
कब आओगे ओ!बनवारी
कैद पड़े बासुदेव,देवकी,
कंस चूर सत्ता के मद में
जनता त्राहि त्राहि कर रही,
सब की जान फंसी आफत में
कंस हनन अब करो मुरारी
कब आओगे ओ!बनवारी
जरासंध मद अंध हो रहा,
शिशुपाल भी है पगलाया
सौ से अधिक ,गालियाँ सह ली,
तुमने अपना वचन निभाया
चक्र चलाओ,सुदर्शनधारी
कब आओगे ओ!बनवारी
आओ नई पीढ़ी को जीवन,
जीने का सिखलाओ तरीका
रिश्ते नाते भुला दिये सब,
गीता से बस इतना सीखा
फिर समझाओ गीता सारी
कब आओगे ओ!बनवारी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुरुवार, 9 अगस्त 2012
नाम और काम
नाम और काम
सजना कभी नहीं कहते है तुमसे सज ना
दर्पण कभी नहीं कहता है दर्प न करना
नदिया ऐसी कोई नहीं जिसने न दिया हो
पिया न जिसने कभी अधर रस नहीं पिया हो
सूरज में रज नहीं मगर सूरज कहलाता
और समंदर ,जिसके अन्दर सभी समाता
वन देते है जीवन,वायु आयु प्रदायक
और जल,जलता नहीं,सदा शीतलता दायक
सभी तरफ दिखता समान वो आसमान है
प्रकृति की हर एक कृति,अद्भुत ,महान है
धरा, सभी कुछ इसी धरा में,ये माँ धरती
इशवर के ही वर से हम तुम है और जगती
जग मग ,जग को करते,सूरज चंदा तारे
सार युक्त संसार,अनोखे सभी नज़ारे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बौना का बौना
मेरी कृतियाँ,चूम रही है आसमान को,
अपनी कृतियों के आगे ,मै,सूक्ष्म खिलौना
मैंने उड़ कर,चाँद सितारे ,नापे सारे,
मै अदना सा जीव,रहा बौना का बौना
बुधवार, 8 अगस्त 2012
गाने-नये पुराने-अपने बेगाने
पुराने गाने
सुन्दर शब्दावली
मधुर धुन
कर्णप्रिय
मनभावन
पुरानी पीढ़ी की तरह
भावना और
रिश्तों की अहमियत से लिपटे हुए,
लम्बे समय तक लोगों को
याद रहनेवाले .
जब भी होठों पर आते है,
अपने से लगते है
और नये गाने अक्सर,
बेतुके बोल,
कानफोडू संगीत,
भाव शून्य
आत्मीयता विहीन
चार दिन तक शोर मचाते है
फिर बिसरा दिये जाते है
जहाँ अक्सर,
भावनाएं और आत्मीयता का बोध,
बड़ी मुश्किल से मिलता है
नये गाने,
नयी पीढ़ी की तरह ,
बेगाने होते जा रहे है
मदन मोहन बाहेती'घोटू',
मंगलवार, 7 अगस्त 2012
नाम और काम
सजना कभी नहीं कहते है तुमसे सज ना
दर्पण कभी नहीं कहता है दर्प न करना
नदिया ऐसी कोई नहीं जिसने न दिया हो
पिया न जिसने कभी अधर रस नहीं पिया हो
सूरज में रज नहीं मगर सूरज कहलाता
और समंदर ,जिसके अन्दर सभी समातावन देते है जीवन,वायु आयु प्रदायक
और जल,जलता नहीं,सदा शीतलता दायक
सभी तरफ दिखता समान वो आसमान है
प्रकृति की हर एक कृति,अद्भुत ,महान है
धरा, सभी कुछ इसी धरा में,ये माँ धरती
इशवर के ही वर से हम तुम है और जगती
जग मग ,जग को करते,सूरज चंदा तारे
सार युक्त संसार,अनोखे सभी नज़ारे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
डकार
विदेशी प्रवास
सुबह होटल में अमेरिकी ब्रेकफास्ट
बस में बैठ कर भ्रमण को निकलना
दर्शनीय स्थलों पर घूमना,फिरना,विचरना
और लंच के समय जब बस रूकती थी
तो लोगों के नाश्ते की पोटलियाँ खुलती थी
गुजरातियों के थेपले और खान्खरे ,
मारवाड़ियों के लड्डू और भुजिया
पंजाबियों के मठरी और अचार
हल्दीराम के नमकीन और मिक्सचर
या पीज़ा,फ्रेंच फ्राईज और बर्गर
और रात को इंडियन डिनर
मैदे की रबर सी ठंडी रोटियां
उबले फीके छोले,
पके अधपके चांवल,
स्वादहीन सब्जियां,
सूखी,रसविहीन,एनीमिक जलेबियाँ
चींठे गुलाबजामुन या पतली सी खीर
इन्ही चीजों से भर कर के प्लेट
किसी तरह भी भरा करते थे पेट
या सलाद और फल खाकर,
ही दिये दस दिन गुजार
और जब घर आकर,
खाये आलू के गरम गरम परांठे
और आम का अचार,
तब ही आई तृप्ति भरी डकार
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पसीना बहाना
कितनी नाइंसाफी है
गरीब मेहनत कर पसीना बहाता है,
और अमीर को पसीना बहाने के लिए,
'सोना बाथ'लेना काफी है
बस इतना अंतर है
गरीब जब पसीना बहाता है,
चार पैसे कमाता है
और अमीर पसीना बहाने के लिये,
चार आने लगाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 6 अगस्त 2012
सीमाओं को लांघने का मज़ा
सीमाओं को लांघने का भी,
अपना एक मज़ा है
कूप मंडूक की तरह,
घर की चार दीवारी में ,
सिमट कर रहना
और मौजूदा हालात में,
सुखी और संतुष्ट रहना
आदमी की नेसर्गिक प्रवृर्र्ती है
वो जिस हाल में है,
समझता है खुशहाल है
पर जब वो अपने घोंसले से निकल,
खुली हवा में तैरता है,
तब उसे लगता है ,
कि दुनिया कितनी विशाल है
लहराते समुन्दर,
बर्फ से ढके पहाड़,
झरते हुए झरने,
कल कल करती नदियाँ,
विभिन्न वेशभूषा,
विभिन्न खानपान,
विभिन्न चेहरे मोहरे,
विभिन्न संस्कृतियाँ
ये सब देख कर,
उसकी संकुचित विचारधारा में,
कितना बदलाव आता है
प्रकृति कि इन अद्भुत कृतियों को देख,
वह उस सर्जक को सराहता है
एक बार जरा पंख फडफडा कर,
घोंसले से निकल कर तो देखो,
खुले आसमान में विचर कर तो देखो,
रोज रोज दाल रोटी खाने के बदले,
पीज़ा या नूडल खा ,स्वाद बदल कर तो देखो
तभी जान पाओगे,परिवर्तन क्या है
सीमायें लांघने पर,
समय भी बदल जाता है,
एक बार सीमायें लांघ कर तो देखो,
सीमायें लांघने में,बड़ा मज़ा आता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दो अनुभूतियाँ-अलास्का क्रूस से
१
गर्वीला नीला ग्लेशियर,
अपने नीले बरफ के छोटे बड़े टुकड़े,
अलास्का की खाड़ी में बहा रहा है
जैसे छोटी छोटी किश्तों में,
अपना ऋण चुका रहा है
और समंदर के पानी में तैरते,
ये नीले ग्लेशियर के टुकड़े,
ऐसे लगते है जैसे,
नीलाम्बर से उतर कर परियां,
नीले तरन वस्त्र पहन कर,
पानी में अठखेलियाँ कर रही हो,
या फिर स्वर्ग से ,
नीलकमल बह बह कर,
अलास्का की शोभा बड़ा रहे हो
और समंदर के दोनों तरफ,
रजत शिखर सर उठाये,
इस अद्भुत दृश्य को निहार रहे हो
और मै,
एक विशाल जहाज की गेलरी से,
इस मनोहारी दृश्य को देख,
प्रकृति के सौन्दर्य को सराह रहा हूँ
2
पानी के जहाज में भरा,
मानवों के झुण्ड को आता देख,
बर्फ से ढके रजत शिखरों ने,
अपने आप को बादलों में छुपा लिया
क्योंकि उन्हें याद आया,
कि किस तरह,
स्वर्ण की तलाश में आई,
मानवों की भीड़ ने,
'गोल्ड रश' के दिनों में,
उनके कितने ही भाई बहनों का,
सीना चीर चीर कर,छलनी कर दिया था
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भ्रष्टाचार
समय था वह ,सबको थी सबके सुखो की कामना
भाग्य को दुर्भाग्य से तब दुःख पड़ा था झेलना
स्वदेश में विदेश के गुलाम बनके हम रहे
भूल कर निज एकता को दासता के दुःख सहे
महान बलि तप त्याग से स्वतंत्रता हमें मिली
मिटा के दासता तिमिर प्रभात की कली खिली
था हमसे कुछ डरा हुआ गुलाम देश में भी वह
प्रयत्न खूब करके भी सता हमे सका न वह
वरन दुखी किया है अब हमे स्वतंत्र देश में
सता रहा है रात दिन पनपके भ्रष्ट वेश में
दीन का तो शत्रु है ऊंचे जनों का यार है
थे जो मिटा सकते इसे उनको इसी से प्यार है
फैलता बढ़ता गया यों एक दिन वह आयेगा
हम न रह पाएंगे भ्रष्टाचार ही रह जायेगा
आनंद बल्लभ पपनै
(अवकाश प्राप्त अध्यापक)
रानीखेत
रविवार, 5 अगस्त 2012
बिन दोस्ती
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
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ज़िन्दगी का गणित - कोण नज़रों का मेरे सदा सम रहा न्यून तो किसी को अधिक वो लगा घात की घात क्या जान पाये नहीं हम महत्तम हुए न लघुत्तम कहीं रेखा हाथों की मेरे कुछ अधिक वक्र ...9 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...9 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...9 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...9 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...9 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...9 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...9 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...9 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...10 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...10 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...11 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...11 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...11 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...11 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...12 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...12 वर्ष पहले
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