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बुधवार, 13 जून 2012

हे परमपिता !

       हे परमपिता !
हे परमपिता! मै बीज था,
तूने मुझे माटी दी,
अंकुरित किया,बिकसाया
आँखें दी,कान दिये,
हाथ दिये,पैर दिये,
और चलना सिखलाया
मै जल था,
थोड़ी सी गर्मी पाकर,
वाष्प बनकर उड़ने लगा तो,
तूने ठंडक देकर फिर  से जल बना दिया
मुझ पर जब दुःख के बादल छाये ,
तूने मेरे दुखों को,
आंसू की बूँदें बना,बहा दिया
पीड़ाओं ने जब जब मुझे,
बरफ सा जड़ बनाया
तूने मुझे ,अपने प्यार की उष्मा से पिघलाया
अच्छे और बुरे का,
कडवे और मीठे का,
सच्चे और झूंठे का,
भेद करना सिखलाया
हे प्रभू!मै क्या क्या बतलाऊ ,
तूने मेरे लिए क्या क्या करा है
पर ये स्वार्थ,दंभ और अहम्,
ये सब भी तो तूने ही मुझमे भरा है
और जब मुझे सफलता और खुशियाँ मिलती है,
मै अपने आप पर इतराता हूँ
या तो तुझे भूल  जाता हूँ,
या फिर पांच रुपयों का प्रसाद चढ़ाता हूँ
मै भी कितना मूरख हूँ,
तुझे पांच रुपयों का लालीपाप देकर,
बच्चों की तरह बहलाने की कोशिश करता हूँ
कितना नाशुक्रा हूँ,नादान हूँ,
मेरी गलतियों के लिए,
मुझे माफ़ कर देना ,
मै तेरा बच्चा हूँ,
तुझे सच्चे दिल से प्यार करता हूँ
जीवन पथ पर ,जब भी मै भटका हूँ,
तूने ही तो आकर,
मेरी ऊंगली थामी है 
तू मेरा सर्जक है,
तू मेरा पोषक है,
मेरे अंतर में बसा हुआ,
तू अंतरयामी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

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