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सोमवार, 19 मार्च 2012

खामोश चाहत

मैं छूना चाहता हूँ ,
तुम्हें ,
कुछ इस तरह कि,
छूने का अहसास ,
भी होने पायें तुम्हें ,
क्योंकि , तुम मेरी खामोश चाहत का ,
मंदिर हो ,
मेरी चाहत का भूले से भी ,
अहसास ना करना ,
क्योंकि ये अहसास ,
तुम्हें चुभन और तड़पन देगा ,
और मैं तुम्हें तडपाना तो नहीं चाहता ,
मैं तो बस चाहते ही रहना ,
चाहता हूँ तुम्हें ,
तुम्हें अपनी चाहत का अहसास ,
दिलाये बिना ,
और मैंने अपनी इसी चाहत को ,
खामोश चाहत ,
का नाम दिया है .

विनोद भगत

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