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रविवार, 18 सितंबर 2011

,तुमने मेरी सुबह बना दी

तुमने मेरी सुबह बना दी
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तारे सारे डूब गए थे,दूर हो रहा अँधियारा था

नभ में उषा की लाली थी,सूरज उगने ही वाला था
शबनम की बूंदों के मोती ,हरित  तृणों पर चमक रहे थे
और पुष्प रजनी गंधा के,अब भी थोड़े महक रहे थे
पंछी अभी नीड़ में ही थे,अपना आलस भगा रहे थे
पुरवैया के झोंके थपकी,दे पुष्पों को जगा रहे थे
कब कलियाँ चटके और विकसे,रसिक भ्रमर थे इन्तजार में
मै भी अलसाया लेटा था, खोया सपनों के खुमार में
तुमने अपनी आँखें खोली,करवट बदली,ली अंगडाई
लतिका सी मुझसे आ लिपटी,मेरी बाहों में अलसाई
सूरज उगा,प्रखर हो चमका,तन मन में वो आग लगा दी
सुबह सुबह मुझ को सहला कर,तुमने मेरी सुबह बना दी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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